आजादी के बाद पैदा हुए कावेरी नदी विवाद के मुख्य कारण

Dial down the FREE Subscription for such premium content on our YouTube channel. How to Add Subscribe Button on YouTube Videos (Subscribe Button PNGs)

कुछ दिन पहले एक शाम को मेरे मित्रो ने एक विमर्श के लिए बुलाया था| केन्द्रीय मुद्दा था ‘कावेरी डिस्प्यूटस’| कावेरी विवाद यह एक बड़ा ही गंभीर मसला है जिसे सुलझाना काफी आवश्यक है| यह मसला कोई तात्कालिक भी नहीं है| अगर इसके ऐतिहासिक पहलु की तरफ झाकने की कोशिश करेंगे तो पाएंगे कि यह समस्या अंग्रेजो से पहले राजाओं के समय से शुरू हुई थी| तब मद्रास और मैसूर रियासत हुआ करती थी|

उसके बाद अंग्रेजों ने कावेरी को केंद्र में रखकर हमेशा उलझाए रखा| अंग्रेजो का कानून उनके हित के अनुसार ही बना करते थे ना कि भारत देश के| यूरोपीय बाजार में जिस चीज की मांग होती थी उसी फसल को जबरन उगवाने को मजबूर करते थे| नील की खेती उसका एक नमूना मात्र है| स्वाभाविक सी बात है कि कावेरी नदी के लिए जो समझौता तैयार किया होगा वो भी उनके हित के मुताबिक ही होगा| फिर सवाल खड़ा होता है कि हम आज भी उस ज़माने की बटवारें की दुहाई क्यों देते है|

Decoding World Affairs Telegram Channel

1807 से 1886 के बीच मैसूर के राजा ने लगातार कई मर्तबा मद्रास के राजा से आग्रह किया जिससे बाँध का निर्माण करवा सके| इसके फलस्वरूप 1892 में जाकर इस आग्रह को मंजूरी मिली और कन्नाम्बाडी के पास बांध बनाया गया| उसके बाद 1924 में मद्रास और मैसूर रियासत के बीच एक अग्रीमेंट हुआ जिसमे तमिलनाडु को कावेरी नदी के पानी का वैधानिक अधिकार प्राप्त हुआ| तब से लेकर आजादी के समय तक पानी को लेकर कोई दिक्कत नहीं हुई| समस्या तब खड़ी जब देश आजाद हुआ|

जब देश आजाद हुआ तो मद्रास टूटकर तमिलनाडु, केरल, आंध्रपदेश बना| वही दूसरी ओर मैसूर टूटकर कर्नाटक बना| पहली समस्या यही खडी हुई| देश आजाद होने के बाद दक्षिण भारत का भौगोलिक सीमा बदला लेकिन फार्मूला वही रहा जिसे अंग्रेजों ने बनाया था| ऐसे में उत्तर गलत आना लाजमी है| उस समय चाहिए था कि कावेरी नदी के ऊपर हुए समझौते का मूल्यांकन हो| लेकिन नए नए राजनीती के गहमा गहमी में केन्द्रीय मुद्दा न बन सका| यह आजादी के बाद इस विवाद का पहला मुख्य कारण है|

जब देश आजाद हुआ था तब समस्या यह थी कि खेती और उद्योग में किसे प्राथमिक बल के रूप में देखे? सत्ता के नशे में पश्चिमी देशो का अनुसरण करने में बिल्कुल पीछे नहीं रहे| यह देश के ऊपर निर्भर करता है कि गुलामी के बाद आजाद देश किस फैक्टर को प्राथमिकता देता है| हो सकता है जिस देश की अनुसरण किया होगा वहां की जलवायु भूमि खेतिसंगत हो ही नहीं| लेकिन हमारा तो था न? जबकी एक बात और यह भी है कि उद्योग लायक हमारे पास कोई संसाधन तक नहीं थे और नाही स्किल्ड लोग फिर उद्योग को क्यों चुना गया?

See also  अर्थव्यवस्था की सेहत के लिए GST जैसे बड़े आर्थिक बदलाव जरूरी

अगर खेती को उस समय प्राथमिकता दी गई होती तो शायद कावेरी नदी जैसे हजारों नदियों के झगड़ो का समाधान भी किया गया होता| समय के अनुसार हम खेती से उद्योग और बाक़ी के सेवाओं की ओर शिफ्ट कर सकते थे| लेकिन अब उल्टा कर रहे है| पहले उद्योग और सेवा के बारें में खूब चिंता की और खेती-बारी के तरफ नजर उठाके देखना भी मुनासिब नहीं समझा| और आज इसका ठीक उल्टा कर रहे है| आजादी के बाद इस समस्या का दूसरा मुख्य कारण है|

यह समय ऐसा है जहाँ उद्योग और सेवाओं को बल दिया जाना चाहिए तब किसानों को केंद्र में रखकर राजनीती कर रहे है| एक सच्चाई यह भी है सबसे ज्यादा श्रमिक खेती में लगे हुए है और सबसे कम आउटपुट खेती से ही आता है| सबसे कम लोग सेवाओं में लगे हुए है जहाँ से सबसे ज्यादा धन आता है| मेरे समझ से यह मसला फीट-हाइट और सेंटीमीटर की है ही नहीं| दिक्कत है कि आज तक ऐसे मामलों के लिए ठोस आमूल परिवर्तन नहीं किया गया| कानूने बनी तो लेकिन फिट हाइट तक सिमित रह गई| जब यह सवाल तमिलनाडु पक्ष से पूछा जाता है कि क्या साल में तीन-तीन फसले उगाना तर्कसंगत है?

तमिलनाडु पक्ष के लोग उत्तर देते है कि अंग्रेजो के ज़माने से कावेरी नदी का पानी ही उपयोग करके साल में तीन-तीन खेती करते आए है| और जो भी तीन खेतियाँ करते है उसमे पानी की भरपूर जरूरत होती है| जिन्हें अंग्रेजी में ‘वाटर हंगर क्रॉप’ कहते है| ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कर्नाटक पानी से बम-बम है| दिक्कत उसे भी है| तमिलनाडु पानी को बहुत सावधानी से उपयोग करने के बजाए अंधाधुंन शोषण करते रहे है| और डेल्टा बनाने के सह पर पूरा पानी समुद्र में भी बहाते है| आजादी के बाद भी तमिलनाडु का एक विषम तरह की खेती करना और इतिहास की दुहाई देना तीसरा मुख्य कारण है|

मैं यह बिल्कुल नहीं कर रहा कि साल में तीन-तीन फसलों की खेती करना गलत है| बहुत सही चीज है लेकिन सही दिशा में संतुलित खेती करनी चाहिए| आवश्यकता है किसानो को खेती के तरीकों के बारे में अवगत कराने की| साल में तीन बार धान उगाने से बेहतर है कम पानी वाले समय में ऐसे पौधों की बुआई करे जिसमे कम पानी की लागत हो| संतुलित खेती भी कावेरी नदी का हल हो सकता है| दाल दलहन और तिलहन की खेती करे जो हमारे आयात को कम कर सकेगा| इसके फलस्वरूप वित्तीय घाटा में भी कमी आएगी| इसमें अपेक्षाकृत पानी की कम जरूरत होती है|

See also  भारत और अफ्रीका के बीच बढती दूरियाँ

इससे होता क्या है अंधाधुंन एक ही फसल की उगाई करते है जब कोई खरीदता नहीं तो सरकार द्वारा आयोजित राजनितिक रूप से परिपूर्ण MSP का सहारा लेकर सरकार के घर में जगह ना होने पर भी डंप करने की कोशिश करते है| इसके फलस्वरूप सरकार गोदामों के आभाव में बाहर रखने पर मजबूर होती है जो बाद में बारिश के मौसम में सड गल कर ख़त्म हो जाते है| इसका कोई भी प्रोडक्टीव ग्रोथ नहीं दिखता उल्टे पानी की समस्या खड़ी कर देते है| इसलिए असंतुलित खेती ना सिर्फ कावेरी विवाद का हिस्सा है बल्कि और भी समस्याओं के कारणों का एक बिंदु भी है|

आजादी के बाद सन 1971 में सरकार इस विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट के पास गई लेकिन इसपर कुछ ख़ास नहीं हो सका| उसके बाद 1991 में इसपर कुछ बातें हुई जब लोगो ने सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में इस मुद्दे को लेकर अर्जियां डालनी शुरू की| इसके परिणाम स्वरुप सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को आदेश सिया कि इसपर एक ट्रिब्यूनल का गठन करे और कार्यवाई करे| नब्बे का दशक अपने आप में देश का सबसे व्यस्तता वाला समय रहा है| सरकार पर कई सारे भ्रष्टाचार का आरोप चल रहे थे| बोफोर्स में भ्रष्टाचार और मारुती सुजुकी का केस बहुत गरम था| उसी समय तत्कालीन पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की तमिलनाडु में हत्या कर दी गई थी|

देश के सियासत में उथल पुथल मचा हुआ था| ऐसे में ट्रिब्यूनल पर बहुत ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया और निर्णय को उलट दिया गया| इससे तमिलनाडु अपने अधिकारों को लेकर बहुत ज्यादा चिंतित था जिसे अंग्रेजों दिया था| सुप्रीम कोर्ट जो भी आदेश देती है वो हमेशा साक्ष्य और रिपोर्टों को विश्वास में लेकर ही करती है| आजादी के बाद इस विवाद का यह चौथा कारण है| इसे कोर्ट की प्रक्रिया से हल नहीं निकाला जा सकता है| यह राजनितिक विवाद है जिसे राजनितिक विमर्श से ही हल किया जा सकता है|

यह एक खामी रही है कि हमने कोर्ट के आदेश को परमानेंट हल के रूप में देखा| वो सिर्फ तत्कालीन विवाद को ही हल कर सकता है| आजादी के बाद से हमलोगों ने हमेशा ट्रिब्यूनल पर ट्रिब्यूनल बनाया है जिससे हल निकल सके| ट्रिब्यूनल में सिर्फ हाइट, फीट, सेंटीमीटर की बात होती रही है| कभी बढाया कभी घटाया| कभी पहला पक्ष नाराज तो कभी दूसरा पक्ष| लेकिन दोनों पक्षों को संतुष्ट करने के बारे में कभी सोचा नहीं गया| इन ट्रिब्यूनल में दोनों पक्षों का बढ़िया मूल्यांकन नहीं हो पाया| लोगों के मन में इसके प्रति आक्रोश इसका साक्षात् प्रमाण है| कर्नाटक खेती के नजरिए से तमिलनाडु के अपेक्षाकृत ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं रहा है|

See also  उदारवादी लोकतान्त्रिक विचारों पर उठ रहे सवालों पर चिंतन

इसलिए यह मान लिया जाता है कि कर्नाटक को कम पानी की जरूरत है जो कि सही चीज नहीं है| आजादी के समय कर्नाटक और तमिलनाडु की स्तिथि और आज की स्तिथि में बहुत ज्यादा अंतर है| औद्योगिक रूप से कर्नाटक बहुत ज्यादा धनी हो चूका है ठीक वैसे ही जैसे खेती में तमिलनाडु है| इसलिए कर्नाटक को भी उतने ही पानी की दरकार है| उद्योगों में तो है ही साथ में उद्योग की वजह से दुसरे दुसरे राज्य से आए लोगों की आपूर्ति के भी पानी की जरूरत ज्यादा बढ़ गई है| इन सभी बिन्दुओं पर ट्रिब्यूनल में बहुत ज्यादा चर्चा नहीं दिखता है| आजादी के बाद बने कमजोर ट्रिब्यूनल इसका पांचवां कारण है|

इसके अलावां तमिलनाडु ग्राउंड वाटर के मामले में कर्नाटक से कही ज्यादा धनी है| इन बिन्दुओं को भी विश्वास में नहीं लिया जाता है| अगर कर्नाटक तमिलनाडु के मन मुताबिक पानी छोड़ता है और सुखा से ग्रसित होता है तो उस समय उसके लिए दोनों सरकारों की तरफ से क्या प्रावधान किया जाएगा इसपर भी चर्चा नहीं हुई है| डिस्ट्रेस फार्मूला से भी ट्रिब्यूनल वंचित रहा है| इसलिए जरूरत है एक संतुलित राजनितिक बातचीत की जिसमे सारें बिन्दुओं पर चर्चा करके एक हल की तरफ बढे बजाएं न्यायलय के चक्कर लगाने के|

न्यायलय हर बार सरकार को निर्देश देगी कि एक ट्रिब्यूनल बनाए और उसके आधार पर आदेश सुनाएंगी जो कभी एक पक्ष को अच्छा लगेगा और दुसरा नाराज रहेगा| अगली बार इसके उल्टा होगा| इसलिए बेहतर यही है कि दोनों राज्यों की सरकारें केंद्र सरकार की सहायता से इस मुद्दे को सुलझाए| हिंसा और सरकारी सम्पतियों को नुक्सान करना अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है| यह कोई हल नहीं है| जो सरकारी सम्पति ख़राब हो रही है वो दुबारा रिपेयर तो होनी है ही और पैसे भी उन्ही लोगो के ही लगने है| घाटा उनका ही होगा|

Spread the love

Support us

Hard work should be paid. It is free for all. Those who could not pay for the content can avail quality services free of cost. But those who have the ability to pay for the quality content he/she is receiving should pay as per his/her convenience. Team DWA will be highly thankful for your support.

 

1 thought on “आजादी के बाद पैदा हुए कावेरी नदी विवाद के मुख्य कारण”

  1. बेहद तार्किक और उदेश्य भरा लेख, ईश्वर करे ये उन लोगो तक पहुंचे जिनके पास कुछ करने का अधिकार है

    Reply

Leave a Comment

Decoding World Affairs Telegram Channel