सांप्रदायिक राजनीती में आप अपने आप को कहाँ ढूंढते है ?

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मै किसी भी राजनितिक पार्टी और उनके नेताओं के बारें में लिखने में कोई दिलचस्पी नहीं रखता| लेकिन मुझे देश के लोगों की फिक्र हमेशा से रही है| ऐसा इसलिए क्युकी सभी पार्टियों या राजनीती की व्यवहारिकता एक जैसा ही चाहे कोई भी पार्टी क्यों न हो| मुझे याद आता है दिल्ली के चुनाव में जब ‘आप’ पार्टी ने पहली बार 28 सीटों के साथ कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई थी और बाद में बोलने लगे कि 32 सीट वाली बीजेपी उन्हें विधानसभा में बोलने नहीं देती तो सारे बीजेपी के नेता हसते थे, नौटंकीबाज कहते थे, जनता के दिए हुए मैंडेट के साथ धोखा का संज्ञा देते थे|

खैर आज जब पूर्ण बहुमत वाली बीजेपी सरकार यह कहती है कि विपक्ष बोलने नहीं देती तो आज ‘आप’ समेत सारे विपक्ष वाले हसते है और वही संज्ञा इन्हें भी देते है| इसलिए हमें इनकी जुगलबंदी में तो पड़ना नहीं चाहिए क्युकी सब एक ही है बस फेस अलग अलग है| इसलिए कोई किसी से कम नहीं है| लेकिन कुछ ऐसे नेता है जो देश के हर मुद्दे को साम्प्रदायिकता के पेंट से रंगते है|

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अभी हाल में सुनने में आया था कि हैदराबाद का एक सिरफिरे नेता है जिनका मानना है कि एटीएम धर्म पहचानकर पैसे देता है जो की दुर्भाग्यपूर्ण है| मै अससुदीन ओवैसी के बारे में बात कर रहा हूँ| ये हमारे देश के मुस्लिम एक्सट्रीम में गिने जाते है| एक्सट्रीम लोग मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है चाहे कोई भी हो| मुझे समझ नहीं आता कि लन्दन में किस बैरिस्ट्री की पढ़ाई की थी| मुस्लिम समाज में हो रहे दिक्कतों का मुख्य कारण ऐसे लोग भी है जो हक़ और हुकुक के नाम पर धर्म को आधार बनाकर उन्हें हमेशा गर्त में ढकेलते रहे है|

अगर आप सुनते होंगे तो आपको ऐसा भी महसूस होता होगा कि बात को तार्किकता से रखते है, संविधान के तमाम आर्टिकल और रिपोर्ट्स के हवाला देते है| मनमोहन सिंह के शासनकाल में मुस्लिम लोगों की स्तिथि का मूल्यांकन करने के लिए सच्चर समिति का गठन हुआ| इस समिति के बारें में बार बार उनके मुंह से सुना होगा| समिति का नाम सही बोलते है और डाटा भी सही बोलते है लेकिन इंटरप्रिटेशन अपने हिसाब से करते है जिससे मुस्लिम समाज के वोट को खीचा जा सके| उसका कारण क्या है? वो एकदम गलत बोलते है| जिस पार्टी या संगठन को वो मुस्लिम समाज की दिक्कतों का जिम्मेदार मानते है वो भी अक्सर गलत ही होता है|

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अगर सच में मुस्लिम समाज के लिए वो चिंतित है तो उन्हें चाहिए ये कि मुस्लिम समाज में जो चुनौतियाँ है उसका सही कारण ढूंढे और समाधान के लिए आगे आए| उदाहरण के रूप में अगर मुस्लिम बहुल इलाकों को देखे तो वहाँ रोजगार वैसे ही घटी है जैसे बाकी के इलाकों में घटी है| लेकिन इसका गहरा असर उसी खास वर्ग पर ही पड़ा है| जैसे फिरोजाबाद ग्लास इंडस्ट्रीज के लिए बेहद मशहूर था| वो एक बहुल इलाका रहा है| लघु उद्योगों ने बहुत सारे लोगों को रोजगार दे रखा था| राज्यसभा टीवी के रिपोर्ट के अनुसार आज स्तिथि ऐसी है एक-एक करके सारे लघु उद्योग बंद होने के कगार पर है|

ये बंद हिन्दू-मुस्लिम तनाव के वजह से नहीं हुआ बल्कि अंतराष्ट्रीय नीतियाँ और आर्थिक लूपहोल इसका मुख्य कारण है| WTO में इस बात को सुनिश्चित किया जाता है कि देशी कारोबारियों और विदेशी कारोबारियों को सामान्य मौका मिलना चाहिए| ऐसे में चाइनीज कंपनिया किसी भी उत्पाद को इतने एक्स्सेस में बना देते है कि भारत में बिकने वाली ग्लास की वस्तुओं का दाम देशी लघु उद्योगों के अपेक्षाकृत बहुत ही कम हो जाता है| ऐसे में भारत के लघु उद्योग से उत्पादित वस्तुएं प्रतिस्पर्धा से बाहर हो जाती है|

इसकी वजह से बहुत सारी लघु उद्योग लगभग ख़त्म होने के कगार पर है| हालाँकि भारत सरकार ने अपनी बजट में इन लघु उद्योगों के लिए विशेष प्रावधान किए है| लेकिन ओवैसी जैसे एक्सट्रीम लीडर इसे मजहबी रंग देने से कहीं पीछे नहीं हटते| ये लोग मुस्लिम समाज को इस बात का एहसास कराने की कोशिश करते है कि अल्पसंख्यक होने की वजह से सरकार ने उन्हें नजरंदाज किया हुआ है| कुछ लोग इनकी बातें सुनकर भावुक होते है और कुछ लोग उग्र होते है| दोनों ही दशा स्वस्थ्य लोकतान्त्रिक नजरिया से सही नहीं है|

शुरूआती दौर में जब बैंकों का निर्माण किया जा रहा था तो ये वही नेता थे जो बैंकों को यह कहकर विरोध करते थे कि यह इस्लाम में खिलाफ है| इस्लाम में ब्याज लेना हराम है| आज यह कह रहे है कि उनके इलाकों में बैंक ही नहीं है| जनधन योजना ने एक बड़े पैमाने पर लोगों का खाता खोला जिससे कि लोग इससे अवगत हो सके| इसे अपने जीवन का हिस्सा बना सके| यह सिस्टम बिचौलियों लोगों की संभावनाओं को ख़त्म करता है| जो लोग सरकारी सब्सिडी के लाभार्थी रहे है वो लोग समय पर उचित पैसा पाने अगर सक्षम है तो इसी बैंक की वजह से है| इसलिए समाज के हर वर्ग को साथ देना पड़ेगा|

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एक बात और यह है कि जो नकारात्मक डाटा है उसका कारण कौन रहा है? सिर्फ सरकार? बिल्कुल नहीं| खुद भी उतना ही जिम्मेदार ही बल्कि मेरे समझ से ज्यादा जिम्मेदार है इस स्तिथि के लिए| यह समाज ठीकेदारी प्रथा की वजह से ज्यादा प्रभावित रहा है| जो भी नेता है सब पिछलग्गू बने रहे है| ओवैसी की खुद की पार्टी कई दशकों से कांग्रेस के पिछलग्गू रही, उत्तरप्रदेश में सपा के पिछलग्गू बनाया आजम खान साहब ने और बिहार में लालू साहब ने| सच्चाई यह है कि किसी ने कुछ नहीं किया इस समाज के लिए|

भाई इतने समय से इनका साथ देते आए तो इनसे पूछा जाना चाहिए न कि ऐसी स्तिथि क्यों है? अगर सच में मुस्लिम समाज को अपना विकास देखना है तो इनसब से अपने को दूर रखना चाहिए ये सब धर्म के नाम पर मुर्ख बना रहे है| शायद ही कोई इंटरव्यू होगा जिसमे वो नहीं कहते है कि उन्होंने जिन्ना के ‘टू नेशन’ थ्योरी को नाकारा है इसलिए पहला हक़ उनका होना चाहिए| देश के बाकी के मुस्लिम समाज ने बेसक किया है लेकिन ओवैसी जैसे लोग अपने आप को उनका नुमायन्दा बनने की चाह में अपने आप को घोलने की कोशिश करते है| सच्चाई यह कि उनके पूर्वज ‘टू नेशन’ नहीं बल्कि ‘थ्री नेशन’ थ्योरी के समर्थक थे|

इनका इतिहास बेहद गन्दा रहा है| हैदराबाद के निजाम के जी हजुरी करने वाले इनके पूर्वज हैदराबाद को आजाद मुल्क बनाने का सपना देखते थे| इसके लिए हथियारबंद ‘रजाकार’ रखते थे जो बाद में क्रिमिनल गतिविधियों में लिप्त पाए गए| ये लोग हैदराबाद के रह रहे गैर-मुस्लिम औरतों की अस्मिताओं के साथ तो खेलते ही थे यहाँ तक कि मुस्लिम औरतों को भी नहीं छोड़ते थे| अगर उस समय नेहरु जी की बातें मान ली गई होती तो यह भारत का दूसरा कश्मीर होता| नेहरु जी तो हैदराबाद(पहले हैदराबाद बहुत बड़ा भूभाग होता था) को भारत में मिलाने के लिए कश्मीर से भी बढ़िया स्टेटस देने को तैयार थे यहाँ तक फ़ौज भी रखने की इज्जाजत देने वाले थे|

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लेकिन सरदार पटेल की मुखालफत ने दूसरा कश्मीर बनने से रोक दिया| उस समय जो मिलिट्री ऑपरेशन हुए थे उसका नाम थे ‘ऑपरेशन कैटरपिलर’ जो उस समय के हिसाब से सही था| इस ऑपरेशन का दुःख उन्हें आज भी है क्युकी उनका भाई अकबरुदीन अपने भाषणों का शुरुआत ही यहाँ से करता है और २००२ पर आकर रुक जाता है| उसे इस बात का मलाल है कि उनकी हुकूमतें हुआ करती थी जिसे छीन लिया गया| पहले इनकी पार्टी का नाम MIM था जिसे काफी लम्बे समय के लिए बैन कर दिया गया था|

आजादी के बाद उनके दादाजी ने कांग्रेस से पैरोकारी करके बैन हटवाया और पार्टी का नया नाम दिया AIMIM. अगर इनकी इस पार्टी का हिंदी मतलब जानने की कोशिश करेंगे तो पाएंगे ‘मुस्लिम एकता मंच’| क्या हिन्दुस्तान जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में ऐसे किसी ख़ास वर्ज की ही बात करना सही है? यही बात अगर किसी हिन्दू संगठन का कोई प्रतिनिधि अपने वर्ग के लिए कह देता है तो देश में हाय तौबा मच जाएगा और कम्युनल हो जाएगा|

अगर उन्हें कम्युनल कहने की क्षमता रखते है तो इन्हें भी कहने की रखिए तभी आप धर्मनिरपेक्ष कहलाएंगे| ऐसे लोग समाज में अशांति फैलाना चाहते है| खुदा न खस्ता कल गए इनके भड़काए हुए भाषणों और कर्मों की वजह से दंगे होते है या सिविल वार टाइप स्तिथि पैदा होती है तो ये पहले लोग होंगे जो पहली फ्लाइट से यहाँ से निकल जाएंगे और छोड़ जाएंगे मुस्लिम समाज को भुगतने के लिए| इसलिए बढ़िया समाज की कल्पना करते है तो एक्सट्रीम लोगों को अपने आप से बहुत कोसों दूर रखे|

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