लोकतान्त्रिक नजरिए से EVM सबसे बेहतर विकल्प

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मार्टिन लूथर किंग कहते है कि अगर आपके ऊपर सामने वाला अगर बहुत हावी हो रहा है तो कोई जरूरी नहीं है कि सामने वाला बहुत मजबूत है, यह भी हो सकता है कि आप कमजोर हो| अभी हाल में पांच राज्यों में चुनाव हुए और उसके परिणाम आए| जब चुनावी परिणाम काउंटिंग प्रोसेस में ही थे तभी एक नया प्रकार का शिगूफा का इजाद हुआ कि EVM (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) के साथ छेड़छाड़ हुई है| आज बीजेपी के अलावां दुसरे खेमे की पार्टियाँ अपने चाल ढाल से इतनी कमजोर हो चुकी है कि बीजेपी आज के समय में सबसे प्रबल दिख रही है| आखिर क्यों नहीं होगी?

एक महिला नेता जिसकी राजनितिक कैरियर आज एकदम किनारे पर है, वो आकर अपने हार का ठिकरा EVM के सर फोड़ के चली जाती है और बाक़ी के राजनेता जिनकी स्तिथि  मुकाबले में  सही है, उनका अनुसरण करते हुए भेंड चाल चलने लगते है| मुझे ताज्जुब तब होता है जब दिल्ली के मुख्यमंत्री साहेब भी वही बात करते है, जबकी वो पेशे से इंजिनियर और बाद में सरकारी अधिकारी भी रह चुके है| उन्हें बहुत अच्छी तरह से इस सिस्टम के बारे में पता होगा|

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हमें यह समझना होगा कि किसी भी नए सिस्टम का अविष्कार पुराने सिस्टम की खामियों का हल करते हुए ही होता है| उदहारण के रूप में पुराने ज़माने में वस्तुविनिमय की प्रणाली हुआ करती थी जिसमे लोग सामानों का आदान प्रदान करते थे| उस समय पैसे माध्यम के लिए नहीं हुआ करते थे| उसमे बहुत सारी खामियां दिखी तब जाकर सोने का सिक्का विश्वास में आया| उसमें भी बहुत सारी समस्याएँ थी फिर पेपर मनी का अविष्कार किया गया| अभी भी पेपर मनी हमारे बीच है लेकिन उसमे भी कुछ खामियां है जिसकी वजह से लोग डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड की ओर रुख कर रहे है|

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अब डिजिटल वॉलेट वेग्रह जैसी चीजें हमारे बीच दिखने लगी| ऐसे ही समय के साथ पुरानी समस्याओं का हल करते हुए नई चीजों का अविष्कार होता है| ठीक इसी प्रकार के वोटिंग प्रणाली भी समय के अनुसार बदलेगी| पहले पेपर वालेट फिर EVM और आगे VVPAT जैसी चीजें विश्वास में आएंगी| इस बदलाव को हमेशा स्वीकारना होगा| क्युकी इन सभी बदलाव का लक्ष्य रहा है कि पुरानी सिस्टम की खामियों को सुधार सके| इसलिए इस तरह का वातावरण बनाना कि हमें वापस पेपर वालेट की तरफ लौटना चाहिए, मूर्खतापूर्ण बातें है|

यकींन मानिए पेपर बैलट में परिणाम गलत आने की संभावनाएं ज्यादा है| पहली बात, सबसे पहली समस्या थी बूथ कैप्चरिंग| EVM आने के बाद से कम से कम बूथ कैप्चरिंग की संभावनाएं तो ख़त्म हो गई| उसके वजह से दोबारा इलेक्शन करवाया जाता था, उस स्थान के लिए जहाँ बूथ कैप्चरिंग होती थी| इलेक्शन कमीशन का एक्स्ट्रा खर्च बढ़ जाता था| दूसरी बात, पेपर बैलट में पेपर को एक तहजीब से मोड़ा जाता था जिससे कि इंक(स्याही) एक दुसरे पर न छपे|

ऐसे में बहुत सारे लोगों का वोट काउंट सिर्फ इसलिए नहीं होता था कि उसने गलत मोड़ दिया और इंक फैलने की वजह से संदेह पैदा हो रहा है| वोट देने जाने के बाद भी उस व्यक्ति का वोट लोकतंत्र का हिस्सा नहीं बन पाता था| शहरी और पढ़े लिखे लोग तो बखूबी कर लिया करते थे लेकिन पिछड़े लोगों में गलती करने की हमेशा सम्भावना बनी रहती थी|

तीसरी बात वोट की गिनती में हमेशा दिक्कतें आई है| मैंने कई मर्तबा गाँव के इलेक्शन में देखा है कि जब एक उम्मीदवार जीत जाता है तब वो दोबारा अपील करता है और अगर जुगाड़ की संभावनाएं होती है तो परिणाम पलटवा भी दिए जाते है| एक बार ऐसा मेरे गाँव के इलेक्शन में हुआ था जहाँ मुखिया और जिला पार्षद दोनों के परिणाम दोबारा गिनती करवा के बदल दिए गए थे| इसमें होता क्या है कि पेपर हमेशा बंडल में होता है| एकबार जब काउंटिंग होकर बंडल बांध दिया जाता है तो उसे दोबारा कभी खोला नहीं जाता| अगर दोबारा गिनती की नौबत आती है तो सिर्फ ऊपर से बंडल पर लिखे नंबर को ही जोड़ा जाता है|

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इसकी क्या गारंटी कि बंडल गिनने के बाद उसपर जो संख्या लिखी गई है वो सही ही हो| लेकिन EVM में यह होता है कि हजार बार काउंटिंग करवा लीजिए परिणाम जस का तस रहता है| चौथी बात, EVM मशीन की वजह से सुबह काउंटिंग शुरू होती है और शाम को ख़त्म हो जाती है और परिणाम घोषित कर दिए जाते है| लेकिन पेपर बैलट के साथ दिक्कत थी कि तीन-तीन, चार-चार दिन तक गिनती चलती रहती थी| काउंटिंग प्रक्रिया पर असर पड़ना लाजमी है| ऐसे बहुत से कारण है जिसमे EVM पेपर बैलट पर भारी पड़ता है|

लेकिन अब सवाल यह है कि क्या EVM के साथ छेड़-छाड़ की जा सकती है? EVM एक मशीन है संभावनाएं बन सकती है लेकिन लगभग नामुमकिन के बराबर| इसके पीछे कारण है| पहला कारण यह है कि इसका इन्टरनेट से कोई कनेक्शन नहीं होता है| दूसरी बात किसी को पता नहीं होता कि कौन सा मशीन अगले दिन किस बूथ पर जाएगा| ऐसे में कहना कि पहले से ही तय होता है यह गलत है| तीसरी बात, वोटिंग शुरू होने से पहले ही ईवीएम मशीन को टेस्ट किया जाता है कि मशीन ठीक है या नहीं।

ये भी देखा जाता है कि इससे किसी तरह की कोई छेड़छाड़ तो नहीं की गई है| इस प्रक्रिया को मॉक पोलिंग भी कहा जाता है| इस प्रक्रिया के पूरा होने के बाद ही वोटिंग शुरू करवाई जाती है| चौथी बात, सभी पोलिंग एंजेट से मशीन में वोट डालने को कहा जाता है ताकि ये जांचा जा सके कि सभी उम्मीदवारों के पक्ष में वोट गिर रहा है कि नहीं| ऐसे में यदि किसी मशीन में टेंपरिंग या तकनीकि गड़बड़ी होगी तो मतदान के शुरू होने के पहले ही पकड़ लिए जाने की भी संभावनाएं है|

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पांचवी बात, ईवीएम मशीन का निर्माण सर्वंजिक क्षेत्र की कंपनी बीईएल और ईसीआईएल द्वारा किया जाता है, जो की भारत के लिए सुरक्षा और परमाणु से जुड़े उपकरणों का निर्माण करती है| इसके प्रोग्रामिंग का सोफ्टवेयर दो से तीन इंजिनियर मिलकर करते है| जिसकी वजह से इसमें किसी भी बाहरी व्यक्ति का शामिल होना नामुमकिन है|

इतने सारे प्रावधान होने के बावजूद भी शिगूफा छोड़ना की EVM के साथ छेड़-छाड़ हुई है, फिजूल की बातें है जो हमेशा प्रतिद्वंदी को मजबूत बनाएंगी और उन्हें कमजोर| कई बार इलेक्शन कमीशन भी चुनौती दे चूका है कि कोई भी पार्टी आए और इसे टेम्पर साबित करके दिखाए| यह असंभव सा काम है| ऐसे में बेहतर यही होगा कि अपनी गलतियों की सही पहचान करे और आगे के चुनावों में सुधारने का प्रयास करे|

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