टीआरपी की चकाचौंध में बहुत सी ऐसी जरूरी ख़बरें और मुद्दे चर्चा से अछूते रह जाते है| पिछले महीने उत्तरपूर्व के मिजोरम में वहाँ की सरकार ने ‘चकमा छात्रों’ की मेडिकल की सीटें रद्द कर दी| AICSU(आल इंडिया चकमा स्टूडेंट यूनियन) ने मिजोरम के मुख्यमंत्री लाल थान्हावाले से आग्रह किया कि उन्हें शोषित न किया जाए और नाही उनके साथ जातिगत भेदभाव किया जाए| 38 छात्रों में से चार चकमा छात्रों ने मेडिकल की परीक्षा पास की थी| उन्हें यह परीक्षा पास करने के बावजूद MBBS में एडमिशन नहीं मिल रहा है| यह एक दुर्भाग्य की बात है कि जिन चार छात्रों ने मिजोरम NEET की परीक्षा में सफलता पाई है उनकी रैंक 4, 9, 17, 23 होने के बावजूद उन्हें काउंसिलिंग करने की इज्जाजत नहीं दी गई| Mizo Zirlai Pawl (MZP, एक छात्र संघ) की मांग के तुरंत एक घंटे के अन्दर राज्य सरकार ने उनकी सीटें रद्द कर दी| AICSU(आल इंडिया चकमा स्टूडेंट यूनियन) ने जातिगत भेदभाव के खिलाफ जंतर मंतर पर प्रदर्शन भी किया और राज्य निवास कमिश्नर द्वारा मुख्यमंत्री थान्हावला को मेमोरेंडम सौंपा|
मेमोरेंडम में यह मांग की गई कि उन कानूनों को जल्द ही ख़त्म किया जाए जो उनसे जातिगत भेदभाव करता रहा है| चकमा छात्रों के एडमिशन के विरोध करने वाले MZP छात्र संघ का तर्क यह है कि चकमा लोग बांग्लादेश से पलायन किए हुए लोग है मिजोरम के स्वदेशी लोग नहीं है| इसलिए उन्हें मिजोरम टेक्निकल एंट्रेंस एग्जामिनेशन के केटेगरी 1 नियम के अन्दर नहीं रखा जा सकता है| वो सिर्फ मिजो छात्रों पर ही लागु होता है| इनका धरना प्रदर्शन मीडिया को बहुत हद तक आकर्षित नहीं कर सका लेकिन इनका मामला भी बहुत उलझा हुआ रहा है| ज्यादातर इतिहासकारों ने भी इन्हें उपेक्षित रखा है| उनके पीड़ा इतिहास से गहरा रिश्ता रखता है और हमें बारंबार हमारी गलतियों को याद दिलाता है| इनके और इनके इतिहास के बारे में थोडा जानने की कोशिश करते है| चकमा जाती मूल्यतः चित्तगोंग हिल ट्रैक्ट (CHT) क्षेत्र से संबंध रखने वाली जाती है| इस क्षेत्र में ना सिर्फ चकमा बल्कि हजोंग, मर्म, म्रो, बौंन, पंग्खु और ख्यांग आदि जैसे कई बहुभाषी लोगों की जमीन रही है| सभी लोगों को जुम्मा भी कहा जाता है| इनसब में सबसे बड़ी एथनिक समूह चकमा ही है|
चकमा लोग बाकी के बंगलादेशी लोगों से थोड़े अलग है| इनकी भाषा, संस्कृति और धर्म सबकुछ अलग है| बांग्लादेश के लोग बांग्ला बोलने वाले मुस्लिम समुदाय से संबंध रखते है जबकी चकमा जाती के लोग बौध धर्म से संबंध रखते है| हर धर्म में जैसे अलग अलग खांचे बटे होते है वैसे ही बौध धर्म में अलग अलग खांचे बटें होते है| बौध धर्म के थेरावाडा और महायान दो प्रमुख फ्रंट है| ठीक वैसे ही जैसे इस्लाम में शिया, सुन्नी आदि बटे होते है| सुन्नी में भी अलग अलग विचारधारा के लोग आते है जो बाद में देवबंदी और बरेलवी के रूप में दिखते है| वैचारिक असामनता वाले बौध धर्म के दोनों फ्रंट में से चकमा लोग महायान फ्रंट से संबंधित थे| इस विचार को मानाने वाले लोग तिब्बत, चाइना, ताइवान, जापान, कोरिया आदि देश के लोग है| चकमा लोग इसी विचार को मानने वाले लोग है| अंग्रेजों का बंगाल पर कब्ज़ा करने से पहले जुम्मा लोग स्वतंत्र रहते थे| बाद में अंग्रेजों ने इन्हें अपने नियंत्रण में लिया|
अंग्रेजों ने अपने नियंत्रण में लेने के ठीक बाद CHT अधिनियम बनाया| इस नियम के तहत बाहरी लोगों का इस क्षेत्र में आने पर रोक लगा दी| इन्हें एक प्रकार का विशेषाधिकार प्रदान किया जिससे इनकी सामाजिक और सांस्कृतिक हितों की रक्षा की जा सके| अंग्रेजों के औपनिवेशिक शासन के दौरान 1860 से लेकर 1947 तक इनके निष्काषित क्षेत्र में रखा था| इनके में ना किसी को आने की अनुमति थी और नाही वहाँ जमीन की खरीद-फरोख्त करने की इज्जाजत थी| औपनिवेशिक काल तक मजे से रहे| मुसीबत की घड़ी तब शुरू हुई जब देश आजाद हुआ| देश में ‘टू नेशन थ्योरी’ जैसी चीजों का आगमन हुआ| ‘लैप्स ऑफ़ पैरामाऊँसी’ के तहत राजे राजवाडों को विशेषाधिकार दिया गया कि वो हिंदुस्तान या पाकिस्तान को अपने देश के रूप में चुने| कुछ जगह जैसे कश्मीर, जूनागढ़ आदि जैसे जगहों पर जनमत संग्रह का भी कांसेप्ट आया| CHT क्षेत्र में भी जनमत संग्रह की बातें उठीं| चकमा लोग भारत में विलय करना चाहते थे| उस समय उस क्षेत्र में जुम्मा लोगों की जनसँख्या 95% से भी ज्यादा थी| यानी की बहुमत में थे|
इस लिहाज से उनका हिंदुस्तान में विलय तय था| दूसरा भगौलिक रूप से भारत से विलय करने में कोई हर्ज नहीं था क्युकी यह क्षेत्र मिजोरम और त्रिपुरा के बीच आता है जो भारत से सीधे तौर पर जुडा हुआ था| चकमा लोग डेलीगेशन लेकर दिल्ली पहुचे और जवाहरलाल नेहरु तथा सरदार पटेल से मुलाकात करके अपनी इच्छा व्यक्त की| दोनों लोगों ने चकमा समुदाय को भरोसा दिलाया कि CHT क्षेत्र स्वंतंत्र भारत का हिस्सा होगा| लेकिन जनमत संग्रह के समय सबकुछ वैसा नहीं हुआ जिसकी उम्मीद लगाईं जा रही थी| जनमत संग्रह हुई लेकिन ‘CHT क्षेत्र’ में नहीं बल्कि ‘सिल्हेट’ में हुई| ‘सिल्हेट’ तब के पूर्वी पाकिस्तान का पूर्वी इलाका जो बंगाल विभाजन के समय भारत के असम से जुड़ा हुआ था| उस जनमत संग्रह में CHT क्षेत्र उस ‘सिल्हेट’ क्षेत्र का एक छोटा हिस्सा बन के रह गया| जिस सिल्हेट में जनमत संग्रह हुआ वो अब मुस्लिम बहुल क्षेत्र बन गया| परिणाम भी वैसा ही आया और जुम्मा (ज्यादातर चकमा) लोगों का भारत में विलय होने की इच्छा एक सपना मात्र बनकर रह गई|
बाउंड्री कमीशन ने चकमा को पाकिस्तान का हिस्सा बना दिया| भारत को कलकत्ता का बंदरगाह मिला और पाकिस्तान को CHT क्षेत्र में स्तिथ चित्तगोंग बंदरगाह| पाकिस्तान बिलकुल भी नहीं चाहता था कि वो बंदरगाह भारत के हाथ लगे| इसलिए जनमत संग्रह भी इस तरह से करवाई जिससे कि किसी भी तरह से उस क्षेत्र को अपने में विलय करवा सके| चुकी बाउंड्री कमीशन का काम गुप्त रूप से रखा गया था| वो एक अलग चर्चा का विषय है| बाउंड्री कमीशन के निर्देशन आते इससे पहले चकमा लोगों ने CHT क्षेत्र में भारत का झंडा फहराकर अपनी आजादी का इजहार कर दिया| ये बातें पाकिस्तान को नागावार गुजरी और अधिकारीयों ने झंडा निचे उतरवा दिया और उन्हें देशद्रोह का तमगा दे दिया| यही नहीं पाकिस्तान ने उसके साथ शोषण की प्रक्रिया शुरू की| अंग्रेजों द्वारा दिया गया विशेषाधिकार छीन लिया और उन्हें ‘आदिवासी समूह’ घोषित कर दिया| पाकिस्तान ने पूरा कण्ट्रोल अपने हाथों ले लिया और मुस्लिम लोग उधर जाकर बसना शुरू कर दिए| अंग्रेजों से समय वहाँ किसी भी अन्य समुदाय को बसना मनाही थी| धीरे-धीरे जनसांख्यिकी (डेमोग्राफी) बदलनी शुरू हो गई| यहाँ के लोगों का अधिकार छीनता चला गया|
सन 1962 में पाकिस्तान ने वहाँ कप्टाई हाइड्रोइलेक्ट्रिक पॉवर प्रोजेक्ट बनाया| इस प्रोजेक्ट ने उनकी रही सही स्तिथि को तहस नहस कर दिया| चकमा लोगों को विस्थापित होने के लिए मजबूर कर दिया| सबसे ज्यादा प्रभावित चकमा लोग हुए| CHT क्षेत्र की राजधानी रंगमती शहर सहित बहुत सारा खेती वाला जमीन ख़राब हो गया| इसीलिए चकमा लोग इस प्रोजेक्ट को ‘आसुंओं के झील’ नाम से याद करते है| परिणाम वही हुआ जो हमेशा से होता रहा है| चकमा और हजोंग लोगों ने अपने आप को बचाने के लिए लुशाई पहाड़ी के सहारे असम में पलायन किए| भारत ने शरणार्थी बनने को कह तो दिया लेकिन असम के लोगों ने उन्हें अपनाने से इनकार कर दिया| असम के राज्यपाल ने हिंसा के भय को देखते हुए चकमा लोगों तो नेफा (अब अरुणाचलप्रदेश) भेजने का सलाह दिया| उनका मानना था कि वहाँ बहुत सारा जगह खाली भी है इसलिए वहाँ भेजना सही रहेगा| चकमा लोग नेफा के तिराप, लोहित और सुबांसिरी जिले में स्थानांतरित होना शुरू कर दिए| शुरू में इसे नजरअंदाज किया गया| लेकिन कुछ समय बाद अरुणाचल प्रदेश के लोगों ने भी इसका मुखालफत करना शुरू कर दिया|
अरुणाचल प्रदेश में छात्रसंघ उभरकर आए और एंटी फोरेनर आन्दोलन का आवाहन किया| फिर से एकबार चकमा लोग स्थानांतरित होना शुरू हुए और असम, त्रिपुरा और मिजोरम में जा बसे| भारत ने नागरिकता और ST का दर्जा भी देना शुरू कर दिया| ऐसे में असम, त्रिपुरा और मिजोरम में आरक्षण पा रहे ST लोगों ने इसका विरोध किया| ऐसे में वहाँ के लोगों को डर था कि उन्हें आरक्षण साझा तो करना ही पड़ेगा साथ में वोट का अधिकार राजनीतिज्ञों को उनके तरफ झुकाने और जवाबदेही बनाने लगेला| कहानी में एक मर्तबा और मोड़ आया जब पाकिस्तान का विभाजन हुआ| 1971 में चकमा लोगों को लगा कि अब वो समय आ गया जब अपने अधिकारों की मांग कर अपनी दावेदारी पेश की जा सके| चकमाँ एकत्र हुए और लड़ने को तैयार हुए| चकमा लोगों ने ‘शांति बाहिनी’ नाम की एक सैन्य संघर्ष का जन्म दिया| यहाँ पर चकमा गलती कर गए| तब उन्हें इंदिरा गाँधी से मुलाकात कर अपने समस्या का हल मांगना था लेकिन हथियार उठाकर अपनी समस्या को और गंभीर बना दिया| परिणाम यह हुआ कि बांग्लादेश आर्मी द्वारा इन्हें वापस भारतीय इलाके में खदेड़ दिया गया|
यहाँ तक कि तब के बांग्लादेश के प्रधानमंत्री बंगबंधू मुजीबुर्रहमान ने भी इसपर ध्यान नहीं दिया| उनकी हत्या के बाद प्रधानमंत्री बनी उनकी बेटी शेख हसीना ने 1997 में जाकर, एकॉर्ड हस्ताक्षर की और बातें शुरू की| शांति, विकास और वहाँ से मिलिट्री हटाने की बातें की गई| उस एकॉर्ड में यह तय किया गया कि उनकी जमीन वापसी और वहाँ के लोगों को स्वायत्ता दी जाएगी कि वो अपना शासन खुद ही करे| वहाँ के लोगों की आर्थिक स्तिथि में सुधार को लेकर बातें हुई| लगा अब सबकुछ सही हो जाएगा| उसके एक साल पहले यानी 1996 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अरुणाचल प्रदेश में चकमा और हाजोंग को नागरिकता देने का आदेश किया था लेकीन जमीनी स्तर पर उसका इम्प्लीमेंटेशन नहीं किया गया| एकॉर्ड में बांग्लादेश ने चकमा और बाकी के जुम्मा लोगों को त्रिपुरा और मिजोरम लोगों को वापस लेने के लिए भी वादा किया था| लेकिन वो असरदार साबित नहीं हुआ| किया गया वादा पेपर पर ही सिमित रह गया| पिछले साल भारत सरकार ने भी उन्हें अपनाने के लिए नागरिकता के कानून में भी संसोधन करने का बिल प्रस्तावित किया|
अभी भी इतने सालों के बाद भी चकमा जाती आज भी दर बदर भटकने को मजबूर है| कभी उसे धर्म के नाम पर भेदभाव का शिकार होना पड़ता है तो कभी क्षेत्र के नाम पर| आज भी स्थाई रूप से स्थापित करने में भारत और बांग्लादेश सरकार असफल रही है| भारत और बांग्लादेश दोनों की सरकारों को इस मुद्दे पर अपनी एक राय बनानी पड़ेगी| भारत में हो रहे तमाम भेदभाव के प्रति भारत सरकार को इसपर सख्ती से कार्यवाई करनी चाहिए जिससे इस समुदाय के लोगों के साथ अन्याय न हो सके|
Support us
Hard work should be paid. It is free for all. Those who could not pay for the content can avail quality services free of cost. But those who have the ability to pay for the quality content he/she is receiving should pay as per his/her convenience. Team DWA will be highly thankful for your support.