एक जुमला है ‘आई लव यू बट आई ऍम नॉट इन लव विथ यू’| यही जुमला हमारे देश में भी लागू होता है| ‘वी आर प्रोग्रेस्सिंग कंटीनिवसली बट वी आर नॉट कंटीनिवस ओंन प्रोग्रेस’| कुछ एक महिना पहले की बात है भारत में तेल का दाम कम होने का कारण हमारे प्रधानमंत्री जी ने अपने भाषण में ‘नसीब’ को दिया था| खैर जो भी हो यह एक ऐसी बात है जिसे कहीं से घुमा के लाओगे तो बात नसीब तक पहुच ही जाएगी| भारत में तेल के दाम कम होने के पीछे एक ही कारण है पश्चिमी एशियाई देशों से निर्यात होने वाले क्रूड आयल के मांग कम हो जाना| क्रूड आयल के मांग कम होने के कई कारण हो सकते है| ऐसे में अपने देश की उर्जा शक्ति को पहचानना बहुत जरूरी हो जाता है|
इसका पहला कारण यह रहा है कि अमेरिका ने अपना आयात बहुत कम कर दिया| दूसरा कि चाइना ने भी क्रूड आयल का निर्यात कम कर दिया| इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि अमेरिका के लोगों ने हमारे जैसे सोशल मीडिया के माध्यम से क्रूड आयल के आयात पर प्रतिबन्ध के लिए कम्पैन किया जैसा कि हम दिवाली पर चाइनीज बैन की उम्मीद कर रहे है| और नाही अमेरिका ने तेल का उपयोग कम कर दिया| उन्होंने अपने तकनीक का उपयोग किया और उसका अल्टरनेटिव ढूंढा| ‘शेल गैस’ को अल्टरनेटिव फ्यूल बनाने की पहल की|
ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि भारत इस पोटेंशियल से वंचित है| हमारे देश में भी यह इसके पोटेंशियल को चिन्हित किया जा चूका है| कावेरी बेसिन का एरिया उनमे से एक जगह है जहाँ पर शेल गैस की उम्मीद की गई है| लेकिन हमारे पास वो तकनीक नहीं है जिससे हम निकाल कर उसका उपयोग ग्राउंड लेवल पर कर सके| कल को अगर यह संभव भी होता है तो हमारे देश के NGO बंधू सबसे पहले हम ही को प्राकृतिक आपदा को जिम्मेदार ठहराएंगे| रिसर्च के लिए छोटे पैमाने पर भले ही कर सकते है लेकिन उपभोग के नजरिए से नहीं| मजे की बात यह है कि उसके एक्सट्रैक्शन के लिए जिस ‘ग्वार गम’ की जरूरत पड़ती है उसके सबसे बड़े उत्पादक हम ही है|
इसकी ख़ास बात यह है कि पेट्रोल और डीजल के मुकाबले यह पर्यावरण के नजरिए से ज्यादा हितकारी है| यह नेचुरल गैस से सस्ता भी और बहुत ही कम कार्बनडाइऑक्साइड रिलीज़ करता है| इसके अलावां दूसरा कारण है कि चाइना अफ्रीका में मक्का की खेती बड़े पैमाने पर कर रहा है| इसलिए उसने भी पश्चिमी एशियाई देशों से निर्यात कम कर दिया है| डिमांड कम होने की वजह से अंतराष्ट्रीय मार्किट में इसका दाम कम हो गया| कहने का मतलब यह है कि लगभग सारे देशों ने अपना अल्टरनेटिव ढूँढना शुरू कर दिया| उसपर शोध करना शुरू कर दिया|
बात 2002 की है जब भारतीय रेलवे ने जटरोपा से बने बायोफ्यूल को शताब्दी एक्सप्रेस में सफलतापूर्वक टेस्ट किया था| तकनीक में कोई कमी नहीं थी| भारत की भौगोलिक परिस्थितियाँ हमें भारत में जटरोपा की खेती करने की इज्जाजत भी दे रही थी| लेकिन टेस्ट करने के बाद आज तक हमने उसे पोटेंशियल के रूप में नहीं देखा| मैंने एक प्रोफेसर से इसका कारण भी पूछा तो उन्होंने यही जवाब दिया “गौरव इट स्टकड ड्यू टू पोलिटिकल रीज़नस’|
यही कारण है कि मैंने ऊपर लिखा है ‘वी आर प्रोग्रेस्सिंग कंटीनिवसली बट वी आर नॉट कंटीनिवस ओंन प्रोग्रेस’| हमने टेस्ट करके यह सिद्ध कर दिया कि हमारे अन्दर तकनिकी सामर्थ्य है कि अल्टरनेटिव पैदा कर सके, लेकिन हम राजनितिक कारणों की वजह से ग्राउंड पर नहीं उतार सकते| ऐसा करो इसे उपलब्धि बनाकर हमारे अलमारी के अन्दर फाइल में रख दो|
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