बैंगलोर की घटना पुरुष प्रधान समाज का जीता जागता उदाहरण

Dial down the FREE Subscription for premium content. How to Add Subscribe Button on YouTube Videos (Subscribe Button PNGs)

स्त्रियों की स्तिथि ऐसी तो नहीं थी जैसी आज बना दी गई है| प्राचीनकाल में लैंगिक समानता थी| मध्यकाल से बर्बाद होनी शुरू हुई जब से स्मृति, मुगलों का भारत पर आक्रमण और इसाइयत जैसी चीजें आई| लगातार स्तिथियाँ नाजुक होती जा रही है| बैंगलोर में जो मास मोलेस्टेसन हुआ वो इस बात का संकेत दे रहा है कि हमारा समाज कहाँ जा रहा है| अगर इसकी वजह ढूंढने निकलेंगे तो आपको अजीबों गरीब कारणों से रूबरू होने का मौका मिलेगा| इसका कारण आप किसी नेता से पूछेंगे तो सबका अपना अलग-अलग होगा| केंद्र की सरकार वालों से पूछेंगे तो वो कहेंगे कि ये हमारी थोड़ी न कमी यह जिम्मेदारी तो राज्य सरकार की है|

अगर राज्य सरकार से इसका कारण पूछेंगे तो आप एक से बढ़कर एक कारण पाएंगे जो इस घटना को जस्टिफाई करता हुआ नजर आएगा| कुछ लोगों ने ऐसी बातें कही भी है| उनमे से कुछ लोग छोटे कपडे को वजह मानते और कुछ लोग पश्चमी सभ्यता को| मेरा सवाल यह है कि पश्चमी सभ्यता का भार सिर्फ लड़कियां ही क्यों ढो रही है? एक नेता तो यह कहकर हद ही कर दी कि जहाँ पेट्रोल होगा वहाँ तो आग लगेगी ही| ये वहीं नेता है जिनके लोग फैन बनने के लिए उतावले रहते है|

इसका वजह यह सब है ही नहीं| ये सब तो सियासी कारण है जो उन लोगों को अपने सत्ता के लिए काम आता है| भारत के जब से पुरुष प्रधान समाज की मानसिकता पनपी है तब से ऐसी दिक्कते आती रही है| छेड़खानी तो एकमात्र उसका भाग रहा है| इस तरह की चीजें पहले हमलोग सिर्फ फिल्मों में देखा करते थे| आज हकीकत बनती जा रही है जो की खतरनाक है| इस पुरुष प्रधान समाज का सबसे पहला और मुख्य कारण घर है| वही पहली पाठशाला है जहाँ इसकी शिक्षा दीक्षा होती है|

See also  विमुद्रीकरण (Demonetization) का तरीका कितना सही ?

महिलाओं पर हो रहे लगातार हिंसा और छेड़छाड़ के विरोध में एक साथी राइडर राकेश, अपनी अच्छी खासी नौकरी छोड़ पिछले दो सालों से हजारों किलोमीटर साइकिल यात्रा करके लोगों को जागरूक कर रहे है| एक दफा मेरे घर भी विश्राम में लिए पधारे थे| वो हमेशा एक सवाल पूछते है “डॉक्टर बनना है तो MBBS करते है और इंजीनियरिंग करना है तो बीटेक करते है लेकिन इन सभी गंदी हरकतों की क्लास कहाँ होती है?”| ऐसा बिल्कुल नहीं है कि किसी ख़ास समाज में यह होता है| हर धर्म में ऐसी चीजें पाई जाती है| घर में ही इस बात का लड़कियों का एहसास दिलाया जाता है कि उनके पास कम दिमाग है|

मै यह बात इस विश्वास से इसलिए कह पा रहा हूँ क्युकी मै अपनी दोस्त द्वारा साझा की गई पीड़ा सुन चूका है| स्कूल के समय की एक मेरी मुस्लिम मित्र है| वो बताती है कि “मै जब घर में यह कहती हूँ कि मै सिविल सर्विस निकाल कर ऑफिसर बनना चाहती हूँ तो मुझे बार बार इस बात का एहसास दिलाया जाता है तो तू नहीं निकाल पाएगी|” और तो और उसे रिश्तेदार फ़ोकट में आकर उसे समझाना शुरू कर देते है| जब वो जिद करती है तो उसे कहा जाता है कि सिर्फ एक चांस मिलेगा कम्पटीशन देने के लिए अगर निकाल पाई तो ठीक है नहीं तो शादी कर दी जाएगी|

वही दुसरे ओर लड़के होते है उन्हें अनलिमिटेड चांस मिलता है जब तक सरकारी निति यह न कह दे अब बस भी कर यार| ऐसे दबाव में जो क्षमता है उस लड़की के पास, वो निश्चित रूप से कम हो जाएगी| अपनी पूरी क्षमता का उपयोग करने में उसे दिक्कतें आनी लाजमी है| कहीं न कहीं पुरुषप्रधान समाज की प्रतिबिम्ब समाज में दिखाई तो दे रही है न| इसलिए मैंने कहा कि घर ही पहली पाठशाला है जहाँ अंतर पैदा किया जाता है|

See also  हमें अपनी उर्जा शक्ति को पहचानना बेहद जरूरी

खाप पर गहन अध्ययन और शोध करने वाले डॉ प्रेम चौधरी बीबीसी के एक इंटरव्यू में कहते है कि खाप पंचायतों का रवैया तो ये है – ‘छोरे तो हाथ से निकल गए, छोरियों को पकड़ कर रखो.’ इसीलिए लड़कियाँ को ही परंपराओं, प्रतिष्ठा और सम्मान का बोझ ढोने का ज़रिया बना दिया गया है जो कि विस्फोटक है|” इन सभी बातों से एक सीधी सी बात यह समझ आती है कि जिस तरह का पुरुष प्रधान समाज की बीज बोई जा रही है वो बहुत खतरनाक है| लड़का कुछ भी करे तो स्वीकार्य होता है वही लड़की के वक्त समाज और संस्कृति की दुहाई दी जाती है|

लड़कियां अगर अफेयर करती है तो समाज, संस्कृति, सम्मान और प्रतिष्ठा उसे गला घोटने के लिए आतुर रहता है बेसक घोटने वाला लड़का खुद बैंकोक का खिलाड़ी क्यों न हो| चाहे वही लड़का बंगलौर में हुए हादसे का एक हिस्सा क्यों न हो? पिछले साल IMF की मैनेजिंग डायरेक्टर क्रिस्टीन लगार्ड ने अपने कैलकुलेशन से यह कहा था कि काम की दिशा में लैंगिक समानता से भारत में 27% जीडीपी का इजाफा होगा| हम एक प्रतिशत जीडीपी के इजाफे के लिए लोगों को लाइनों में लगवा कर मार देते है लेकिन जहाँ से ज्यादा आउटपुट आ सकता है उधर हम देखते ही नहीं है| अगर हमने देखा होता बंगलौर जैसी हरकतें २१वीं शताब्दी में देखने को नहीं मिलती| दुखद… शर्मनाक…

Spread the love

Dial down the FREE Subscription for premium content. How to Add Subscribe Button on YouTube Videos (Subscribe Button PNGs)

Support us

Hard work should be paid. It is free for all. Those who could not pay for the content can avail quality services free of cost. But those who have the ability to pay for the quality content he/she is receiving should pay as per his/her convenience. Team DWA will be highly thankful for your support.

 

Be the first to review “बैंगलोर की घटना पुरुष प्रधान समाज का जीता जागता उदाहरण”

Blog content

There are no reviews yet.

error: Alert: Content is protected !!