सियासत भरी रही याकूब की फांसी

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हाल ही में 1993 के मुंबई ब्लास्ट में दोषी ठहराए गए याकूब मेमन को 30 जून को फांसी दी गई | याकूब मेमन पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट था | हालाँकि पूरी प्रक्रिया में कई तरह के सवाल भी खड़े हुए | बहूत सारे लोगो ने याकूब के पक्ष में दया याचिका भी दायर की थी, वही लोगो का एक समूह याचिका दायर करने वालो का भी खुल के विरोध कर रहे थे और याचिका का भी | याकूब के केस में न्यायिक प्रक्रिया भारत-पाकिस्तान के क्रिकेट मैचों जैसा ही था जो की अंतिम क्षण तक रोमांचक रहा था | फांसी के घंटे भर पहले तक याकूब को विश्वास था कि शायद उसके क्षमा याचिका कुछ हो सके | पूरी तरह राजनितिक स्टैंड लेने की वजह से न्यायिक प्रक्रिया पर नाना प्रकार के सवाल खड़े किए गए जो की निंदनीय था |

आज के तारिख  में आप किसी भी व्यक्ति से चर्चा करोगे तो हो सकता है सरकार में हजारो खामिया निकाल कर कोसता हो, पुलिस को बूरा भला कहता हो लेकिन जब भी न्यायपालिका की बात आती है तब लोगो में एक विश्वास की किरण होती है जिसकी वजह से भरपूर इज्जत भरी नजरो से देखा करते है | ऐसे में कोई न्यायपालिका को दूसरी नजर से देखना शुरू करेगा तो सवाल उठने लाजमी है | इतनी याचिकाए गई कई बार उसपर पुनर्विचार किया गया यहाँ तक कि फांसी के रात तक सस्पेंस बरक़रार रहा था |

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याकूब मेमन 1993 में होने वाले एक के बाद एक दर्जनों धमाको के मुख्य आरोपियों में से एक था | इस घटना की वजह से 250 से भी ज्यादा लोग मारे गए थे और हजारो की संख्या में घायल भी हुए थे | धमाको की साजिश में शामिल होने के अलावां वारदात के लिए वाहनों का इंतजाम करने व विस्फोट लादे वाहनों को अलग अलग जगहों पर खड़ा करवाने का भी आरोप था  | काफी लम्बे समय 15 साल तक चला इस मुकदमे में विशेष टाडा न्यायाधीश पीडी कोदे ने जुलाई 2007 में 12 लोगों को मौत की सजा सुनाई थी, जिसमें से एक याकूब मेमन भी था |

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उनमे से 11 को फांसी की सजा को आजीवन कारावास की सजा में तब्दील कर दी गई और याकूब की सजा बरक़रार रखी गई थी | जब भी मुंबई ब्लास्ट की बातें आती है उनमे तिन नाम सबसे पहले आते है दाउद अब्राहिम, टाइगर मेमन, याकूब मेमन | तमाम न्यायिक प्रक्रियाओं के पूरा होने और कुछ राजनीतिक दलों के याकूब को दिए जा रहे समर्थन के बावजूद उच्चतम न्यायालय के आदेशानुसार दे दी गई |

कुछ राजनेताओ जैसे ओवैसी का मानना था कि याकूब की फांसी धार्मिक आधार पर तय की गई है | अगर धार्मिक आधार पर सच में हुआ होता तो जिन 11 लोगो की फांसी की सजा आजीवन कारावास में तब्दील की गई वो नहीं की गई होती क्युकी वो भी मुस्लमान ही होते है | ओवैसी की बातो में दोसरा चरित्र नजर आता है एक समय ये बोलते है कि संविधान और न्यायपालिका में गहरा विश्वास है और दूसरी तरफ उन्ही नयायपालिका पर ऊँगली उठाते नजर आते है | कई बार इसी ओवैसी के मुह से यह भी सुना गया था कि किसी भी आतंकवादी का कोई मजहब नहीं होता | अगर न्यायपालिका ने आतंकवादी घोषित कर दिया तो उसको मजहबी स्टैंड देना उचित नहीं लगता |

यहाँ तक कि उसके वकील भी ये वाकया रखते जज के सामने, कि वो भले ही साजिश में शामिल हो सकते है लेकिन वारदात को अंजाम देने में उनका कोई हाथ नहीं था, इसलिए उसकी फांसी की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दी जाए | कितना निराधार उनलोगो की दलीलें थी ऐसे तो अंजाम देने में टाइगर मेमन और दाउद अब्राहिम का भी कोई हाथ नहीं था तो क्या अगर वो गिरफ्त में होता तो, उसे भी बक्शा जाता ? दूसरी बात उनके दलीलों के मुताबिक जिन 11 लोगो की फांसी को उम्रकैद में तब्दील किया गया था, क्या उन्हें फांसी देना कितना उचित होता ? क्युकी तमाम वारदातों में वो तो थे | याकूब को उन दलीलों पर उम्रकैद में बदलना अगर न्याय होता, तो उन 11 को फांसी देना कितना उचित ? ऐसे कई सवाल है जो खड़े होंगे, जब भी कोई ऐसे फैसलों पर ऊँगली उठाएगा |

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विडियो के रूप में एक बहूत पुराना इंटरव्यू है याकूब मेमन का हैडलाइन टुडे के साथ जिसमे उसने कई अहम खुलासे किए थे | पत्रकार को उसने सारी बाते बताई थी किस तरह से उसे पाकिस्तान में विस्थापन की पूरी कहानी रची गई थी, कौन कौन लोग थे और कैसे उस घटना का अंजाम दिया था, किस तरह से तौफीक जलियांवाला के यहाँ के घर उन्हें रखा गया था और किस तरह से पाकिस्तान सरकार उन्हें मदद कर रही थी | जब इतने पढ़े लिखे थे तो उन्हें ये बात समझ नहीं आ रही थी क्या कि आखिर पाकिस्तान सरकार उन्हें क्यों मदद कर रही थी | इंटरव्यू के दौरान याकूब ने कहा कि टाइगर मेमन से उनकी हमेशा से अनबन रहती थी पुरे जीवन में ज्यादा से ज्यादा 1 घंटे ही बात की होगी |

अगर ऐसी अनबन थी तो वो पाकिस्तान क्यों गए टाइगर मेमन के साथ ? गए भी तो जभी वापस क्यों नहीं आ गए ? इन सवालो के जवाबों को लपेटते नजर आया था | हालाँकि वो भी इस बात से रूबरू थे कि तौफीक जलियांवाला कोई उसका दामाद तो था नहीं तो कौन हो सकता है जिसके घर वो पनाह लेने जा रहे है | तौफीक जलियांवाला, जावेद चिकना इन, टाइगर मेमन इन सब का क्रिमिनल रिकार्ड्स रहा है ये वो भी अच्छी तरह से जानते थे | चार्टर अकाउंटेंट थे तो उनको नहीं पता कि ISI क्यों इतनी सहायता कर रही ये सब काम में ? इससे राष्ट्र के ऊपर क्या प्रभाव पड़ेगा ? जबकी सच्चाई तो ये है कि उनके फालतू के गुस्से का फायदा उठा ले गए वो पाकिस्तान की तमाम संस्थाए जिसने उनकी मदद की थी |

इस मामले में दो तरह के लोग थे एक वो लोग जो ‘कैपिटल पनिशमेंट’ का विरोध कर रहे थे वो एक अच्छी बात है, लेकिन दुसरे वो लोग ‘याकूब की कैपिटल पनिशमेंट’ का विरोध कर रहे थे वो निंदनीय है | इस बात से हालाँकि मै भी सहमत हु कि किसी लोकतान्त्रिक देश में फांसी अच्छी बात नहीं है | हम क्राइम को नहीं ख़त्म कर रहे बल्कि सिर्फ क्रिमिनल्स को ख़त्म कर रहे है, खैर कई हल के स्पेस भी है जिससे हम क्रिमिनल्स का रिफार्म कर सकते है जैसा की किरण बेदी जी ने अपने समय किया था | लेकिन वो चीजे अभी नहीं हो सकती उसके पीछे कारन यह देना चाहूँगा कि जब वारदाते हुई उस समय जो कानून था उसके मुताबिक ही सजा होना चाहिए जो की हुई है | अगर अब लगता है किसी को कि ये ब्यवस्था सही नहीं है तो सामने आए और संसोधन करने के लिए प्रयास करे |

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लेकिन अगर कोई ये बात कहे कि याकूब के लिए आज ही कानून बदलिए वो अन्याय है और संविधान का अपमान भी है जिसे स्वीकार्य नहीं किया जा सकता है | मजहब के नाम पर सियासी गेम खेलना वास्तव में अच्छा नहीं है क्युकी याद कीजिए अब्दुल कलाम भी इसी देश में मुस्लमान थे जिनके निधन पर पूरा राष्ट्र रोया था और ऐसे लोगो के लिए आगे भी सहनुभुतिया और प्यार दिलो में सदा राज करेगा | लेकिन टाइगर मेमन, याकूब मेमन, दाउद अब्राहिम, अफजल गुरु, कसाब को जो लोग एक हीरो के रूप में देख रहे है वो अनार्चिस्ट है उनका कुछ नहीं किया जा सकता | जिस दिन वो भी किसी नियम को तोड़ते नजर आएँगे उन्हें भी उचित दंड देने का प्रावधान हमारे संविधान में है | हम संविधान, न्यायव्यवस्था पर पूरा गर्व करते है और सबको करना भी चाहिए |

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