सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि आज कल बहुत जल्द नैरेटिव बदल दिया जाता है| अभी सरकार में डीमोनेटाईजेशन का फैसला लिया| यह फैसला गलत नहीं है| लेकिन फैसले के जो उद्देश्य है वो बहुत अपारदर्शी है| अभी तक लोग इस बात से बहुत दूर है कि इसका उद्देश्य क्या है? एनालिसिस करने वाले एक्सपर्ट्स और पार्टी प्रवक्ताओं की माने तो काला धन ख़त्म करने का मुहीम है| वही दूसरी ओर प्रधानमंत्री जी अपने भाषण में यह कहते है कि बैंकों में पैसो की बढ़ोतरी हुई है|
इससे लोगो को लोन देकर बिसनेस एक्सपेंशन करने में मदद मिलेगा| राज्यसभा टीवी पर जेटली साहब का संबोधन सुन रहा था वो भी यही बात कह रहे है| कोई तो स्टैंड साफ़ होनी चाहिए| जबकी मुझे ऐसा लगता है कि सच्चाई वही है जो प्रधानमंत्री जी और वित्तमंत्री जी ने अपने भाषण में कहा| जब ऐसा है तो ब्लैकमनी और देशभक्ति के नाम पर लोगों को इमोशनल करना बेवकूफ बनाने मात्र ही है|
अगर कोई व्यक्ति इस बात से असहमति रखता है कि इसका उद्देश्य गलत है तो उसे इर्रेलेवेंट जवाब यह मिलता है कि तुम भ्रष्टाचार के मुहीम के खिलाफ हो| जबकी ऐसा नहीं है| सामने वाले की बातें सुनने का धीरज रखिए और समझिए कि वो क्या कहना चाहता है| यह जरूरी नहीं है कि कैश में रखा पैसा ब्लैक हो| बैंको के लाइन में ज्यादातर वही लोग लग रहे है जिनके पास सही पैसा है| सवाल यह उठता है कि सरकारी खामियों (खासकर कांग्रेस के समय से) की वजह से ही ये ब्लैक बना है इसका खामियाजा वो लोग क्यों भुगते जिनके पास सही पैसा है| दूसरी चीज मैंने दोनों लोग से एक और कॉमन बात सुनी जिसमे उन्होंने बैंकों में आने वाले पैसो को पोटेंशियल के रूप में देखते है और गर्व करने की बात करते है|
इस पर मेरा मानना यह है कि आप फ़ोर्स करके लोगो से पैसे बैंक में मंगाकर खुश रहे है| जबकी होना यह चाहिए था कि बैंकिंग निति ऐसी होनी चाहिए थी कि लोग अपने आप आकर बैंकों में जमा करने के लिए आकर्षित होते| बैंक में, अगर सेविंग के रूप में कोई व्यक्ति पैसे रखता है तो उसे सिर्फ औसतन 4% प्रति वर्ष ही ब्याज मिलता है| वही व्यक्ति अगर अपने बेटे के लिए एजुकेशन लोन लेने जाता है तो 14% के आस पास व्याज देना पड़ता है| ऐसे में कोई क्यों बैंकों में पैसे रखेगा|
हाँ यह बात सत्य है कि बैंको में सेविंग के रूप पैसे होना आर्थव्यवस्था के लिए बहुत जरूरी होता है लेकिन इस कीमत पर नहीं| यह भी सत्य है कि किसी भी सरकार को ऐसे निर्णय लेना बहुत आसान नहीं होता है| लेकिन निर्णय में कितनी सार्थकता है वो ज्यादा महत्वपूर्ण है| क्युकी सरकार के पास और कोई आप्शन भी नहीं बच गया था|
इस निर्णय से एक और बात मुझे समझ में यह आती है कि सरकार का जनधन योजना वाकई में उतनी मजबूत नहीं हो पाई है जितनी उम्मीद की जाती थी| क्युकी जनधन का उद्देश्य सिर्फ यह नहीं था कि सबके खाते खोल दिए जाए| बल्कि बैंकों का ग्रामीण क्षेत्रों में प्रसार करना भी था| अगर वो वाकई में मुक्कमल हुआ होता तो शायद बैंक के एक्सेसिबिलिटी में लोगों को जरा भी दिक्कत नहीं आती| इसलिए टेरर फंडिंग पर लगाम लगाने वाली बातें सिर्फ उत्तरपत्रिका के पेज भरने भर ही है|
मै ऐसा इसलिए कह रहा हु क्युकी यह भी सही बात है कि पाकिस्तान के प्रिंटिंग मशीन में उनके जरूरत से ज्यादा पेज और इंक की जरूरत पड़ती है| पैसे वही से पंप होने की संभावनाए जताई जाती रही है| वो नए नोट का भी तो प्रिंटिंग कर सकते है| उन पैसों का भारत के बाजारों तक फैलना हमारी प्रसाशनिक फेलियर है जिसका हल डीमोनेटाईजेशन कतई नहीं हो सकता है|
कुछ दिन पहले मैंने अपने लेख में लिखा था कि डिमोनेटाईजेशन का उद्देश्य अभी तक तय नहीं है आखिर इसका मकसद क्या है| कभी इसे आतंकवाद से लड़ने वाले औजार के रूप में देखा गया, कभी इसे ब्लैकमनी से लड़ने वाले एक्शन के रूप में देखा गया| बाद में वित्तमंत्री जी और प्रधानमंत्री जी के बयानों से यह निष्कर्ष निकाला गया इससे कैशलेस इकॉनमी बनाने की पहल की गई है| बड़े ही आसानी से गोल पोस्ट शिफ्ट कर दिया गया| मुझे अभी इस पर भी सक है|
जब बात कैशलेस इकॉनमी की हो रही है तो दो हजार के नोटों का क्या मतलब निकलता है? हजार के नोटों को अबोलिश करके 2000 के नोटों को लाने का सीधा मतलब यह निकलता है कि सरकार बड़े पेमेंट कैश के रूप में चाहती है| कुछ छोटे दुकानों पर पेटीएम के माधयम से भुगतान करने वाले लोगों को लगातार शेयर करके यह महशूस करवाया जा रहा है कि हम कैशलेस इकॉनमी की तरफ बढ़ रहे है|
ये कैसा कैशलेस इकॉनमी जहाँ बड़े पेमेंट 2000 के नोट से हो और छोटे पेमेंट मशीन से| जबकी होना उल्टा चाहिए था| 500 और इसे बड़े नोटों की संख्या कुल करेंसी का 85% से ज्यादा है| चाहिए ये था कि इसे स्केलिंग कर देते, जिससे छोटे पेमेंट कैश में हो सके और बड़े पेमेंट के लिए कार्ड स्वैप मशीन, इन्टरनेट बैंकिंग, NEFT या RTGS का उपयोग हो सके| रिज़र्व बैंक का कहना है कि 14.5 लाख करोड़ की नगदी में 1000 और 500 के नोट थे| पिछले हप्ते तक 11.5 लाख करोड़ रूपए बैंकों में जमा हो चुके है|
उस दिन के मुताबिक 31 दिसम्बर होने में अभी 23 दिन बाकी है उन्हें भी जमा होने की उम्मीद जताई जा रही है| अब सवाल उठता है कि आखिर ब्लैक मनी है कहाँ जिसके खातिर यह सब हुआ? मैंने पहले भी कहा था कि वो जमाना गया जब लोग कैश तकिया के निचे, जमीन के निचे या दीवालों के बीच छुपा कर रखा करते थे| समय बदला लोगों को ब्लैक मनी बनाने के और साधन मिल चुके| रियल एस्टेट, गोल्ड इन्वेस्टमेंट, बिटकॉइन, पी-नोट और डॉलर में इन्वेस्टमेंट करना इसका माध्यम बना|
मैं शुरू से कहते आ रहा हूँ इसका मकसद ना तो ब्लैक मनी, आतंकी फंडिंग से लड़ना है और नाही कैशलेस इकॉनमी को दुरुस्त करना है| ये सब उसके साइड इफ़ेक्ट हो सकते है जिसे नकारा नहीं जा सकता| मै जहाँ तक सोचता हु कि इसका मकसद यह है कि किसी भी तरह से कैश में घूम रहे पैसों को बैंकों तक खीच के लाया जाए| बैंकिंग निति ऐसी है ही नहीं कि वो लोगों को अपने तरफ आकर्षित कर सके| डेमोनेटाईजेशन ही सही जो लोगों को बैंकों तक आने को मजबूर करें|
बैंको में पैसे इसलिए जरूरी है क्युकी उसे लोन के रूप में उद्योगपति लोगो को देना होता है| हो सकता है चुनावी फंडिंग के पेमेंट के रूप में उद्योगपतियों द्वारा सरकार पर इसका दबाव बनाया गया हो| अगर बैंक की हाल के प्रतिक्रिया को भापने की कोशिश करेंगे तो पाएंगे कि बैंकों में पैसे डालना आसान है लेकिन निकालना बेहद कठिन है| ये अच्छा है खुद की कमाई के पैसे निकालने को खुद ही लोग मोहताज है| मैंने कई कंपनियों और स्कूलों की यह स्तिथि जाना जो अपने कर्मचारियों और अध्यापकों को वन-टाइम में पेमेंट नहीं करते थे उन्होंने एडवांस में पेमेंट करके अपने पैसों का ठिकाना लगा रखा है|
Support us
Hard work should be paid. It is free for all. Those who could not pay for the content can avail quality services free of cost. But those who have the ability to pay for the quality content he/she is receiving should pay as per his/her convenience. Team DWA will be highly thankful for your support.
