मिड डे मील त्रासदी दने एक नजर (भोजपुरी)

Dial down the FREE Subscription for such premium content on our YouTube channel. How to Add Subscribe Button on YouTube Videos (Subscribe Button PNGs)

हम जब जब गाँव आइना त कुछ चीज देखके मन गदगद हो जाला, लईकिन के रोड प साइकिल चलावत देखिना त लागेला कि बहूत हद तक ससक्त भईली सन पाहिले के अपेक्षाकृत, रोड प बाइक चलावत रोड के बेहतर स्तिथि एगो अच्छा विकास वाला अनुभूति देला, गाँव में गर्मी में भी बिजली के अच्छा प्रबंधन खुश करे में पीछे ना रहे लेकिन जब नजर शिक्षा व्यवस्था प जाला तब ढेर प्रश्न मन में उमड़ आवेला | अइसन बात बिल्कुल नईखे कि खाली बिहार में ही अइसन चुनौती बा बल्कि पूरा मुल्क में बा, कही ज्यादा बा कही कम बा लेकिन हर जगह लगभग कॉमन समस्या बा |

ढेर प्रश्न इंफ्रास्ट्रक्चर, पढाई के गुणवता, विद्यार्थी के स्कूल के प्रति निष्ठां अउरी विश्वास, सरकारी नीतियाँ जईसे सर्व शिक्षा अभियान, मिड डे मील, आंगनवाडी इत्यादी, विद्यार्थी के पढला के बाद ओकर आत्मविश्वास, विद्यार्थी के स्वस्थ्य स्तर अउरी अह सब चीज में लूप होल से सम्बंधित प्रश्न उफान मारेला | एह सभ में एगो स्कीम (मिड डे मील) जवन भारत सरकार द्वारा लागु कईल गइल रहे ताकी विद्याथी के स्वस्थ के बेहतर वबनावल जा सके, एही  प विस्तार से नजर गडावे के कोशिश कईल जाई |

Decoding World Affairs Telegram Channel

सबसे पाहिले इ जाने के कोशिश कईल जाव कि मिड डे मील ह का ? इ काहे खातिर बनल ? स्कूली छात्र के अधिकार क्षेत्र में कतना हिस्सा बा ? ग्राउंड लेवल प का का मिल पावता ? कहाँ कहाँ लूप होल बा ? अउरी ओकर सुझाव का हो सकेला ? ओकर फंडिंग प्रक्रिया का बा ? राजनितिक प्रभाव कतना हावी रहेला ? मिड डे मील मूल रूप से भारत सरकार द्वारा डिजाईन कईल स्कीम ह जवन मुफ्त में स्कूली विद्यार्थी मध्यान भोजन के व्यवस्था करेला ताकी न्यूट्रिशनल स्टेटस के एगो बेहतर स्तिथि तक पहुचावल जाव | सबसे पाहिले खाली सरकारी प्राथमिक क्लासेज (कक्षा 1-5) खातिर रहे राष्ट्रिय स्तर प लेकिन बाद में अप्पर प्राइमरी (कक्षा 6-8) खातिर लागू कईल गईल रहे | एगो अउरी खास बात इ बा कि इ स्कीम सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत बाकी के शैक्षणिक केंद्र जईसे मदरसा अउरी मकतब प भी सक्रीय रूप से लागू बा |

अब थोडा एकर ऐतिहासिक पक्ष दने झाके के कोशिश करब | एह प्रोग्राम के जड़ मूल रूप से आजादी के पाहिले से ही जुडल बाटे जवन 1925 में मद्रास कारपोरेशन में अंग्रेज प्रशासन द्वारा जोडल गईल रहे |  बस अंतर इ रहे कि नाम अलग रहे अउरी कुछ मैकेनिज्म अलग रहे लेकिन सिधांत एक ही रहे, ओकरा बाद 1930 में केंद्र शासित प्रदेश पोंडिचेरी में फ्रेंच प्रशासन द्वारा लागू कईल गईल रहे |

आजादी के बाद सबसे पाहिले साठ के दशक में, कामराज के नेतृत्व के दौरान, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के रूप में, चेन्नई फिर बाकी के जिला के प्राथमिक विद्यालायन में लांच कईल गईल रहे | फिर गुजरात दूसरा राज्य बनल जवन इम्प्लेमेंट कईलस 84 के आस पास लेकिन बाद में कुछ कारन से आगे प्रोसीड ना कर पवलस | फिर धीरे धीरे सभ राज्यन में लागू भईल जवना में कुछ जईसे आंध्र अउरी राजस्थान त पूरा के पूरा विदेशी फंड के बूते ही लागू कर दिहलस | 1997-1998 के आस पास राष्ट्रिय स्तर प पर लागू कईल गईल, ओह समय लगभग ढाई हज़ार ब्लाक में इम्प्लेमेंट कईल गईल|

See also  भारत में किसान आत्महत्या के मूल वजह (भोजपुरी)

मिड डे मील के अंतर्गत शुरुआती दौर में इ टारगेट लेके चलल गईल कि हर एक छात्र के, जवन एक से पांच क्लास के अंतर्गत आवत होइ ओकरा के पकावल भोजन, 300 कैलोरी अउरी 12 ग्राम प्रोटीन के साथे मिले के चाही कम से कम 200 दिन तक | बाद में, 2007 में पांचवा क्लास से आठवां क्लास यानी अप्पर प्राइमरी क्लास खातिर भी लागु भईल, ओही घरी एकर नाव नेशनल प्रोग्राम फॉर न्यूट्रिशनल सपोर्ट से मिड डे मील भईल | ओकरा पाहिले सुखा राशन मिलत रहे 3 किलो चावल चाहे गेहूं, लेकिन ओकर कवनो खास फायदा ना मिलल |

लईका बेच देत रह सन मिलल आनाज | जबकी छव क्लास से आठ क्लास के विद्यार्थी खातिर पकावल भोजन 700 कैलोरी अउरी 20 ग्राम प्रोटीन के साथे देवे के लक्ष्य रखल गईल बा | जहाँ तक फण्ड के सवाल बा, जवना में FCI (Food Corporation of India) के सहायता से 100% केंद्र के तरफ आनाज आवेला ओमे राज्य के योगदान ना होला | जबकी दूसरा दने लेबर, ट्रांसपोर्ट, किचन शेड, कुकिंग खर्च इ सब में राज्य सरकार अउरी केंद्र सरकार संयुक्त रूप से काम करे ला लोग जवना में 75% खर्च केंद्र सरकार वहन करेले अउरी 25% राज्य सरकार |

ऊपर लिखल पैरा में एगो स्केच खीच देनी कि कवन चीज का ह, कईसे होला जवना से आगे बात समझे में आसानी होखी | अब बात कईल जाई लूप होल के जवना चलते बहूत हद तक सफल नईखे हो पावत | इ मोटा मोटी खाली लेक्चर क्लास के रूप में उपलब्धि लेखा लागेला लेकिन ग्राउंड लेवल प आज भी एकर वास्तविकता कुछ अउरी बाटे | बहूत सारी चुनौती से आजो जूझ रहल बा स्कीम, चाहे बात भरपूर मात्रा भोजन ना मिले के बात होखे, चाहे भोजन के गुणवता में कमी के होखे, चाहे कुकिंग प्रक्रिया अउरी रख रखाव प्रबंधन के कमी के होखे, बर्तन से साफ़ सफाई के होखे, किचन के समस्या होखो, प्रतिदिन भोजन ना मिले के शिकायत होखे इत्यादी |

एह सब समस्या के अगर मूल्यांकन कईल जाव, ओकर कारन ढूंढे के कोशिश कईल जाव, तब ढेर बात सामने निकल के आई, राजनितिक हस्तक्षेप अउरी मिलीजुली गोलमाल के कहानी लउकी | एक-एक करके कुछ मुख्य बात प ध्यान देवल जाई | जब भी कवनो घटना घटेला तब राज्य सरकार हमेशा जिम्मेदारी लेवे से कतरात नजर आवेले | कबो कबो हमरा लागेला कि राज्य सरकार जानबूझ के अझुराइले राखल चाहेले राजनितिक द्वेष के चलते काहे कि मूलतः इ केंद्र सरकार के प्रोग्राम हवे, ठीक ओकरे लेखा जईसे कई साल से नदी के लेके विवाद केंद्र अउरी राज्य सरकार में चलत आवता |

See also  जातिगत जनगड़ना अउरी भकुआइल सियासत (भोजपुरी)

सबसे पाहिला बात, राज्य सरकार अक्सर कहत नजर आवेला कि भोजन के गुणवता एह से  ठीक नइखे काहे कि FCI के तरफ से पूरी तरह से मुफ्त आवे वाला आनाज बहूत ख़राब ग्रेड के आवेला | जबकी इ खाली बहाना हवे काहे कि पहिला बात FCI में सारा आनाज बिना चेक कईले ना जाला, दूसरा बात मान भी लेनी कि सीलन अउरी कुछ कारन से कवनो ख़राब प्रभाव पडल, जवना चलते आनाज प्रभावित हो गईल होखे, स्कीम में एह बात के स्पष्ट कईल बा कि राज्य सरकार आनाज रिसीव करे से मना भी कर सकेला अउरी बढ़िया आनाज के मांग कर सकेला |

कमी केकर भईल रिसीव करे वाला राज्य सरकार के एजेंट के नु कि केंद्र सरकार के ? दूसरा एगो भ्रम होला कि इ कुल खाली गरीब लईकन खातिर होता जवना के ढेर लोग उपकार के रूप देखेला बल्की इ उपकार ना ओह सभ लईकन के हक बा संविधान के फंडामेंटल राईट (आर्टिकल 39A अउरी 47) में एह बात के स्पष्टीकरण भी कईल गईल बा | हम बिना रिसर्च आ प्रूफ के कवनो बात ना लिखिला काहे कि जवाबदेही खातिर हमेशा तईयार राहिला लेकिन ओही में एगो अइसन बात मुहे मुह सुनले बानी जवना के प्रूफ ना दे सकिला उ इ कि कव बे अईसन भी भईल बा कि FCI के आवल आनाज बेच के थर्ड क्वालिटी के आनाज खरीद के केंद्र सरकार के बदनाम करेला, जवना में बरियार बचत होला दलाल लोग के |

चली अब मान लेवल जाव कि आनाज भी आ गईल बढ़िया तब राज्य सरकार ओकर कुकिंग प्रक्रिया कईसे करेला ? सामान्यतः इ पावल गईल बा कि ज्यादातर केस में राशन या त रिश्तेदार के दुकान से आवेला जवना में गोलमाल या त तौल में होत रहेला या फिर ओकर प्राइस में | या फिर कमीशन लेके ठिका दे दिआला दोकान के | एह स्कीम के उद्येश इहो रहल रहे कि छात्र उपस्तिथि भी बढ़ी अउरी बढ़ल भी बा लेकिन ओतना ना जतना कागज प बा, काहे कि लईका कतनो आवस उपस्तिथि लगभग 90% देखावेला ताकी ओह सभ के पईसा मिल जाव |

सरकारी डाटा के मुताबिक प्राइमरी लेवल प प्रतिदिन प्रत्येक छात्र के कुकिंग कास्ट 3.59 रुपया अउरी अप्पर प्राइमरी लेवल प प्रतिदिन प्रत्येक छात्र के कुकिंग कास्ट 5.38 रुपया बाटे | चुकी फण्ड एल्लोकेट भी उपस्तिथि के आधार पर ही होला | मिड डे मील प खाली कुकिंग खर्च 2007-08 अउरी 2013-14 में दुगना के लगभग अंतर बा लेकिन सुधार में कवनो विशेष अंतर ना देखे मिलल | एगो अउरी डाटा रखी पूरा स्कीम के लेके 11वीं पंचवर्षीय योजना अउरी 12वीं पंचवर्षीय योजना में लगभग 134% के इजाफा भईल बा |

See also  भारत में किसानन के खेती छोड़े के मूल कारण (भोजपुरी)

अब बात आवेला कि के एकर जिम्मेवारी ली, हमरा समझ से एकरा खातिर हमरा लगे दू रूप में हल बा, पहिला हल बा केन्द्रित रूप में खाली सुधार कईल चाहत बानी तब, जिम्मेवारी अउरी पूरा देखभाल खातिर एगो स्वतंत्र बॉडी होखे के चाही काहे कि प्रिंसिपल का का के जिम्मेवारी ली जनगणना ओकरे जिम्मे बा, वोटरलिस्ट ओकरे जिम्मे बा, पोलियो ओकरे नेतृत्व में होला, फिरू मिड डे मील तब उ पढाई प ध्यान कब दी | माने इ कि खाए पिए के चक्कर में मूल सिधांत से दूर हो जाई सरकारी स्कूल, पढाई चौपट हो जाई तब मिड डे मील के भी कवनो मतलब ना होई  |

जवन सिस्टम बा ओकरे में सुधार करके स्टैंडिंग कमिटी के बढ़िया गठन होखे जवन निरतर निगरानी बढ़िया से रखत रहो, ओकर गुणवता अउरी स्वाद के बढ़िया से जांच करत रहो | हरेक दिन भोजन के सैंपल पास में स्तिथ PHC(प्राइमरी हेल्थ सेंटर) में चेक खातिर भेजे के अनिवार्यता कर देवे के चाही | कुकिंग में ज्यादा से ज्यादा महिला के इन्वोल्व कईल एगो अच्छा कदम जवना में साफ़ सफाई वाला समस्या से निजात मिल सकेला |

दूसरा हल इ लउकेला बाहर से बने बनावल खाना पैक्ड लंच PPP(Public-Private Partnership) के सहायता से लावल जा सकेला | पहिला फायदा इ होई कि पढाई के माहौल बरक़रार रही अउरी मिड डे मील के सिधांत भी पूरा हो जाई | अक्सर जमीनी स्तर प होला का कि आस पास खाना बने से पढाई के मोमेंटा ख़राब हो जाला, लईकन के उद्देश्य खाली खाए मात्र रह जाला | दूसरा फायदा इ होई जिम्मेवारी केन्द्रित रही, ना त अक्सर देखल गईल बा कि कवनो घटना घटेला तब सभे एक दूसरा प ब्लेम गेम खेले लागेला | तीसरा फायदा इ होई कि अगर अच्छा गुणवता नइखे मिलत तब रुआ दोसर कैटर रख सकिला पुरनका के हटाके, लईकन के फीडबैक के आधार प | एगो अउरी महत्वपूर्ण बात कि कैटर के चुनाव पास के शहर में स्तिथ सारा कैटरस में से एगो कैटर के ऑक्शन के आधार पर होखो ताकी सरकारी खर्च न्यूनतम लागो | ओकर खाना के गुणवता अउरी स्वाद दुनु बढ़िया होई काहे कि जिम्मेदारी केन्द्रित बा अउरी ब्लेम गेम के सम्भावना कम बा |

Spread the love

Support us

Hard work should be paid. It is free for all. Those who could not pay for the content can avail quality services free of cost. But those who have the ability to pay for the quality content he/she is receiving should pay as per his/her convenience. Team DWA will be highly thankful for your support.

 

Be the first to review “मिड डे मील त्रासदी दने एक नजर (भोजपुरी)”

Blog content

There are no reviews yet.

Decoding World Affairs Telegram Channel
error: Alert: Content is protected !!