क्या शराबबंदी बिहार सरकार का सही फैसला था?

Dial down the FREE Subscription for such premium content on our YouTube channel. How to Add Subscribe Button on YouTube Videos (Subscribe Button PNGs)

इस आलेख में…

कुछ बुराइयों को बैन करने से ज्यादा बेहतर होता है उसे रेगुलेट करना| क्युकीं कुछ बुराइयाँ सभी परिस्तिथियों में बुरी ही होती है – जैसे रेप, और चोरी| लेकिन, कुछ बुराइयाँ time, space, और context के ऊपर निर्भर करता है| उदहारण के तौर पर गाली| ‘गाली’ एक बुरी चीज होती है जो आवेश और गुस्से में दिया जाए जिसका उद्देश्य दूसरों को अपमानित करने का हो| लेकिन यहीं गलियाँ शादी व्याहों के भीतर संस्कृति का एक हिस्सा बन जातीं है| मिथिला, प्रभु श्रीराम का ससुराल है| लेकिन भगवान जिन्हें हम ‘परम सत्य’ कहते है वो भी अपने ससुराल में गलियों से अछूते नहीं रहते| ठीक ऐसी चीज है ‘शराब’ जिसे हम absolute form में उसे बुराई मान बैठने की गलती करते है|

‘शराब’ का सन्दर्भ

शराब भी एक रिलेटिव टर्म है| किसी जगह के लिए अच्छी हो सकती है तो किसी जगह के लिए ख़राब| यह जलवायु परिस्तिथियों पर भी निर्भर करता है, जिसकी वजह से इसका सन्दर्भ हमें अलग अलग धर्मों में भी मिलता है| धार्मिक ग्रंथ लिखने का सन्दर्भ उस समाज से जुड़ा होता है| उदहारण के तौर पर इस्लाम में शराब प्रतिबंधित है| ऐसा इसलिए क्युकीं जहाँ पर इस्लाम की उत्पत्ति हुई वो बहुत ही गर्म वातावरण है| ऐसे में गर्म शराब लोगों को नुकसान करेगा| वो बात अलग है कि इस्लाम को मानने वाले लोगों के इसको एक्सट्रीम बना दिया| यहीं कारण है कि आज यह समाज अपनी औरतों को नेलपॉलिश भी लगाने की इजाज़त नहीं देता है क्युकीं उसमें अल्कोहल का अंश होता है| यही चीज आप ईसाइयत में नहीं देखेंगे|

Decoding World Affairs Telegram Channel

इसलियें जो भी ठंढे प्रदेश है वहाँ शराब खान-पान और संस्कृति का एक हिस्सा है| ब्रिटेन में शराबबंदी शायद संभव नहीं है| भारत में जलवायु परिस्थिति लगभग हर प्रकार का पाया जाता है| यहीं कारण है कि शराब का जिक्र लगभग दो हजार साल पहले प्राचीन वैदिक ग्रन्थ में भी मिलता है| इसमें दो प्रकार के नशे के बारें में बातें हुई है – सोम और सूरा| सोम एक ऐसा पेय जल जो इसी नाम के पौधे से उत्पन्न होता है| जबकी सूरा चावल, जौ, और बाजरे जैसे आनाजों से बनता है| रोकथाम का जुगाड़ विदेशी आक्रान्ताओं से शुरू हुआ| मुग़ल काल में शराब निषेध पर बहुत जोर था| लेकिन कुछ मुग़ल बादशाह खुद नियमित तौर पर शराब का सेवन करते थे| ऐसा इसलिए नहीं कि वो बुरे थे बल्कि यह यहाँ की जलवायु की मांग थी|

बाद में जब ब्रिटिश शासन आया तो उसने शराब से पैसे बनाना शुरू किया| शराब निर्माण करने के लिए लाइसेंस देने लगा| पारंपरिक पेय पदार्थों की जगह फैक्ट्री निर्मित पेय पदार्थों ने ली, जिनमें अल्कोहल की मात्रा बढ़ने लगी| निसंदेह यह पेय नुकसान देगा| जो भी प्रकृति देता है वो इंसानी जरूरत के मुताबिक होता है| लेकिन मनुष्य का हस्तक्षेप उसे विकराल रूप दे देता है| इसे एक अन्य उदाहरण से समझते है – पूरी दुनियां में प्रकृति ने मात्र 0.7% Uranium-235 दिया है जोकि फिसाइल है इसके बाद भी मनुष्य Uranium enrichment के जरिए जो फिसाइल नहीं है उसे फिसाइल बनाकर पूरी दुनिया को परमाणु शक्ति के माध्यम से तबाह करने पर तुला है| ऐसे ही शराब प्राकृतिक तौर पर जलवायु के हिसाब से मिलता है लेकिन मानवीय हस्तक्षेप उसे जहर बनाता है|

See also  क्या डिजिटल इंडिया का कांसेप्ट अपेक्षित समाज की जरूरतों के सामानांतर है ?

पुराने फैसलों का अनुभव

ब्रिटिश शासन के तहत, भारत में शराब की उपलब्धता और खपत बढ़ने लगी| क्युकीं अंग्रेजों ने लोगों की जरूरतों को समझा और इसे बिज़नस का रूप दे दिया था| आजादी के वक्त महात्मा गाँधी भी मादक पेय के पक्ष में नहीं थे| उन्होंने यहाँ तक कि इसे “पाप” तक कह दिया था| महात्मा गाँधी की बातों को सन्दर्भ में समझने की जरूरत है| गाँधी जी अंग्रेजों के आय और समाज में बढ़ते इसके दुष्प्रभाव से चिंतित थे| इस बात को सपोर्ट करने के लिए एक उदहारण को प्रस्तुत करने की जरूरत है| गाँधी जी ने 1930 के बिहार आकाल का कारण “छुआ-छूत” को बताया था| रविंद्रनाथ टैगोर ने इस कथन का कड़ा विरोध किया था| गाँधी जी का मकसद था कि कैसे भी लोग छुआ-छूत बंद कर दे| ठीक ऐसे शराब के सामाजिक दुष्प्रभाव की वजह से इसे पाप कहा था|

यहीं कारण है कि शराब निषेध जैसी बातें संविधान के उस पार्ट में जोड़ा गया जो कानूनन लागू नहीं किया जा सकता है| यह अलग अलग राज्यों पर निर्भर करता है कि जब वो उचित समझे इसका निषेध करे| 1970 तक यह केवल गुजरात राज्य में पूरी तरह बंद था| भारत में अमूमन तीन प्रकार के निषेध है – (1) पूर्ण निषेध (जो गुजरात में है) (2) आंशिक निषेध (एक या एक से अधिक प्रकार के शराब पर निषेध) (3) शुष्क निषेध (कुछ दिनों के लिए निषेध)| 1977 में कर्पूरी ठाकुर के समय भी बिहार में शराबबंदी लागू की थी| शराब की तस्करी इतनी बढ़ गई और गैरकानूनी तरीके से शराब बेचने वाले अपराध‍ियों की तादाद इतनी तेजी से बढ़ी कि सरकार को शराबबंदी का फैसला वापस लेना पड़ा| बिहार के अलावां हरियाणा, आंध्रप्रदेश और मिजोरम में शराबबंदी हुई थी| लेकिन यहां भी शराबबंदी कारगर नहीं हो पाई|

गुजरात की चर्चा हमेशा होती है जब भी शराबबंदी की बातें होती है| हालांकि यहां भी शराब की कालाबाजारी की शिकायतें मिलती रही हैं| गुजरात की एक बड़ी आबादी शराब का सेवन करती है| फिर भी बाकी के मुकाबले थोड़ा सफल रहा है| ध्यान देने वाली बात यह है कि इसके लिए केन्द्र सरकार हरेक साल 100 करोड़ रूपए मदद भी करती है|

दोषी शराब या शराबी?

दिवाली के समय बिहार के दो जिलों में जहरीली शराब से लगभग 20 से ज्यादा लोगों के मौत ने एकबार फिर शराबबंदी वाले निर्णय पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है| 2016 में मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने बिहार में शराबबंदी की घोषणा की थी| मुझे लगता है कि पूरी तरह शराबबंदी की जगह इसको रेगुलेट करना ज्यादा अच्छा उपाय है|

See also  विमुद्रीकरण (Demonetization) का तरीका कितना सही ?

शराबबंदी के पीछे यह तर्क दिया जाता है कि इससे समाज में हिंसा रुकेगी| समाज में क्राइम का दर घटेंग| नितीश कुमार का सपना ‘न्याय के साथ सम्पूर्ण विकास और अपराधमुक्त बिहार’ रहा है| यह एक उत्तम सपना है लेकिन समस्या की पहचान सही नहीं है| समस्या शराब में नहीं लोगों में है| अगर लोगों को इस बात का ज्ञान हो जाए शराब कब, कहाँ, और कैसे पीनी है तो शायद इसके दुष्प्रभाव नहीं दिखे| शराब तो लोगों की नियत को expose करता है| अगर कोई व्यक्ति शराब पीकर घर में अपनी पत्नी को पीटता है तो दोष शराब में नहीं है बल्कि उसकी ‘पुरुष प्रधान’ वाली नियत में है| शराब पीकर लोग अपने ओरिजिनल फॉर्म में होते है|

इसके अलावां एक और तर्क दिया जाता है कि इससे लोगों की आमदनी में बचत होगी| जबकी एक सच्चाई और है कि कालाबाजारी की वजह से लोग दुगने दाम पर भी खरीदते है| इससे उनका बचत और कम होता है| शराब एक एडिक्शन है| बंदी का एक दुष्प्रभाव यह भी है कि लोग सस्ते के चक्कर में लोग और जहरीली शराब पी जाते है| जब बहुत ज्यादा सख्ती हो जाता है तो लोग वैकल्पिक नशा की तरफ बढ़ने लगते है| जागरण की एक रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में शराबबंदी के बाद ड्रग्स की खपत बढ़ गई है। शराब न मिलने पर बहुत लोग नशे के लिए व्हाइटनर, कफ सीरप, क्विक फिक्स और कफ सीरप जैसी चीजों का इस्तेमाल करने लगे है|

इंसान कोई रोबोट नहीं है कि बटन दबाया और अपना फंक्शन बदल दिया| इसे बंदमात्र करने की वजह से लोग पीना नहीं छोड़ सकते| लोग अवैध रूप से शराब सप्लाई करने के लिए बिहार में नए नए तरकीब अपना रहे है| कुछ लोग जमीन में गड्ढ़े खोदकर रख रहे है तो कुछ लोग दूध के डब्बों में सप्लाई कर रहे है|

शराबबंदी, समाज और व्यवस्था

शराबबंदी ना सिर्फ शराबियों बल्कि समाज को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहा है| स्वतंत्र चुनाव लोकतंत्र का सबसे महत्वपूर्ण स्तम्भ होता है| बिहार में चल रहे पंचायत चुनाव इससे प्रभावित हो रहा हो| शराबबंदी लोगों को ध्रुवीकरण की गुरुत्वाकर्षण शक्ति को बढ़ा दिया है| शराब एक ऐसा ताकतवर इंस्ट्रूमेंट बन चुका है जिससे लोगों को इकठ्ठा करना बेहद आसान हो गया है| आसानी से नहीं मिलना और महंगा मिलना इसका कारण है| ऐसे में चुनावी लिहाज से विकास का मुद्दा कोसों दूर पीछे रह जाता है| कहीं न कहीं यह ‘राजनीती के अपराधीकरण’ को भी बल दे रहा है|

See also  धर्म के भीतर लोगों की आजादी बेहद जरूरी

शराब का सेवन आदिवासी समाज में आज भी ना सिर्फ लोकप्रिय है बल्कि संस्कृति का एक हिस्सा भी है| क्युकीं आदिवासी समाज भारत के उसी क्षेत्र में बसा है जो जलवायु तौर पर ठंडे है| भारत का ‘रेड कॉरिडोर’ भी भारत के पूर्वी हिस्से में ही है| उत्तरपूर्व के असम में “अपोंग” नामक चावल वहाँ के बियर के लिए मशहूर है| वहाँ शादियों से बनाई जाती है| वहाँ रहने वाले मिसिंग जनजाति शादियों और त्योहारों में ख़ुशी से इसका उपयोग करते है| उड़ीसा, झारखण्ड, बिहार, और झारखण्ड में “हंडिया”, “ताड़ी” और “महुआ” को बहुत शुभ माना जाता है| यहाँ तक कि इसे स्थानीय देवताओं को भी चढ़ाया जाता है| ऐसे फैसले लोगों के धार्मिक अधिकारों में दखल दे रहे हैं| सांस्कृतिक व्यवहार के चलते आदिवासी समुदाय अपराधियों में शामिल हो रहे है|

लोकतंत्र और सांस्कृतिक दखल के अलावां शराबबंदी आर्थिक रूप से भी नुकसान पंहुचा रहा है| 2015-16 में बिहार सरकार को लगभग 4000 करोड़ का राजस्व में फायदा हुआ है| लिहाजा शराबबंदी के बाद अब तक लगभग 20 हजार करोड़ का नुकसान हो चुका है| ऐसे में उसका भरपाई पेट्रोल और डीजल से किया जा रहा है| यही कारण है कि बिहार और उत्तरप्रदेश के तेल के कीमतों में लगभग 5 रु से 8 रु प्रति लीटर अंतर दिखता है| जब तेल की कीमतों में वृद्धि होता है तो इसका spillover effect महंगाई के रूप में दिखता है| दूध, सब्जी से लेकर गाड़ी का किराया तक का एक कारण तेल भी होता है| यूपी-बिहार के बॉर्डर पर रहने वाले बिहार के लोग यह कोशिश करते है वो यूपी में ही तेल भरवाएं| ऐसे में तेल से आमदनी भी कम होता है|

बैन करने के बाद भी शराब से पैसे बने है| अंतर बस इतना है कि सरकार को राजस्व नहीं मिला है| पुलिस-क्रिमिनल का गठजोड़ काफी फला-फुला है| पुलिस प्रशासन का भी अपराधीकरण हुआ है| इसलिए इसे पूरी तरह से बंद करने की जगह सरकार को रेगुलेट करना चाहिए| बैन करने के बाद सरकार का कण्ट्रोल रह नहीं जाता है लेकिन रेगुलेशन में सरकार का कण्ट्रोल होता है| इसलिए बिक्री के घंटों के को सिमित करना, नाबालिगों को शराब की बिक्री पर रोक, नशें में गाड़ी चलाने पर रोक, और हाईवे पर शराब बिक्री का निषेध (जिसका आर्डर सुप्रीम कोर्ट ने दिया था) आदि अच्छे फैसलें है| बिहार सरकार को इस फैसले का रिव्यु करना चाहिए|

Spread the love

Support us

Hard work should be paid. It is free for all. Those who could not pay for the content can avail quality services free of cost. But those who have the ability to pay for the quality content he/she is receiving should pay as per his/her convenience. Team DWA will be highly thankful for your support.

 

Be the first to review “क्या शराबबंदी बिहार सरकार का सही फैसला था?”

Blog content

There are no reviews yet.

Decoding World Affairs Telegram Channel
error: Alert: Content is protected !!