पड़ोसी महासागरों में भारत के लिए उभरते में नए खतरे

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किसी भी देश के लोग तभी सुरक्षित होते है जब मुल्क सुरक्षित हो| किसी भी मुल्क को सुरक्षित होने के लिए यह जरूरी है कि उसके पास पड़ोस में शांति हो और उनके साथ एक अच्छी व्यावहारिकता हो| हमने एक-एक करके सबसे रिश्ते ख़राब किए है| आजादी के बाद से कहानी की शुरुआत पाकिस्तान से होकर वाया बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल और अब म्यांमार तक पहुच चुकी है| ज्यादातर मसलों पर हम असफल रहे है| इसका पूरा फायदा चीन ने उठाया है| परिणाम यह है कि हिन्द महासागर में एक नए प्रकार की चुनौती भारत को मिल रही है| भारत को समुद्र में चारो तरफ से घेरने की साजिश चल रही है| अभी कुछ ही दिन पहले भारतीय अर्थव्यवस्था के गिरते ग्राफ की पूरी निंदा देश भर में हुई थी| लेकिन उसमे एक अच्छी खबर यह भी आई थी कि भारत ने पहली मर्तबा फोरेक्स रिज़र्व 400 बिलियन डॉलर को क्रॉस किया, जिसका जिक्र अखबार के कोने तक ही सिमित रह गया| हालाँकि यह सुखद समाचार था| वही चाइना के पास फोरेक्स रिज़र्व लगभग 3053 बिलियन डॉलर है| यही कारण है कि चाइना अपनी निवेश को तमाम देशों में बढ़ा कर अपना प्रभाव बढ़ा रहा है|

सारे महासागरों में चाइना ने एक-एक करके पोर्ट पर एक तरह से कब्ज़ा किया हुआ है| चाइना का एक ट्रेंड है| पहले बंदरगाहों पर भारी निवेश करता है, जिसे चूका पाना किसी भी कमजोर देश के लिए मुश्किल हो जाता है| जब वापस देने की सूरत में ना हो तो वहाँ अपनी व्यापारिक और सैन्य गतिविधियों के लिए बेस बनाने के लिए संधि करता है| इसे इक्कीसवीं शताब्दी का “सॉफ्ट औपनिवेशवाद” कहें तो शायद हम गलत नहीं होंगे| इसके उपनिवेश बनने वाले देश हमारे सारे पड़ोसी देश है जिनका जुड़ाव समुन्द्र से है| पडोसी देशों से हमारा खटपट उनके लिए मौका बन जाता है| शुरुआत पश्चिम के पाकिस्तान से करते है| पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह पर चाइना ने फाइनेंस करके उसका निर्माण करवाया है| यह पश्चिमी एशियाई देशों और गल्फ देशों तक अपने बाजार को पहुचाने के लिए किया हुआ है| हालाँकि इसके जवाब में भारत ने उसके ठीक पास ईरान में ‘चाह्बहार’ पोर्ट पर निवेश करके निर्माण करवाया है जिसका उपयोग भारत अपने बाजार के लिए कर सकता है|

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पाकिस्तान ने अपनी गलतियों से सीख ली है और अपने आप को सुरक्षा के नजरिए से दुरुस्त किया है| 1971 युद्ध में भारत की नौसेना ने कराची बंदरगाह को तहस-नहस कर डाला था| ऐसे में पाकिस्तान को एक वैकल्पिक पोर्ट की जररुत थी| जो चीन ने ग्वादर-बंदरगाह को तैयार कर पूरा कर दिया है| हालाँकि इस पोर्ट को चीन और पाकिस्तान व्यापारिक बंदरगाह की श्रेणी में रखना पसंद करते हैं| लेकिन इस बंदरगाह की गहराई से ही साफ हो जाता है कि ये युद्धपोतों के अलावा पनडुब्बियों के लिए भी सुरक्षित पोर्ट है| भले ही चीन इस बात का दावा करे कि वो ये सभी बंदरगाह अपने व्यवसायिक जरुरतों को पूरा करने के लिए तैयार कर रहा है| लेकिन इतिहास गवाह है कि चीन अपने व्यापार को मिलेट्री-सहायता देने में गुरेज नहीं करता है|

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इसके बाद निचे मालदीव के ‘माराव’ बन्दरगाह, श्रीलंका के ‘हैम्बनटोटा’ बंदरगाह, बांग्लादेश के ‘चित्तागोंग’ बन्दरगाह, म्यांमार के ‘सित्तवे’ बन्दरगाह इसके मुख्य हिस्से है| इन सभी बंदरगाहों पर चाइना का कब्ज़ा है| हालाँकि श्रीलंका की हैम्बनटोटा बंदरगाह पर हाल ही में चीन की पनडुब्बियों को देखा गया है| साफ है कि भले ही चीन ये कहे कि वो दूसरे देशों में बंदरगाह पूरी तरह से व्यापारिक दृष्टिकोण से तैयार कर रहा है| लेकिन श्रीलंका में उसकी पनडुब्बियों की मौजूदगी ने साफ कर दिया है कि व्यापारिक-बंदरगाहों को जरुरत पड़ने पर सैन्य बंदरगाहों में भी तब्दील किया जा सकता है| यहां ये बात गौर करने वाली है कि हैम्बनटोटा बंदरगाह को विकसित करने के लिए श्रीलंका ने सबसे पहले भारत से ही आग्रह किया था| लेकिन इससे पहले की भारत तैयार होता, चीन ने श्रीलंका को जरुरी मदद करने की पेशकश कर डाली और भारत मुंह ताकता रह गया|

ये खामियां हमारी पिछली हुकूमतों खासकर कांग्रेस से जरूर पूछा जाना चाहिए कि आखिर हम क्यों डिप्लोमेटिक स्तर पर एक्टिव नहीं थे| यहाँ तक कि कांग्रेस की सरकार में ईरान में स्तिथ चाहबहार पोर्ट भी भारत के साथ से निकलते निकलते बचा जिसे हम पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट के प्रतिद्वंदी के रूप में देखते है| इसके बाद बात आती है म्यांमार की तो यहाँ पर लोकतंत्र की गैर-मौजूदगी और मिलैट्री-शासन के चलते भारत ने अपने पड़ोसी देश से कभी मजबूत राजनयिक संबध नहीं कायम किए| इस बात का फायदा चीन ने उठाया और करोड़ो रुपये की सैन्य सहायता दे डाली| इतना ही नहीं बर्मा के सिटवे पोर्ट को भी चीन ने ही तैयार किया, जो कोलकाता से ज्यादा दूर नहीं है| यहाँ भी हम असफल रहे है| हालाँकि इस सरकार में अच्छी चीज यह हो रही है कि पुरानी गलतियों को सुधारने की कोशिश की गई है| कोलकाता से सित्तवे को जोड़ने के लिए कलादन प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है| ऐसा समझा जाता है कि यह भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में जाने के लिए एक वैकल्पिक मार्ग उपलब्ध होगा जो आर्थिक विकास में भी सहयोग करेगा|

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अगर इनसभी बंदरगाहों को मैप पर लोकेट करे और देखे तो पाएंगे कि भारत के गले में मोतियों की माला जैसी चीजों का निर्माण किया जा रहा है| नक्शे को गौर से देखेंगे तो साफ हो जायेगा कि चीन की मोतियों की लड़ी आखिर किस तरह से भारत के लिए गले का फंदा भी बन सकता है| इस पूरे प्रक्रिया को ‘मोतियों के माला’ के नाम से जाना जाता है|  ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’  का जिक्र आज से करीब बारह साल पहले 2005 में अमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने ‘एशिया में ऊर्जा का भविष्य’ नाम की एक खुफिया रिपोर्ट में किया था| पेंटागन (अमेरिका का ख़ुफ़िया बिल्डिंग जो पेंटागन शेप में है) की खुफिया रिपोर्ट में बताया गया था कि अमेरिका के दक्षिण चीन सागर और दक्षिण पूर्व देशों में बढ़ते दबदबे के चलते ही चीन ने इन ‘मोतियों की लड़ी’ को पिरोना शुरु किया था| इस तरह से चीन का बढ़ता क्षेत्रीय दबदबा, आर्थिक क्षमता और अपने उद्योग के लिए संसाधनों की बढ़ती भूख के चलते चीन हमारे पड़ोसी देशों से राजनयिक संबध कायम कर रहा है| पड़ोसी देशों को लोन दे रहा है, उनके यहां बदंरगाह बनवा रहा है, हथियारों की सप्लाई कर रहा ह| चीन हमारे चारों तरफ ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ बनाना चाहता है|

कुछ महीने पहले ही हिन्द महासागर में स्तिथ मालदीव देश की सरकार अपना एक टापू सऊदी अरब को बेचने की बातें कर रही थी| सऊदी अरब का इरादा इस टापू पर नौसेना का अड्डा बनने का है| अगर सऊदी सरकार इस योजना में सफल हो जाती है तो भारत के लिए एक नया खतरा पैदा हो जाएगा| सऊदी के संबंध भारत के अपेक्षाकृत ज्यादा घनिष्ट पाकिस्तान और चीन से है| यहाँ तक कि सऊदी की डेमोक्रेटिक पार्टी ने अपनी सरकार के इस निर्णय का विरोध भी किया है| उनका आरोप एक हद तक सही भी है| उनका अपना पक्ष यह है कि इससे उग्रवादी वहाबी इस्लामी विचारधारा को प्रोत्साहन मिलेगा| मालदीव के सैकड़ों जवानों का इस्लामिक स्टेट की सेना में शामिल होकर सीरिया और इराक में जिहाद करना इसका एक प्रमाण है| ऐसा बिल्कुल नहीं है कि पहली मर्तबा किसी देश ने मालदीव पर अपनी इच्छा व्यक्त की हो| इससे पहले पाकिस्तान और चाइना दोनों ने असफल प्रयास कर चुके है| चाइना के असफल होने का मुख्य कारण रहा है भारत सरकार का सख्त विरोध|

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इस टापू को बेचने की असली मंशा वहाँ के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नाशिद अपने ब्यान के माध्यम से व्यक्त कर चुके है| उनका कहना साफ़ है कि उनकी नीति है कि भारत को हिन्द महासागर में घेरा जाए| मालदीव की एक मजेदार बात यह रही है कि मालदीव की भूमि को किसी भी विदेशी को बेचना राष्ट्र के प्रति गद्दारी माना जाता रहा था और इसकी सजा मौत सुनिश्चित होती थी| मगर 2015 में वर्तमान सरकार ने संविधान में संशोधन करके विदेशियों को भूमि खरीदने की अनुमति दे दी गई| अगले साल मालदीव में राष्ट्रपति का चुनाव है| ऐसे में अगर कोई ऐसा व्यक्ति सत्ता में आ जाता है जिसकी विचारधारा में भारत को लेकर अलग नजरिया हो तो भारत के लिए खतरा और बढ़ सकता है| सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच सैनिक संधि है जिसके अनुसार यदि कोई तीसरा देश इन दोनों पर हमला करता है तो उसे दोनों देशों पर हमला माना जाएगा| सऊदी अरब के राजपरिवार की रक्षा का भार आज भी पाकिस्तानी सेना के सिर पर ही है|

कभी मालदीव के छात्र शिक्षा प्राप्त करने के लिए भारत आया करते थे आजादी के कई दशकों तक मालदीव के सैनिक अधिकारी भारत में ही सैनिक प्रशिक्षण लिया करते थे| लेकिन स्तिथियाँ अब बदल चुकी है मालदीव के राष्ट्रपति अपने सैनिक अधिकारीयों को प्रशिक्षण के लिए पाकिस्तान की मिलिट्री अकादमी में भेजना शुरू कर दिए| आखिर ऐसे कैसे हुआ? ऐसे हुए कमजोर ताकत के लिए कौन जिम्मेदार है? धीरे-धीरे भारत के समुंद्री इलाके में नए प्रकार के खतरों का उभार हो रहा है| इसलिए जरूरत इस बात की है कि भारत वैश्विक स्तर पर अपने आप को उभारे और पडोसी देशों के साथ अच्छे संबंध स्थापित करे|

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