ग्रीस के आर्थिक संकट अउरी यूरो जोन में उनकर भविष्य (भोजपुरी)

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ग्रीस में जवन आर्थिक संकट चल रहल बा ओकर प्रभाव पूरा विश्व में दिख रहल बा | एह में कुछ देश पर ओकर सकारात्मक प्रभाव भी हो सकेला अउरी कुछ देश में नकारात्मक प्रभाव | जब भी ग्लोबलाइजेशन के बात होला कही पर भी, तब एगो बिंदु रखल जाला ओकरा विपक्ष में कि इ हमेशा विकसित देश, विकासशील देश पर शोषण के नजरिया से हावी रहेला | ग्रीस के संकट जवन बा उहो वोही श्रृंखला के एगो कड़ी ह | सबसे पाहिले बात कईल जाई इ ह का ?

एकर कवन कवन कारन रहे ? कही भारत वोही राह प त नईखे नु ? एकर का प्रभाव बा पूरा विश्व में ? भारतीय अर्थव्यवस्था प एकर प्रभाव केतना बा ? इतिहास के कुछ देश जईसे भारत, अर्जेंटीना के संदर्व में एकरा के समझे कोशिश कईल जाई कि उ सब देश आर्थिक संकट से बाहर कईसे आइल रहे ? ग्रीस के ओह संकट से बाहर आवे के कवनो उपाय संभव बा का ? एह विषय प IMF, यूरोपियन यूनियन, यूरोपियन सेंट्रल बैंक आदि के का भूमिका बा ?

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इ संकट एगो दिवालिया टाइप आर्थिक संकट ह जवन ग्रीस में भईल, ठीक ओही तरी जईसे कवनो बिज़नस मैंन के पूरा बिज़नेस डूब जाए अउरी उ दिवालिया हो जाए | खैर इ बीमारी बोखार लेखा अचानक होखे बल्कि ओकर लक्षण बहूत पाहिले से लउकेलागेला | ठीक ओसही 2008 से पाहिले के अख़बार में भी ग्रीस के अर्थ्ब्यावस्था के लेके चिंता जतावल गईल लेकिन ओकरा के संज्ञान में ना लेवल गईल, लापरवाही बरतल गईल जवना के परिणाम आज कैंसर के रूप में पूरा विश्व के सामने बा |

एकर कई गो कारन रहल बा, पहिला इ कि ओहिजा सरकारी बजट में में गड़बड़ी काफी समय से चलल आवत रहे | दूसरा आंतरिक भ्रष्टाचार नाक के ऊपर तक ले हावी रहे | तीसरा जवन कि सबसे महत्वपूर्ण रहल ह उ आपन मुद्रा ड्राकमा के बदल के यूरोपियन यूनियन के यूरो मुद्रा अपनावल | हम एकरा के महत्वपूर्ण एह से कहनी ह काहे कि जब तक ले जवना देश के आपन मुद्रा रहेला ओह प ओकर पूरा नियंत्रण रहेला | जईसे उदहारण के रूप में भारत के आर्थिक संकट 1991 के ले सकीना जा, अगर हमनी के आपन मुद्रा ना रहित त हमनी के अवमूल्यन ना कर सकती जा |

यूरो मुद्रा मुख्य कारन कईसे बा ओकरा के डिटेल में चर्चा कईल चाहत बानी | यूरो मजबूत बा  फ़्रांस अउरी जर्मनी के वजह से, ओकर अर्थ्ब्यावस्था अउरी सुंदर रहित अगर ओकर आपन मुद्रा रहित | यूरोपियन यूनियन बनावल एह से गईल रहे ताकी ब्यापारिक गतिविधि में चार चाँद लगावल जा सके जवना से यूरो पूरा विश्व में हावी हो जाए | ग्लोबलाइजेशन प्रक्रिया के तरह यूरोप के देश मिल के आपन एगो यूनिफार्म मुद्रा बनइलस | अगर फ्रांस आ जर्मनी के छोड़ देहल जाव त, यूरोपियन यूनियन के ढेर देश (पुर्तगाल, आयरलैंड इत्यादी) के हालत आज भी ख़राब बा | दूसरा लब्ज में कही त एह बीमारी के लक्षण लउकत बा |

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होला का कि आपन मुद्रा बा त रुआ ओकर अवमूल्यन कर सकिला, निर्यात बढ़ा सकिला, अउरी महत्वपूर्व फैसला ले सकिला ताकी कवनो संकट से उबर सकी | लेकिन यूरोपियन यूनियन के सदस्यता ले लेला के बाद ओकर मुद्रा ख़त्म कर दिहल जाला | एगो अउर महत्वपूर्ण बात इ बा कि ओहिजा दू लेवल प सदस्यता देवल जाला एगो निचला आ दूसरा ऊपर लेवल | ऊपर लेवल माने सक्रीय रूप से शामिल रही ओकर प्रभाव ओह संघ में सबसे ज्यादा रहेला आ निचला लेवल के ओतना प्रभाव ना रहेला | लेकिन निचला लेवल पर जे सदस्यता लेवेला उ आपन मुद्रा रख सकेला जईसे इंग्लैंड ओकर ‘पाउड’ आज भी जिन्दा बा, लेकिन ऊपर के सदस्यता वाला ना रख सके जईसे फ़्रांस, जर्मनी ओकर क्रमशः फ्रैंक आ मार्क के निरस्त करेके पडल बा |

एकर प्रभाव पूरा विश्व में ब्यापक रूप से पद रहल बा कही बरदान के रूप में त कही अभिशाप के रूप में, लेकिन विकासशील देश खातिर सबक बनके जरूर उभर रहल बा कि ग्लोबलाइजेशन प्रक्रिया आ विकसित देश से लेवल अनुदान अभिशाप बन सकेला | पहिला बात कि पूरा विश्व के इकोनोमिकल प्रक्रिया असंतुलित हो गईल बा | अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष, यूरोपियन यूनियन, यूरोपियन सेंट्रल बैंक एह सब संस्था से कही ना कही विकासशील देश के आत्मविश्वास के ठेस जरूर पहुचल बा | ग्रीस के अइसन हालात के एह तरह के धन्ना सेठ संस्था भी एगो कारन रहल बिया |

एकरा के हम एह तरह से समझावे के कोशिश करब मानी रुआ बेमार बानी, रुआ लगे पईसा नइखे चाहे कम बा दवाई अतना नइखे, तब पडोसी चाहे कोई अन्य ब्यक्ति आई तब कवनो ना कवनो शर्ते प कर्ज दिही या त कवनो ब्याक्तिगत फायदा वाला डील करी चाहे या फिर ओकर ब्याज मांगी | ठीक ओही लेखा, ग्रीस में जब लक्षण देखल गईल रहे तब अइसने संस्था कर्ज देले रहे ग्रीस के लेकिन कुछ शर्त रखले रहे जवन बाद में अभिशाप बन गईल ग्रीस खातिर | शर्त रखेला अईसन संस्था कि वितीय घाटा कम करेके, एकरा खातिर सरकारी खर्च में कटौती करे के परेला | एह से होई का कि बेरोजगारी बढे लागी आ लोग तक सेवा में कटौती होखे लागी | अर्थ्ब्यास्था के विकास ना हो पाई आ संकट गहरात चलल चल जाई |

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ओहिजा के वामपंथ दल के मांग बा कि सरकारी खर्च में जवन कटौती भईल बा ओकरा के वापस लेल जाव | ग्रीस के यूरो जोन से अलग करे के भी जोरदार मांग कर रहल बा यहाँ तक कि जनमत संग्रह करवावे तक ले तईयार बा | खैर इ काम मुश्किल जरूर बा लेकिन नामुमकिन ना | भारत के अर्थ्ब्यावस्था प ग्रीस के एह संकट से कवनो ख़ास प्रभाव ना पड़ी लेकिन अगर यूरोपियन यूनियन प असर पड़ता तब दिक्कत हो सकेला काहे कि ग्रीस प बहूत ज्यादा भारत निर्भर नईखे बल्कि कारोबार के नजरिया से यूरोपियन यूनियन प निर्भर बा जवना के असर पड़ सकेला अगर कुछ अवैवहारिक यूनियन संघे होई तब |

एगो अउरी महत्वपूर्ण बात फ्रांस आ जर्मनी से सबसे ज्यादा कारोबारी पहलू जुडल बा | ग्रीस से ज्यादा भारत के ब्यापार नईखे एहसे कवनो प्रत्यक्ष रूप से प्रभाव पडत नइखे लउकत | अगर यूरो टूटता तबो ढेर ना पड़ी लेकिन कुछ पडबे करी इहो होखे के सम्भावना बा कि कवनो सकारात्मक बात मत निकल के मत आ जाओ जवन भारत के पक्ष में होखे | भारत के आर्थिक स्तिथि काफी अच्छा बा पिछला वैश्विक आर्थिक मंदी से वित्तीय घाटा कम भईल बा, ब्याज दर भी निचे लउकल बा, हो सकेला कि यूरोप के संकट के देखके निवेशक भारत दने रुख मत करे लागस |

कुछ केस स्टडी दने ध्यान देल जाओ तब पावल जाई सबसे पाहिले आपन देश के कहानी जवना में 1991 में आर्थिक संकट से उबारे खातिर चंद्रशेखर जी के जगह प नर्सिम्भा राव जी के प्रधानमंत्री बनावल गईल रहे | ओह घरी RBI के तत्कालीन गवर्नर आई. जी. पटेल जी के निमंत्रण कईल गईल रहे वित्त मंत्रालय संभाले खातिर लेकिन उनकर इनकार के बाद मनमोहन सिंह के याद कईल गईल जवना में उ आइले अउरी बनले वित्त मंत्री ओकरा बाद मुद्रा के अवमूल्यन कईला के बाद उदारीकरण के सब्जबाग लगईले अउरी आर्थिक मंदी से निकाले में सफल भी भईले | पाहिले होत का 1991 से पाहिले कि सारा कंपनी सरकार के अंदर ही काम करत रहे घडी बनावे वाला कंपनी, स्कूटर बनावे वाला कंपनी सबपे सरकार के प्रत्यक्ष रूप से हस्तक्षेप रहे |

प्रतिबन्ध हटावल गईल आ अर्थव्यवस्था के विकास शुरू भईल, उत्पाद पढ़ल, निर्यात बढ़ल | अर्जेंटीना में भी आर्थिक मंदी आइल रहे उहो आपन मुद्रा के अवमूल्यन ही कईले रहे जवना से अपना के ओह आर्थिक संकट से बचा पवलस | इ सब तबे संभव भईल जब भारत आ अर्जेंटीना दुनो लगे आपन करेंसी बा | ग्रीस चाह के भी आपन मुद्रा के अवमूल्यन नईखे करा सकत काहे कि फिलहाल ओकर आपन मुद्रा नइखे | जबकी यूरो जोन में रहते हुए इंग्लैंड के साथ कुछ होई तब उ करा सकेला काहे कि ओकर निचला स्तर प सदस्यता बा |

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एकर हल इहे बा कि सबसे पाहिले अपना के ओह यूरो जोन से बहार करो आ आपन मुद्रा ड्राकमा फिर से अपनाओ उ | एह से होई का कि आपन निर्णय लेवे खातिर स्वतंत्र हो जाई, एह से उत्पाद बढ़ी, निर्यात बढ़ी आ राजस्व बढ़ी अउरी संकट से बाहर निकल जाई, ठीक भारत आ अर्जेंटीना लेखा | बेल आउट (डूबत नईया प कोई फण्ड करे वाला खेवईया मिल जाव) वाला बेवकूफी ना करे तबे ठीक काहे कि बेल आउट के मत्ल्लब कि आज के मौत के काल खातिर ढकेला गईल | हम एह से कहतानी काहे कि बेल आउट बिना कोई शर्त के काहे दिही ? इ शर्त ओकनियो से बीस होई, जे बीमारी देलस ओकरे के फेरु बोलावातानी इलाज करे खातिर |

अउरी बेमार कर दिही घूम फिर के बात ओहिजे आ जाई आ संकट अउरी गहिरात चलल चल जाई | बेल आउट जईसन शोर्ट टर्म इलाज से बढ़िया रही कि कवनो परमानेंट हल ढूढो आपन मुद्रा बदल करके | या यूरोपियन यूनियन में बनल रहो आ उपरी स्तर के सदस्यता त्याग देवो ठीक इंग्लैंड लेखा फिर आसानी से आपन मुद्रा के अवमूल्यन कर लेवो | बार बार मुद्रा अवमूल्यन प जोर एह से डेत बानी काहे कि मानी रुआ हॉस्टल के रहे खाए के ब्यवस्था के दाम घटावल चाहत बानी ओह खातिर रुआ सब्जी, चीनी, दूध, बिजली बील, पानी बील, आनाज, मसाले सबके दाम करे के परी जवन कि असंभव काम बा, सबके मना के घटावल, लेकिन मुद्रा के अवमूल्यन करके आसानी से दाम कम हो सकेला, जवना से सब प एकसार यूनिफार्म भार परेला |

नोट:- हमार इ लेख ‘हेल्लो भोजपुरी’, अगस्त महिना के अंक में छप चुकल बा|

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