एक शब्द है ‘राष्ट्रवादिता’| बहुत ही सार्थक शब्द है अगर इसे एक दायरे में उपयोग किया जाता है| यह ऐसा शब्द है जिसे इतिहास से लेकर वर्तमान में भी चर्चा होती रही है| इस शब्द को उपयोग करने के लिए कभी इतिहास के क्रांतिकारियों का सहारा लिया जाता है तो कभी देश के फ़ौज का| राष्ट्रवाद और अंधराष्ट्रवाद के बीच बिल्कुल महीन अंतर है| उदहारण के तौर पर ‘हिटलर’ अपने प्रेमिका से कई साल बीत जाने के बाद इसलिए शादी नहीं करता है क्युकी उसका मानना था कि उसकी पहली प्रेमिका उसका राष्ट्र है| हालाँकि बर्लिन के तबाह होते देख अंतिम दिनों में शादी की थी| यहाँ भी दो पक्ष बन सकता है| एक इसे ‘राष्ट्रवाद’ की केटेगरी में डालेगा और दूसरा अंधराष्ट्रवाद| ऐसा नहीं है इतिहास तक ही यह शब्द सिमित रहा|
कल अखबार में दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफ़ेसर मीरा जी के एक लेख में अफ्रीका में बदलते उन्माद में बारे में चर्चा की थी जिसे राष्ट्रवादिता के रूप में देखा था| मेरे समझ से वहां एक अंधराष्ट्रवाद की बीज बोई जा रही है| मीडिया लॉबी की तरफ से ‘महात्मा’ बनने से पहले गाँधी की एकतरफा बात की जा रही है| अफ्रीका में पनपते इस विचारधारा से महात्मा गाँधी को एक खलनायक के रूप में पेश करने की कोशिश की जा रही है|
इसका माध्यम बन रहा है ऐतिहासिक अत्याचार और रंगभेद| यह सत्य है कि शुरूआती दिनों में महात्मा गाँधी का विचार अफ्रीका को लेकर थोडा अलग था| यह भी सत्य है कि शुरूआती दिनों में अंग्रेजो के समर्थक थे| ऐसा भी नहीं था कि वो अंग्रेजों के कट्टर समर्थक थे| लेकिन हाँ उन्हें लगता था कि देश के लोगो के प्रति अंग्रेजों की रवैया बदलेगी| उन दिनों मात्र 23-24 साल के हुआ करते थे| गाँधी जी भी इन्सान थे बिल्कुल आपके और मेरे तरह| हर अनुभवों को बहुत करीब से देखा है| टेस्ट किया, अंग्रेजों के प्रति मोहभंग हुआ फिर अपनी सोच को बदला|
अफ्रीका में सिर्फ गाँधी ही नहीं बल्कि नेल्सन मंडेला को भी लेकर अलग विचार पैदा हो रहे है| पुरे विश्व में एक सूडो राष्ट्रवाद की बीज बोई जा रही है| भारत में महात्मा गाँधी और अफ्रीका में नेल्सन मंडेला और महात्मा गाँधी दोनों को लेकर ऐसे उन्माद पैदा करना एक ज्वलंत उदहारण है| इसके पीछे वैश्विक राजनीती का हाथ है| हम सब जानते है कि अफ्रीका के साथ भारत का सम्बन्ध हर क्षेत्र में रहा है| गुजरात में ऐसा आदिवासी समूह है जो अफ़्रीकी लोगों से बिल्कुल सामानांतर है|
आज जब भी हमारे देश के प्रधानमंत्री वहां जाते है तो ऐतिहासिक और संस्कृति अस्मिता को जरूर याद करते है| इसी अस्मिता को ख़त्म करने की शाजिस है यह राष्ट्रवादिता| आपको पता है विश्व के सबसे बड़ा चाय निर्यातक हमारा उत्तरपूर्व भारत हुआ करता था अब अफ्रीका जगह ले रही है| इसमें अफ्रीकन लोगों का कोई हाथ नहीं है| चीन ‘HYV’ की बीज और तकनीक के सहारे मुनाफा कमा रहा है| चीन बहुत बड़े बड़े फार्महाउस खरीदकर बड़े पैमाने पर खेती कर रहा है| यहाँ तक कि एनर्जी और ‘कॉर्न फ्लेक्स’ बनाने के लिए मक्का आदि की खेती कर रहा है| हर तरह से उन्हें सपोर्ट कर रहा है|
स्वाभाविक सी बात से भारत से यह विरासत छिनना भी चाहेगा और अपनी विरासत तैयार करना भी| जिससे उनकी आने वाली पीढ़ी ठीक ऐसा ही व्यवहार करेंगी जैसा हम आज अफ्रीका के साथ करते है| यह किसी से नहीं छुपा कि भारत पुरे विश्व में उभरता हुआ सबसे बड़ा आर्थिक बाजार है| हर तरह से देश को परेशान करने की कोशिश की जा रही है| कभी भारत-पाकिस्तान के सीमा विवाद को मुद्दा बनाकर पूरा ध्यान खीचना, कभी अंतराष्ट्रीय संबंधो को प्रभावित करना|
आज के अखबार में मैंने पढ़ा कि कल चाइना ने यह कहकर मसूद अजहर पर लगे यु.एन. बैन का विरोध किया, कि भारत में इसको लेकर अलग अलग विचार है| यह विश्व को एक खतरनाक सन्देश देगा| इससे बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है| इसलिए विदेशी ताकतों द्वारा एक ऐसा माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है जिससे अंधराष्ट्रवाद का बीज बो कर संबंधो को ख़त्म किया जा सके| सिर्फ उन पहलुओं को सामने लाए जो इस पौधे को बड़ा करने में मदद करे| इतिहास के उन शब्द को पूरी तरह से मिटा देना जो नकारात्मक विचारों पर भारी पड रही हो|
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