अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प के जितने की ख़ुशीयाँ अमेरिका के बाद हिन्दुस्तान में सबसे ज्यादा मनाई गई| उनको जिताने के लिए लोगों ने हवन किया, जितने के बाद मिठाइयाँ बाटी| लेकिन इसका लॉजिक मुझे आज तक समझ नहीं आया| जब कभी अमेरिका शब्द हमारे जेहन में आता है तो उसके लिए हमारे दिमाग कैसी प्रतिबिम्ब बनती है? सामान्यतः वर्ल्ड लीडर, मुस्लिम विरोधी, विकसित और लोकतान्त्रिक देश आदि टाइप इमेज हमारे दिमाग में बनती है| बेसक अमेरिका अपने आप को एक धर्मनिरपेक्ष और लोकतान्त्रिक देश कहले लेकिन वास्तव में वो है नहीं, ठीक वैसे ही जैसे उत्तरप्रदेश की समाजवादी पार्टी अपने आप को समाजवादी कहले पर वो भी वास्तव में समाजवादी नहीं है|
सच्चाई यही है कि अमेरिका एक क्रिस्चियन देश है और अपने धर्म के प्रति अपने देश के लोगो के लिए जवाबदेही रहती है| चाहे वहां के राष्ट्रपति बराक ओबामा बने या फिर डोनाल्ड ट्रम्प या फिर हिलेरी क्लिंटन| हमारे देश का एक तबका उनकी जीत की ख़ुशी यह सोचकर मना रहा होगा कि वो मुस्लिम विरोधी है, इसलिए वो हमारे नजदीकी हो सकते है| जबकी ऐसी सोच रखना मृगतृष्णा के समान है|
प्राचीन काल में हमारे देश में इतनी समस्यां नहीं थी जितनी आज है| चाहे बात लोगों के प्रति संवेदनशीलता को लेकर हो या फिर औरतों के प्रति सम्मान की बातें हो| अब बात यह आती है कि अचानक तो गिरी नहीं होगी| कहीं न कहीं से शुरुआत हो हुई होगी| इसकी शुरुआत हुई थी मुगलों के आक्रमण से और सबसे बत्तर हो गई जब भारत पर ईसाइयत का हमला हुआ| मैंने सोच को मृगतृष्णा के रूप में इसीलिए लिखा है क्युकी इतिहास गवाह रहा है|
जब पुर्तगाली भारत आए थे तब वो मुस्लिमों के प्रति बहुत असहिष्णु थे और हिन्दुओं के प्रति काफी टोल्रेंट रहते थे| वो चीजें हिन्दुओं को अच्छी लगती थी| लेकिन समय बदला और उनका व्यावहारिकता भी हिन्दू के प्रति बदला और हमारे लिए असहिष्णु हो गए| तब बातें समझ आई| फिर उन्हें हराने और भारत से भगाने में दो सौ साल लग गए| उस औपनिवेशवाद के चलते प्रशासन से लेके अर्थव्यवस्था सबकुछ चौपट हो गया| वही अर्थव्यवस्था और प्रशासन जो एह समय हम दुनिया को सिखाया करते थे|
इसलिए अगर आज अमेरिका मुस्लिम के प्रति असहिष्णु है तो कल हिन्दुओं की भी बारी आ सकती है| हिन्दुओं के प्रति भी अमेरिका असहिष्णु है तो सही लेकिन उस तरह से ओपन नहीं है जैसे मुस्लिमों के लिए है| अगर आज वैश्विक आतंकवाद का स्वरुप सामने आया है तो उसमे अमेरिका की बहुत बड़ी भूमिका रही है| इस सब में सिर्फ अमेरिका का स्वार्थ निहित है| जब अटल जी की सरकार थी तब अमेरिका ने भारत से फौजी सहायता की मांग की थी इराक भेजने के लिए, लेकिन विपक्ष के विरोध की वजह से रोक दिया गया| मेरा मत साफ़ है कि अगर सच में अमेरिका को आतंकवाद के खिलाफ लड़ना है तो साझा सेना POK में क्यों नहीं उतारती जहाँ से पूरा कचड़ा साफ़ किया जा सके|
भारत सरकार लम्बे अरसे से गुहार लगाती आई है लेकिन हमारी बातें कभी नहीं सुनती है| फिर हम उनकी पैरोकारी क्यों करे? आखिर ईसाइयत आतंकवाद के बारे में बातें क्यों नहीं होती| अमेरिका को आज जिस चुनौती का सामना करना पड़ रहा है वो उसी का बोया हुआ शनिचर है जो आज काट रहा है|
अमेरिका का जिसने सैन्य मदद किया उसे क्या मिला? पकिस्तान अपने जीडीपी का मात्र 2.1 % शिक्षा पर खर्च करता है और लगभग 5% अपने जीडीपी का डिफेन्स पर करता है| आखिर किसलिए? अमेरिका का बेगारी करने के लिए| अफगानिस्तान में अपना ठिकाना बनाने के लिए भारत का डर दिखा कर पाकिस्तानी सेना का अपने फायदे के लिए उपयोग किया| और पुरे विश्व के सामने पाकिस्तान को बेइज्जत भी किया और ओसामा बिन लादेन को मार कर यह साबित भी कर दिया कि पाकिस्तान ने उसे पाल रखा था| जब भारत को नुकसान पहुचाने वाले आतंकवादियों की बात आती है तो अमेरिका को सांप सूंघ जाता है|
जो कुछ भी अमेरिका वैश्विक स्तर पर करता है वो ईसाइयत आतंकवाद ही है जिसे हम इस्लामिक आतंकवाद का खात्मा के मिशन के रूप में देखते है| वैसे अमेरिका हमेशा लोकतंत्र की वकालत करती है जब IMF जैसी संस्थाओं में समानता की बात होती है तो सबसे पहले वही मुखालफत करती है| अपने इस मिशन को पाने के हर मुमकिन कोशिश करती है| अर्थयवस्था को इसका हथियार के रूप में भरपूर उपयोग किया है| IMF को वो साहूकार बना दिया जो खुद ही बीमारी देता है और खुद ही हल बताने के मकसद से अपने जाल में फसा लेता है|
फिर क्यों हम चेहरे बदलने पर अमेरिका की आत्मा बदलने की उम्मीद करते है| अमेरिका ने कभी भारत के लिए नहीं कुछ परोपकारी काम नहीं किया है| जब भारत 1991 में आर्थिक मंदी से गुजर रहा था तब एक शर्त पर लोन देने की बात कही थी| अगर हम उनके फाइटर प्लेन को तेल भरेंने के लिए भारत में उतरने की इज्जाजत देंगे तभी वो हमें लोन देंगे| तब भारत के प्रधानमंत्री चंद्रशेखर थे बाद में चलकर नर्शिम्भा राव बने थे| अप्रत्यक्ष रूप से जाने अनजाने हम अमेरिका और इराक के बीच हुए युद्ध का हिस्सा बन गए| इस बात को आज भी इतिहासकार अलग नजर से देखते है| फिर अमेरिका के लिए भारत के लोगों में लस्ट का क्या मतलब है?
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