मानवीय सभ्यता के विकास में, ‘खाना’ के बाद सबसे महत्वपूर्ण विकास है – भाषा का विकास। अमेरिकी भाषा वैज्ञानिक, नोम चॉम्स्की यह तर्क पेश करते है कि भाषा एक अद्वितीय मानवीय उपलब्धि है। धरती पर पैदा हुए हर इन्सान की यह जरूरत बन जाती है चाहे वो किसी भी रंग, रूप, मजहब, जाती, वर्ग या क्षेत्र का क्यों न हो। बेशक नवजात बिना किसी भाषा के जन्म लेता है किन्तु मात्र 10 माह में ही बोली गयी बातों को अन्य ध्वनियों से अलग करने में सक्षम हो जाता है। भाषाई प्रकार का सम्बन्ध क्षेत्र से भी होता है। मिसाल के तौर पर भारत, खासतौर पर उत्तरी भारत में हिंदी का बोली, लिखी और पढ़ी है।
हिंदी विश्व की प्रमुख भाषाओँ में से एक है। भारत में यह एक राजभाषा है। हमारे देश में राष्ट्रिय स्तर पर हिंदी, अंग्रेजी के साथ सह-आधिकारिक भाषा भी है। अगर भारत की जनगणना 2011 की माने तो तक़रीबन देश की आधी से अधिक जनसंख्या (57.1%) हिंदी जानती है। भारत के अलावा विश्व के अन्य देशों में भी लोग हिंदी बोलते है। उदाहरण के तौर पर भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका के अलावा फ़िजी, मॉरिशस, गयाना, सूरीनाम, नेपाल और संयुक्त अरब अमीरात में भी हिंदी बोलने वाले लोगों की तादाद काफी बड़ी है।
हालाँकि हिंदी भाषा की प्रासंगिकता लगभग हर क्षेत्र में पाई जाती है। चाहे वो प्रशासन हो, राजनीति हो, अर्थव्यवस्था हो या फिर सामाजिक और सांस्कृतिक धरोहर ही क्यों ना हो। हिंदी भाषा की भूमिका अमूमन हर जगह पाई जाती है। उदाहरण के तौर पर जब नवजात शिशु घर में पैदा होता है तो उसके स्वागत में गीत, सोहर गाए जाते है। सोहर घर में सन्तान होने पर गाया जाने वाला मंगल गीत है। संभवतः ऐसे ही सांस्कृतिक विकास के तर्ज पर हिंदी भाषा ‘प्रौद्योगिकी’ के क्षेत्र में भी अपनी भूमिका बखूबी निभाती है।
सूचना क्रांति के उद्गम से ‘कंप्यूटर’ और ‘इन्टरनेट’ संभवतः हर किसी इन्सान के हाथ में पहुँच चुका है। चुकी, सूचना क्रांति के शुरुआती दौर में अंग्रेजी के अलावा बाकी के भाषाओँ पर उतनी ध्यान नहीं दी गई थी, शायद इसलिए लोगों के अंदर एक भ्रम पैदा हो गया था कि कंप्यूटर अंग्रेजी के अलावा किसी और भाषा में काम नहीं करता है। जबकि सच्चाई यह है कि आज मैं इस हिंदी आलेख को भी कंप्यूटर पर ही टाइप कर रहा हूँ। गूगल का एक रिपोर्ट यह दावा करता है कि हर पांच हाल में हिंदी की सामग्री में 94% बढ़ोतरी हो रही है। यह आंकड़ा हिंदी भाषा की ना सिर्फ संभावनाएँ बल्कि प्रासंगिकता को भी बढ़ाती है।
इसके परिणामस्वरूप आज लोग हिंदी में लेख लिखते है और ऑनलाइन एक दुसरे से साझा करते है। प्रौद्योगिक विकास के पहले हिंदी की लिखाई-पढ़ाई केवल अभिजात वर्ग तक ही सीमित था जिसके पास अच्छी शिक्षा की सुविधाएँ थी। आम जनमानस तक सिर्फ यह बोली जाने वाली भाषा था। लेकिन आज ‘सोशल मीडिया’ के दौर में लोग अपनी बातें ‘हिंदी’ भाषा में लिखते है और ‘फेसबुक’ जैसे माध्यम के सहारे पढ़ते और पढ़ाते है। इसके अलावा मुख्य धारा वाले समाचार कंपनियां भी हिंदी में वेबसाइट के सहारे आलेख हर उस इन्सान तक बेहद कम समय में पहुँचाते है जिसके हाथ में ‘स्मार्टफोन’ है। प्रौद्योगिक विकास, समय के साथ हिंदी भाषा की प्रासंगिकता पर अपनी मुहर लगाते दिखता है।
आज की परिस्तिथि ऐसी हो गई है कि हिंदी भाषा की प्रासंगिकता का सीधा संबंध सूचना क्रांति के विकास से हो गया है। जैसे-जैसे ‘स्मार्टफोन’ और ‘इन्टरनेट’ की ताकत और पहुँच बढ़ेगी वैसे-वैसे हिंदी राजभाषा की समृद्धता भी बढ़ेगी। उदाहरण के तौर पर “यूथ4वर्क” की 2018 में की गई सर्वे रिपोर्ट का दावा है कि इन्टरनेट की दुनिया में हिन्दी ने भारतीय उपभोक्ताओं के बीच अंग्रेजी को पछाड़ दिया है। यह प्रौद्योगिकी का हिंदी भाषा पर सकारात्मक प्रतिबिम्ब को दर्शाता है। इसी दिशा में ‘गूगल ट्रांसलेटर’ और ‘वाइस टाइपिंग” जैसी तकनीक हिंदी की प्रासंगिकता में चार चाँद लगाने का काम कर रहा है। हाल ही में ‘संस्कृत’ भाषा का उपयोग करके ‘कंप्यूटर प्रोग्राम’ बनाने का दावा किया गया है। उम्मीद है कि भविष्य में शायद हिंदी भाषा में भी ‘कंप्यूटर प्रोग्राम’ की कल्पना की जाए।
इसका सीधा असर कंपनियों में भी देखने को मिलता है। आजकल मोबाइल की कंपनियां वैसे मोबाइल यन्त्र को बना रही है जो हिंदी भाषा का विकल्प देता है। भारत में एक बड़ा वर्ग है जो ‘हिंदी’ भाषा को अपने माध्यम के रूप में चुनते है जिससे मोबाइल का उपयोग कर पाए। परिणामस्वरूप बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ आजकल हिन्दी जानने वाले कर्मचारियों को वरीयता दे रही हैं। हाल ही में गूगल ने हिंदी भाषा में ‘गूगल असिस्टेण्ट’ का प्रावधान किया है। खासतौर पर जो लोग एक या दो पीढ़ी पहले के लोग है जो टाइपिंग का उपयोग करने में असहज महसूस करते है उनके लिए यह एक वरदान है। आज लोगों को जब यू-ट्यूब पर कुछ चीजें खोजनी होती है वो भी ‘गूगल असिस्टेण्ट’ का उपयोग करते है।
सूचना क्रांति की प्रतिबिम्ब जनसंचार पर भी दिखता है। प्रौद्योगिकी के दौर में फ़िल्म उद्योग के सन्दर्भ में नए और सकारात्मक प्रभाव देखने को मिल रहे है। बॉलीवुड का चलचित्र अब ‘शोर्ट फिल्म’, ‘गाने’ और ‘OTT’ जैसे माध्यमों पर खूब निखर रहा है। बदलते तकनीक के दौर में इन सब में सबसे ज्यादा ‘हिंदी’ भाषा का उपयोग होता है। इसका कारण यह है कि हिंदी भाषा एक बड़े वर्ग को आकर्षित करता है। इससे बनाने वाले लोगों के कमाई पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है इसलिए वे लोग ‘हिंदी’ भाषा को माध्यम के तौर पर चुनते है। दुसरे शब्दों में कहे तो विडियो जितनी ज्यादा बार देखी जाएगी उतनी कमाई होगी। इसके अलावा, प्रौद्योगिक विकास की वजह से विदेशी फ़िल्में हिंदी में डब हो रही है। परिणामस्वरूप, राजभाषा हिंदी की प्रासंगिकता में इजाफा होता है।
शायद यही वजह है कि फेसबुक और व्हाट्सएप जैसी तमाम बहुराष्ट्रीय कंपनियां हिंदी भाषा के साथ निरंतर तालमेल बैठाने में लगे रहते है। 2018 में प्रकाशित एक अमेरिकी रिपोर्ट की माने तो ट्विटर पर हिन्दी में ट्वीट करना बहुत लोकप्रिय हो रहा है। रिपोर्ट का दावा है कि पिछले गत वर्षों में कुल 15 ट्वीट में से 11 ट्वीट सिर्फ हिंदी भाषा में ही थे। हिंदी का बड़ा बाजार हमेशा कंपनियों को मुनाफे की राहे दिखाता है। शायद यही कारण है कि बहुत सारी कंपनियां आजकल अपनी वेबसाइट हिंदी भाषा में भी लेकर आ रही है। उदाहरण के तौर पर “अमेज़न” वेबसाइट भी हिंदी भाषा में उपलब्ध है जो एक विक्रेता और एक खरीददार को जरूरत के हिसाब से एक दुसरे से मिलाता है।
इसके अलावा, व्यक्तिगत स्तर पर भी ‘फ़ूड ब्लॉगर’ हिंदी की वेबसाइट बना रहे है। यदि विडियो ब्लॉग्गिंग करते है तो भी वो हिंदी भाषा का ही उपयोग कर रहे है। इन सब में प्रौद्योगिकी का एक अहम भूमिका है। ठीक इसी तर्ज पर ‘काव्य पाठ्य’ भी प्रौद्योगिकी के सहारे विकसित हो रहा है। आज का नौजवान ‘काव्य पाठ्य’ को अपने भविष्य के रूप में देख रहा है। हिंदी भाषा में अपनी कविताएँ लिख रहा है और तकनीकी विकास के माध्यम जैसे यूं-ट्यूब के सहारे हमारे समक्ष रख भी रहा है। गूगल की “AdSense” जैसी व्यवस्था नौजवानों को आर्थिक रूप से स्वतंत्र भी बनाती है। इन सब से हिंदी भाषा की प्रासंगिकता दिनों दिन तरक्की कर रही है।
इसलिए प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में राजभाषा हिंदी की प्रासंगिकता निरंतर बढ़ रही है। इसकी पुष्टि हमें तमाम रिपोर्टों में भी दिखती है। उदाहरण के तौर पर 2016 में विश्व आर्थिक मंच (WEF) ने 10 सर्वाधिक शक्तिशाली भाषाओं की जो सूची जारी की थी। उस सब में हिन्दी भी एक थी। इसकी प्रासंगिकता को और बढ़ाने के लिए, 2006 से भारत, 10 जनवरी को ‘विश्व हिंदी दिवस’ के रूप में मनाता है। हिंदी की बढ़ती प्रासंगिकता का ही परिणाम है कि संयुक्त राष्ट्र रेडियो अपना प्रसारण हिन्दी में भी करना शुरू कर दिया है। यह एक उत्साहजनक बात है। भारत सरकार हिन्दी को ‘संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा’ और ‘वैश्विक भाषा’ बनाने के लिए निरंतर प्रयत्न कर रहा है। उम्मीद है कि आने वाले दशक बदलते प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में ‘हिंदी’ भाषा का विकास भारत के उपयुक्त सपनों को साकार करेगा।
Support us
Hard work should be paid. It is free for all. Those who could not pay for the content can avail quality services free of cost. But those who have the ability to pay for the quality content he/she is receiving should pay as per his/her convenience. Team DWA will be highly thankful for your support.
0
/5Based on 0 rating(s)
Recommended by 0 reviewer(s)
Blog content
By 01 reviewer(s)
Sort by
top mail temp
Temp mail This was beautiful Admin. Thank you for your reflections.