राजनितिक पार्टीन के बीच सैंडविच बनत आर.बी.आई. गवर्नर (भोजपुरी)

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जब भी लोकसभा के चुनाव होला ओहमे दू गो गुट बनेला| पहिला पक्ष जवन सत्ता के हक़दार रहेला आ दूसरा विपक्ष जवन सत्ता पक्ष के निरंकुश होखे से बचावेला| हमेशा से आर.बी.आई. (रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया) के गवर्नर दुनो पार्टीन के बीच सैंडविच बनत रहल बाडे| चुकी सितम्बर में रघुराम राजन के कार्यकाल ख़त्म भईल ह| अगस्त के अंतिम हप्ता तकले एक तरह से सरकार आ आर.बी.आई. के बीच खीच तान चलत रहल ह| सोशल मीडिया से लेके प्रिंट मीडिया तक लोग अपना अपना अनुमान से आर.बी.आई के नया गवर्नर के कयास लगावत रहल ह| हर मीडिया चैनल अपना अपना अनुमान से लिस्ट बनाके कयास लगावत रहे|

कोई एस.बी.आई. (स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया) के चेयर मैनेजिंग डायरेक्टर, अरुन्धाती भट्टाचार्य के अनुमान लगावत रहे आ कोई राजन के ही आगे दोबारा से कार्यकाल ग्रहण करे के रूप में देखत रहे| ओह लिस्ट में विजय केलकर (UPA के समय फाइनेंस कमीशन के अध्यक्ष), अरविन्द सुभ्रमनियम (वर्तमान में वित्त मंत्रालय में प्रमुख आर्थिक सलाहकार), राकेश मोहन, अशोक चावला आदि अइसन कव गो नाम शामिल रहे| एह लिस्ट में एगो अउरी शख्स, उर्जित पटेल के नाम शामिल रहे, जे बाद में जाके बनले|

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देश में राजनितिक प्रतिद्वंदिता के वजह से एगो पैटर्न बन चुकल बा| जब भी सरकार बदलेला तब-तब पुरान चीज के झार-पोछ के नया बनावे के कोशिश कईल जाला| इ घटना भी ठीक ओकरे लेखा बा जईसे आजू-काल इंजीनियरिंग आ मेडिकल कॉलेज में रिसर्चर लोग पुरान रिसर्च में २०-२५ प्रतिशत मॉडिफिकेशन करके आपन पेपर पब्लिश करवावे के कोशिश करेला| ओसही सरकार बनेला त निति के भी नाम बदलत रहेला जबकी पूरा फंक्शन आ संरचना बिल्कुल उहे रहेला|

ओही क्रम में आर.बी.आई. गवर्नर के बदलल जाला| एकरा पीछे सोच इ मानल जाला कि विपक्षी सरकार के समय वाला गवर्नर तात्कालिक सरकार के साथे भेदभाव करी| चुकी हतना कुछ होखला के बादो, मनपसंद दूल्हा खोजला के बादो अन-बन चलत रहेला आ चलत रही| इ एगो सतत प्रक्रिया ह| इहे अन-बन एह बात के संकेत देला कि सबकुछ ठीक चल रहल बा| हमेशा विपक्षी सरकार तात्कालिक सरकार द्वारा चुनल गईल गवर्नर में छेव मारत रहेला|

बीजेपी के मास्टर स्ट्रोक

आर.बी.आई. के नयका गवर्नर बने वाला लिस्ट में सबसे टॉप प रही अरुंधति भट्टाचार्य| लेकिन हमरा लेखा बहुत लोग के एह बात के डर रहे कि अगर आर.बी.आई. के गवर्नर बदलत बाड़े त ओह समिति के संरचना के का होई जवना के रघुराम राजन, उर्जित पटेल के अध्यक्षता में ‘उर्जित पटेल समिति’ के अंतर्गत बनईले रहन| रघुराम राजन अपना कार्यकाल में तीन गो मुख्य समिति बनईले रहन| पहिला ‘बिमल जलान समिति’ जेकर उद्देश्य रहे नया बैंकन के लाइसेंस देवेके, दूसरा ‘नचिकेत मोर समिति’ जेकर उद्देश्य रहे फाइनेंसियल इन्क्लूजन वाला एरिया में जांच पड़ताल करके दुरुस्त करके आ तीसरा समिति ‘उर्जित पटेल समिति’ रहे जवना के उद्देश्य रहे मोनेटरी पालिसी प जांच करेके आ समस्यान के हल ढूंढेके| ‘उर्जित पटेल समिति’ वाला ड्राइव बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण एह से रहे काहे कि ओकरा में बहुत सारा नया-नया बदलाव कईल गईल रहे|

ओह समिति के खाका 2018 तक के तईयार कईल गईल रहे कि कब का, कतना आ कईसे करे के बा? इहाँ तक कि महंगाई के समय सारणी के तहत टारगेट कईल गईल बा| चुकी सामान्यतः होला का कि आर.बी.आई. के गवर्नर के तीन साल के कार्यकाल मिलेला आ दू साल बढ़ा देवल जाला| एह से टारगेट भी ओही मुताबिक बनल रहे जवना में इ मान के चलल गईल रहे कि बाकी के गवर्नर लेखा इनकरो कार्यकाल बढ़ी| गवर्नर लोगन के अन्दर भी प्रतिस्पर्धा चलत रहेला| एह से इ बहुत ही स्वाभाविक बात रहे कि अगर आर.बी.आई. के गवर्नर बदलिहे त नीतिगत बदलाव लाजमी बा| लेकिन बीजेपी मास्टर स्ट्रोक खेललस आ उर्जित पटेल के भारतीय रिजर्व बैंक के 24वां गवर्नर के रूप में 5 सितम्बर 2016 से तीन बारिस खातिर नियुक्त कईलस, जवना से निति जेव के तेव बाच गईल आ गवर्नर भी बदला गईल|

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राजनितिक द्वंद

वईसे त रघुराम राजन के कार्यकाल में वृद्धि ना होखे के खिलाफ अभियान मई महिना से ही सुब्रमण्यम स्वामी शुरू कर देले रहन| सुब्रमण्यम स्वामी, रघुराम राजन के भारतीय होखला प शक करत रहले आ अमेरिका खातिर काम करे के आरोप तक लगावे से ना चुकले| सुब्रमण्यम स्वामी इहाँ तक कहले रहन कि आर.बी.आई. खातिर एगो राष्ट्रवादी गवर्नर के जरूरत बा| अब विपक्ष के नेता लोग सुब्रमनियम स्वामी से उर्जित पटेल के राष्ट्रीयता के बारे में चर्चा कईल चाहत बा| बीजेपी के सरकार बनला के कुछ महिना बाद रघुराम राजन एगो सार्वजनिक कार्यक्रम में मेक इन इंडिया के चीन के विकास मॉडल से प्रेरित बतावत भारत में एकर सफलता पर संदेह कईला आ ‘मेक इन इंडिया’ के बजाय ‘मेक फार इंडिया’ के बेहतर बतावे वाला बयान के चलते बीजेपी बहुत नाराज रहे| एहसे उनकर कार्यकाल के 4 सितम्बर से आगे बढे वाला सारा संभावना ओही दिन समाप्त होखे लागल रहे|

रघुराम राजन पूंजीवाद के ख़िलाफ़ जवन लड़ाई लड़ल रहन उ बहुत लोगन के पसन ना आइल रहे| एहमे बड़-बड़ बैंकन के अधिकारी, कॉरपोरेट घरानन के मालिक शामिल रहन अउरी कुछ राजनेता लोग भी शामिल रहले| सरकार के रघुराम राजन से अतना अधिक नाराजगी रहे कि नयका गवर्नर के चयन खातिर बनावल गईल समिति के अध्यक्ष परम्परानुसार रिजर्व बैंक के गवर्नर के बनावे के बजाय केबिनेट सेक्रेटरी पीके सिन्हा के बनावल गईल रहे| इ समिति अपना स्तर प छानबीन करके अन्तिम रूप से गवर्नर पद खातिर पैनल में तीन गो नाव प्रस्तावित कईलस|

पहिला नाम, वर्तमान में वित्त मंत्रालय में प्रमुख आर्थिक सलाहकार डॉ. अरविन्द सुब्रमण्यम, दूसरा नाम  पूर्व प्रमुख आर्थिक सलाहकार डॉ. कौशिक बसु अउरी तीसरा नाम रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर डॉ. उर्जित पटेल| एह तीनो में से, प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी उर्जित पटेल के नाम पर आपन अंतिम सहमती देले| दूसरा तरफ कुछ जानकार लोगन के इहो कहना बा कि जनवरी 2016 में जब उर्जित पटेल के कार्यकाल में एक साल के वृद्धि कईल गईल रहे तबे से एगो संकेत मिले लागल रहे कि आगे आवे वाला समय में उर्जित पटेल के बड जिम्मेदारी देवल जा सकत बा|

उर्जित पटेल के सामने चुनौती

उर्जित पटेल के सामने सबसे बड चुनौती बा ब्याज दर प नियंत्रण राखल| हालाँकि इ बात भी सही बा कि ब्याज दर के नियंत्रण करे, घटावे आ बढ़ावे के फैसला अब अकेले गवर्नर ना करेला बल्कि छः सदस्य लोगन के साथे मिलके करेला| लेकिन एकरा बावजूद भी लोग कप्तान के ही केन्द्रीय खेलाडी के रूप में देखेला| अमेरिका के फेड रेट में होखे वाला बदलाव भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकेला| एह से रघुराम राजन लेखा सारा क्षेत्र के एक साथे कवर करके चले के पड़ी अउरी रेपो रेट ओकरा अनुसार नियंत्रित करे के पड़ी|

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यूनाइटेड स्टेट अउरी यूरोपियन यूनियन के द्वारा कईल गईल ‘क्वांटिटेटिव इजीन्ग’ अउरी ‘फेड टेपेरिंग’ जईसन चीज से लडे खातिर एगो बढ़िया स्तर प फोरेक्स रिज़र्व के भी जरूरत पड़ी| पश्चिमी एशियाई देशन के राजनीती अस्थिर बा| कब केने करवट लेलिही कुछो पता नइखे| एह घरी कच्चा तेल के कीमत बहुत निचे बा आ देश के चालू खाता घाटा (Current Account Deficit) नियंत्रण में बा| अगर तेल आपन वापस लय में आई तब हालत अउर बिगड़ सकत बा| एह सब से महंगाई बढे के भी आसार बढ़ सकत बा|

एकरा अलावां उर्जित पटेल लगे एगो अउरी बड समस्या इ बा कि भारत के सरकारी बैंकन के लाखो करोडो रोपया के कर्ज डूब गईल बा| मौजूदा वक्त में डूबत कर्ज के कूल हिस्सेदारी के लगभग 8 प्रतिशत तक पहुचे लेले बा| अगिला साल अउरी बढे के अनुमान बा| एह से उर्जित पटेल के एह पर विचार करके रोके के प्रयास करे के चाही ना त आवे वाला समय में एगो बड़हन चुनौती के रूप सामने आ खड़ा होई| रघुराम राजन एनपीए यानी नॉन-परफॉर्मिंग ऐसेट के  ख़त्म करे के बात करत रहन| एनपीए मतलब अइसन ऋण जवना के लोग बैंक से ले त लेत रहन लेकिन वापस करे के नामे ना लेत रहन|

अइसन ऋण बड़-बड़ पूंजीपति, बड़-बड़ कॉरपोरेट घराने के मालिक अउरी बड-बड कंपनी लेवे ली सन| उदहारण के रूप में विजय माल्या के कंपनी| रघुराम राजन सारा बैंकन के कहले रहन कि सब लोग आप-आपन बैलेंस शीट, आपन-आपन खाता साफ़ करस लोग| इ बात बड़-बड़ पूंजीपति अउरी बड़-बड़ कॉरपोरेट घरानन के मालिकन के बिल्कुल पसंद ना आईल रहे, जवना प लोग उंगली उठवले रहे| एह सब जगहा प अगर राजनितिक चीज उर्जित पटेल के प्रभावित करत बा त आवे वाला समय में बड़हन समस्या पैदा कर सकत बा|

राजन के अधुरा सपना उर्जित करिहे पूरा

राजन के कार्यकाल के पाहिले आर.बी.आई. बहुत सारा इंडिकेटर जईसे ग्रोथ, रोजगार, महंगाई, एक्सचेंज रेट के टारगेट करत रहे| लेकिन राजन एके चीज प बढ़िया से फोकस कईले महंगाई| चुकी उनकर मानना रहे कि बाद बाक़ी सारा फैक्टर एक दूसरा से जुडल बा| उनकर सबसे बड़ा चिंता एह बात के रहे G20 के सारा देशंन में सबसे ज्यादा महंगाई भारत के ही रहे| उर्जित पटेल, रघुराम राजन के लक्ष्य के कतना आगे तक ले जात बाड़े इ आवे वाला समय बताई|

महंगाई के टारगेट करे खातिर पाहिले WPI(Wholesale Price Index) के लेके चलल जात रहे लेकिन रघुराम राजन के मानना रहे कि CPI(Consumer Price Index) के टारगेट करके चलल जाई त ज्यादा आसानी से लक्ष्य के पावल जा सकत बा| एकरा पीछे मुख्य कारन इ रहे कि WPI में फ़ूड आ तेल आदि ना जोड़ल जात रहे| एह से उ वाला हिस्सा के जोड़ घटाव ना हो पावत रहे| लेकिन सीपीआई के तिन लेवल प बढ़िया से वर्णन कईल बा| शहरी, ग्रामीण आ शहरी अउरी ग्रामीण दुनो के मिलाके|

रघुराम राजन के सबसे ख़ास बात इ रहे ‘उर्जित पटेल समिति’ में बहुत सारा नया नया स्टेप के हरा झड़ी बहुत जल्दी ही दे देले रहन| चुकी उर्जित पटेल बड़ा पारदर्शिता के साथे आपन सुझाव रघुराम राजन के समक्ष रखले रहे| ओह में चार गो महत्वपूर्ण बात रहे| पहिला, लक्ष्य सीपीआई के 4% लावे के रहे ±2% के उतराव चढाव के साथे| एकरा खातिर समय निर्धारित भी कईल गईल रहे| हर १२ महिना प 2-2 % कम होत लक्ष्य 4% के हासिल करे के बा| दूसरा कि एकरा खातिर कवन टूल उपयोग कईल जाई?

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‘उर्जित पटेल समिति’ रेपो रेट के टूल के रूप में सुझाव देले रहे| तीसरा बात इ रहे कि एकरा खातिर स्ट्रेटेजी का होखे के चाही? ‘उर्जित पटेल समिति’ इहे सुझाव देलस कि रेपो रेट हमेशा सीपीआई से ज्यादा होखे के चाही| शुरुआत में रेपो 8% के आस-पास रहे अउरी सीपीआई 11% के आस पास| लेकिन फिलहाल के स्तिथि इ बा कि रेपो रेट उहे 8% बा अउरी सीपीआई घट के 6% के आस पास आ पहुचल बा जवन की अच्छा चीज बा| कुल मिला के कहल जा सकत बा कि रेपो अउरी सीपीआई के अंतर हमेशा सकारात्मक होखे के चाही|

चौथा सबसे बड बात कि एकरा में जवाबदेही इ प्रावधान कईल गईल रहे| ‘मोनेटरी पालिसी’ के निर्णय अकेले गवर्नर ना लिही बल्कि एकरा खातिर अलग से ‘मोनेटरी पालिसी समिति’ बनावल जाव जवना के अध्यक्ष आर.बी.आई. के गवर्नर होखस, उपाध्यक्ष चारो में से कवनो एगो डिप्टी गवर्नर होखस अउरी तिन गो अन्य सदस्य के रूप में होखस| ओह तीनो में दुगो RBI ऑफिस के बहार के लोग होखे के चाही अउरी एगो RBI के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर हो सकेला| एह समिति के सबसे पहिला बड बात इ बा कि निर्णय बहुमत के आधार पर लेवे के बा| दूसरा कि जवाबदेही तय कईल गईल बा|

अगर बनावल ढांचा के मुताबिक ‘मोनेटरी पालिसी कमिटी’ सीपीआई के पहुचावे के असफल होत बिया त ओकरा पब्लिक स्टेटमेंट इशू करे के पड़ी| ओह स्टेटमेंट में समिति के हर सदस्य लोग हस्ताक्षर करिहे| ओह में कारन बतावे के परी कि काहे मिशन फ़ैल भईल? आगे एकरा पर का एक्शन लिआई? अउरी कब तक इ चीज सुधर जाई पूरा खाका पेश करे के पड़ी| तीसरा कि आर.बी.आई. के अन्दर एगो सामूहिक विमर्श लोकतान्त्रिक तरीका से शुरुआत भईल बा| राजन के एह सपना के उर्जित पटेल के आगे बढ़ावे के चाही|

अंत में निष्कर्ष के रूप में इहे कहल चाहब कि भारतीय अर्थव्यवस्था प एह बदलाव के कवनो ख़ास असर ना पड़ी| ओकरा पीछे सबके बड कारण बा कि उर्जित ओही सिस्टम के साथे काम करत रहल बा जवन आज चल रहल बा| रहल बात सरकार अउरी आर.बी.आई. के बीचे अनबन के त उ ख़तम ना होई| आर.बी.आई. गवर्नर हमेशा से राजनितिक पार्टींन के बीच सैंडविच बनत आइल बाड़े लोग आ बनत रहिहे लोग| चुकी राजनितिक पार्टी बिजनेसमैन के मदद करे खातिर हमेशा रेपो रेट के कम करे खातिर चिंतित रहेला| जबकी आर.बी.आई. के मुख्य चिंता महंगाई रहेला| रेपो रेट के दोहन कईला प महंगाई चरम प पहुचे के आसार रहेला| एह से आर.बी.आई. सरकारी नीतियन के ध्यान में राखी के एगो बीच के रास्ता ढूंढे खातिर हमेशा से प्रयासरत रहेला|

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