जातिगत सियासत में फंसी रह गई आरक्षण

Dial down the FREE Subscription for such premium content on our YouTube channel. How to Add Subscribe Button on YouTube Videos (Subscribe Button PNGs)

मख्यधारा से विचलित

हाल के दिनों में जिस तरह से आरक्षण को लेकर जातिगत भूचाल सियासत में आ गई है वो कई नए प्रश्नों को तो जन्म दे ही रहा है साथ ही साथ आरक्षण का सतहीकरण करते-करते मंडल कमीशन के सतह पर पहुचने को भी मजबूर कर रहा है| सबसे महत्वपूर्ण बात है इस विषय को समझना कि आरक्षण किसके लिए बनाई गई थी, इसका मूल उद्देश्य क्या था, आज हम इसे किस स्तर पर देख रहे है और कौन लोग इसके हक़दार है, उन हक़दार लोगो तक इसकी पहुँच कैसी है|

इन प्रश्नों को बेहतर तरीके से जाने बगैर आरक्षण के ऊपर सवालिया निशान लगाना उचित नहीं होगा| इसका बेहतर तरीके से मूल्यांकन किए बगैर आर्थिक पैमानों पर आरक्षण को देखना कितना मुनासिब होगा| क्या आरक्षण को कल्याणकारी निति या गरीबी उन्मुल्यन निति के तौर पर देखना भी उचित है| क्या जातिगत पैमाना के अलावां कोई और पैमाना हो सकता है जो इस आरक्षण के उद्देश्य को पूरा करते दिख रहा हो| जातिगत सियासत ऐसे सैकड़ो प्रश्नों के बीच आरक्षण को झुलाता रह गया|

Decoding World Affairs Telegram Channel

अगर पूना पैक्ट के समझौते की ओर झाकने की कोशिश करेंगे तो पाएँगे कि आरक्षण वो माध्यम है जिससे जातिविहीन राष्ट्र की कल्पना की जा सके| इसका उद्देश्य था जातिविहीन राष्ट्र के रूप में, लेकिन राजनितिक दंगल में वोटों के ध्रुवीकरण के रूप में उपयोग होने की वजह से अपनी मुख्य धारा से पूरी तरह विचलित हो चूका है| इसके परिणाम स्वरुप हार्दिक पटेल जैसे लोग पैदा हो रहे है| हार्दिक जैसे लोगो को लगता है कि आरक्षण एक गरीबी उन्मुल्यन निति है एक कल्याणकारी निति है, जभी उन्होंने आर्थिक रूप से पिछड़े लोगो के लिए आरक्षण को हल के रूप में देखा  जबकी सच्चाई यह है कि आर्थिक रूप से पिछड़े लोगो के लिए आरक्षण नहीं सुनयोजित सुविधा की जरूरत होती है|

इसलिए आर्थिक रूप से पिछड़े लोगो को सरकार से अच्छी निति और सुविधा की मांग करनी चाहिए| सरकार को ऐसे मसलो पर अपनी बनाई हुई निति पर पुनर्विचार करनी चाहिए कि आखिर वो लोग ऐसी चीजो की मांग क्यों कर रहे है| उनकी मांग को अनदेखा करने के बजाय उनके लिए आरक्षण के अलावां कोई और हल ढूढने का प्रयास करनी चाहिए क्युकी हो सकता है कि पटेल समुदाय आर्थिक रूप से थोडा पिछड़ गया हो लेकिन सामाजिक रूप से आज भी बहूत सशक्त है, हार्दिक के कंधो पर बन्दुक उसका प्रमाण है|

मंडल कमीशन एक नई मोड़

आरक्षण की दिशा में मंडल कमीशन एक नए मोड़ के रूप में आया था| हालाँकि मंडल कमीशन की रूपरेखा जनता पार्टी के समय हो गई थी लेकिन जनता पार्टी उसे लागू कर पाती, उसके पहले ही वह टूट गई और चुनाव के बाद में इंदिरा गांधी सत्ता में आ गईं थी| कांग्रेस सरकार ऐसे में किसी तरह से आरक्षण के पक्ष में नहीं थी यहाँ तक कि उन दिनों इंदिरा गाँधी ने इसे बैशाखी के रूप में जिक्र भी किया था| लेकिन पिछडो के विकास का सहारा लेकर गैर कांग्रेसी वोट बैंक बनाने के चक्कर में वी.पी. सिंह ने चौ. देवीलाल से राजनितिक प्रतिस्पर्धा की वजह से जल्दीबाजी कर दी थी|

See also  भावुक होकर अपनी वास्तविक चिंताओं से ओझल होते लोग

चुकी वी. पी. सिंह जानते थे कि चौधरी देवीलाल का किसानों पर अच्छा प्रभाव है। उन्हें पता था कि यदि यह रैली हुई तो दिल्ली का प्रशासन डोल जाएगा। इसलिए उस रैली का मुक़ाबला करने के लिए वी. पी. सिंह ने मंडल कमीशन की रिपोर्ट संसद में पेश कर दी| कुछ नेताओ ने और समय देकर इसपर पुनर्विचार करने की मांग की थी| लेकिन शरद यादव के पुरजोर समर्थन और रामविलास पासवान की चर्चा की शुरुआत के आगे वी.पी. सिंह ने एक की नही मानी| इसलिए पिछड़ों के उद्देश्य का मंडलीकरण के बजाय देश की राजनीति का मंडलीकरण होना सही नहीं था|

इन्ही कारणों से जातिविहीन राष्ट्र की कल्पना की बजाय लेकिन आज सिर्फ वोट बैंक मात्र बन कर रह गई है| हो सकता था कि मंडल के आधार पर होता तो मंडलीकरण ठीक होता, लेकिन मंडलीकरण दूसरी तरफ चला गया. इसके दो खास वजह थे| पहला, सवर्ण और अन्य पिछड़ा वर्ग के बीच नई समस्याएँ पैदा हो गईं थी। अन्य पिछड़ा वर्ग को नौकरियों में 27 प्रतिशत का आरक्षण प्राप्त हो रहा था जबकि सवर्णों के लिए 50.5 प्रतिशत ही नौकरी के अवसर रह गये थे|

जनसख्या के आधार पर सवर्णों के बीच प्रतिस्पर्धा का बढ़ना लाजमी था क्योंकि एस. सी. और एस. टी. के लिए 22.5 प्रतिशत पहले से ही आरक्षण था| दूसरा, आजादी के बाद से 1990 तक उत्तरप्रदेश और बिहार में एक मध्यम वर्ग उभर कर सामने आया| जो सत्ता में भागीदारी करते जनता पार्टी का गठन भी कर चूका था| सत्ता में भागीदारी की इस इच्छा की वजह से जो मंडल कमीशन की बुनियादी तब्दीली की बातें थीं वो कहीं और गुम हो गईं| इसके परिणाम स्वरुप मंडल कमीशन अपनी बनाई गई बुनियादी बातों से दूर होता गया और जातिविहीन राष्ट्र के बजाय जातिगत खांचो में बटता गया|

चुनातियों से भरा कोई और विकल्प

सत्यमेव जयते में एक ऐसा उदहारण मिला जिसमे आरक्षण के सहारे आईएएस की कुर्सी तक पंहुचे व्यक्ति को, उच्च वर्ग से संबध रखने वाले अपने चपरासी द्वारा की गई भेदभाव से परेशान होकर इस्तीफा देने को मजबूर होना पड़ जाता है| यहाँ आर्थिक रूप से संपन्न होने के बावजूद भी सामाजिक सरोकार के आगे आईएएस अधिकारी को हारना पड़ गया| इसी सामाजिक असमानता को ख़त्म करके ही जातिविहीन राष्ट्र की परिकल्पना आरक्षण का मुख्य उद्देश्य था |

See also  क्या विकास के पैमाने के लिए जीडीपी पर्याप्त है ?

कई ऐसे उदहारण मिलते है जो जातिगत आरक्षण वाले मसले को ध्वस्त करते नजर आते है| तब प्रश्न खड़े होते है कि उन उद्देश्यों को पूरा करने के लिए और क्या पैमाना हो सकता है? कई लोगो का मानना होता है आर्थिक आधार पर दिया जा सकता है| आर्थिक आधार जातिगत आधार से भी खतरनाक साबित हो सकता है| दुसरे शब्दों में कहूँ, जो भी सही दिशा में थोडा बहूत प्रभाव दिख रहा है वो सीधे 180 अंश पर घूम कर अभिशाप साबित हो सकता है| इसके पीछे दो कारण देना चाहूँगा|

पहला, आर्थिक आधार पर आज तक जितनी नीतियाँ बनी है उनकी सफलता की एफिशिएंसी हमसे छुपी नहीं है| अभी तक गरीबी रेखा किस रेखा को माना जाए इसका भी बहूत पारदर्शी पैमाना नहीं है| कई बार ग्रामीण इलाको में ऐसे भी दिक्कते आई है कि जिनके पास गरीबी निर्धारण करने वाली कार्ड (BPL) होनी चाहिए वो नहीं होती है और जो लोग आर्थिक रूप से समृद्ध है उनके पास बनी होती है| ऐसे में सोचिए कि अगर आर्थिक आधार पर आरक्षण दे दिया गया तो प्रयोगशाला में उल्टी प्रतिक्रिया होनी लाजमी है| इससे आर्थिक असमानता कम होने के बजाय और भी गहिराती चली जाएगी| धनो का केन्द्रीकरण उन लोगो के हाथो में होता चला जाएगा जो आर्थिक और सामाजिक दोनों ही रूपों से समृद्ध है|

दूसरा, कई मर्तबा सुनने में आया है कि लोग कहते है कि गरीबी की कोई जाती नहीं होती| अगर गरीबी की कोई जाती नहीं होती तो ऐसा क्यों होता है कि जाती के पैमाने पर जैसे जैसे निचे जाते है वैसे वैसे गरीबी की झलक मिलने लगती है| जाती और गरीबी से कोई न कोई संबंध तो होगा | अगर जाती के बजाय आर्थिक रूप के तय किया गया तो लोगों में अपने आप को गरीब प्रदर्शित करने की दौड़ और तेज हो जाएगी| कम से कम जाती के क्षेत्र में अपने आप को पिछड़ी जाती साबित करने के लिए ठोस कारणों की तो जरूरत पड़ती है लेकिन आर्थिक क्षेत्र में अपने आप को पिछड़ा साबित करने के लिए किसी खास वजह की जरूरत नहीं पड़ेगी| अगर पड़ी भी तो बड़ा ही लचीला होगा, मतलब ये कि पिछड़ा साबित करने के अपेक्षाकृत अपने आप को गरीब प्रदर्शित करना ज्यादा आसान है |

See also  विवादों में उलझी कावेरी नदी

मूल्यांकन और संसोधन ही उचित उपाय

आरक्षण का समयानुसार मूल्यांकन नहीं किया गया| इसका मूल्यांकन बेहद जरूरी सिर्फ इसलिए नहीं है कि हमें प्रग्राम के प्रोग्रेस के बारे में पता चलेगा, बल्कि इसलिए भी है कि क्या सुधार लाया जा सकता है ताकि इसके उद्देश्य को आसानी से पूरा किया जा सके| चुकी दशको से सिर्फ जातियों को जोड़ा ही गया है हटाया किसी भी जाती को नहीं गया| इसलिए अस्थिरता की स्तिथि बन रही है जिसमे सभी जातियां अपने आप को पिछड़ा साबित करने के होड़ में लगी हुई है|

सरकार का सिर्फ एक आरक्षण निति से बहूत सारे लक्ष्यों का साधना कही न कही बेईमानी होगी| इसलिए आरक्षण जिस लिए बनाई गई थी सिर्फ उस लक्ष्य के आधार पर छोड़ दिया गया होता तो शायद हमने थोड़ी ज्यादा सफलता पा ली होती| ये कहना भी उचित नहीं होगा कि हमने कुछ हासिल नहीं किया है| किया है मगर रफ़्तार धीमी रही है| पूर्वजो ने जितनी अपेक्षा की थी उतनी नहीं हो पाई लेकिन काफी कुछ बदलाव आया है|

अभी भी बहूत सारी चुनौतियाँ है जिनका मूल्यांकन करके हल निकलना बेहद जरूरी है | जब भी घर बनाते है तो हम ये निश्चित करते है कि कहाँ खिडकीयां लगानी है और कहाँ दरवाजे जिससे आसानी से घर में रह सके| ठीक उसी प्रकार हमें इस बात का ध्यान रखना है कि आरक्षण रुपी घर में कहाँ और किस जगह इस सुविधा को देनी चाहिए|

मूल रूप से ग्राउंड लेवल पर ज्यादा जोर देने की जरूरत है बजाय सिर्फ ऊपर के ताकी जो सीटें खाली रह जाती है तमाम क्षेत्रो में, उस चुनौती पर जीत हासिल की जा सके| मुझे लगता है ऐसे ही संसोधनो की आवश्यकता है जिससे इसके लक्ष्य को पाया जा सके| आरक्षण का मूल्यांकन एक सिरे से करना बेहद जरूरी है नहीं तो इस समस्या से निकलने के बजाय तमाम जातियों के बीच अपने आप को पिछड़ा साबित करने की होड़ दिनों दिन बढती जाएगी और हार्दिक पैदा होते रहेंगे|

Spread the love

Support us

Hard work should be paid. It is free for all. Those who could not pay for the content can avail quality services free of cost. But those who have the ability to pay for the quality content he/she is receiving should pay as per his/her convenience. Team DWA will be highly thankful for your support.

 

Be the first to review “जातिगत सियासत में फंसी रह गई आरक्षण”

Blog content

There are no reviews yet.

Decoding World Affairs Telegram Channel
error: Alert: Content is protected !!