न्यायिक असंतुष्टि के लिए कानूनी प्रक्रिया ही जायज रास्ता

Dial down the FREE Subscription for such premium content on our YouTube channel. How to Add Subscribe Button on YouTube Videos (Subscribe Button PNGs)

बेवजह गलतफहमियों के आधार पर पूरा भारत बंद कर अपने ही लोगों को परेशान करने, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने और चौराहे पर लगे भगवान शिव की प्रतिमाएं तोड़ने से क्या भारत में पिछड़ा और अतिपिछड़ा वर्ग की सामाजिक सशक्तिकरण का एह्साह नहीं हो रहा है ? यह याद रखना चाहिए कि अगर लेनीन, पेरियार और श्यामाप्रसाद मुखर्जी की मूर्तियों को तोडना या छेड़-छाड़ करना गलत है तो यह भी गलत है| इसलिए यह गुंडागर्दी का डेफिनिशन इनपर भी समान रूप से लागू होता है| जाट और गुर्जर समूह के लोगों ने अपनी मांग की आड़ में और राजपूत समूह के लोगों ने अपनी स्वाभिमान की आड़ में जो किया था वो गुंडागर्दी थी और आज जो हुआ वो भी गुंडागर्दी है| किसी भी अन्संतुष्टि का रास्ता हिंसक कैसे हो सकता है?

चाहे लाल, भगवे, हरे या फिर नीले झंडे वाले हो, सच यह है कि कोई भी संविधान या सर्वोच्च न्यायालय का आदर नहीं करता| सर्वोच्च न्यायालय के वर्डिक्ट के खिलाफ प्रदर्शन का वाकई मुझे मतलब समझ नही आया| कोई भी जजमेंट आता है वो ‘ग्रेड ऑफ़ एडवोकेसी’ पर निर्भर करता है ना कि झंडे उठा के तोड़ फोड़ करने की| सामान्यतः जो वकील अपनी बात को सबसे अच्छी तरह से रखकर अपने पक्ष को मजबूत साबित करता है फैसला उसी के पक्ष में जाता| संविधान बनाने में सहयोगी रहे बाबा भीम राव आंबेडकर ने कहीं कहा है क्या कि अगर सर्वोच्च न्यायालय का वर्डिक्ट जब अपने पक्ष में नहीं आए तो सार्वजनिक सम्पतियों तो तोड़ना और लोगों को परेशान करना? फिर ऐसा क्यों कर रहे है आपलोग ? कोई भी लोकतांत्रिक देश ऐसे गुंडागर्दी से नहीं बल्कि एक प्रक्रिया से चलता है|

Decoding World Affairs Telegram Channel
See also  अपने ही मुल्क की धरती पर बाहरी कैसे हो गए बिहारी

इसका मतलब यह बिलकुल नहीं है कि न्यायालय के फैसलों पर अपनी असहमति नहीं जताई जा सकती| फैसलों पर असहमति व्यक्त करने और अपनी बातें पूरी पूरी रखने के लिए ही तो न्यायालय तीन भाग (निचली अदालत, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट) में बना हुआ है| इसके बाद भी असहमति रहती है उसके लिए रिव्यु पेटीशन और बाकी के तमाम पेटीशन का प्रावधान है| अगर जजमेंट सच में लोगों के ऐसे गुंडागर्दी से बदलने लगा तो वो लोकतंत्र के लिए और बड़ा खतरा साबित हो सकता है| दूसरी बात यह समझा जाना चाहिए कि फैसला आरक्षण के खिलाफ नहीं आया है बल्कि एस.सी/एस.टी एक्ट में सुप्रीम कोर्ट ने एक संसोधन मात्र किया है| वो संसोधन किसी भी एंगल से नाजायज नहीं है| सुप्रीम कोर्ट का फैलसा मुझे सहमती की ओर खीच रहा है|

यह सत्य है कि एस.सी/एस.टी दलितों और आदिवासियों के अधिकार और आत्मसम्मान की रक्षा के लिए बनाया गया है| यह अधिकार और आत्मसम्मान इस संसोधन के बाद भी बनी रहेगी| फिर सवाल यह खड़ा होगा कि संसोधन का क्या अभिप्राय है ? संसोधन का यही मतलब है कि इस कानून का दुरूपयोग और बदले की भावना में किए से रोकना| ऐसा इसलिए क्युकी इस क़ानून का दुरूपयोग भी बहुत हुआ है| सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले से इस कानून में कोई छेडछाड नहीं की है| उसका कहना मात्र इतना है कि SC/ST एक्ट के मामलों में आरोपियों की तुरंत गिरफ्तारी नहीं की जानी चाहिए|   कई केस ऐसे भी हुए है जो झूठे और बदले की भावना में निर्दोष लोगों को फसानें की नियत से किए गए है| अगर सुप्रीम कोर्ट यह दिशा निर्देश देता है कि पहले एक बड़ा अधिकारी उस मामले और घटनास्थल की जाँच कर ले उसके बाद गिरफ़्तारी हो तो इसमें क्या हर्ज है ?

See also  दिल्ली और कश्मीर के बीच संपर्क बेहद जरूरी

पहले केस को समझा जाए फिर गिरफ़्तारी हो वो गलत और पहले गिरफ्तार करके फिर जाँच हो यह सही है, यह अन्याय करवाने के लिए गुंडागर्दी की जा रही है| आरोपों की सत्यता के संबंध में आश्वस्त होने में ऐसा कौन सा SC/ST का अधिकार और स्वाभिमान खतरे में पड़ जाएगा ? जबकी एक इंसान की हैसियत से सोचें तो सुप्रीम कोर्ट ने जो संसोधन का निर्देश दिया है वो जायज है| इससे थानेदारों का दबदबा भी कम होगा जो भ्रष्टाचार करने के लिए दरवाजा खोलता था| क्युकी मुझे लगता कि पहले गिरफ़्तारी करने और फिर जाँच करने की प्रक्रिया अनुचित है| अगर जिसे गिरफ्तार किया गया वो जाँच के बाद निर्दोष निकला तो क्या ऐसा प्रावधान है कि जिसने केस किया है उसपर भरी जुर्माना या दंड हो? नहीं है न| इसलिए पहले सज़ा और फिर जांच का कोई मतलब नहीं निकलता क्युकी निर्दोष के लिए किसी भी तरह से मुआवजे की कोई व्यवस्था नहीं है|

इसलिए सर्वोच्च न्यायालय ने जो फैसला दिया है उसका सम्मान करना चाहिए| अगर असंतुष्टि है तो कानून के रास्ते अपना पक्ष रखा जा सकता है| लेकिन इस तरह की गुंडागर्दी के सहारे तो बिलकुल भी नहीं| ज्यादातर गुंडागर्दी केंद्र सरकार के विरोध करते हुए पाए है| वो लोग next level के क्रन्तिकारी लोग है जिन्हें क्रन्तिकारी का ‘क’ भी पता नहीं है| फैसला सुप्रीम कोर्ट ने दी है ना कि केंद्र सरकार ने| केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट का दूर-दूर तक कोई लेना देना नहीं होता है| उल्टा केंद्र सरकार ने तो ‘वोट बैंक’ के चक्कर में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ रिव्यु पेटीशन भी दायर किया है जिससे जो नियम पहले थे, वे यथावत लागू हों| अंतिम बात गुंडागर्दी करने के लिए बाबा भीमराव का आंबेडकर के फोटो का उपयोग करना उनका घोर अपमान है|

Spread the love

Support us

Hard work should be paid. It is free for all. Those who could not pay for the content can avail quality services free of cost. But those who have the ability to pay for the quality content he/she is receiving should pay as per his/her convenience. Team DWA will be highly thankful for your support.

 

Be the first to review “न्यायिक असंतुष्टि के लिए कानूनी प्रक्रिया ही जायज रास्ता”

Blog content

There are no reviews yet.

Decoding World Affairs Telegram Channel
error: Alert: Content is protected !!