भारत में किसान आत्महत्या के मूल वजह (भोजपुरी)

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अभी हाल में देश के राजधानी में किसान आत्महत्या कई गो प्रश्न खड़ा कर रहल बिया. उ घटना अब पूरी तरह से राजनितिक स्टैंड ले चुकल बिया. खैर हमार मुद्दा ओने नइखे अलग बा, कौनो समस्या के खाली राजनितिक कारन आ हल ना होला ओकर तकनिकी कारन भी होला अउरी तकनिकी सुझाव भी. जईसे सबसे बड कारन बा खेती में आधुनिक तकनीक के कमी, देश के हर गली में इंजीनियरिंग कॉलेज बा लेकिन कृषि से सम्बंधित तकनीक अउरी तकनिकी सलाह देवे में आज भी काफी हद तक सफल नइखे. कुल मिला के कहल जा सकेला कृषि शिक्षा अउरी उच्स्तरिये शोध के कमी देखल जा रहल बा. आज के डेट में कृषि शिक्षा अउरी ओह से सम्बंधित शोधकर्ता खाली नाम मात्र के रह गईल बिया.

ईगो अउरी आश्चर्य वाला विषय बा कि भूमंडलीकरण के समय में भी बहुराष्ट्रीय कंपनी के माध्यम से आवे वाला आधुनिक तकनीक भी कृषि तक जमीनी स्तर पर नइखे पहुच पावत. तकनिकी समस्या में दूसरा कड़ी बा प्रॉपर मैनेजमेंट अउरी तकनिकी सुझाव मतलब इ कि राष्ट्रीय स्तर प एगो जलवायु कंडीशन के मुताबिक प्लान बन सकेला एह से दू गो फायदा होई पहिला इ, जवन लोग जबरजस्ती उल्टा खेती करेला मानी कवनो जमीन कपास खातिर अच्छा बा लेकिन जबरजस्ती धान बोए लागेला जवना के प्रभाव बड़ा विषम पड़ेला या त उपज ठीक ना होई या अइसन होई कि देश में ओकर क्वांटिटी अतना बढ़ गईल कि सरकार स्टोरेज प्रबंधन के लेके बेचैन रहेले एकरे चलते किसान के अनाज के दाम गिरे लागेला.

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दूसरा समस्या इ होला कि जवन बोए के चाहत रहे ओकर आकाल पड़े लागेला जवना के चलते सरकार के आयत करके के मजबूरी पड़ जाला. इ दुनो समस्या हल हो सकेला आयात के भी न्यूनतम कईल जा सकेला अउरी अउरी किसान के फसल के मुताबिक कीमत मिलेलागेला. एकरा साथे कवन फसल कब बोए के बा, बीज के प्रजाति कवन होखे के चाही, कब बोए के बा, कौ बे सिचाई करके बा, कतना समय अन्तराल होखे के चाही एह सब प तकनिकी सुझाव बहूत ही ज्यादा जरूरी तत्व होला.

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पानी के भी प्रॉपर उपयोग हो पावेला जवना से खेती के समय पानी प्रबंधन के समस्या के भी न्यूनतम करे में मदद मिलेला. तकनिकी सुझाव में इहो हो सकेला विशेषज्ञ सारा प्रक्रिया के मैकेनिज्म डेवेलप करस ताकी कवनो बीमारी मत लागो फसल में. एहसे किसान के फसल भी अच्छा होई, उत्पादन भी अच्छा होई अउरी किसान प्रशिक्षिक भी होइहे. 

तकनिकी कारन सुझाव सुझाव के क्रम में खाद्य सुरक्षा के मैकेनिज्म के कंप्यूटरकृत करके लूप होल के कम कईल जा सकेला जवना चलते किसान अउरी सर्कार दुनु परेशान बिया. ‘सांता कुमार के रिपोर्ट’ के पर्दा बनावल उचित काम नइखे लागत, सबकुछ पब्लिक डोमेन में होखे के चाही, PDS प्रणाली जवन दिनों दिन कमजोर हो रहल बिया ओकरा थोडा मजबूती मिली. खेती के आधार प ओह प्रकार के उद्योगिक धंधा पास में विकसित करके भी किसान के आनाज मूल्य के मजबूत बनावल जा सकेला.

एहसे कंपनी के भी फायदा बा अउरी किसान के भी, शहरी क्षेत्र के अपेक्षाकृत कम दाम में मजदूर भी मिल जईहे अउरी छोटे भाग प खेती करेवाला किसान के पार्ट टाइम नौकरी भी मिल जाई. शहरी क्षेत्र के ठेला ठेली के जिंदगी से भी प्रवासी आदमिन के राहत मिली. अउर भी बहूत फायदा बा एह से अउरी बहूत तकनिकी सुझाव हो सकेला किसान के राहत पहुचावे के क्रम में.

अब बात कईल चाहब राजनितिक सुझाव का हो सकेला किसान के आम समस्या के हल करे खातिर. सबसे पहिला इ कि भूमि अधिग्रहण बिल बनावत समय जलवायु कंडीशन और फसल के पैदावार के मद्देनजर रखते हुए बनावल जाओ. काहे कि ओह औद्योगिक विकास के कवनो मतलब ना होई जवन कृषि योग्य भूमि प लगावल जाई. एकरा पीछे हम एहे कारन देब कि औद्योगिक चीज सेकेंडरी क्रिया हवे, जवना के डायरेक्ट सम्बन्ध प्राथमिक क्रिया (खेति) से बा. जब प्राथमिक क्रिया कमजोर परेलागी त सेकेंडरी क्रिया खातिर पूरा के पूरा आयात कइल बहूत हद तक संभव नईखे.

एहसे तृतीय क्रिया मजबूत करके बा त द्वितीय क्रिया मजबूत करेके परी, ठीक वोइसही द्वितीय मजबूत करके बा त प्राथमिक मजबूत कईल बहूत ज्यादा जरूरी बा. एहमे एगो अउर बात हो सकेला भूमि लीज प लेल जा सकेला किसानन से ताकी किसान के जमीन प मालिकाना हक बनल रहो अउरी नियमित भागीदारी मिलत रहो, एह से किसान के आत्मविश्वास में चार चाँद लागल रही. अभी फिलहाल में लीज वाला नियम मोबाइल फ़ोन के टावर लगावे वाला में बा, सीम कार्ड कंपनी एयरटेल,आईडिया,वोडाफोन सब के सब महिना देला ओह किसान के जेकरा खेत में टावर गडाला, इहे ना एगो आदमी में ओकरा घर से नौकरियों देला. एह से सभे चाहेला कि हमरा खेत में गडा जाव.

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मंसा होखे के चाही करके, अइसन कवनो बात नईखे कि किसान विकास खातिर जमींन  नइखे देल चाहत, किसान भी चाहेला कि हमनी के देश तरक्की करो लेकिन शहरी लोगन के दिमाग में एगो गलत प्रतिबिम्ब बन जाला कि किसान जमींन नइखे देवल चाहत जवना चलते विकास रुकल बा. एह से राजनितिक समीकरण समझी जवन औद्योगिक घराना से मिल के बनल बा, वोइसन नियम कानून होई त किसान से छीने के ना परी अउरी नाही कवनो जोर जबरजस्ती करे के परी, किसान अपना मने ला के दे दिहे. राजनितिक सुझाव के अगला कड़ी में लोन प्रक्रिया प जोर देल चाहब. किसान के आत्महत्या के एगो बरियार कारन बा सहुकारन से लेल लोन जवना के दर काफी ज्यादा होला अईसे में फसल मरा गईला प किसान आपा खो बइठेला आखिर कहाँ से चुकाई. सरकारी लोन में जवन स्वतंत्रता बा उ हमनी से नइखे छुपल.

हमरा समझ से पैसा उधार ना देके सरकार के तरफ से ग्रामसभा के स्तर प अइसन मैकेनिज्म डेवेलप कईल जा सकेला जवना में ऋण के रूप में पईसा ना बल्कि खाद, बीज, कीटनाशक आदि के व्यवस्था कईल जा सको. ओह मैकेनिज्म में एह बात के भी स्पष्ट कईल जा सकेला कि पैदावार के मुताबिक ही सरकार किसान से वापस पईसा ना बल्कि आनाज ही ली. हम जवन सिस्टम के विकसित करके बात करत बानी ओह में किसान के साथ साथ सरकार के भी फायदा होई.

ओह सिस्टम में ऋण के रूप में  किसानन खातिर तकनिकी मशीन जईसे हार्वेस्टर, ट्रेक्टर, थेर्सर आदि भी उपलब्ध करावल जा सकेला जवना के दर कमसेकम प्राइवेट वालन से त कमे नू होई. वोही कड़ी में एगो अउरी बरियार समस्या बा बाजार वाला जवना में किसान में उचित मिल ना पावेला. एह में मध्यस्ता करेवाला व्यापारी सबसे ज्यादा फायदा में रहेला. देखि एहिजे दू गो बात सामने निकल के आवता औद्योगिक क्षेत्र से उत्पादित हुए वस्तु को औद्योगिक घराने के लोग ही गणित लगाके करेला, जबकि कृषि क्षेत्र के मूल्य के मूल्यांकन या त सरकार करेले या फिर क्रेता यानी की व्यापारी.

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किसान असहाए दिखाई देला हमेशा बोअत समय, काटत समय अउरी बेचत समय भी. बहूत ज्यादा उत्पादन हो गईल, सड़ी गली फेकाई ना त बहूत कम दर मिली जवना से लागतो ना निकली, तबो किसाने के छिछा लेदर आ कम भईल त व्यापारी कम दाम प क्रय करके ज्यादा मुनाफा लेके बाजार के जरूरत पूरा करे खातिर बेच दी तबो किसाने ठगल महसूस करेला. मूल्य गिरे के एगो अउरी मूल कारन बा उपभोक्ता के अनुसार फसल के चयन करे के चाही ना त परिवहन खर्चा इतना आ जाला जईसे मानी जेतना के बबुआ ना ओतना के झुनझुना लाग जाला, एह से फसल मजबूरी में नस्ट करे के पर जाला. सरकार के मूल्य तय करत समय सभ मापदंड के ध्यान में रखल जरूरी बा. अइसन बिल्कुल नइखे कि सुझाव के कमी होखो समस्या के हल करे के बस लागू करेके मैकेनिज्म अउरी मंसा के जरुरत बा.

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