भोजपुरी से का परेशानी बा तथाकथित विद्वान लोगन के ?

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नया साल प सबसे पाहिले सभका के हार्दिक शुभकामना बा| भगवान रउरा के आ राउर पूरा परिवार के हमेशा खुश आ स्वस्थ्य राखस| नया साल के पहिला पोस्ट ह| पिछला दू हप्ता से अतना व्यस्तता चलत बा कि हालत ख़राब हो गईल बा| ओही बीचे एगो खबर अइसन आइल जवन हमरा के नॉक कईलस कि कुछ लिखे के चाही| सुने में आइल ह कि हिंदी के 110 गो तथाकथित विद्वान लोग प्रधानमंत्री के चिठ्ठी लिख के भोजपुरी के आठवीं अनुसूची में शामिल ना होखे के मांग कईलस ह| इ लोग मूल रूप के उ लोग ह जे बुझेला कि हर बात में लकड़ी लगावल विद्वता कहाई| पढ़े में इ आइल ह कि मात्र उ लोग के लगे 9 गो बिंदु बा जवना के चलते विरोध करत बा|

हम दस गुना 90 गो कारन दी कि काहे शामिल कईल जाव? खाली भोजपुरी ही ना हर स्थानीय भाषा के महत्ता बहुत ज्यादा होला| हिंदी के आधार भी त इहे सब स्थानीय भाषा ही रहल बा| करोडो लोग के मुंह से बोलल इ भाषा ना सिर्फ बिहार, उत्तरप्रदेश, झारखण्ड बल्कि वैश्विक स्तर प भी आपन पहचान रखेला| नेपाल के तराई क्षेत्र, मारीशश, फिजी, ट्रिनिडाड, थाईलैण्ड, हालैण्ड, मलेशिया तथा सिंगापुर सहित ढेर देशन में भी एकर व्यापक आधार बा|

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ऋग्वेद में महर्षि विश्वामित्र द्वारा ‘भोज’ शब्द जवना से भोजपुरी बनल, एकर उल्लेख त बडले बा, महाभारत सहित विभिन्न धर्म-ग्रन्थन से होत मालवा के राजा भोज, उज्जैन के भोज, गुर्जर प्रतिहार भोज, काशी आ डुगराँव के भोज राजान के इतिहास भोजपुरी के व्यापकता, विशालता अउरी प्राचीनता के गवाह रहल बा|

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संत साहित्यकारन के गुरू गोरखनाथ जी, चैरंगीनाथ जी, योगिराज भतृहरि, कबीरदास, कमलदास, धरमदास, धरनीदास, पलटूदास, भीखा साहेब जईसन सैकड़न सन्त साहित्यकार, विचारक अउरी चिन्तक लोग आपन लोक कथा, गीत, लोकगाथा अउरी लोकोक्तिन से भोजपुरी के पीढ़ी दर पीढ़ी एक कंठ से दूसरा कंठ तक पहुचईले बा| हम खाली भोजपुरी के ही ना बल्कि हर स्थानीय भाषा के संजोय के पक्षधर हई| ओकरा पीछे कारण इ देब कि स्थानीय भाषा मौलिकता, शब्द सामर्थ्य अउरी भाव सौंदर्य होला| चाहे कवनो स्थानीय भाषा काहे ना होखे| ओकर आपन पहचान आ अस्मिता होला|

दुनिया में कवनो अईसन भाषा नईखे जवना के सारा शब्द ओकर होखे| सब एक-दूसरा के लेके बनावल बा| जईसे भोजपुरी में कहाला ‘तोहरा में कतना करेजा बा?” एहिजा करेजा शब्द इंग्लिश के “courage” से सम्बंधित बा| एकर हमरा ज्ञान नइखे कि इ शब्द मूल रूप से अंग्रेजी के ह कि भोजपुरी के| असही लोग भोजपुरी में पूछेला ‘बबुआ तोर घर कहाँ बा?’ जवाब मिलेला नियरे बा| एहिजा नियर शब्द अंग्रेजी के “Near” से सम्बंधित बा| असही हजारों-लाखों शब्द बा हर भाषा के जवन एक-दूसरा के लेके बनावल बा|

स्थानीय भाषा के सबसे बढ़िया बात इ होला कि शब्द सामर्थ्य के मजबूत रखेला| जहिया सारा स्थानीय भाषा ख़त्म हो जाई ओह दिन शब्द सामर्थ्य भी घट जाई| एह बात के एगो उदाहरन से हम समझावे के कोशिश करब| जईसे कवनो औरत के पति के स्वर्गवास हो जाला ओकरा के विधवा कहाला, अगर कवनो आदमी के पत्नी के स्वर्गवास हो जाला ओकरा के विधुर कहाला, असही विधवा,विधुर,अनाथ सबके पर्याय मिल सकेला| लेकिन भाई या बहिन के स्वर्गवास हो गईला प पीड़ित के का कहाला? एकरा खातिर कवनो शब्द हिंदी या इंग्लिश में बा? ना मिली| लेकिन एकरा के अंडमानीज भाषा में “रोपुच” कहाला|

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भाषा के ख़त्म होखला के सीधा मतलब इ होला कि विनाश के शुभारंभ हो चुकल बा| इंजीनियरिंग के छात्र जवन जर्मन, जापानी आदि भाषा के सिखेला उ कवनो अंतराष्ट्रीय भाषा थोड़ी न ह| उ सब भोजपुरी लेखा स्थानीय भाषा ही ह| उ लोग समझदार रहे जे संजोय के रखलस| जवना के परिणाम इ बा कि आज देश विदेश के लोग सिखत बा आ जानत बा| इतिहास गवाह रहल बा कि हमेशा प्रतिरोध के स्वर स्थानीय भाषा के माध्यम से उठल बा|

भाषा मरे से जवन अपनापन होला उ मर जाला| एह से विद्वान लोगसे विनीति इ बा कि विद्वता सकारात्मक रखे| विद्वान् त नटवर लाल भी रहन आ ओही जिला से डॉ राजेंद्र प्रसाद भी विद्वान रहले| लेकिन दुनो लोग के विद्वता में जमींन आसमान के फर्क रहे| डॉ राजेंद्र प्रसाद वाला विद्वान् बनी नटवर लाल लेखा ना| रउरा सभे विद्वान लोग के भी नव वर्ष के हार्दिक शुभकामना बा| भगवान रउरा लोग के सकारात्मक सोचे के बुद्धि देस|

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