भौतिकवाद से अशांत हमारा समाज

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जब भी मै गाँव जाता हूँ तो मुझे घर के लोगों से मिलने और माँ के हाथ का खाना खाने की ख़ुशी तो होती ही है, साथ में एक ऐसे व्यक्तित्व से दर्शन होता है जो मुझे देश समाज को सिखने समझने के लिए प्रेरित करते रहे है| गाँव के पास के शहर बिक्रमगंज में रहने वाले लगभग 70 वर्षीय गुरु श्री हरिद्वार सिंह से मिलता हूँ तो मुझे बेहद प्रसन्नता होती है| वो आज भी इस उम्र में पढ़ते जरूर है| खराब स्वास्थ्य और गर्दन में दर्द होने की वजह से डॉक्टर उन्हें झुक कर पढने को मना करते है|

इसके उन्होंने लकड़ी का ऐसा जुगाड़ बनवाया जिससे बिना झुके पढ़ सके| पढने का वो जूनून मुझे बहुत प्यारा लगता है| अध्यात्म के धनि गुरूजी जो भी पढ़ते है और जहाँ उन्हें अच्छी चीज मिलती है उसे अंडरलाइन करके वही मेरा नाम लिखके रखते है जिससे मै जब भी उनसे मिलूं मुझसे साझा कर सके| इसके अलावां विदा लेते वक्त ‘अखंड ज्योति‘ जैसी पत्रिकाओं का बण्डल और किताब देना कभी नहीं भूलते| ऐसे व्यक्ति से मोहब्बत करवाने और संपर्क बनवाने के लिए मै हमेशा भगवान को धन्यवाद देता हूँ|

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इस बार जब मै मिला था तब वो सिकंदर की कहानी बता रहे थे| आज सोशल मीडिया पर लोगों की प्रतिक्रिया देखकर उनकी सुनाई हुई कहानी याद आ गई| उन्होंने बताया कि सिकंदर एक ऐसा व्यक्ति था जिसके पास किसी भी चीज की कमी नहीं थी| लेकिन वह हीनता की ग्रंथि का शिकार था और इसी मनोग्रंथि के कारण पूरे विश्व को जितने की महत्वाकांक्षा मन में संजोय था| अपनी इस विश्व विजय यात्रा पर निकलने से पहले वह डायोजिनीस नामक फ़क़ीर से मिलने गया जो हमेशा नग्न और परमानन्द की स्तिथि में रहते थे|

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सिकंदर को देखते ही डायोजिनीस ने पूछा – “तुम कहाँ जा रहे हो?” सिकंदर ने जवाब दिया – “मुझे पूरा एशिया महाद्वीप जीतना है” डायोजिनीस ने पूछा – “उसके बाद क्या करोगे?” सिंकंदर ने उत्तर दिया – “उसके बाद भारत जीतना है|” उसके बाद फिर डायोजिनीस ने पूछा कि – “फिर उसके बाद?” सिकंदर ने खिसियाते हुए उत्तर दिया – “उसके बाद मै आराम करूँगा|” डायोजिनीस हसने लगे और बोले – “जो आराम तुम इतने दिनों बाद करोगे, वो तो मै अभी कर रहा हूँ| तुम्हे अगर आराम ही करना है तो इतना कष्ट उठाने की आवश्यकता ही क्या है? इस समय मै जिस नदी के तट पर आराम कर रहा है वहां तुम भी कर सकते हो”

सिकंदर एक पल के लिए डायोजिनीस की बातें सुनकर शर्मिंदा हुआ| उसने सोचा कि उसके पास सब कुछ है पर शांति नहीं| और डायोजिनीस के पास कुछ भी नहीं है पर उसका मन शांति और आनंद से भरा हुआ है| होता भी यही है जिनका मन मनोग्रंथियों से मुक्त होता है वो स्टेबल होते है उसमे बेचैनी नहीं होती है| उनका मन आनंद और शान्ति से भरा होता है| जो व्यक्ति अशांत, परेशान और आक्रामक होते है वो चाहे पूरा विश्व भ्रमण कर लें ढेर सारी संपदा एकत्र कर ले लेकिन फिर भी वे अपने मन को अँधेरे से दूर कर नहीं पाते|

भौतिकवाद के दुनिया जब इंसान के पास गर्मी से निजात पाने के लिए ‘बांस का पंखा’ (जिसे हमारे भोजपुरी में “बेना” कहते है) होता है तब वो सोचता है काश उसके पास पंखा होता तो कितना आराम होता| जब विद्धुत पंखा हाथ लगता है तो ए.सी. के बारे में सोचने लगता है| मै अपने समय में डॉ अब्दुल कलाम को देखता हूँ जो एक सफल वैज्ञानिक से लेकर राष्ट्रपति तक बने लेकिन भौतिकवाद उन्हें पकड़ नहीं पाई| फिर मै आज जब अपने देश में लोगों को देखता हूँ जो तमाम राजनितिक दलों मोहब्बत करते है तब मुझे लगता है कि मेरे देश के लोग सचमुच स्थिर नहीं है सिकंदर के भांति बेचैन है|

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