लम्बे समय बाद एक बार फिर साम्प्रदायिकता की आग में बिहार

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लगभग दो साल पहले इत्तेफाक से आम आदमी पार्टी के पूर्व वरिष्ठ नेता प्रो. आनंद कुमार से मुलाकात दिल्ली में हुई थी| लगभग कुल 15 मिनट की बातचीत के दौरान उनसे सबसे पहली लाइन मैंने ‘भोजपुरी के सैवधनिक अधिकार’ को लेकर यहीं कहा था कि पूर्वांचल और बिहार के लोगों ने सदा से अपनी मांगों को सही तरीके से सरकार के सामने रखा है| पिछले 25-30 वर्षों में कोई भी सांप्रदायिक झगड़े नहीं हुए| इसके जवाब में मुझसे सहमती जताते हुए कहा कि बात सही है कि अंतिम बार सांप्रदायिक तनाव तब हुआ था जब आडवानी जी रथ यात्रा निकाल रहे थे|

भागलपुर का दंगा बिहार के इतिहास में सबसे बड़ा दंगा था, जिसने पुराने राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक ताने-बाने को झकझोर दिया था| यक़ीनन अगर वह दंगा नहीं होता तो शायद लालू प्रसाद यादव बिहार में यादव-मुस्लिम समीकरण नहीं बना पाते| शायद तत्कालीन प्रधानमंत्री मंडल आयोग की सिफ़ारिशें भी लागू नहीं करवा पाते| अप्रत्यक्ष रूप से देखे तो उन समस्याओं के जड़ वही लोग रहे है जो आज उन समस्याओं को आधार बनाकर समाज और समाज के लोगों को बाँटने की कोशिश कर रहे है|

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एकबार फिर इतने सालों बाद बिहार उसी साम्प्रदायिकता की आग में है| बिहार में रामनवमी पहले भी लोग मनाते आए है| हर साल लोग मनाते रहे है| आखिर इस बार ऐसा क्या ख़ास था रामनवमी में कि सांप्रदायिक तनाव पैदा हो गए? फोटो और विडियो ही इतने खतरनाक है कि जो वास्तव में समाज के लिए डरावना है| महज 12-13 साल के लड़के हाथ में तलवार लिए भगवान श्रीराम का नाम बदनाम करते जुलुस निकाल रहे है| और तो और औरतों को भी इन कामों में लिए रोड पर लेते आए| परिणाम यह होता है कि रामनवमी के जुलूस को लेकर बिहार के कई हिस्सों से हिंसक झड़पे होती है|

औरंगाबाद, भागलपुर, मुंगेर और समस्तीपुर के अलावां राज्य के अलग-अलग हिस्सों में सांप्रदायिक हिंसा फैलता है| रामनवमी जुलूस और प्रतिमा विसर्जन कार्यक्रम के हिंसक झड़पें इसकी नीवं बन जाती है क्युकी भीड़ का कोई नाम पता नही होता| ऐसा इस बार ही क्यों हो रहा है? अगर ऐसे ही हाथ में हथियार लिए दुसरे समुदायों के लोग अपने पर्वों पर अपनी शक्ति प्रदर्शन करे तो क्या हमारे समुदाय के लोगों को हजम हो पाएगा? मै आश्वस्त हूँ कि उन्हें आतंकवादी घोषित करने में जरा भी देर नहीं होगी|

‘डेमोग्राफिक डिविडेंट’ को भारत की सबसे बड़ी पोटेंशियल के रूप में देखा जा रहा है| लेकिन यह पोटेंशियल तभी बन पाएगा जब इसका पूरा पूरा सदुपयोग होगा| अगर इसका सही तरीके से उपयोग नहीं होता है तो यही ‘डेमोग्राफिक डिविडेंट’ उल्टा प्रतिक्रिया देता है| देश के तमाम कोने में हो रहे दंगे इसके अच्छे उदहारण है| नौजवान लोगों को सही से देशहित में उपयोग नहीं कर पाना भी राजनितिक सोसाइटी का एक पोलिटिकल ट्रिक रहा है|

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इससे मुफ्त में नौजवान उनके झंडे उठाने और जयकारा लगाने को मिल जाते है| जो भी लड़के दिख रहे है चाहे बात बिहार में हो, चाहे बात महाराष्ट्र में हो, चाहे उत्तरप्रदेश या फिर तमिलनाडु में क्यों न हो, सब के सब बेरोजगार लड़के है जो बेरोजगारी की भड़ास सांप्रदायिक रूप से निकालते है| जिस नौजवान के पास नौकरी है उसके पास समय कहाँ है कि वो इन सब फालतू चीजों में पड़े| इसलिए यह मान लेना सही है कि जो बच्चे विडियो या फोटो में दीखते है वो सब के सब बेकार है जिसका जिम्मेदारर सिर्फ सरकार है|

ये सिर्फ बिहार ही नहीं हर जगह हुआ है| बंगाल, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, उत्तरप्रदेश भी उसी श्रृंखला की कड़ी है| अभी 2019 आने में बहुत महीने है अभी ऐसी घटनाएं और होंगी| क्युकी पिछले चार सालों में कुछ ख़ास न कर पाने को कहीं न कहीं तो छुपाया जाएगा न| उसी की यह कोशिश मात्र है| यह सब अचानक नहीं होता| सबकुछ पहले से निर्धारित होता है| आखिर कहीं तो बल्क में झंडो को सिलाने का आर्डर दिया जाता होगा| कोई तो टीम होगी जो एक जैसे बाँस से काट के डंडों को तैयार करती होगा|

कहीं तो थोक में भगवे गमछों को ख़रीदा जाता होगा| कोई तो पढ़ा लिखा दहशतगर्द होगा जो एक रूम में बैठ के आपतिजनक व्हात्सप्प मेसेज को तैयार करता होगा| एकदम एक रंग में रंग के उत्पाद मचाने की प्लानिंग कहीं तो होती होगी| कहीं न कहीं से इसका फंडिंग तो होता होगा| काश ऐसे ही कम समय में फुर्तीले अंदाज में फंडिंग उन बच्चों को हो जाता जो रिसर्च करते है जहाँ फंडिंग के लाले पड़े रहते है| शिक्षा, स्वास्थ्य और समाज अक्सर राजनितिक स्फीयर में नहीं पाया जाता है, इसलिए ऐसी चीजों की अपेक्षा करना अपने आप में बेईमानी है|

ये सब चीजें मै हवा में नहीं कह रहा| कुछ ऐसे रिपोर्ट्स आए है जो यह सब सोचने को मजबूर करते है| सभी पार्टियों के अपने app होते है| कुछ लीडर के नाम पर जैसे ‘नमो app’ और कुछ पार्टी के नाम पर जैसे ‘विथ INC’| जो लोग भी अपने पसंदीदा पार्टी से सम्बंधित app डाउनलोड करते है उनके डेटा एनालिसिस कंपनियों को दिया जाता है| इसका खुलासा अभी हाल में हुआ है जिसमें यह पता चला था कि नमो app का डेटा अमेरिका और विथ INC का डेटा सिंगापूर जाता है|

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वहाँ से लोगों के मूड समझा जाता है और उसके हिसाब से उनको नफरत के शब्द परोसे जाते है| इसके लिए बाकायदा फैक्ट्री है जो यह सब करती है| बहुत ही शातिराना अंदाज में यह सब काम होता है| इसमें पढ़े लिखे लोग शामिल है जो देश के आम जन मानस में अशांति फ़ैलाने के मुख्य कारण है| ये लोग अपनी कहानी बाबर और तैमुर से शुरू करते है घटनाओं को तोड़ मरोड़ के हिन्दू धर्म मानने वाले लोगों के बीच अपने शब्दों से गुस्सा उत्पन्न करवाना चाहते है| इसमें काफी हद तक वो सफल भी रहे है|

ऐसे ही NCC भारत की बहुत पुरानी संस्था है| इसके 13 लाख कैडेट को कहा गया कि वो नमो app को डाउनलोड करे| जबकी यह app कोई सरकारी app नहीं बल्कि प्राइवेट app है| अब इसका क्या मकसद हो सकता है? कहा तो यह जा रहा था कि NCC कैडेट्स से प्रधानमंत्री जी सीधा संवाद करने वाले है जो कॉलेज और स्कूल में पढ़ते है| सीधे संपर्क में क्या संवाद होगा? अब खुद सोचिए कि उन कैडेट्स से प्रधानमंत्री का क्या सीधा सरोकार हो सकता है| इसके लिए पूरा सिस्टम है| कैडेट के ऊपर NCC ऑफिसर होते है, उसके ऊपर ऑफिसर और सीओ होते है| इसका प्रॉपर चैन है|

अगर कोई चीज उनतक पहचानी हो तो क्या ‘मन की बात’ काफी नहीं है? जाहिर सी बात है वो अपना प्रचार करेंगे| उन नौजवानों को इमोशनल करके अपने प्रचार-प्रसार का हिस्सा बना देंगे और उन्हें पता भी नहीं चल पाएगा| आप खुद देखिए कि किस तरह से बना बनाया इस संस्था को हथिया कर अपनी विचारधारा जबरन इंजेक्ट करने की कोशिश की जा रही है| इस दंगल में कांग्रेस भी पीछे नहीं है जो आजादी दिलाने का दंभ भरती रही है| रिपोर्ट आने के बाद इन्होने अपना app ही बंद कर दिया है|

हमारे देश की आम जनता है जो गाँव और कसबों में रहती है| वो लोग बहुत भावुक होते है जो बहुत जल्द अपनी भावनाओं में बह जाते है| उन भावनाओं के नब्ज को ये लोग समझ चुके है जिसका फायदा उठाते रहे है| कभी देश के सेनाओं को उपयोग किया जाता है, कभी NCC कैडेट्स को उपयोग किया जाता है, कभी मंदिर-मस्जिद की तकरीरें दी जाती है, कभी दुसरें मुल्कों में हो रहे सांप्रदायिक हिंसों का सहारा लेकर देश के व्यवस्थित समाज को अव्यवस्थित करने की कोशिश की जाती है| उनके द्वारा पैदा किए गए गुस्से में लोग अपने समाज को भूल जाते है|

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वो यह भूल जाते है कि सरकारें आती जाती रहती है लेकिन लोगों के घर, पड़ोस और समाज वही रहता है| राजनितिक के लिए गए फैसले गलत या सही नहीं होते बल्कि उनका मकसद पूरा करना एकमात्र ध्येय रहता है| लोग गुस्से में यह सब भूल जाते है और धार्मिक रेखा को डार्क कर आपस में लड़ मरते है| वास्तव में लोग राजनितिक जाल को समझ नहीं पाते है| जबकी सच यह है कि हिन्दू का लड़का भी बेरोजगार है और मुस्लिम का भी लड़का समान रूप से बेरोजगार है|

अगर सच में हिन्दुओं की हीत वाले होते तो कम से कम हिन्दुओं के बच्चे बेरोजगार नहीं होते है| लेकिन यहाँ सवाल उठता है कि जब रोजगार मिल जाएगी तो उनके पार्टी के झंडे को कौन ढोएगा और नारे को कौन चिलाएगा? नौकरी अगर ना भी मिले अगर अच्छी शिक्षा मिल जाए तो भी नौजवान ऐसे चीजों से दूर रहेगा| क्युकी शिक्षा ही एकमात्र हथियार है जो सही को सही और गलत को गलत समझने की ताकत देता है| इन सभी गर्मागर्मी में रोजगार, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी महत्वपूर्ण चीजें बहुत पीछे रह जाती है|

लोग हिन्दुत्व और हिन्दू धर्म के बीच के अंतर को समझ नहीं पाते है| हिन्दू धर्म सदियों से चली आ रही एक जीवनशैली है जो सनातन है जिसे हम और आप अपनाते है| लेकिन जिस हिन्दुत्व का उपयोग ये लोग करते है वो दहशतगर्दी के लिए करते है| जिस भगवान राम को वो लोग मानते है और जिस भगवान राम को मै मानता हूँ दोनों में बहुत अंतर है| वो भगवान राम के वसुलों का शुद्ध रूप से अपमान करते है| इसलिए उनके झूठे हिन्दुत्व को हिन्दू धर्म मानना हमारे समाज की भूल है|

इसलिए जरूरी है कि लोग एक अच्छे सिविल सोसाइटी का निर्माण करे जो राजनितिक गतिविधियों के परे हो| जो अपनी अधिकार की बात करे, जो अपने बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की बात करे|

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