एक सवाल जो हर किसी के दिमाग में आता होगा कि हमारे देश में धर्म के आधार पर समाज के बटने का मूल कारण क्या हो सकता है? अभी तक जो भी मेरे पास ज्ञान है उसके आधार पर मूल्यांकन करने की कोशिश कर रहा हु जो की मेरे व्यक्तिगत विचार है| समाज के हर धर्म में एक्सट्रीमीटीज लोग है| उनके साथ सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि उन्हें अपना धर्म जितना अच्छा लगता है उससे कहीं ज्यादा दूसरों का धर्म गन्दा लगता है|
दुसरे शब्दों में कहूँ तो उन्हें अपनी अच्छाई उतनी अच्छी नहीं लगती जितनी दूसरों की बुराई| कहने को अपने आप को वो लोग सूफी-संत कहते है| जो बहुसंख्यक में है वो अपनी अस्तित्व को लेकर अपने लोगो को डराता है और जो अल्पसंख्यक में है वो बेचारगी का प्लेकार्ड खेलता है| इस पेस्टिसाइड से सियासत की फसले लहलहाती तो जरूर है लेकिन उसका फल देश के स्वास्थ्य के लिए बेहद ख़राब होता है|
दूसरी गलती सरकारी और प्रशासनिक स्तर पर भी देखने को मिलता है| आपको पता है इस सरकार में सबसे ज्यादा जोर एम्.एस.एम.इ.(माइक्रो स्माल मीडियम इंटरप्राइजेज) और छोटे उद्योगों पर दिया जा रहा है| ऐसा क्यों होता है कि पहले बीमारी हम खुद देते है और फिर उसी को सही करने में बहुत बड़ा धनराशी ख़राब कर देते है| फिरोजाबाद उत्तरप्रदेश का एक शहर जो चूड़ियों और कांच से बने वस्तुओं के उद्योग के लिए बड़ा ही मशहूर शहर किया करता था|
वहाँ पर सबसे ज्यादा मुस्लिम रहते है| आज उनकी स्तिथि बेहद ख़राब हो गई है| यहाँ तक कि मालिक की भी हालत खस्ती हो चुकी है| सस्ते में बिकने वाले चाइनीज कांच के सामानों और चूड़ियों ने कमर तोड़ कर रख दिया है| उस शहर में बढती बेरोजगारी मुस्लिम समाज के लोगों में असंतोष पैदा कर रही है| जब भी ऐसे मौके दिखते है तो पढ़े-लिखे एक्सट्रीमीटीज इसे अपना हथियार बनाने से बिल्कुल नहीं चुकते|
इन्ही असंतोष का भरपूर फायदा उठाने की कोशिश करते है और अपनी सियासी पैतरों के लिए समाज को बाटने की कोशिश करते है| दूसरा केस स्टडी हम बनारस का ले सकते है| बनारस बेसक हिन्दू धर्म का एक बड़ा ही पवित्र स्थल है| यहाँ भी मुस्लिम लोगों की तादाद काफी अच्छी है| लेकिन वहाँ के कपडे उद्योगों की भी वही हाल है| कारण भी वही है कि विदेशी वस्तुओं की प्रतिस्पर्धा में अपने आप नहीं ला पाते| अब सवाल है कि क्यों नहीं ला पाते? उनकी वस्तुओं के दाम कम क्यों होते है|
जैसा कल मैंने चाइना से उत्पादित वस्तुओं के दाम कम होने का कारण दिया था वो तो है ही| इसके अलावां उनके यहाँ से एक्सपोर्ट होने वाली वस्तुओं पर हम कम ड्यूटी लगाते है| जब बात डॉलर की आती है तो एक्सपोर्ट पर हम ड्यूटी एकदम ना के बराबर लगाते है| इससे बहुत ही सस्ते में चाइनीज लोग सामान यहाँ से इम्पोर्ट करते है और कम ड्यूटी होने की वजह से यहाँ लाकर डंप करने की कोशिश करते है|
स्वाभाविक सी बात है यहाँ के लोगों का रोजगार कम होने असंतोष पैदा करेगा| और जो एक्सट्रीमीटीज के लोग है इसे सियासत करने के लिए धार्मिक भेदभाव को कारण बताएँगे| अपना विश्वास जमाने के लिए कभी सच्चर कमिटी का सहारा लेंगे, कभी रंगराजन कमिटी का| कमिटी तो वही रिपोर्ट देगी न हो हालात होंगे| लेकिन इसका कारण को अपने हिसाब से बड़े ही शातिराना अंदाज में मोड़ दिया करते है| ठीक यही चीज आदिवासी इलाकों में है| राज्यसभा टीवी पर श्याम सुंदर जी ने अभी तक आदिवासियों पर 22 एपिसोड कर चुके है|
मैंने ज्यादातर जगहों पर पाया कि उनकी बुनाई, कढाई और कपडा बनाने वाला घरेलु उद्योग वाकई में शानदार है| उन्हें एक साल में बनाने में 5-6 घंटे लगते है और मिलते मात्र 30 से 50 रूपए ही है| हम उन्हें अपने बाजार तक पहुचाने में असामर्थ्य है| परिणाम वही गरीबी और बेरोजगारी| एक्सट्रीम लेफ्टिस्ट इसे अपना हथियार बनाते है और उद्योगपतिओं के रहने-सहने का हवाला देकर उन्हें नक्सल की तरफ ढकेलते है|
Support us
Hard work should be paid. It is free for all. Those who could not pay for the content can avail quality services free of cost. But those who have the ability to pay for the quality content he/she is receiving should pay as per his/her convenience. Team DWA will be highly thankful for your support.
There are no reviews yet.