आजादी के तुरंत बाद हमनी के जवन संविधान अपनइनीजा अउरी बाद में समयानुसार संसोधन कईल गईल ओकरा हिसाब से सही मायना में समानता प आधारित एगो लोकतांत्रिक समाज दने बढ़त बढ़त अब तक ले जाती धर्म अउरी संस्कृति के तमाम दबाव से मुक्त हो गईल चाहत रहे| स्वतंत्रता के लगभग 70 साल बाद दलित, गरीब, आदिवासी, अल्पसंख्यक अउरी औरतन के स्तिथि के कवना मापदंड से मापल जाव| एह समूह के स्तिथि के का इ कहल जा सकत बा कि हमनी व्यवस्था अउरी समाज एगो लोकतांत्रित आ उदार बा? का हमनी के कह सकत बानी जा कि हमनी के लोकतांत्रित व्यवस्था महज चुनाव तक सिमित नइखे|
एगो अउरी मुख्य सवाल इ कि हमनी के जम्मू कश्मीर जईसन सीमावर्ती राज्य अउरी उत्तर पूर्वी राज्यन में आखिर लोकतंत्र के कईसन स्तिथि बा? समाज के पंक्ति में अंतिम व्यक्ति खातिर लोकतंत्र के का मायना बा? हमनी के लोकतंत्र साम्प्रदायिकता जईसन मसला प आपन कवन रूख आख्तियर करो एहिजो बरियार उलझन बा| धार्मिक हिंसा, जातिगत हिंसा आ नक्सलवाद जईसन समस्या प भी हमनी के लोकतंत्र काहे अझुरा जाला? लोकतंत्र अउरी धर्मनिरपेक्षता के बीच हमनी के राजनीती अउरी प्रशासन काहे सैंडविच बन जाला?
कुछ ओझल लोकतान्त्रिक मूल्य
अगर लोकतांत्रित व्यवस्था के वर्तमान के कुछ स्तिथि के निहारल जाव त पाइमजा कि अपना देश के नागरिक के एगो व्यापक हिस्सा आजो सामान नागरिक जईसन मूलभूत अधिकार से वंचित बा| अभी कुछ दिन पाहिले राज्यसभा टीवी प “मै भी भारत” कार्यक्रम के अंतर्गत पत्रकार श्याम सुंदर शहरीया आदिवासी के देखईले रहले| कवनो इन्सान खातिर कुछ मुलभुत आवश्यकता बा जईसे हवा, पानी आ खाना| उ आदिवासी आज भी शुद्ध पानी पिए से वंचित बा| अइसन बिल्कुल नइखे ओहिजा के ग्राउंड वाटर निचे होखे|
ओहिजा के औरत काई लागल पानी के उपरी हिस्सा के हिलोर मारिके आपन दुपट्टा मटका के मुह प लगा के पानी भरेले| आ ओही पानी के पियेला लोग| अब सोची के आजादी के लगभग 70 साल बाद भी इ दशा बा कि जवना पानी के पीएके बा ओही पानी में खड़ा होके पानी भरेला लोग| इ सब लोकतान्त्रिक मूल्य आज भी परिभाषित होखे से अछूता बा|
आजादी के लगभग अतने लम्बा समय बाद भी हमनी के देश में आजो एगो अइसन समूह बा जवन दुनिया के सबसे बड लोकतान्त्रिक कहाए वाला देश के लोकतंत्र में विश्वास ना रखे| नक्सलवाद देश के एगो गंभीर समस्या बन चुकल बा| इहाँ तक कि भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कह चुकल बाड़े कि नक्सलवाद भारत के राष्ट्रिय सुरक्षा खातिर एगो बड खतरा बा| जब भी ‘नक्सल’ शब्द कवनो आम आदमी के कान में जाला त दिमाग में आतंकवाद, गोली बन्दुक आदि के चित्र में उभरेला|
पाहिले जब छोट रही आ नक्सल के किस्सा कहानी सुनत रही त इहे लागत रहे| सुदीप चक्रोवर्ती आपन किताब ‘रेड सन- ट्रेवल इन ए नक्सलाइट कंट्री’ के शुरुआत ही एह लाइन “Naxalbari has not died and it will never die” से कईले बाड़े| उहाँ के एह लाइन से अंदाजा लगा ली कि नक्सलवाद कतना बरियार जड़ जमा चुकल बा| खासकर रेड कोरिडोर (आँध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, उड़ीसा आदि) में आपन गहिराह रूप से जड़ जमा चुकल बा|काहे एगो अइसन वर्ग भी बा जवन भारत के लोकतंत्र अउरी संविधान के माने से इनकार करेला जवना के नक्सली कहल जाला|
एकरा अलावां आए दिन कबो धर्म के आधार प हिंसात्मक आचरण देखे के मिलेला त कबो जाती के नाम प भेदभाव आ हिंसा| इ सब अइसन लोकतान्त्रिक मूल्य ह जवना प विमर्श अउरी संघर्ष होखे के बाकी बा| भारत में एगो हिस्सा आज भी बा जवन जाती के आधार प पंचायत के पैरोकारी करेला| युवा-युवतीयन के मनचाहा शादी प सख्ती से पाबन्दी लगावे ला जवना के ‘खाप पंचायत’ के नाम से जानल जाला| पश्चिमी उत्तर प्रदेश अउरी हरियाना में सघन एह समस्या के मुखालफत करे वाला बहुत कम लोग बा|
इ सब चीज सीधा सीधा भारतीय संविधान के अवहेलना करेला आ समान्तर न्यायपालिका चलावेला| इ लोकतंत्र खातिर आ भारतीय संविधान खातिर बेहद खतरनाक बा| एकरा अलावां वर्तमान के राजनितिक व्यवस्था वोट बैंक के चाह में मुस्लिम समुदाय के अधिकार के बहाने संविधान अउरी लोकतंत्र के धज्जी उडावेला| अफ़सोस के बात इ बाद कि एक देश होखला के बावजूद पूरा देश में आज भी एक कानून नइखे जवन सभे प लागू हो सके|
धर्म के आजादी के नाम प निरंतर संविधान के अपमान भईल बा| मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड आज भी ‘यूनिफार्म सिविल कोड’ के मुखालफत करेला| जबकी सच्चाई इ बा कि मुस्लिम समुदाय के निरंतर गिरत स्तिथि के एगो कारण इहो रहल बा कि औरत बहुत ज्यादा सशक्त नइखे हो पाइल| आज भी विवाह, तलाक से लेके सम्पति प हक़ के फैसला हमनी से न्यायपालिक ना ले पावेला आ संविधान आपन उपस्तिथि ना दर्ज करवा पावेला|
जब देश एक बा त एक कानून होखे के चाही, एक झंडा होखे के चाही आ एक संविधान होखे के चाही| असली समानता तबे आइल जब कानून, झंडा आ संविधान एक होई आ देश के हर नागरिक प समान रूप से लागू होई| कश्मीर भारत के हिस्सा होखला के बावजूद भी ओकर आपन संविधान बा| ओही कश्मीर जवना खातिर श्यामा प्रसाद मुखर्जी आपन बलिदान दिहले रहले| एह सब मूल्यन प अभी संघर्ष बाकी बा|
सैंविधानिक मूल्य बनाम परंपरागत सिधांत
देश में एकबे फिर बहस लाइमलाइट में बा कि, का हमनी के सामाजिक परंपरान से सैंविधानिक अधिकारन से टकराव हो रहल बा? का जाती, धर्म आ लिंग के भेद हर इंसान के मिलल सैंविधानिक अधिकारन के खातिर चुनौती बन रहल बा? पिछले कवगो अइसन दिन आइल जब आदालत के एह बात के इयाद दिवावे के परल कि हमनी के संस्कार सैवधानिक मुल्यन प भारी पड़ रहल बा| चाहे बात सबरीमाला मंदिरन में महीलान के प्रवेश के मामला होखे, दरागाहन प मुस्लिम महीलान के प्रवेश के मामला होखे, तमिलनाडु में मंदिरन खातिर पुजारी चुने के परम्परा होखे आ चाहे तमिलनाडु के खेती वाला त्यौहार पोंगल प जल्लीकट्टू खेल प रोक हटावे के विचार होखे| समाज अउरी संविधान के विरोधाभास के संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ भीमराव आंबेडकर पहिलही एह बात के सचेत कईले रहले|
एह बात के प्रमाण उहाँ के संविधान सभा वाला समापन भाषण में मिलेला| उहाँ के कहले रहनी कि “26 जनवरी 1950 के हमनी के विरोधाभासी जीवन में प्रवेश करे जा रहल बानी जा| हमनी के राजनीती में समानता होई अउरी सामाजिक आ आर्थिक जीवन में असमानता, राजनीती में हमनी एगो व्यक्ति, एगो वोट आ हर वोट के सामान मूल्य के सिधांत प चलब जा, लेकिन आपन सामाजिक आ आर्थिक जीवन में हमनी के सामाजिक अउरी आर्थिक ढांचान के कारन हर व्यक्ति के एक मूल्य के सिधांत के नकारत होइहे”| उहाँ के तब सचेत भी कईनी कि हमनी के जतना जल्दी हो सके एह विरोधाभास के समाप्त करे के कोई ना त जे भी लोग एह असमानता से पीड़ित बा उ एह राजनितिक प्रजातंत्र के उखाड़ फेकी, जवना के संविधान सभा बड़ा परिश्रम से खड़ा कईले बा|
अमेरिकी संविधान से प्रभावित होकर के भारतीय संविधान के एगो सुंदर उद्देशिका तईयार कईल गईल जवन संविधान के एगो सार के रूप में देखल जाला| “हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्न समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को: सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता, प्राप्त कराने के लिए तथा उन सबमें, व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित कराने वाली, बंधुता बढ़ाने के लिए, दृढ़ संकल्प होकर अपनी संविधानसभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ईस्वी (मिति माघशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हजार छह विक्रमी) को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं|” एहिजा से शुरू भईल सफ़र, एह लम्बा दौर में गंभीर मुश्किलन के सामना कईलस अउरी वक्त के कसौटी प खरा उतरल| लेकिन जवन अंतर्विरोध जनमल उ आज भी एगो बड चुनौती बनके हमनी के सामने बा|
सबसे पहिला मूल्य राजनितिक समानता के बात कईल जाव| राजस्थान अउरी हरियाणा जईसन राज्यन में स्थानीय स्तर प चुनाव लडे खातिर एगो पैमाना इ तय भईल कि जे आठवी आ दसवी पास होई उहे चुनाव लड़ सकी| संविधान के आधार प फैसला देवे वाला न्यायपालिका एकरा के सही ठहरावत बा लेकिन उहे संविधान राजनितिक समानता भी सुनिश्चित करेला| एह मापदंड के आईला से औरतन के एगो बड समूह चुनाव लडे से वंचित रही जाई| कहीं ना कही एकरा में विरोधाभास जरूर बा जवना के दूर कईल बहुत जरूरी बा| हमनी के भारतीय सविधान एही मुल्यन के संघर्ष के परिणाम बा| हमनी के संविधान के ख़ास बात एगो इ बा कि इ कोई प थोपल नइखे गईल| बल्कि एकरा में समय के अनुसार संसोधन के स्थान दिहल गईल बा जवन कि एगो असली लोकतंत्र के दर्शावेला| एकरे परिणामस्वरुप आजादी के बाद से आज तक 100 से ज्यादा संसोधन कईल जा चुकल बा| जब जब जरूरत पडल बा ओह प बाकायदा बहस भईल बा फिर संसोधन भईल बा|
असही संविधान के दूसरा मूल्य लैंगिक समानता के लेवल जा सकत बा| ऊपर देवल उदहारण ना सिर्फ राजनितिक समानता के चुनौती देला बल्कि लैंगिक समानता के भी बराबर रूप से चुनौती देला| एकरा अलावां दूसरा मामला हिन्दू धर्म के औरतन के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश वर्जित बा| हालाँकि इ मामला अभी न्यायलय में विचाराधीन बा लेकिन सुनवाई के समय कोर्ट एह बात के मंदिर प्रशासन से पूछ रहल बिया कि का महीलान के भेदभाव के एह प्रक्रिया के जारी रखल जा सकेला? असही मुस्लिम धर्म के औरतन के मुंबई के दरागाहन में जाए के मनाही रहे|
बड़ा ही अजीबो-गरीब तर्क देके आपन बात रखले रहे| हालाँकि न्यायलय महीलान के अधिकार के पक्ष में आपन फैसला सुनइलस लेकिन जवाब में कोर्ट प धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन के आरोप भी लोग लगावालास| एकरा में आपन रोटी सके में राजनीती भी पीछे नइखे रहल| इहाँ तक कि शाहबानू केस में जब सुप्रीम कोर्ट शाहबानू के पक्ष में आपन फैसला सुनईलस तब सरकार राजनितिक फायदा खातिर धर्म के ठेकेदार लोगन के प्रभाव में लउकल|
हमनी के भारतीय संस्कृति में ही संविधान के आत्मा समाहित रहल बिया| औपनिवेशिक काल से पाहिले भारत के संस्कृति में समानता शब्द समाहित रहे| सामाजिक दुराचार भी ना रहे| लैंगिक समानता से लेके राजनितिक, आर्थिक, सामाजिक अउरी सांकृतिक समानता रहे| पाहिले भारत में पुरुष आ महिला बराबर रहे| शादी विवाह करे के स्वतंत्रता रहे| लेकिन जब से भारत प मुगलन के आक्रमण भईल तब से कुरितीन के शुरुआत शुरू हो गईल| मुगलन के आक्रमण से भारत में पर्दा प्रथा, जौहर प्रथा आदि जईसन कुरितींन के शुरुआत भईल| ओकरा बाद औपनिवेशिक काल में स्तिथि अउरी बर्बर भईल|
एही औपनिवेशिक काल के ख़त्म भईला के बाद एगो अइसन किताब के रचना कईल गईल जवन हमनी के पुरान समानता के वापस ला सको| लेकिन दुर्भाग्य के बात इ बा कि समय के साथे मतलब बदलत चल गईल अउरी राजनितिक पक्ष वोट खातिर हावी होखे लागल बा| एही सब कुरितीन के खिलाफ संघर्ष करके लोकतान्त्रिक मूल्य के स्थापना कईल ही एह किताब के मूल्य उद्देश्य बा जवन औपनिवेशवाद के चलते बर्बाद हो गईल बा जवना के हमनी के संविधान कहिनाजा|
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