जैसा कि हम जानते है 8 मार्च को अंतराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाते है. एक बात जो कि बड़ी अजीब है आखिर हम कोई भी दिन क्यों मनाते है? महिला दिवस महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थिति को सेलिब्रेट करने के लिए मनाया जाता है. लेकिन अगर हम इतिहास में हम झांकें तो पाएंगे कि राजनीतिक कारणों से महिला दिवस मनाया जाने लगा था इसकी शुरुआत पुराने रूस से की गई थी. खैर अब राजनीतिक कारण उस लेवल तो रहे नहीं लेकिन पुरुष महिलाओं के सम्मान में इसे हर साल मनाते हैं.
यूएन में जाकर महिला दिवस को और तवज्जो मिली और दुनियाभर में इसे महिलाओं को राजनीतिक और सामाजिक जागृति प्रदान करने का सहारा बना लिया गया. महिला सशक्तिकरण के अंतर्गत महिलाओं से जुड़े सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक और कानूनी मुद्दों पर संवेदनशीलता और सरोकार व्यक्त किया जाता है. वैश्विक स्तर पर नारीवादी आंदोलनों और यूएनडीपी आदि अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने महिलाओं के सामाजिक समता, स्वतंत्रता और न्याय के राजनीतिक अधिकारों को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है.
भारत में अभी भी सुचारू रूप से चलने वाली महिला संगठनो की स्थिति नाजुक है ऐसे में महिलाओ के सामाजिक समता, स्वतंत्रता, और न्याय के राजनितिक अधिकारों कैसे प्राप्त किया जा सकता है इसलिए बेहद जरूरी है कि महिलाओ को सशक्त बनाओ जिससे कि हम सब सशक्त समाज की कामना करे सके.
सबसे बड़ा अहम् प्रश्न यह है कि सामाजिक सशक्तिकरण का जरिया क्या हो सकती हैं? इसका जवाब बहुत ही सरल, पर लक्ष्य कठिन जरूर है. शिक्षा एक ऐसा कारगर हथियार है, जो सामाजिक विकास की गति को तेज करता है. समानता, स्वतंत्रता के साथ-साथ शिक्षित व्यक्ति अपने कानूनी अधिकारों का बेहतर उपयोग भी करता है और राजनीतिक एवं आर्थिक रूप से सशक्त भी होता है. महिलाओं को ऐतिहासिक रूप से शिक्षा से वंचित रखने का षडयंत्र भी इसलिए किया गया कि न वह शिक्षित होंगी और न ही वह अपने अधिकारों की मांग करेंगी, यानी, उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक बनाये रखने में सहुलियत होगी. इसी वजह से महिलाओं में शिक्षा का प्रतिशत बहुत ही कम है.
हाल के वर्षों में अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों एवं स्वाभाविक सामाजिक विकास के कारण शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ी है, जिस कारण बालिका षिक्षा को परे रखना संभव नहीं रहा है. इसके बावजूद सामाजिक एवं राजनीतिक रूप से शिक्षा को किसी ने प्राथमिकता सूची में पहले पायदान पर रखकर इसके लिए विशेष प्रयास नहीं किया. कई सरकारी एवं गैर सरकारी आंकड़ें यह दर्शाते हैं कि महिला साक्षरता दर बहुत ही कम है और उनके लिए प्राथमिक स्तर पर अभी भी विषम परिस्थितियाँ हैं.
यानी प्रारम्भिक शिक्षा के लिए जो भी प्रयास हो रहे हैं, उसमें बालिकाओं के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ निर्मित करने की सोच नहीं दिखती. महिला शिक्षकों की कमी एवं बालिकाओं के लिए अलग शौचालय नहीं होने से बालिका शिक्षा पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है और प्राथमिक एवं मिडिल स्तर पर बालकों की तुलना में बालिकाओं की शाला त्यागने की दर ज्यादा है. कुल मिलकर यह कह सकते है कि शिक्षा में सुधार बेहद जरूरी है महिलाओ को सशक्त करने के लिए.
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