आज इकोनॉमिक टाइम्स के हवाले से राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की रिपोर्ट की एक झलक दिखी जो अंडमान के ओंग जनजाति की चिंताओं की तरफ इशारा कर रही है| इस रिपोर्ट में सबसे चिंता की बात यह की गई है कि इनके भौतिक क्रियाकलापों में भारी कमी आई है जिससे इनका मोटापा और उच्च रक्तचाप जैसी चीजे देखने को मिल रही है|
ओंग जनजाति की स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ लगातार बढ़ रही है| सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि यह इस समुदाए की जनसँख्या मात्र 117 रह गई है| ये लोग भी इसी भारत के अंग है लेकिन मेन स्ट्रीम मीडिया का ज्यादातर हिस्सा इससे अछूता है|
आज के चमकते धमकते न्यूज़ चैनल्स की बेसकिमती प्राइम टाइम भी इन आदिवासियों की नसीब नहीं है| कोई तो तकल्लुफ उठाए जो इनकी दर्दो को टेबल पर बात करने को ले आए| ऐसा बिल्कुल नहीं है कि इन्होने भारत को कुछ कम दिया है| देश की आजादी में इनका भी बहुत बड़ा योगदान रहा है लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि हम इन फ्रीडम फाइटर के बारे में चर्चा ही नहीं करते है| यह जनजाति अपनी वजूद को बचाने की लड़ाई लड़ रही है|
लगभग महिना पहले राज्यसभा टीवी के पत्रकार श्याम सुंदर जी ने इन आदिवासियों के ऊपर ‘मै भी भारत’ सीरीज के तहत एक बढ़िया डॉक्यूमेंट्री तैयार अंडमान की थी| निसंदेह बेहद मेहनत और रिसर्च से तैयार की गई इस डॉक्यूमेंट्री के देखने के बाद आपको एहसास होगा कि राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की रिपोर्ट सतही तौर पर समस्या की बात कर रही है| अपने डॉक्यूमेंट्री में एक बड़ा ही इंटरेस्टिंग फैक्ट को सामने लाया है|
वो कहते है कि 1938 की जनसख्या से एक अहम् जानकारी मिलती है| इसके हिसाब में 1867 में आसाम वैली नाम के एक जहाज से कैप्टेन और उसके छः साथी लिटिल आइलैंड पर पानी की तलाश में गए थे| लेकिन यह टीम कभी वापस नहीं आ पाई| इसकी तलाश के एक और टीम भेजी गई लेकिन उन्हें अपने इलाके में घुसने तक नहीं दिया| अंग्रेजों से हर संभव लोहा लिया| वो बात अलग है कि अंग्रेजों ने इनकी काफी छति पहुचाई|
विलुप्त होती इस जनजाति के कारण हमारे देश और देश की संस्कृति को आने वाले समय में बड़ा नुक्सान हो सकता है| यही होता है जब किसी ख़ास जगह की भाषा या संस्कृति को ख़त्म की जाती है| उनके विलुप्त होने पर न सिर्फ वो बल्कि उनके साथ बहुत साड़ी चीजे भी विलुप्त हो जाएंगी| जैसे उदहारण के तौर पर विधवा, विधुर, अनाथ जैसे शब्दों का हिंदी, इंग्लिश सहित कई भाषाओँ में पर्याय मिल सकता है|
लेकिन भाई या बहन मर जाने के बाद पीड़ित के लिए क्या शब्द है? लेकिन अंडमानी में उसे रोपुच कहलाता है| राष्ट्रवाद की अँधादौड़ में ऐसी अस्मिताएं पीछे छूटती चली जाएंगी| मौलिकता, शब्द सामर्थ्य, भाव सौंदर्य की कमियां भावी पीढ़ी को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगी|
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