जो यथार्त है वो झूठ है बाक़ी का जो कल्पना है वही सच है|

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सोशल मीडिया से लेके मेन स्ट्रीम मीडिया तक ने चाइनीज सामानों का उपयोग ना करने के लिए मुहीम चलाई थी| खासकर दिवाली को ध्यान में रखकर ऐसा किया गया था| इस मुहीम के ब्रांड अम्बेसडर कुम्हारों को बनाया गया था| ये अच्छा लगा कि कभी तो उनकी याद आई लोगों को| ये यथार्त है जो पूरा झूठ है| सच तो यह है कि यह संभव ही नहीं है| इसके पीछे मै कुछ कारण दूंगा| पहला कारण यह है कि इसका कोई लीडर नही है| आजादी के समय जब यूरोपियन सामानों का बहिष्कार करना था तो वहाँ एक मास लीडर के रूप में गाँधी जी थे|

आजादी के बाद से लेके आज तक मास लीडर कोई बन नहीं पाया| हालाँकि सत्तर के दशक में जयप्रकाश नारायण जी में थोड़ी बहुत मास लीडर वाली प्रतिबिम्ब जरूर दिखी थी लेकिन साल दो साल बाद फीकी पड़ गई थी| आज के समय में जो लीडर है वो कभी भी ऐसे बैन को लेकर प्रत्यक्ष रूप से सपोर्ट नहीं कर सकते| इसके पीछे कारण यह है कि अंतराष्ट्रीय स्तर पर वो विदेशी सामानों को एक्सेप्ट करने की कमिटमेंट करते रहे है|

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अंतराष्ट्रीय राजनीति ने बहुत सारे क्षेत्रीय ग्रुपिंग की हवा दी है| अमेरिका अपना अलग ग्रुपिंग बनाकर अपना कब्ज़ा चाहता है और चाइना अलग| हर ग्रुपिंग में इस बहुत सारे शर्तें लगाकर एक दुसरे को बाध्य किया जाता रहा है| दूसरी बात बहुत सारी चीजें है जिसे हम भारत में प्रोडूस नहीं कर सकते है| अगर जबरजस्ती करेंगे भी तो उसकी कीमत बाहरी कीमत से बहुत ज्यादा होगी| इससे बेहतर यहीं होता है कि जो चीजें अगर बेहद सस्ती दाम पर बाहर में मिलती है तो उसे इम्पोर्ट कर ले, बजाए अपने पैसे बर्बाद करने के| यह बात बहुत पहले रघुराम राजन भाई ने कही थी|

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तीसरा कारण यह दूंगा कि अमेरिका को दक्षिण-पश्चिमी एशिया से क्रूड आयल को बंद करना था तो क्या आन्दोलन करके बंद किया? सबकुछ आन्दोलन से हल नहीं होता है| अपनी क्षमताओं का उपयोग करके भी हल पा सकते है| जैसे अमेरिका ने पहले उसका अल्टरनेटिव ‘शेल गैस’ के रूप में ढूंढा जो सस्ता हो| बाकी का इम्पोर्ट अपने आप बंद हो गया| “बैन करना” एक नेगेटिव शब्द है जिसको सकारात्मकता से भी मुक्कमल किया जा सकता है| अगर राष्ट्रवाद का झंडा बुलंद करना है उसकी अलग बात है|

चौथी बात यह है बेसक हमारा चाइना के साथ ट्रेड घाटा रहा है लेकिन चाइना का भारत में एक्सपोर्ट करना जीडीपी के अनुपात में, भारत का चाइना में एक्सपोर्ट करने के अपेक्षाकृत बेहद कम है| घाटा हमारा ज्यादा होगा| सीधी सी बात यह है कि आप दूसरों की शादी में नहीं जाओगे तो आपकी शादी में कौन आएगा? अगर आप दूसरों के सामान को एक्सेप्ट नहीं करोगे तो आपका “मेक इन इंडिया” के बाराती सिर्फ अकेले अपने परिवार वाले ही होंगे| किसी भी चीज का बैन करना ऐसा लगता है कि हम प्रतिश्पर्धा को झेल नहीं पा रहे है|

ये भी ठीक उसी तरह है जैसे अमेरिका को किसी भी समस्या का सीधा हल दीखता है ड्रोन| अब चीजे उससे संभल नहीं पाती है तो बमबारी करना शुरू करता है चुकी उसको लगता है कि यही इसका हल है| ‘कुम्हारों’ को लेकर सेंटीमेंटल होंने वालों ने कुम्हारों के लिए क्या किया है? क्या कोई सरकारी रियायत मिलती है उन्हें? यहाँ तक कि उन्हें बाजार तक आने नहीं दिया जाता है| बाद बाकी जो है सो है|

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