तमिलनाडू में किसानों के बिगड़ते हालात

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अभी हाल में एक खबर आई है जिसमे तमिलनाडु से किसान जंतर मंतर पर अपनी मांग लेकर पहुचे है| दी वायर डॉट कॉम के अनुसार तमिलनाडु में पिछले चार महीने में 400 किसानों की मौत हो चुकी है| यह बताया गया है पिछले 140 सालों में सबसे खराब सूखा पड़ा है| उनकी फसलें बर्बाद हो गई है और सूखा राहत के नाम पर सरकार ने जो भी मुआवजा दिया है वो पर्याप्त नहीं है|

तमिलनाडु के किसान कर्ज माफी और सूखा राहत पैकेज की मांग को लेकर पिछले कुछ दिनों से जंतर-मंतर पर प्रदर्शन कर रहे हैं| यहां पर उन किसानों का कंकाल लेकर यहां दिल्ली आए हैं जिन्होंने पिछले दिनों आत्महत्या की है| उनकी चिंता है कि बिना सरकारी सहायता, बिना पानी, खाद, बीज, मजदूरी के खेती कैसे हो| जो जिंदगी भर की जमा-जथा थी, गहने जेवर सब रेहन रखकर एक बार लगा भी दिया तो सूखे की वजह से फसल चौपट हो गई| सारा पैसा डूब गया| गहने बैंक के हो गए|

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आज यह किसी से छुपा नहीं है कि किसानों की स्तिथि भारत में निरंतर गिरती जा रही है| तमिलनाडु के किसानो के साथ कुछ अलग किस्म की दिक्कतें रही है| तमिलनाडु ही नहीं पूरे भारत में किसानों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि तकनिकी बदलाव जमीनी स्तर पर पूरा कर पाने में सरकारें असफल रही है| इसके पीछे कारण यह है कि राज्य सरकार लम्बे समय से अपने आप को परोपकारी प्रस्तुत करती रही है लेकिन वैसा कुछ विशेष किया नहीं है|

जैसे तमिलनाडु में सरकारें खासकर जयललिता के समय से पैसे को सब्सिडी के रूप में पानी की तरह बहाया गया| एक पर्सनालिटी कल्ट बनाने के लिए टीवी और फ्रीज जैसी अनावश्यक चीजों पर पैसे बहाए गए| लोकनीति अच्छी चीज होती है, इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं होता कि 1 रूपए में मील की व्यवस्था करके पैसे को उड़ाया जाए| ऐसे में चाहिए ये था कि वहाँ के किसानों को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाया जाए| वहाँ के किसानों को इस बात से अवगत कराया जाए कि किस समय में कौन सी फसल उनके लिए जरूरी है|

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यह भी एक बड़ी समस्या रही है| तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच कावेरी नदी के जल का विवाद लम्बे समय से चलता रहा है| इसका आज तक परमानेंट हल नहीं निकल पाया है| यह भी सत्य है कि कर्नाटक को भी पानी की जरूरतें है| और तमिलनाडु के किसानों लगातार पानी का दोहन करते रहे है| साल में दो ऐसे फसलों की बुआई करते रहे है जिन्हें ‘वाटर हंगर’ वाली फसलें कही जाती है| साल के दोनों शिफ्ट में या तो धान की खेती करते है या फिर गन्ने की, जहाँ भारी मात्रा में पानी की जरूरत होती है|

ऐसे में चाहिए ये था कि राज्य सरकारें तकनिकी सहायता प्रदान करती जिससे किसानों को इस बात का अंदाजा लग पाता कि किस समय में कौन सा फसल बोना है जो सतत पोषनीय हो| इसके ना होने से एक और चीजें होती है कि किसानों साल के दोनों शिफ्ट में धान की खेती करता है| इतनी उपज हो जाती है कि खरीददार नहीं मिल पाता| ऐसे में किसान सरकार के MSP नीति के तहत अपना अनाज सरकारी गोदामों में डंप करने लगते है| भण्डारण की कमी की वजह से या तो धान सड़ने गलने लगता है और उसका कुछ ख़ास फायदा नहीं हो पाता|

वहीं दूसरी ओर भारत गेंहूँ जैसी चीजें दुसरे देशों से आयात करता है| कहीं न कहीं कमी तो रही है| गेंहूँ में धान के अपेक्षाकृत पानी की आवश्यकता बहुत ही कम होती है| अगर तमिलनाडु के किसान धान-गेहूं के रोटेशन में खेती करते तो देश के लिए भी अच्छा होता, फसलें भी अच्छी होतीं और उनके फसलों का अच्छा दाम भी मिल पाता| मै ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्युकी भारत की जलवायु उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम बदलती रहती है| अब बात आती है उर्वरक पर सब्सिडी की|

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भारत ने यूरिया पर सब्सिडी दिया लेकिन फिर पुख्ता ज्ञान के आभाव में अंधाधुंन भारत के किसानों ने यूरिया का उपयोग शुरू कर दिया| इसका परिणाम यह हुआ कि खेत के मिटटी में यूरिया की मात्रा इतनी बढ़ गई कि वो जमीन की उपजाऊ शक्ति को कमजोर करके रख दिया| वर्तमान की केंद्र सरकार ने यह एक अच्छी पहल की है कि मिटटी का टेस्ट लगातार कर रही है जिससे सही तरह से समझा जा सके| इसके अलावां वैश्विक दबाव इतना रहता है कि एक सीमा के अलावां किसानो को सब्सिडी नहीं दी जा सकती है|

विश्व बाजार में रिफार्म वैश्विक ताकतों की वजह से रुका हुआ है| आज भी भारत को 1985 के उपज आधार पर सब्सिडी देने के लिए बाध्य है| उस समय के उपज और अब के उपज में बहुत अंतर आ चूका है| कई मर्तबा भारत के प्रधानमंत्री ने इस बात को वहाँ उठाया भी है| विकाशील देशों को 10% सब्सिडी देने का प्रावधान है और विकसित देशों का 5%, इसके बावजूद भी उनका 5% हमारे 10% से बहुत ज्यादा है| यह भेदभाव हमारे किसानों की स्तिथि को बद्तर करते जा रहा है|

हो सकता है कि बाक़ी के विकासशील देशों पर इसका ज्यादा असर नहीं पड़ता है लेकिन भारत पर सबसे ज्यादा पड़ता है क्युकी भारत एक कृषि प्रधान देश है| इसके वजह से भी किसानों को मार झेलनी पड़ रही है| ऐसे में किसान केंद्र सरकार से अपने राहत की मांग कर सकते है लेकिन चाहिए ये कि भारत के किसानों को सरकार से एक लॉन्ग टर्म हल की मांग करें| ये दिक्कत सिर्फ तमिलनाडु नहीं बल्कि अन्य राज्यों जैसे महाराष्ट्र आदि में भी है|

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