दक्षिण एशिया पर लिखने वाले मशहूर अमेरिकी एक्सपर्ट स्टेफेन कोहेन ने “आईडिया ऑफ़ पाकिस्तान” नाम से एक जबरजस्त किताब लिखा है| पाकिस्तान को थोड़ा करीब से जानने के लिए एक अच्छी किताब है| कोहेन लिखते है कि पाकिस्तान बनने के वक्त से ही वो आर्मी, नौकरशाह और जागीरदारों के गिरफ्त में चला गया| यही वजह है कि वहाँ की सरकार अंतराष्ट्रीय राजनीती की चेहरा मात्र तक ही सिमित है| वास्तव में जिन्ना एक धर्मनिरपेक्ष देश बनाना चाहते थे लेकिन बाक़ी की जो जमात थी जिसमें इक़बाल आते है उन लोगों का झुकाव, देश को लेकर धर्म की तरफ ज्यादा था| यह वही इक़बाल है जो एक समय “तराना-ए-हिन्द – सारे जहाँ से अच्छा हिंदोस्ता हमारा” का तराना दिया करते थे| लेकिन बदलते समय के साथ उनके सुर भी बदले और “तराना ए हिंद” को ‘तराना-ए-मिल्लत – “चीनो अरब हमारा, हिन्दुस्तां हमारा, मुस्लिम हैं हम वतन है सारा जहां हमारा’’ से बदल दिया| यह समय का खेल था|
ठीक ऐसे ही पाकिस्तान के बदलते समय को, “पीस जेस्चर” नामक गजब की झूठी नैरेटिव हमारे देश में बनाने की लगातार कोशिश की जा रही है| इमरान खान के स्पीच शेयर किए जा रहे है| दो चीजें होती है एक समझदारी और दूसरी मज़बूरी| इन दोनों में बहुत महीन अंतर है जिसके कहने के ढंग अलग-अलग है| यह सब समय का मिलन है| अगर ऐसा नहीं होता तो अभिनन्दन के साथ पीस जेस्चर और सौरभ कालिया के साथ? वो कौन सा जेस्चर था? कोई दो हजार साल पुरानी बात नहीं है| सौरभ कालिया को लोग कैसे भुल जाते है? उर्दू जुबान ही ऐसी है कि अल्फाजों में ऐसे पिघला देती है जैसे मानों एक ही सच है| पाकिस्तान अपने हालात को देखते हुए साइकोलॉजिकल जंग लड़ रहा है| सोशल मीडिया को हथियार बनाया और झूठ के सहारे लगातार हावी होने की कोशिश करता रहा| पुलवामा हमले की जिम्मेदारी लेने वाला जैश के मुखिया मसूद अजहर को मिलिट्री हॉस्पिटल और सरकारी सुविधा देने वाले इमरान खान से “पीस जेस्चर” की कैसी उम्मीद ?
भारत ने अगर सेना पर स्ट्राइक किया होता तो “रिटेलीएट” की बात समझ आती लेकिन टेररिस्ट कैंप पर स्ट्राइक करने का जवाबी रिटेलीएशन, निसंदेह आतंकवाद का संरक्षण है| पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता गफूर और वहाँ के वजीर-ए-आजम इमरान खान ने भी यह मीडिया के सामने बोला था कि उनके पास दो पायलट है| फिर शाम को अपनी बातों से उलट जाते है और कहते है कि सिर्फ एक ही है| सच में उनके पास दो ही थे| एक पायलट पाकिस्तान का था, जिसकी पुष्टि होने के बाद पाकिस्तान ने अपना बयान बदल दिया| उनके सेना प्रवक्ता ने एक और झूठ बोला था कि उन्होंने कोई F-16 का उपयोग किया ही नहीं था| “आराम” नामक मिसाइल को सामने लाकर, भारत ने इसका भी सबूत पाकिस्तान को दे दिया| तमाम दक्षिण एशिया पर अध्ययन करने वाले एक्सपर्ट सच बताते है कि पाकिस्तान की विदेश निति कभी इस्लामाबाद में बनी ही नहीं| इस बात को खुद इमरान खान के महज कुछ दिन पहले ही स्वीकारा है जिसमें उन्होंने अमेरिका को दोष देते हुए कहा कि अमेरिका ने पाकिस्तान को ‘बलि का बकरा’ बना दिया|
पहले पाकिस्तान की विदेश निति वाशिंगटन बनाता था और अब यह बीजिंग में बनता है| ऐसा इसलिए क्युकी पहले अमेरिका को पाकिस्तान से काम था और अब चाइना को है| स्टीफेन कोहेन ने अपनी किताब में बाकायदा सारे अमेरिकी राष्ट्रपतियों का नाम लेकर बताया है कि कैसे पश्चिमी देशों ने कैसे नॉन स्टेट एक्टर के सहारे पाकिस्तान का फायदा उठाया है| उदाहरन के रूप में निक्सन ने जनरल याह्या खान को इसलिए वाहवाही दी क्युकी चाइना के विरुद्ध ओपनिंग दी, रीगन और थैचर ने इसलिए जनरल जिया-उल हक़ का पीठ थपथपाया क्युकी उन्होंने रूस के विरुद्ध अमेरिका की मदद की| इमरान खान को इसका एहसास अब हुआ है लेकिन जो अभी कर रहे है उसका एहसास उनकी आने वाली नसले करेंगी| इतिहास की नजाकत ही यही है कि होने के बाद एहसास देता है, वर्तमान में जो होता है वो हमेशा अच्छा ही लगता है| जैसे की चाइना का पाकिस्तान को अप्रत्यक्ष समर्थन|
इतिहास गवाह रहा है कि दक्षिण एशिया खासकर, भारत और पाकिस्तान की जमीन प्रॉक्सी वार का मैदान बना रहा है चाहे विश्व युद्ध हो या शीत युद्ध, जहाँ दो शक्तियां – पश्चिमी देश और कम्युनिस्ट देश लड़ते रहे है| शीत युद्ध के वक्त तक पाकिस्तान पश्चिमी देशों का साथ देता रहा| एवज में कुछ रियायते और कुछ फण्ड मिलते रहे| जब सोवियत यूनियन का विघटन हुआ और शीत युद्ध समाप्त हुआ तब पश्चिमी देशों को पाकिस्तान का कोई काम रहा नहीं| इसका सबसे बढ़िया उदहारण यह है कि हाल में ट्रम्प ने पाकिस्तान को दिए जाने वाले सारे फण्ड रोक दिए| यही पाकिस्तान जिसने अमेरिका के लिए तालिबान के नाम से आतंकवाद की फैक्ट्री पकिस्तान में लगाया जिसका जिक्र इमरान खान आजकल अपने न्यूज़ क्लिप में कर रहे है| यही पाकिस्तान जिसमें न जाने कितने अपने जवानों को पश्चिमी देशों के हित के लिए कुर्बान किए| जब रोटी पानी बंद कर दी तब जाकर यह समझ आया कि पश्चिमी देशों ने बलि का बकरा बनाया था|
अभी का मौजूदा वक्त ऐसा है जिससे पाकिस्तान कुछ नहीं कर पा रहा है| इसके पीछे तीन-चार कारण है| पहला, कि चाइना का एक बड़ा इन्वेस्टमेंट पाकिस्तान में हो रहा है| चाइना किसी भी कीमत पर हानी नहीं सह सकता है| इसलिए मुझे लगता है कि अभिनन्दन की रिहाई इस्लामाबाद का आदेश नहीं है बल्कि बीजिंग का आदेश है| दूसरा कारण, चाइना भारत पर आर्थिक रूप से बहुत निर्भर है| चाइना किसी भी कीमत पर किसी का भी साथ नहीं दे सकता| तीसरा, पकिस्तान की ख़राब आर्थिक स्तिथि| भारत $400bn के रिज़र्व वाला देश है वही पाकिस्तान महज $8bn वाला देश है| इससे ज्यादा का तो भारत का बांग्लादेश के साथ व्यापार है| चौथा भारत और पाकिस्तान दोनों परमाणु देश है| परमाणु देश का बॉर्डर नहीं देखता है| उसकी रेडिएशन हजारों किलोमीटर तक लोगों को मारती है| चाइना कोई अंतरिक्ष में नहीं है जो पाकिस्तान को गलती से भी उसको उकसाय| इसलिए चाइना का निवेश, भारत पर आर्थिक निर्भरता, परमाणु देश जैसी चीजों की वजह से वो हमेशा चाहेगा कि दोनों के बीच शांति रहे|
अब सवाल उठता है कि आगे क्या ? स्टेफेन कोहेन अपनी किताब ‘आईडिया ऑफ़ पाकिस्तान’ में पाकिस्तान को तीन विकल्प के रूप में देखते है – दक्षिण एशिया का मुस्लिम देश, इस्लामी देश या लोकतांत्रिक देश| पहला विज़न, 1971 में बंगलदेश का अलग होने की वजह से एक सपना मात्र बनकर रह गया| दूसरा विजन, इस्लामी देश का तो इस्लाम का कोई यूनिक इंटरप्रिटेशन नहीं है| बहुत सारे सेक्ट्स है जो आपस में ही लड़ने के लिए काफी है| ऐसे बहुत सारे उदहारण हमें दिखते है| तीसरा विजन, लोकतांत्रिक देश बनने का तो मुझे लगता है कि यह तब तक संभव नहीं है जब तक पाकिस्तान पर से आर्मी का होल्ड हटे| इसका हटना कोई आम बात नहीं है क्युकी पाकिस्तान की आर्मी वहाँ की कैपिटलिस्ट क्लास है| सारे बड़े इंडस्ट्रीज या तो पूर्व आर्मी ऑफिसर्स के है या रिश्तेदारों के है| ऐसे में आर्मी और सरकार को एकसाथ मिलाना और सरकार को आर्मी के ऊपर पॉवर देना वहाँ की आर्मी को कैसे अच्छा लागेला?
स्टीफेन कोहेन ने अपने किताब में अच्छे से मुखालफत की है कि कैसे पाकिस्तान की आर्मी पाकिस्तान को बर्बाद कर रही है| कोहेन को समर्थन करने के लिए मै दो उदारहण दे रहा हूँ| पहला पाकिस्तान अपने GDP का लगभग 5% मिलिट्री पर खर्च करता है और मात्र 2.7% अपने शिक्षा पर खर्च करता है| भारत मिलिट्री पर अपने जीडीपी का कुल 2.5% मिलिट्री पर खर्च करता है और इससे ज्यादा लगभग 4% शिक्षा पर खर्च करता है, जो कि एकदम उल्टा है| बाक़ी के महत्वपूर्ण देश अमेरिका अपने जीडीपी का 3.1%, चाइना 1.9%, यूनाइटेड किंगडम 1.8% यहाँ तक कि रूस भी उतना पैसा अपनी कमाई का आर्मी पर खर्चा नहीं करता जितना पाकिस्तान करता है| तो स्वाभाविक सी बात है गरीब बच्चे अजमल कसाब बनेंगे जैसा कि उसने अपने कॉन्फेशन में बोला था| वहाँ की अखबार “डौन” ने खुद यह छापा था कि पाकिस्तान पूरे दक्षिण एशिया में सबसे कम पैसा शिक्षा पर निवेश करता है|
उनकी आर्थिक तंगी का एक मुख्य कारण अनावश्यक आर्मी पर खर्च करना भी है| यही हाल ग्रीस में हुआ था, जिसकी वजह से वहाँ आर्थिक संकट आई थी| दूसरा उदहारण, मै पाकिस्तान के रिपोर्ट को ही पेश करता हूँ| पाकिस्तान ने ओसामा की मौत का जाँच के लिए ऐबटाबाद कमीशन बनाया था| पाकिस्तान सरकार ने फैसला किया कि इसको पब्लिक डोमेन में नहीं डालेंगे लेकिन यह रिपोर्ट लीक हुआ जिसे बाद में अलजजीरा चैनल के मध्याम से बाहर आया| रिपोर्ट बताता है कि पाकिस्तान में 1971 के अपेक्षाकृत लगभग 50% ज्यादा आर्मी है| ओ भी तब जब पाकिस्तान बांग्लादेश से अलग होकर आधा हो गया| कोहेन ने अपनी किताब में यह कहकर मुखालफत की है कि पाकिस्तान की निति हमेशा बदलती रही है जिसका फायदा बाक़ी के देश उठाते आए है| पहले अमेरिका फिर सऊदी अरब और अब चीन|
कोहेन ने पाकिस्तान की मुस्तकबिल को पांच संभावित रूपों में देखते है| पहला, जो चल रहा है वही चलेगा, दूसरा लिबरल देश, तीसरा सॉफ्ट औथोतारियन, चौथा इस्लामिक स्टेट, पांचवां विभाजित पाकिस्तान| लेकिन मेरा मानना है कि पाकिस्तान का असल हीत सिर्फ भारत में है| चाहे यह बात आज समझ में आए या दशकों बाद| चीन कुछ वक्त का मेहमान है जैसे एक समय अमेरिका हुआ करता था| भारत इतना बड़ा मार्केट है जिसका फायदा पूरी दुनिया उठा रही है लेकिन भारत-पाकिस्तान के रिश्तों ने ब्लाक किया हुआ है| यह तभी संभव है जब पाकिस्तान आतंकियों को पनाह देना बंद कर दे और 1971 के बदले को कश्मीर में मौका देखने का ख्वाब छोड़ दे| यह संभव है| उसी पाकिस्तान से अलग हुआ बांग्लादेश ने बाकायदा उत्तरपूर्व में पनप रहे मिलिटेंटसी को ख़तम करने में भारत का बहुत सहयोग दिया है| यही कारण है कि 2015 में टेबल पर बैठकर वर्षों से चला आ रहा भूमि विवाद बिना हिंसा से सुलझ गया| टेबल पर बातचीत के लिए मेहमान को कैसे बुलाया जाता है यह पाकिस्तान को बांग्लादेश से सीखना चाहिए|
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