परसों दिन का मैंने पार्लियामेंट्री डिबेट देखा| कुछ बेतुके सवालों ने मुझे कुछ लिखने के लिए उकसाया जरूर, लेकिन महज 200 शब्दों के बाद मुझे बैकस्पेस दबाकर किसी नए विषय पर लिखने के उत्सुक हुआ| पहले से कुछ चीजें पता थी लेकिन काफी अध्ययन के बाद बहुत सारी चीजों से रूबरू होने को मिला| यह लेख उन बहादुर जवानों के कामों पर है जिनके मरने के बाद अपने आम जवानों जैसे तिरंगा तो दूर की बात कफ़न भी नसीब नहीं होती| ये जवान गुप्त रूप से बिना किसी शोर के साथ अपने देश की सेवा में लगे रहते है| देश को सुरक्षित रखने में सबसे ज्यादा श्रेय इनको जाता है| देश में होने वाले लगभग 99% आतंकी घटनाओं को असफल करते रहे है वहीँ एक-आध प्रतिशत घटनाएँ मिस-कम्युनिकेशन की वजह से मुंबई जैसे हमले का रूप ले लेती है| इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है इनकी भूमिका हमारे सुरक्षा के नजरिया से कितना महत्वपूर्ण है| मै रिसर्च विंग एनालिसिस (R&AW) की बात कर रहा हूँ| इसका मूल सिधांत रखा गया “धर्मो रक्षति रक्षितः”|
हालाँकि अधिकारिक तौर पर रिपोर्ट बनाकर पब्लिक डोमेन में तो नहीं डाली जाती लेकिन कहीं न कहीं कभी-कभी अख़बार के पन्नों पर अपनी दस्तक जरूर देती रही है| कभी भारत के अख़बारों में तो कभी पाकिस्तान के अख़बारों में, अनियमित तौर पर कहानियां बाहर आती रही है| रॉ भारत की गुप्तचर संस्था है| इसका गठन 1968 में किया गया था जब आई.बी. 1962 के भारत-चीन युद्ध व 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में अच्छी तरह कार्य नहीं कर पाई थी| जो पहले घरेलु व अंतर्राष्ट्रीय मामले संभालती थी|
इसके बाद भारत को महसूस हुआ कि वो एक अमेरिका के सीआईए की तरह स्वतंत्र और ताकतवर संस्था की गठन करे| इसका मुख्य काम जानकारी इकठ्ठा करना, आतंकवाद को रोकना व गुप्त ऑपरेशनों को अंजाम देना है| इसके साथ ही यह विदेशी सरकारों, कंपनियों व इंसानों से मिली जानकारी पर काम करना है| रॉ का कानूनी स्तर काफ़ी उलझा हुआ है जिसके अनुसार यह एक “संस्था” नहीं बल्कि कैबिनेट का एक “विभाग” है और इसी वजह से आधिकारिक तौर पर रॉ ना तो भारतीय संसद को जवाबदेही है और यह सुचना का अधिकार के अंतर्गत नहीं आता है|
कहीं न कहीं यह सुरक्षा एजेंसी आज हमारी देश की सुरक्षा की रीढ़ की हड्डी की तरह है| 62 के युद्ध में जिस तरह से हमें हार मिला था वो कहीं न कहीं इस बात का सकेंत जरूर था कि हमारे सुचना में कहीं ज्यादा कमी है| इसके बाद से जितने भी ऑपरेशन हुए में वो लगभग भारत में सफल रहे है| इसका पहला फुटप्रिंट भारत-पाकिस्तान की 1971 की लड़ाई में देखने को मिला था| 1971 के बांग्लादेश के युद्ध में इस संस्था ने निर्णायक भूमिका निभाई थी और तब इंदिरा गाँधी ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता के शिल्पकार मुजीबुर्रहमान से बातचीत के दौरान कहा था कि यह आदमी (रामेश्वर नाथ काव जिसने रॉ की स्थापना की थी) बांग्लादेश के बारे में इतनी जानकारी रखता है जितनी कि शायद हमें भी न हो| परिणाम हमारे सामने था|
रॉ के सपोर्ट ने भारतीय आर्मी को भरपूर सपोर्ट किया जिससे 90 हजार से ज्यादा पाकिस्तानी सेना को युधबंदी बनना पड़ा| रॉ नहीं होती है तो दोनों फ्रंट पर पाकिस्तानी आर्मी से लड़ना बहुत ही ज्यादा मुश्किल था| बांग्लादेश में वहीं के लोगो से ‘मुक्ति वाहिनी’ खड़ा करना, उसे ट्रेनिंग देकर लड़ने के लिए तैयार करने से लेकर सूचना देने तक का काम इसी विभाग ने किया था|
इसके बाद के बड़े ऑपरेशन में था ‘स्माइलिंग बुद्धा’| साल 1974 में भारत ने पोखरन में 15-kiloton plutonium device का परिक्षण कर एक नुक्लेअर देश के रूप अपनी पहचान बनाई| यह इतना आसान काम बिलकुल नहीं था क्युकी पूरी दुनिया खासकर अमेरिका की नजर हमेशा सॅटॅलाइट के माध्यम से रहती थी| इसे ख़ुफ़िया बनाए रखने की जिम्मेदारी रॉ को दी गई थी जिसमें सफल हुआ था| इसके एक साल बाद 1975 की बात है| सिक्किम भारत का एक महत्वपूर्ण राज्य है|
यह राज्य सुन्दरता के साथ-साथ भारत की उत्तर-पूर्व सुरक्षा के नजरिए से भी काफी महत्वपूर्ण रहा है| सिक्किम के माध्यम से भारत का उत्तर-पूर्व भारत के अन्य हिस्सों से जुड़ा हुआ है जो कि बहुत ही ज्यादा पतला है जिसे तकनिकी भाषा में ‘चिकेन नेक’ कहा जाता है| चाइना ने जिस दादागिरी से तिब्बत को हड़प लिया था ठीक उसी तरह उसकी नजर सिक्किम पर भी थी| इनफैक्ट आज भी है| दोकलम विवाद इसका ताजा उदहारण है| रॉ ने वहाँ एक महतवपूर्ण भूमिका निभाई थी| रॉ वहाँ की आम जनता में घुसकर सकारात्मक बातें भरने में सफल रहा| मजबूरन वहाँ के राजा को भारत का हिस्सा बनना पड़ा जो भारत का 22वां राज्य बना था|
इसके बाद साल 1978 में “आपरेशन काहुटा” को अंजाम दिया गया| यह बेहद ही साहसिक और खतरनाक अभियान था| यह वही जगह था जहाँ पाकिस्तान नुक्लेअर की तैयारी कर रहा था| काहुटा के परमाणु लैब तक रॉ पहुचं गए थे| इस ऑपरेशन में रॉ ने उस मिशन में लगे वैज्ञानिकों के बालों के माध्यम से पाकिस्तान के ‘लॉन्ग रेंज मिसाइल’ प्रोग्राम का पता लगा लिया था| रॉ एजेंट्स ने 1978 के पहले ही पकिस्तान के खूंखार परमाणु क्षमता से लैस होने की तैयारी का पता लगा लिया था|
रॉ ने इस लैब को नेस्तनाबूत करने की दिशा में काम शुरू कर दिया था| लेकिन यह मिशन बड़बोलेपन के धनी और तत्कालीन प्रधानमंत्री ‘मोरारजी देसाई’ ने इस मिशन पर पानी फेर दिया| दावा यह भी किया गया है कि उन्होंने पाकिस्तान के तब के प्रधानमंत्री जिआउल हक़ से फोन पर बात करते समय अप्रत्यक्ष रूप से यह संकेत दे दिया कि भारत को पाकिस्तान की इस हरकत के बारे में पता है| उन दौरान सबसे ज्यादा रॉ की हानी हुई है| काफी एजेंट्स गिरफ्तार भी हुए थे|
इसके बाद ऑपरेशन 1984 में हुआ| इसका नाम था “ऑपरेशन मेघदूत”| लन्दन में रॉ को उसी गारमेंट कंपनी से सुचना मिली जहाँ से भारतीय जवानों के स्पेशल सर्दी के कपड़े आते थे, कि उसी कंपनी से पाकिस्तान की तरफ से एक बड़ी तादाद में “Arctic weather gear” की डिमांड आई है| रॉ ने सुचना इंटरसेप्ट किया और पाकिस्तान की वहाँ पहुचने की कोशिश को असफल किया| भारतीय जवान पाकिस्तान के पहुचने के चार दिन पहले ही सियाचिन ग्लेशियर पर अपनी उपस्तिथि दर्ज कर चुके थे|
अगर रॉ नहीं होता तो यक़ीनन सियाचिन शायद हमारे हाथ से निकल गया होता| इसके बाद नंबर आता है “ऑपरेशन चाणक्य”| इस ऑपरेशन में रॉ ने पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई द्वारा समर्थित कई अलगाववादी संगठनों और आतंकवाद को कश्मीर घाटी से दूर करने के लिए चलाया था| यह कितना सफल रहा इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा लीजिए कि आतंकवादी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन के दो धड़ों में बंटने के पीछे भी का कारण भी यही ऑपरेशन था|
इसके बाद नंबर आता है “ऑपरेशन लीच” का| रॉ के अहम ऑपरेशन में से एक ऑपरेशन रहा है| उत्तर-पूर्व के विद्रोही देश की अखंडता को भंग करना चाहते थे इसलिए रॉ ने बर्मा के विद्रोहियों और लोक्तान्त्रन्तिक लोगों का खूब पोषण किया| उन्होंने KIA (काचीन इंडिपेंडेंस आर्मी) को रत्नों के बदले सीमित हथियार बेचने की अनुमति दी| बाद में इसी के माध्यम से रॉ द्वारा ट्रेंड बर्माइ विद्रोहियों को फॉलो करते हुए रॉ ने NUPA के 34 गुर्रिले विद्रोहियों को गिरफ्तार कर लिया और उनके मिलिट्री कमांडर को मार गिराया| इसके अलावां एक और महत्वपूर्ण ऑपरेशन चलाया गया “स्नैच ऑपरेशन”|
‘द वीक’ ने इसका खुलासा नहीं किया होता तो शायद इसके बारे में किसी को पता भी नहीं लग पाता| इस मिशन ऑफ़ आई.बी. और रॉ दोनों ने मिलकर अंजाम दिया था| इस ऑपरेशन में भारत ने तिब्बत, नेपाल और भूटान के रास्ते से घुसपैठ करने वाले आतंकवादियों को धर दबोचने में काफी हद तक कामयाब रहा है| पकड़े गए आतंवादियों में लश्कर आतंकी तारीख महमूद और मुंबई हमले को अंजाम दिने वाला शेख अब्दुल ख्वाजा भी शामिल है|
रॉ के ऑपरेशन न सिर्फ देश की सुरक्षा बल्कि विदेश नीतियों में अपनी अहम भूमिका निभाती है| हालाँकि यह कई अख़बारों ने यह दावा किया है कि 2015 में हुए | इसके पीछे यह तर्क दिया गया है कि महेंद्र राज पक्षे चीन के साथ बहुत करीबियां बढ़ा रहे थे| वहाँ की बंदरगाह हैम्बनटोटा पर चाइना का स्वागत कर रहे थे| चाइना को वहाँ इन्वेस्टमेंट करने की इजाजत दे दी थी| चाइना की पनडुब्बी भारत को बिना बताए श्रीलंकन तट पर रुकने दिया गया था जो भारत की सुरक्षा को सीधा चुनौती था|
भारत ने इस पर नाराजगी जाहिर की थी लेकिन राजपक्षे नहीं माने| अंततः रॉ ने राजपक्षे को सत्ता से हटाने का ऑपरेशन शुरू किया| अप्रत्यक्ष रूप से श्रीलंका के राष्ट्रपति चुनाव में रॉ ने श्री सेना की पार्टी को मदद की| परिणाम यह हुआ कि राजपक्षे को सत्ता से हाथ धोना पड़ गया और श्री सेना श्रीलंका के अगले राष्ट्रपति बने| जिनका व्यवहार भारत के प्रति थोडा बेहतर है| इसी तरह न जाने कितनी और भी अनकही सत्य कहानियाँ रॉ के दफ्तर की दीवारों के बीच पड़ी होंगी, जिसने देश की सुरक्षा सुनिश्चित की होगी|
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