देश में आजकल एक प्रकार का अराजकता के माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है| इसमें सब शामिल है| फिल्म ‘पद्मावती’ के सेट पर जिस प्रकार का अराजकता का परिचय राजपूत करणी सेना के समर्थकों ने दिया है वो अप्रिय है| किसी भी एंगल से उस प्रोसेस को जस्टिफाई नहीं किया जा सकता है| एक लोकतान्त्रिक देश में किसी चीज का विरोध करने का यह तरीका बिल्कुल सही नहीं हो सकता है| यह बात भी सही हो सकती है कि संजय लीला भंसाली ने इतिहास के साथ छेड़ छाड़ की हो, लेकिन पब्लिक इसका खुद निर्णय लेकर खुद सजा दे, इसकी इज्जाजत लोकतंत्र कतई नहीं देता है|
ऐसा बिल्कुल नहीं है कि फिल्मकारों के ऊपर कोई पाबंदियां नहीं है जिससे जो मन में आए दिखा दे| गलत दिखाने और भावनाओं को ठेस पहुचाने वाली बातों की जांच पड़ताल करने के लिए उसके पर कुछ संस्थाए है| अगर गलत किया है तो कोर्ट है जो उसकी जांच पड़ताल करके सजा देगी| राष्ट्रिय पुरस्कार के सम्मानित किए गए किसी भी शख्स के साथ इस तरह का इंस्टेंट निर्णय लेना बहुत खतरनाक है|
अभी फिल्म की शूटिंग चल रही है रिलीज़ भी नहीं हुई| तो कैसे लोग इस बात से आश्वस्त है कि फ़िल्म में दिखाया गया है वो ही है जिसे पब्लिक में फैलाया गया है| जिस बॉलीवुड को आज एंटी हिन्दू के नाम से ट्विटर पर ट्रोल किया जा रहा है, इसी बॉलीवुड ने ब्लैक फ्राइडे नामक फिल्म भी बनाया जिसने मुस्लिम एक्स्ट्रेमिटीज को केंद्र में लिया था| विरोध तब भी हुआ था लेकिन ऐसा हिंसक नहीं हुआ था| मुझे इसके बारे में नहीं पता था| जब मैंने न्यूज़ पोर्टल पढने के बाद कुछ न्यूज़ के लिए यू ट्यूब खोला तो देखा वो लोग इस आग में घी डालने का काम कर रहे है|
एक चैनेल ने शीर्षक दिया था “नो लाइट नो कैमरा सिर्फ एक्शन”| इससे घटिया पत्रकारिता की मैंने कभी उम्मीद नहीं की थी जो किसी सम्मानित व्यक्ति के साथ हुआ humiliation को इस तरह से प्रदर्शित करेगा| इस इंसान को भी कल उसी समाज में रहना जिसे आज पब्लिक में जलील किया जा रहा है| अगर कुछ भी गलत है तो कानूनी प्रक्रिया अपनाया जाए और लोकतान्त्रिक तरीके से न्याय की गुहार लगाई जाए| इसका फैसला कोई भी unauthorised सेना या लोगो का ग्रुप नहीं ले सकता है| कोई हक़ नहीं है ऐसे unauthorised लोगों को खुद फैसले लेने का|
ऐसे अराजकता के दोषी सब है| ठीक ऐसे ही दो दिन पहले बंगाल के एक मौलवी ने देश के प्रधानमंत्री के खिलाफ फ़तवा जारी किया| मुझे यह समझ नहीं आती कि लोकतंत्र में फ़तवा का कहाँ जगह है? अंतर सिर्फ इतना है कि बंगाल में मुस्लिम लोग अपने धर्म की दुहाई दे रहे है और राजस्थान में हिन्दू अपने धर्म के इतिहास की| एक ही चश्मे से देखे तो दोनों गलत है नहीं तो दोनों सही है| मै इतिहास की बात बिल्कुल नहीं कर रहा, मै उस कृत्य को लेकर चिंतित हूँ| अब आप पर निर्भर करता है आप कैसे देखते है| मै खुद एक राजपूत हु लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि जाती के नाम पर किसी भी चीज को जस्टिफाई करूँगा|
समय बदला है तरीके बदलने होंगे नहीं तो अराजकता के अंत की कल्पना करना बेईमानी है| इतिहास में जिस तरह से चीजों के ऊपर एक्शन लिया जाता था वो आज के समय में संभव नहीं है क्युकी समय बदल चूका है| आज की वैश्विक चुनौतियाँ वो है ही नहीं जो इतिहास में हुआ करती थी| आखिर इतिहास से हमारा पीछा कब छूटेगा? हम कब वर्तमान और भविष्य की आने वाली पीढ़ियों के बारे में सोचेंगे| आज के युवा वर्ग को हम क्या सिखा रहे है? ऐसी अराजकता तब तक चलती रहेगी जब तक मुसलमान मुगलों को हीरो मानेगा और हम पुराने एक्शन को जस्टिफाई करेंगे|
जो भी गलत है उसे एक सिस्टम के तहत निपटना होगा| अगर कोई गलत है और गलत किया है तो संविधान और कोर्ट पर भरोसा रखे न्याय जरूर मिलेगा| लेकिन इस तरह से किसी ख़ास समूह द्वारा किसी भी व्यक्ति पर हमला करना दुखद है| देश में सच्ची राष्ट्रीयता की बेहद कमी है| देश में एक संविधान और एक कानून होना चाहिए| किसी भी अनाधिकृत संस्थाओं द्वारा किए गए उल्लंघन को संज्ञान में लेना चाहिए और कड़ी कार्यवाई करनी चाहिए चाहे मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के लोग हो, चाहे शिवसेना के लोग हो, राजपूत करणी सेना के लोग चाहे ऐसी कोई भी समूह क्यों न हो जिसे लोगों ने ना चुना हो और नाही संविधान ने कोई अधिकार दिए हो| भंसाली के साथ जो भी हुआ वो दुखद था|
कोई भी इन्सान उस हरकत को जस्टिफाई नहीं कर सकता| जिस तरह से राजपूत करणी सेना ने अपनी प्रतिक्रिया दी वो कानूनन गलत है| अपनी बात रखने और सामने वाले का विरोध करने के इस तरीके को कोई भी लोकतंत्र में सही नहीं मान सकता| एक गलती उस समूह ने की और दूसरी गलती अब बॉलीवुड वाले कर रहे है| जिस तरह से बॉलीवुड के लोग विरोध कर रहे है वो भी जस्टिफाईड नहीं है| कुछ तो ट्विटर पर अपशब्द बोलकर विरोध कर रहे है| सुना है सुशांत सिंह राजपूत ने राजपूत होने पर शर्म महसूस करते हुए अपना सरनेम बदल डाला है| अपनी जाती पर शर्म महसूस करने वाले यह पहले नहीं है बल्कि अनुराग कश्यप भी इस शर्मिंदगी के हिस्सा है|
इनकी शर्मिंदगी की धमकी ठीक वैसे ही है जैसे हरियाणा में जाट समुदाय के कुछ कहते थे कि अगर केंद्र सरकार ने उनकी बात नहीं मानी और उन्हें केंद्र में आरक्षण नहीं दिया तो वो मुस्लिम धर्म में अपना परिवर्तन कर लेंगे| कुछ जाट लोगो को मुस्लिम धर्म में परिवर्तन कर लेने से ना तो जाट समुदाय पर इसका असर पड़ेगा और नाही सुशांत सिंह राजपूत का सरनेम बदलने से राजपूत समुदाय पर कुछ असर पड़ेगा| अगर सुशांत साहब का विरोध करने का तरीका सच में जस्टीफ़ाइड है तो इस हिसाब से मुंबई में हुए हमले के बाद हिंदुस्तान के सभी मुसलमानों को भी मुस्लिम होने पर शर्म करनी चाहिए| किसी ने किया था? बॉलीवुड के बादशाह कहे जाने वाले तीनो खान भी तो बॉलीवुड में ही थे न? किसी ने अपना सरनेम बदला? नहीं न|
इसीलिए मेरा कहना साफ़ है कि कुछ दो चार लोगों के समूह की हरकत से आप पुरे राजपूत समुदाय पर जब शर्म होने की बात करेंगे तो आपके विरोध में आवाजें उठनी लाजमी है| शर्म महसूस करने और गर्व महसूस करने का जो आपका स्वार्थी डेफिनिशन है वो मुझे बिल्कुल कबूल नहीं है| क्युकी राजपूत की डेफिनिशन आपसे शुरू होकर आप पर ख़त्म नहीं होती| विरोध को विरोध के तरह किया जाना चाहिए बॉलीवुड की राजनीती में पड़कर नौटंकी नहीं होनी चाहिए| जब विरोध कीर्तन में परिवर्तन हो जाता है तो सही चीजें भी गलत हो जाती है| ये कीर्तन बंद होनी चाहिए| मै भी एक राजपूत हूँ मुझे उस घटना का दुःख जरूर है लेकिन राजपूत होने का शर्म बिल्कुल भी नहीं है|
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