देश को वैकल्पिक यातायात और रसद की जरूरत

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रेलवे की खामियों के साथ हम सभी अच्छे से रूबरू है| आजादी के बाद से लेके अब तक लगभग 70 सालों में रेलवे के इंफ्रास्ट्रक्चर में जरूरी विकास करने में हमारी हुकूमतें असफल रही है| इसका परिणाम यह होता है कि ओवरलोड होने की वजह से आए दिन ट्रेन दुर्घटना होती है या फिर कई कई घंटों तक ट्रेनें लेट भी होती रहती है| अब सवाल यह है कि इसका क्या हल है? रेलवे को इतने कम समय में विकसीत करना बहुत मुश्किल है| रेलवे के इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास करने के लिए उसे किसी अल्टरनेटिव का सहयोग भी जरूरी है| क्या इसका कोई अल्टरनेटिव है? जी बिल्कुल इसका अल्टरनेटिव सड़क यातायात हो सकता है| इसकी नीवं हमारे भूतपूर्व प्रधानमत्री श्री अटल बिहारी बाजपाई जी ने रखने की कोशिश की थी| उन्होंने स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना के सहायता से पहली बार भारत के चार बड़े महानगरों दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता जो जोड़ने की कोशिश की| लगभग 13 राज्यों को जोड़ने वाली इस बड़ी परियोजना ने सड़क यातायात के नए आयाम तो खोले लेकिन सरकार बदलते ही इसका विकास और प्रसार ठंढे बस्ते में चला गया|

अब सवाल खड़ा होता है कि आखिर इसकी जरूरत ही क्या है? पहली बात तो यह कि भारतीय रेलवे सबसे ज्यादा ओवरलोड है| ऐसे में भारत को यातायात को एक नई दिशा मिलेगी| आजकल लगभग सारी संस्थाएं प्रोफेशनल होती जा रही है जहाँ समय की महत्ता बहुत ज्यादा दी जाती है| खासकर MNC कंपनीयां आदि में किसी भी कर्मचारी को दिवाली जैसे पर्वों या शादी ब्याह पर ज्यादा से ज्यादा दो या तीन दिन की छुटियाँ देती है| ऐसे में रेलवे पर विश्वास करना कि वो समय से घर और घर से वापिस कंपनी पहुचेगी, यह मुश्किल हो जाता है| यहीं नहीं बाक़ी के कंपनियों के कच्चा माल या फिर उत्पादी वस्तु आदि भी उचित समय पर पहुचाने असफल रहते है| अगर आज सुनियोजित तरीके से रेलवे का विकास होना शुरू भी होता है तो कम से कम अनुमानित अगले 20 साल तो लगेंगे ही| जब तक रेलवे का परमानेंट हल नहीं निकलता और विकास की कोई और खाका तैयार नहीं होती तब तक के लिए सड़क परिवहन भारत के यातायात के प्रमुख साधन बन सकता है| नए नए व्यवसायी निकल के आएँगे और लोगों के रोजगार के नए आस बन सकते है|

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पूरे विश्व में भारत अपनी एक अलग पहचान बनाने और शक्तिशाली बनने की कोशिश कर रहा है| सरकार द्वारा चलाए गए प्रोग्राम जैसे मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया आदि इसके गवाह है| वो बात अलग है कि ग्राउंड पर हम कितना हासिल कर पाए है और कितना करना बाकी है| लेकिन एक चाहत जरूर है| ऐसे में भारत की अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा देना, शहर से दूर लोगों को आसानी से बाजार से रूबरू करवाना बहुत जरूरी हो जाता है| शहर पर बढ़ते जनसँख्या के दबाव को देखते हुए यह जरूरी हो जाता है कि दूर दराज के लोगों को यातायात के सहारे शहरों तक पहुचं बने| इसका प्रतिबिम्ब हमें अटल जी कि स्वर्णिम चतुर्भुज योजना में देखने को मिल चूका है| स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क से सटे लगभग 20 किलोमीटर तक के लोगों के सामानों की पहुचं शहरों तक दिखी है| सड़ने वाली वस्तुएं जैसे सब्जियां, टमाटर आदि का पहुचं आसपास के शहरों तक का पहुचां है| जितना इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास हुआ कम से कम उसका फायदा तो मिला ही है|

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इसके आस पास में चल रहे उद्योगों के लिए आसानी और तेजी से माल पहुचाने का एक साधन भी मिला है| प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भारत की अर्थव्यवस्था को भी मदद मिली ही है| ना सिर्फ सड़क बल्की जलमार्ग पर ध्यान देना उतना ही जरूरी बन जाता है| मेरे समझ से भारत के पहले से बड़े स्वर्णिम चतुर्भुज योजना को और आगे बढाया जाए| भारत के कोलकाता से मुंबई और दिल्ली से चेन्नई तक कि क्रॉस रोड का निर्माण हो| भारत के अंदर एक रिंग रोड बनाइ जा सकती है ठीक वैसे ही जैसे हैदराबाद और दिल्ली शहर में बनाई गई है| इसके अलावां हम अपने बॉर्डर क्षेत्रों में भी इसका विकास करके अपनी सुरक्षा में सहायता दे सकते है| उसके दो लाभ होंगे| पहला लाभ तो यह होगा कि लोगों को यातायात और बाजार तक पहुचने का साधन मिल जाएगा| और दूसरा फायदा यह होगा कि स्ट्रेटेजीकली भारत की सुरक्षा के नजरिए से एक अच्छा काम होगा| कभी पडोसी देश जैसे चाइना या पाकिस्तान से युद्ध की धमकियाँ मिलती है या दुर्भाग्यवश आने वाले भविष्य में कुछ ऐसा होता है तो हमारे प्रतिद्वंदी को निश्चित तौर पर परेशान करेगा|

लोजिस्टिक्स और यातायात के लिए यह माध्यम चुनौतीयों से बिलकुल खाली नहीं है| लेकिन हाँ यह चुनौती मात्र ही है, जिसपर विचार न करने के बजाए इसका हल आसानी से निकाला जा सकता है| इसमें बहुत सारी समस्याएँ है जैसे इंटरस्टेट विवाद, कड़क वित्तीय व्यवस्था, प्रतिस्पर्धित नीतियाँ और जलवायु परिवतन| इसके अलावां मुख्य कारण है इस क्षेत्र में तकनीकी विकास को नजरंदाज करना| भारत में ट्रक की औसत गति मात्र 20 किमी./घंटा है, जिससे इंधन की खपत ज्यादा और समय से विलम्ब पहुचने की संभावनाएं रहती है| इसके पीछे कुछ तकनिकी कारण है और कुछ मानवीय| बिज़नस स्टैण्डर्ड में छपे रिपोर्ट के अनुसार पहला कारण यह है कि भारत के लगभग 75% से ज्यादा ट्रक है जो सन 2000 के पहले के ख़रीदे हुए है| भारत में BS नोर्म्स (भारत स्टेज) सन 2000 के बाद ही आए है| इसलिए वो उनका तकनिकी विकास आउटडेटिड है| 2020 में हम BS VI नॉर्म लगाने के लिए तैयार है लेकिन हमारे ज्यादातर ट्रक पुराने तकनीक के ही है|

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दूसरा कारण यह है कि ड्राईवर जानबूझकर धीरे गति से चलाता है| इसके पीछे भी कुछ कारण है| जैसे ड्राईवर को एक तय मात्रा में तेल दिया जाता है जिससे वो एक जगह से दुसरे जगह पर सामान को पहुचाएं| वो तेल बचाने के लिए गाडी को इकॉनमी रेंज में चलाता है| तकनिकी कारण यही है कि कोई भी गाड़ी निचली गियर और टॉप गियर में सबसे ज्यादा तेल की खपत करती है| लेकिन बीच के स्पीड जैसे 30 से 50 किमी. पटरी घंटा तक में सबसे कम तेल की खपत होती है| इसके अलावां बहुत सारे टोल टैक्स से बचाने के लिए अंदर से घुमा के ले जाता है| जिससे समय बहुत ज्यादा लगता है| इसका तीसरा कारण है कि एक शहर से दुसरे शहर तक जाने तक बहुत सारे टोल का सामना करना पड़ता है| टोल कटता है वो अलग लेकिन चेकिंग के लिए घंटो लाइन में खड़ा करना पड़ता है जो बिलंब का एक कारण होता है| चौथा कारण है कि तकनीक से छेड़छाड़ की जाती है| जैसे CMVR(सेंट्रल मोटर व्हीकल रूल) के मुताबिक फ्यूल टैंक की साइज़ और वजन तय है जो ARAI के द्वारा की जाती है|

लेकिन ज्यादातर ड्राईवर इसमें छेड़छाड़ करवाकर तेल की टंकी को बड़ा करवाते है| चुकी अलग अलग राज्यों में तेल की कीमत अलग अलग है, इसलिए ड्राईवर की कोशिश रहती है कि जिस राज्य में तेल की कीमत सबसे कम है वहाँ से संग्रह कर लिया जाए ताकी कुछ अतरिक्त पैसे बचाया जा सके| इसके अलावां पांचवां कारण है कि कैपेसिटी से ज्यादा लोडिंग ट्रक को तो नुकसान करती ही है इसके अलावां समय से पहुचने में भी असमर्थ होती है तथा रोड की इंफ्रास्ट्रक्चर को भी प्रभावित करती ही है| सड़क पर चलने वाली गाड़ियों के कम गति के मुख्य कारण के बारे में तो बात हो गई लेकिन एक महत्वपूर्ण कंपोनेंट अभी रह रहा है| ह्यूमन कैपिटल जिसके बगैर साधन या बाक़ी के संसाधन बेकार है| दुसरे देशों में चलाने वाले ड्राईवर को एक स्टेटस मिलता है, उसे इज्जत मिलती है जो भारत में कभी नहीं मिलती| इतनी बड़ी डेमोग्राफिक डिविडेंड में से शायद ही होई होगा जो ड्राइविंग को करियर के रूप में चुने| चुकी जो लोग ड्राइविंग के क्षेत्र में है उनकी जीवन शैली अच्छी नहीं मानी जाती है|

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मुझे याद आता है नारी फाउंडेशन के प्रमुख अनिल रघुवंशी जी जब पुणे आए थे तब उन्होंने एक बात बहुत सही कही थी| वो कहते है कि जब अपने लिए गाड़ी खरीदते है तो सारी सुविधाओं की अपेक्षा करते है| AC से लेकर तमाम इलेक्ट्रॉनिक सुविधाओं की वही बात ट्रक या फिर कोई भी कमर्शियल गाड़ियों की आती है तो कम से कम सुविधा रखना चाहते है जिससे पैसे बचाए जा सके| चुकी हमारा माइंडसेट ही ऐसा होता है कि ‘हमें थोड़ी चलाना है ड्राईवर को चलाना है’| महात्मा गाँधी अपनी किताब स्वराज्य हिन्द में ‘डिग्निटी’ पर बहुत ज्यादा जोर दिया है जिसमे वे मानते है कि हर कामगार को बराबर की इज्जत दी जानी चाहिए| बात यही नहीं रूकती बाक़ी के टैक्सी ड्राईवर आदि से तनख्वाह भी कम मिलता है| बिज़नस टुडे में छपे रिपोर्ट के मुताबिक कोइम्बतुर के इरुद्याराज लगभग 10 साल ट्रक चलाने के बाद वो छोड़ कर अब उबर चला रहे है| कारण वही इज्जत और तनख्वाह| यही कारण है कि कुल ट्रकों का कुल 27 प्रतिशत ट्रक आज ड्राईवर की कमी की वजह से खड़ी पड़ी है|

अगर इनसभी खामियों पर ध्यान दिया जाए और सरकार के तरफ से प्रोत्साहन मिले तो शायद सड़क परिवहन भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी हो सकती है| अच्छे यातायात से बाजार में मिलने वाले सामान भी सस्ते होंगे| जिसका सीधा असर लोगों की जेबों पर पड़ेगा| यानी कि लोगों की अच्छी बचत हो सकती है| उनकी बचत आने वाले नए व्यवसायों के लिए पूंजी बन सकती है| भारत को एक वैकल्पिक साधन की इस वक्त बहुत ही ज्यादा जरूरत है| ऐसे में नए इंटरप्रेन्योर के लिए मौका और नौजवानों के लिए नौकरियां लेकर आ सकती है|

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