अभी हाल में दो-तीन दिन पहले ‘द वायर’ पर एक बहुत खुबसूरत लेख आया था| लेख का नाम था “why has the RBI killed the Indian Economy”| लेख में कुछ फीचर्ड वाकया होते है| उस लेख के फीचर्ड वाक्य में लिखा हुआ था कि हाई इंटरेस्ट रेट नए उद्योगकर्मियों को पनपने नहीं दे रही है इसी का मुख्य कारण है कि पीछे 30 सालों के औसत ग्रोथ रेट से भी कम भारत का फ़िलहाल का ग्रोथ रेट है| बैंक को लेकर भारत में सबसे बड़ी दिक्कत की बात यह रही है कि सरकार और RBI के बीच खटपट शुरू से ही रही है| जब से RBI का जन्म हुआ है तब से लेकर आज तक रहा है| इस चलन की वास्तविक शुरुआत कब हुई थी और उसका कैसा सफ़र रहा है उस लेख में बहुत अच्छी तरह से लिखा गया है| वहाँ आप पढ़ सकते है| मै उसके आगे लिखना चाहता हूँ| RBI अपने मोनेटरी पालिसी की मदद से आर्थिक विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है| इसलिए सरकार की फिस्कल और RBI की मोनेटरी के बीच एक अच्छा समन्यवय बनाना बहुत ही जरूरी होता है|
संस्थाओं के बीच स्थापित गैप का फायदा उठाते हुए कुछ घोटाले इतिहास में भी हुए है| चिंता की बात यह है कि हमारी संस्थाओं द्वारा सिग्नीफीकेंट एक्शन नहीं लिया गया है| सबसे बड़ी लूपहोल तो यह है कि हमारे संस्थाओं के बीच आपसी समझ बहुत सहज नहीं है| बैंकिंग सेक्टर में हुआ यह नया घोटाला ‘नीरव मोदी घोटाला’ कोई पहला घोटाला नहीं है| ऐसे घोटाले कभी बाइनरी (उदा. नीरव बनाम पंजाब नेशनल) में नहीं होते| इसमें बहुत सारे और पैरामीटर्स, संस्थाएं और लोग शामिल होते है| इतनी बड़ी थ्री लेयर सिक्यूरिटी सिस्टम (मेकर, चेकर और वेरीफायर) होने के बाद भी कैसे RBI, बैंक और सरकार तीनों को नहीं पता चला यह एक बहुत ही गंभीर सवाल है| अभी तो जाँच समिति बैठेगी और बातें और खुल के सामने आएगी कि आखिर हुआ क्या था| पंजाब नेशनल बैंक जैसी बैंकों के लिए यह बहुत बड़ा धक्का है क्युकी उसके लिए यह बहुत बड़ी रकम है| RBI के नियम के अनुसार इसके 50% अमाउंट को अपने बैलेंस शीट में डालना होगा जिसकी जवाबदेही पंजाब नेशनल बैंक ही होगी|
अब सोचिए कि जिस बैंक कि प्रॉफिट 250 करोड़ की है उसके सर 11 हजार करोड़ का आधा लगभग साढे पांच करोड़ से ज्यादा की अमाउंट की जवाबदेही कितनी मुश्किल भरी होगी| यही नहीं बैंक के शेयर दिनों दिन गिरते जा रहे है| इसके बाद पीएनबी के शेयरों में 6.7 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है| यह अनुमान लगाया जा रहा है कि यह अमाउंट पंजाब नेशनल बैंक के एह-तिहाई अमाउंट के बराबर है| हालाँकि जिनके एकाउंट्स पंजाब नेशनल बैंक में है उन्हें चिंता करने की कोई बात नहीं है|
एकदम साधारण शब्दों में बता रहा हूँ कि आखिर यह घोटाला था क्या| इस कहानी के चार करैक्टर है| पहला है नीरव मोदी के बैंक, दूसरा है पंजाब नेशनल बैंक, तीसरा है ओवरसीज बैंक (इलाहबाद बैंक और एक्सिस बैंक) और चौथा है हीरे का सप्लायर| पिछले महीने पंजाब नेशनल बैंक ने 280 करोड़ की घोटाले का रिपोर्ट सीबीआई को लिखवाया था| हुआ ये कि नीरव मोदी के कंपनी को हीरे का आयात करना था| इसके लिए उन्हें पैसे चाहिए थे| विदेशी ट्रांजेक्शन करने का एक प्रक्रिया होती है| सबसे पहले कंपनी को अपने देश के किसी बैंक से एक ‘लैटर ऑफ़ क्रेडिट’ बनवाना पड़ता है| इसके एवज में कंपनी को कुछ सिक्यूरिटी रखनी होती है| इसके लिए नीरव मोदी ने पंजाब नेशनल बैंक को चुना था| इस लैटर ऑफ़ क्रेडिट के जरिए विदेश में ओवरसीज बैंक की मदद से पैसे की निकासी होती है| ऐसा इसलिए होता है क्युकी विदेश में पंजाब नेशनल बैंक नहीं होता है| इसके जगह पर जो भी विदेश में बैंक जैसे इलाहबाद या एक्सिस बैंक हो गई उसमें पंजाब नेशनल बैंक का अकाउंट होता है जिसे नोस्ट्रो अकाउंट कहते है| जैसे ‘लैटर ऑफ़ क्रेडिट’ ओवरसीज बैंक को मिलता है वो बैंक पंजाब नेशनल बैंक के सहारे हीरे के सप्लायर को पे करती है| ऐसे कंपनी की खरीददारी की प्रक्रिया संपन्न होती है|
लेकिन इसका पता तब चला जब ओवरसीज बैंक अपना पैसा 280 करोड़ पंजाब नेशनल बैंक से मांगना शुरू किया| पंजाब नेशनल बैंक के पास इसका कोई रिकॉर्ड ही नहीं था| इसलिए पंजाब नेशनल बैंक सीबीआई के पास जाकर रिपोर्ट दर्ज करवाई| प्रक्रिया में यह होता है कि लैटर ऑफ़ क्रेडिट जारी करने से पहले बैंक कुछ सिक्यूरिटी मांगती है| जबकी ऐसी कोई सिक्यूरिटी का भी रिकॉर्ड नहीं है| अमाउंट को तीन कंपनीज के सहारे क्लियर करने की कोशिश की ताकि यह RBI के रडार में न आ सके| यह सब ऑफ द रिकॉर्ड चल रहा था| इसलिए यह अनुमानित किया गया है कि यह मामला 11 हजार करोड़ से ऊपर भी जा सकता है क्युकी यह खेल बहुत दिन से चल रहा है जिसका पर्दाफास अब हुआ है| एक दो लाइन में कहूँ तो ये कि पोटली से पैसे निकाल के दे दी गई और उसका कोई भी रिकॉर्ड नहीं रखा गया| इसके लिए थ्री सिक्यूरिटी सिस्टम होती है – मेकर, चेकर और वैरीफायर| उनकी क्या भूमिका रही है यह सब सामने निकल के आना है| क्या RBI को इस बात का पता था? क्या सरकार को इसका पता था? इसमें और कौन-कौन से अधिकारी शामिल है यह सब सामने निकल के आने वाला है|
इससे पहले 1991 में भी एक घोटाला हुआ था जो ‘हर्षद मेहता घोटाला’ के नाम से मशहूर था| हर्षद मेहता को स्टॉक मार्किट का अमिताभ बच्चन कहा जाता था| नीरव मोदी की तरह ही मुंबई में एकदम फर्स्ट क्लास का समुन्द्र के सामने बंगला था| उनके पास 29 बड़ी गाड़ियाँ होती थी| टोयोटा की लेक्सुस बहुत बेशकीमती गाड़ियों में आती थी जो हर्षद के पास थी| एकतरह से हीरो था| मैगज़ीन के कवर पर उसका फोटो मंहगी गाड़ियों के साथ लगता था| वो एक ब्रोकर था| उसकी कहानी ये थी कि SBI से उसने 500 करोड़ रूपए लिए थे| उन रुपयों का उसे सरकारी सिक्यूरिटी (एक तरह का गवर्नमेंट एप्रूव्ड पेपर) खरीदकर बैंक को देना था| भाईसाहब ने क्या किया कि पैसे तो लिए लेकिन बहुत दिन हो गए गवर्नमेंट को पैसे देकर ना सिक्यूरिटी पेपर लिए और नाही SBI को पैसे लौटाए| ऐसे में SBI ने बुलाकर कहा कि या तो पैसे वापस करे या सिक्यूरिटी पेपर लाए| हर्षद ने वो पैसे स्टॉक में लगा दिया था| उसी से वो पैसे कमाता था| जहाँ पैसे लगाता उसकी निवेश एकदम से उछल जाती| गिरफ्तार हुए और जैसे जेल से बेल पर निकल के आए उन्होंने पैसे वापस करने का प्रस्ताव रखा|
ऐसे में जब यह पता किया गया कि आखिर यह सब कैसे और कहाँ से हुआ तब पता चला कि उन्होंने NHB (नेशनल हाउसिंग बैंक) से लेकर दे रहे है| किस आधार पर NHB ने हर्षद को इतना बड़ा अमाउंट दिया यह एक बड़ा प्रश्न था| जब समिति बनी और जाँच शुरू हुए तो बहुत सारी कहानियां सामने निकल के आई| रामजेठ मलानी के साथ एक प्रेस कांफ्रेस किया गया और उसमें यह साबित किया गया कि यह तब के प्रधानमंत्री नर्शिम्भा राव का घोटाला है ना कि हर्षद मेहता का घोटाला है| उसमें यह बात आई कि हर्षद मेहता ने प्रधानमंत्री को “पार्टी फण्ड” के लिए पैसे दिए है| इसी की वजह से गवर्नमेंट सिक्यूरिटी के पेपर को लटका के रखा गया था| अब शायद आपलोगों को भी समझ आ गया होगा कि आखिर “पार्टी फण्ड” को RTI के अंदर क्यों नहीं लाया जाता| बहाना वही कि इलेक्शन कमीशन को देते है फिर लोगों को क्यों दे| खैर जो भी हो| नाटकीय ढंग से वाक्ययुद्ध हुआ| ऐसे प्रश्न उठाए गए कि सूटकेस में इतने पैसे कैसे आ सकते है| इसके दोबारा से प्रेसकांफ्रेंस करके सूटकेस में पैसे रखकर दिखाया गया ऐसे| उनदिनों सोशल मीडिया नहीं था नहीं तो मनोरंजन का जरिया होता|
इसका प्रभाव यह पड़ता है कि भारत का NPA बढ़ता चला जाता है जो आम जनता के सिर अलग-अलग रूपों में पड़ता है| भारत में आज लगभग साढ़े नौ लाख करोड़ रूपए NPA (नॉन प्रॉफिट एसेट) है| यानी डूब चुके है| दूसरा टर्म आता है ‘स्टालड’, इसमें कुल ग्यारह लाख करोड़ रूपए लगभग डूबने के अवस्था में है| यह NPA का छोटा रूप है क्युकी लोग प्रोजेक्ट छोड़ के भाग चुके होते है| बैंकिंग सिस्टम आम जनता से पैसे लेती है और वो पैसे इन्हीं उद्योगपतियों के बिजनेस के लिए देती है| जब भी ऐसी अवस्था आती है तब बैंक पर दबाव पड़ता है क्युकी आखिरकार लोगों को पैसे वापस देना ही पड़ता है| ऐसे में बैंक अलग-अलग प्रकार से लोगों पर दबाव बनाना शुरू करती है| जैसे दो बार से ज्यादा एटीएम से पैसे निकालने पर चार्ज, सालाना डेबिट कार्ड का चार्ज और कमीशन आदि|
एक सवाल यह भी होगा कि क्या हर्षद मेहता की तरह नीरव मोदी घोटाले में भी कोई एंगल पार्टी फण्ड से जुड़ा होगा? अगर जुड़ा है तो इस बार किस कम्बल से ढका जाएगा? जैसा की हर्षद मेहता के केस में NHB के सहारे ढंकने की कोशिश की गई थी| क्युकी एक पैटर्न बन चूका है| पहले पैसे लों फिर दुसरे देशों में भाग जाओ| दुसरे देशों से पकड़ के लाना आसान इसलिए नहीं होता क्युकी सभी देशों के अपने-अपने कानून है और सारे देश sovereign है| लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि यह असंभव है| वैश्वीकरण के युग में यह डिफाइन किया जा सकता है कि एक देश दुसरे देश को आतंकवाद और फ्रॉड के मामले में एक-दुसरे को मदद करेंगी| इसके लिए सरकार को अपनी बात अंतराष्ट्रीय मंच पर उठानी पड़ेगी| इसके लिए नियत साफ़ होनी चाहिए|
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