गरीब लोगों का अमीर देश बनता भारत

Dial down the FREE Subscription for such premium content on our YouTube channel. How to Add Subscribe Button on YouTube Videos (Subscribe Button PNGs)

कहा यह जाता है कि इंग्लैंड में शुरू हुई पहली औद्योगिक क्रांति के दौरान कोयले और स्टीम की शक्ति का इस्तेमाल किया गया और इस क्रांति के कारण शक्ति का केंद्र यूरोप की तरफ झुक रहा| इतिहास से यह भी ज्ञात होता है कि इससे पहले 17वीं शताब्दी तक भारत और चीन को सबसे धनी देशों में गिना जाता था| दूसरी औद्योगिक क्रांति के दौरान बिजली और ईंधन का इस्तेमाल हुआ| अंतर इस बार सिर्फ इतना था कि शक्ति का केंद्र यूरोप से हटा और अमेरिका की तरफ चला गया| तीसरी औद्योगिक क्रांति इलेक्ट्रॉनिक्स और इंफारमेशन टेक्नोलॉजी के प्रयोग से अमेरिका और जापान का भरपूर फायदा हुआ| चीन को भी इस क्रांति से फायदा मिला और उसने उत्पादन में अपना वर्चस्व बनाए रखा| लेकिन अब यह उम्मीद की जाती है कि चौथी औद्योगिक क्रांति भारत के हक में होगी और इस क्रांति के मुख्य स्तंभ डाटा कनेक्टिविटी, कंप्यूटिंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हैं| यह हो सकता है कि भविष्य में सुपर इंटेलिजेंस के माध्यम से भारत पूरी दुनिया को इंटेलिजेंट सर्विसेस मुहैया करा सकता है| लेकिन कुछ सवाल है जो तब से लेकर अब तक लटके पड़े है जिससे गरीब लोगों का अमीर भारत बन रहा है|

सवाल संसाधनों और उसके स्वामित्व की है| राजनितिक और प्रशासनिक ढांचे में बदलाव हुए| राजनितिक विचार लेफ्ट से राईट हो गया| व्यवस्था राजशाही से औपनिवेशिक होते हुए लोंकतान्त्रिक हो गया| लेकिन आज भी लोगों के बीच आर्थिक और सामाजिक असमानताएँ कम नहीं हो पाई है| ये सवाल निश्चित रूप से डरावने है| यह इसलिए डरावने है क्युकी इसपर वृहत पैमाने पर कभी चर्चा नहीं हुई है| उससे भी बड़ा दुर्भाग्य की बात है कि चर्चा के लिए कोई दिलचस्पी नहीं रखना चाहता है| राजनितिक पार्टियों से लेकर मीडिया और सिविल सोसाइटी सब के सब चुप है| एक सत्य यह भी है 100% समानता संभव नहीं है| लेकिन इसका मतलब यह बिलकुल नहीं है कि एक खा-खा के मरे और दूसरा भूखे मरे| असमानता कम से कम हो इसके प्रयास जरूर किया जा सकता है| अभी इसी नए साल पर “वर्ल्ड इनेकुँलिटी लैब” ने ‘विश्व असमानता रिपोर्ट’ जारी की है जिसका आकड़ा भारत के लिए बहुत चिंताजनक है| लेकिन हमारी मीडिया शायद इसमें ज्यादा दिलचस्पी नहीं रखना चाहती है|

Decoding World Affairs Telegram Channel

ठीक ऐसे ही दुनिया के तमाम देशों में नीतियों के लिए ‘सोशल ऑडिटिंग’ जैसी चीजों से बनी हुई नीतियों को जवाबदेही तय करने की बातें होती रही है लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि भारत में ना तो मीडिया इससे बहुत ज्यादा सरोकार रखना चाहती है और नाही राजनितिक तंत्र| तमाम नौजवानों के वर्क स्टेटस में सोशल वर्क मिल जाएगा लेकिन भारत में सिविल सोसाइटी नाम की चीजें अभी बहुत दूर है| मुझे लगता है कि चर्चा सभी चीजों पर होनी चाहिए चाहे देश की कोई निति हो या किसी समिति के रिपोर्ट हो, या राजनितिक व्यवस्था हो या फिर न्यायिक व्यवस्था क्यों न हो| किसी भी मुद्दे को देश या जन भावना से जोड़कर उसे ढका नहीं जाना चाहिए| आज की स्तिथि यह है कि अगर किसी निति पर चर्चा करने की बात करने लगो तो बहुत जल्द ही तमाम तरह से आरोप लगा किसी राजनितिक विचारधारा से जोड़ दिया है| आपकी मत सत्ता के सामानांतर है तो सत्ता वाली राजनितिक पार्टी से जोड़ दिया जाता है वही मत विपक्ष में हो तो विपक्ष में बैठी राजनितिक दल के साथ जोड़ा और समझा जाता है|

See also  भेदभाव के विभिन्न आयाम और उसकी सामाजिक प्रासंगिकता

मुद्दे की बात यह है कि यह जो महत्वपूर्ण रिपोट पूरी दुनिया की समक्ष आई है वो 1980 से 2016 के बीच 36 वर्षों के वैश्विक आंकड़ों को आधार बनाकर तैयार किया गया है| यह ना सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय है| इसके अनुसार विश्व के 0.1% लोगों के पास दुनिया की कुल दौलत का 13% हिस्सा है| पिछले 36 वर्षों में जो नई संपतियां सृजत की गई है उनमें से भी सिर्फ 27% पर सिर्फ 1% अमीरों का ही अधिकार है| असमानता की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आय की सर्वोच्च श्रेणी में गिने जाने वाले शीर्ष 1% लोगों की कुल संख्या महज 7.5 करोड़ है जबकी सबसे निचे के 50% लोगों की कुल संख्या 3.7 अरब से भी ज्यादा है| अस्सी के दशक के बाद खड़ा किया ‘आर्थिक सुधारों और आर्थिक नीतियों के मॉडल’ जिसे पूरी दुनिया में शोर मचा-मचा के हल्ला किया गया था कि यह लोगों को रोजगार देगा और असमानता कम करेगा| यह रिपोर्ट पूंजीपतियों द्वारा खड़ा किया गया रेत के मॉडल का भी मटियामेट करती है|

यह रिपोर्ट भारत की दशा की भी अच्छे से चित्रित करती है| इसके अनुसार भारत के शीर्ष 1% अमीरों के पास राष्ट्रीय आय की 22% हिस्सेदारी है और शीर्ष 10% अमीरों के पास 56% हिस्सेदारी है| इसका मतलब यह कि बाक़ी के 90% आबादी 10% अमीरों से भी कम में अपना गुजर बसर करती है| देश के शीर्ष 0.1% सबसे अमीर लोगों की कुल सम्पदा बढ़कर निचले 50% लोगों की कुल सम्पदा से अधिक हो गई है| 1980 के दशक से भारतीय अर्थव्यवस्था में भारी बदलाव के बाद असमानता काफी बढ़ गई है| आगे यह रिपोर्ट कहती है कि भारत में असमानता की वर्तमान स्तिथि 1947 में आजादी के बड के तिन दशकों की स्तिथि के बिलकुल विपरीत है| स्वतंत्रता के बाद के तीन दशकों में आय में असमानता काफी कम हो गई थी और निचे के 50% लोगों की आमदनी राष्ट्रिय औसत से अधिक बढ़ी थी| ऐसे में यह कैसे समझा जाए कि नेहरु की निति गलत थी और आज के भाषण वाली निति अक्षरशः सही है| वर्ष 2016 में भारत में आय असमानता का स्तर उप-सहारा अफ्रीका और ब्राजील के स्तर जैसा था जिसे इमर्जिंग पॉवर और विश्व शक्तिशाली देशों में गिना और समझा जा रहा है|

See also  Research and Analysis Wing (R&AW): धर्मो रक्षति रक्षितः

इस रिपोर्ट से मैंने यही समझा है कि आजादी के बाद भारत की गवर्नेंस जो थी वो बहुतायत लोगों वाली समाजवादी निति पर थी| देश की स्तिथि बहुत अच्छी भले नहीं थी लेकिन रिलेटिवली देश के लोगों की स्तिथि काफी अच्छी थी| तमाम चमचमाते मॉडल्स और नई आर्थिक निति आदि ने यह वादा किया वो लोगों को रोजगार उपलब्ध करवाएगी और आर्थिक रूप से संपन्न कराने में मदद करेगी| हाल के आए आकड़ों ने झूठे वादों का न सिर्फ पर्दाफास किया बल्कि पूंजीवादी नीतियों के समक्ष कठिन सवाल भी खड़ा कर दिया है| पूंजीवादियों का लक्ष्य कभी समाज कल्याण रहा ही नहीं है| उसे सिर्फ और सिर्फ मुनाफे से मतलब होता है| वो किसी भी कीमत पर मुनाफे कमाना चाहती है| उसके बाईप्रोडक्ट में यदि थोड़े बहुत रोजगार पैदा हो भी जाते है तो उसे सीना तान कर अपने उपलब्धियों में जोड़ देती है| कंपनियां मुनाफे के तर्ज पर ऑटोमेशन लेकर आती है और मजदूरों को मशीनों के रिप्लेस करना शुरू कर देती है| पहले जो काम मजदूर अपने हाथों से करते से जिसका उन्हें मेहनताना मिलता था वो काम अब सिर्फ मशीनों से होते है|

जो काम मशीनों से होते है उसकी निगरानी करने के लिए कुछ ही लोग होते है जिसके लिए अच्छे स्तर की शिक्षा की जरूरत होती है| दुसरे शब्दों में कहूँ तो नवउदारवादी निति ने मजदूरों को फैक्ट्री से लगभग उठा फेका है| थोड़े बहुत जो बचे है वो आने वाले समय में बाहर हो जाएंगे| उत्तरप्रदेश का एक शहर फिरोजाबाद था| यह शहर चूड़ियों के इंडस्ट्रीज के लिए बहुत मशहूर रहा था लेकिन आज स्तिथि ऐसी है कि वहाँ लगभग छोटे छोटे लघु उद्योग थे वो सब के सब बंद हो चले है| चाइनीज उत्पादों के आगे उनकी भाव ख़त्म हो चली है| इसके लिए यही नवउदारवादी निति ही जिम्मेदार है जिसने कम दाम में सामान मुहैया करवाकर घरेलु उत्पादों को लगभग समाप्त करने लगी है| हमारी सरकारें नवउदार के नाम प खामोश रही है| वहाँ बस से रहे ज्यादातर लोग मुस्लिम है जिसने लोगों में असंतोष पैदा करता है जिसका परिणाम हमें समाज में धार्मिक टकराव के रूप में दिखता है| यही हाल बनारस का है| राज्यसभा की एक रिपोर्ट के मुताबिक चाइना की कंपनी यही से धागे खरीद कर लेकर जाती है और बनारसी साड़ी बनाकर भारत में डंप करती है| दिखने में वैसा ही होता है जो बनारसी साड़ी जैसा हो लेकिन वास्तिक के मुकाबले बहुत कम दाम में बिकता है| बनारस का यह मामला थोडा बहुत औपनिवेशिक आर्थिक निति से मिलता जुलता सा दिखता है|

See also  कलाम सर को मेरा आखिरी सलाम

नवउदारवाद और वैश्विक निति की वजह से सरकारें खामोश रहती है| यही नहीं विश्व व्यापर में तय निति के अनुसार सरकारें दुसरे देशों को रोक भी नहीं सकती| यहाँ तक कि विश्व के बाक़ी के देश यह तय करते है कि हम किसानों को कितना सब्सिडी दे| विकसित देश यह तय करता है कि विकासशील देश अपनी उपज का 10% अपने किसानों को सब्सिडी दे सकता है| और विकसित देश अपनी उपज का 5% अपने किसानों को सब्सिडी दे सकता है| दुर्भाग्य की बात यह है कि उनका 5% हमारे 10% से बहुत ही ज्यादा है| इसके बाद भी हमें खामोश रहना पड़ता है| पीस क्लोज ने थोड़ी राहत जरूर दी लेकिन समस्याएँ ख़त्म नहीं की| इसी से समझा जा सकता है हम आजाद तो है लेकिन इसके बाद भी वैश्विक प्लेटफार्म पर गुलामी जैसे दीखते है| किसी को हमारे देश के अंदर घुस व्यापार कर यहाँ के लोगों की बनी बनाई व्यवस्था को चौपट करने में अपनी वाहवाही समझते है| इसी का परिणाम है कि हम एक बड़े पैमाने पर नौजवान जाती के नाम प पुणे और महाराष्ट्र में दिखते है| इसी का परिणाम है कि अपने नौजवानों को अपनी हक़ की बात करने के बजाए राजनितिक पार्टियों के झंडे ढ़ोते देखते है|

पहले विदेशी निवेश थोडा सा इस लालच से बढाया जाता है कि कुछ डॉलर आएगा| पहले 25%, फिर शर्तों के साथ 50% और अब लूटने की पूरी छुट मिल चुकी है| आर्थिक विकास के नाम पर FDI 100% है| भले यहाँ की दुकाने बंद हो जाए या लोग बेरोजगार हो जाए इससे क्या फर्क पड़ता है क्युकी आर्थिक डेटा ही तो हमारे देश में सर्वेसर्वा होता है| इसके बाद भारी आयात वाला अपना देश भारत प्रोडक्ट बना दुसरे देशों में बेचने के सपने से अपनी करेंसी को निचे करता है| इसका उल्टा असर यह होता है कि बोझ बढ़ता चला जाता है| जिसे अर्थव्यवस्था के लहिजे में ‘फिस्कल डेफिसिट’ कहते है| तेल के साथ-साथ चीजें और महँगी इम्पोर्ट होनी शुरू हो जाती है| महंगाई बढ़ती है| घरेलु उत्पाद भी तेल की वजह से महंगे होते चले जाते है| मशीनों के आगमन से रोजगार तो घटता ही है साथ ही साथ लोगों की आमदनी भी घटती चली जाती है| लेकिन आर्थिक डेटा ‘झंडा उचा रहे हमारा’ जैसे होता है और धीरे-धीरे हमारा देश कब कब में गरीब लोगों का आमिर देश बन गया पता ही नहीं चला|

Spread the love

Support us

Hard work should be paid. It is free for all. Those who could not pay for the content can avail quality services free of cost. But those who have the ability to pay for the quality content he/she is receiving should pay as per his/her convenience. Team DWA will be highly thankful for your support.

 

Be the first to review “गरीब लोगों का अमीर देश बनता भारत”

Blog content

There are no reviews yet.

Decoding World Affairs Telegram Channel
error: Alert: Content is protected !!