भारत रत्न भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ह| इ सम्मान राष्ट्रीय सेवा खातिर देवल जाला| एह सेवा में कला, साहित्य, विज्ञान, सार्वजनिक सेवा अउरी खेल शामिल बा| महाराष्ट्र चुनाव में जब से भारतीय जनता पार्टी (BJP) अपना संकल्प पत्र में विनायक दामोदर सावरकर के भारत रत्न दिलवावे के वादा कईलस, तब से एह वादा के साथे सावरकर के लेके चर्चा के दौर एक बार फिर से शुरू हो गईल बा| कुछ लोग एकरा पक्ष में बा त कुछ लोग एकरा विरोध में बा| वीर सावरकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी रहले| एकरा साथे उहाँ के एगो राजनेता, वकील, लेखक अउरी हिंदुत्व दर्शनशास्त्र के प्रतिपादक रहनी| मुस्लिम लीग के जवाब में उहाँ के हिंदु महासभा से जुड़के हिंदुत्व के प्रचार कईले रहनी| हालाँकि वर्ष 2000 में वाजपेयी सरकार तत्कालीन राष्ट्पति केआर नारायणन के लगे सावरकर खातिर भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ देवे के प्रस्ताव भेजल गईल रहे, लेकिन उहाँ के एकरा के स्वीकार ना कईनी|
एह संकल्प पत्र के मुखर विरोधी पूर्व ‘आम आदमी पार्टी’ के नेता आशुतोष, राजनितिक विचारक उर्मिलेश अउरी तमाम विपक्षी दल के नेता लोग बा| हालाँकि, लगभग सभे एके सुर वाला सवाल जरूर खड़ा कईले बा लेकिन उहाँ सभे के बात एकतरफा अउरी विरोधाभाषी बा| उहाँ सभे के सारा बातन के चार गो मुख्य प्रश्न में बाँट देले बानी जवना के उत्तर एह लेख में देवे के कोशिश करब| एह सभ लोग रटल एकतरफा तर्क आम जन मानस में अमूमन ओही तरह के अवधारणा आ अन्धविश्वास के रूप ले चुकल बा|
सबसे पाहिले आशुतोष अपना लेख “सावरकर को क्यों नहीं मिलना चाहिए ‘भारत रत्न’?” में लिखले बानी कि
“सावरकर के जीवन में कव गो अईसन पहलु बा जवन उहाँ के देशभक्ति के कटघरा में खड़ा करत बा| एकरा बावजूद मोदी सरकार सावरकर के ‘भारत रत्न देवे प आमादा बिया त फिर ओकरा सार्वजनिक स्तर पर घोषणा कर देवे के चाही कि महात्मा गाँधी ओह लोग के आराध्य नइखन| गाँधी जी के तस्वीर हटा के सावरकर के तस्वीर सरकारी कार्यालयन में लगा देवे के चाही|”
सबसे पहिले हमार एह बात प असहमति बा कि का कोई भी इन्सान ‘आराध्य’ हो सकेला? बुजुर्ग लोग के प्रेरणा के श्रोत मानल जा सकेला| अगर रउआ ‘आराध्य’ देवता के रूप में ढाले के कोशिश करत बानी त निसंदेह आपन सोच के सिमित कर रहल बानी| हमार मानना बा कि कवनो व्यक्ति अंतिम सत्य ना हो सकेला चाहे सावरकर होखस, गाँधी होखस, आंबेडकर या नेहरु होखस| सभे में कुछ अच्छाई रहे आ कुछ बुराई भी रहे| लेकिन सेलेक्टिव रूप में राजनितिक मकसद से उपयोग कईल निसंदेह दुखद बा| हो सकेला कि आज के समय में हमनी के बीच कवनो युवा होखे जवन स्वतंत्रता सेनानी से आगे के सोंच रखत होखे| दूसरा बात, आशुतोष जे हमेशा समावेशी (Inclusivist) विचार प बल देत रहेला, लेकिन अपना से अलग मत वाला के साथ उहाँ के व्यावहारिकता अनन्य (Exclusivist) बा| वीर सावरकर के फोटो ऑफिस में लगावे खातिर इ कवनो जरूरी शर्त नइखे कि गाँधी जी के फोटो हटावे के परी|
भारत के इतिहास में सबसे बड यदि पाप कोई कईले बा त उ नाथूराम गोडसे कईले बाडे| गोडसे महात्मा गाँधी के मार के उहाँ के विचार के अंतिम सत्य बना देले बा| ओह विचार पर कवनो चर्चा ना हो सकेला| उहाँ के मार के गांधीजी के विचार के अमर क देले| कई एक गो अईसन उहाँ के फैसला रहे जवना प डिबेट हो सकत रहे ओह डिबेट के मार देहले| एह से जब भी 2 अक्टूबर आवे ला त डिबेट हमेशा गाँधी बनाम गोडसे बन के सिमित रह जाला| निसंदेश बापू कई गो अच्छा काम कईले बानी जेकरा खातिर हमनी के उहाँ के इयाद करनी जा| लेकिन कई गो अईसन कदम भी रहे जहाँ प्रश्नवाचक चिन्ह खड़ा होला, लेकिन डिबेट संभव ना हो पावेला| काहे? काहे कि देश के वामपंथी इतिहासकार अउरी बाद के सरकार उहाँ के भगवान बना के आपन राजनितिक ढांचा तईयार कईले रहे| कोई भी अईसन स्वतंत्रता सेनानी नईखे जे गलती नइखे कईले| इ हमनी के राजनितिक दलन के कला ह कि हमनी के ओकरा के कवना पैटर्न में पिरोवेनिजा|
दूसरा सवाल वीर सावरकर प सवाल खड़ा करत श्री आशुतोष कहत बाड़े कि
“गाँधी जी के हत्या के आरोप में सावरकर के गिरफ़्तार कईल गईल रहे| नाथूराम गोडसे सावरकर के भक्त रहले| जब सावरकर के गिरफ़्तार कईल गईल रहे तब सरदार वल्लभ भाई पटेल गृह मंत्री रहले| गाँधी के हत्या में सावरकर के ख़िलाफ़ मुक़दमा चलल रहे| गवाह के कमी के चलते सावरकर के ‘तकनीकी आधार’ प अदालत बरी कर देलस| सवाल इ उठता कि अगर गाँधी के हत्या के आरोप से मुक्त भईल व्यक्ति के ‘भारत रत्न’ देवे के वकालत कईल जा सकत बा?”
पहिला बात, आशुतोष के कानून के समझ होखे के चाही| या त नइखे या बा त उहाँ के मगरुरी करत बानी| आरोपी अउरी दोषी में अंतर होला| आरोपी कोई बन जाला| जब तक उ साबित नइखे होत कोर्ट में तब तक उ बेगुनह्गार बा|अगर बाइज्जत बरी हो जात प त कवनो तरह से दोष छोड़ी आरोप भी ना रह जाला| जबरजस्ती के ‘तकनिकी आधार’ शब्द जोडला से बौधिक समाज भी गुनाहगार साबित नइखे कर सकत| मान ली अगर कोई के सजा भी होता अगर उ सजा काट के बहरी आ जात बा त उ एकदम आम इन्सान लेखा बेगुनाह्गार कहाई| दूसरा बात, इ बात आशुतोष के भी पता होई कि इंदिरा गाँधी वीर सावरकर के सम्मान में स्टाम्प जारी कर चुकल बानी| स्टाम्प कवनो ऐरा-गैरा खातिर जारी ना होला| इंदिरा गाँधी ना त आरएसएस के रही आ बीजेपी पार्टी से रही| एह बात के भी समझे के चाही| जब स्टाम्प पेपर जारी हो सकेला त ‘भारत रत्ना’ काहे ना मिल सकेला?
तीसरा बात, गाँधी जी के हत्या अउरी ‘भारत रत्न’ में दूर दूर तक रिश्ता नइखे| जबरजस्ती में बुद्धिजीवी लोग रिश्ता गढ़े के कोशिश करत बा| सोचे वाला बात इ बा कि ‘भारत रत्न’ शुरू 1954 में भईल आ गाँधी के हत्या 1948 में भईल| ‘भारत रत्न’ देवे खातिर इ कवनो शर्त नइखे कि उ गाँधी के हत्या में आरोपी या दोषी रहे कि ना| सबकुछ खातिर गाँधी लैंडमार्क नइखे बन सकत| काहे कि गाँधी जी अंतिम सत्य नइखन| उहाँ के ‘आराध्य’ देवता ना बल्कि आम इन्सान रहनी| उदहारण के रूप में, स्वामी श्रद्धानन्द जी भी एगो बरियार स्वतंत्रता सेनानी रहनी, स्वामी दयानन्द सरस्वती के शिक्षान के प्रसार कईनी| स्त्री-शिक्षा के प्रचार कईनी| हिन्दू-मुस्लिम एकता के बात कईनी| चुकी उहाँ के विचार हिंदूवादी रहनी एह से 23 दिसम्बर 1926 के ठीक गाँधी जी के तरह अउरी ओही तरह के कारण प अब्दुल रशीद धर्म-चर्चा के बहाना से उनका कक्ष में प्रवेश करके गोली मारके हत्या कर देलस| अफ़सोस इतिहास सिर्फ ‘गोडसे के जानेला लेकिन अब्दुल के ना|
रउआ पता बा कि महात्मा गाँधी जी एह हत्या प कईसे प्रतिक्रिया देले रही? उहाँ के हत्या के दू दिन बाद यानी 25 दिसम्बर, 1926 के गुवाहाटी में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में जारी शोक प्रस्ताव में जवन कुछ गाँधी जी कहनी उ स्तब्ध करने वाला रहे| गांधी जी के शोक प्रस्ताव के उद्बोधन के एगो उद्धरण कुछ अईसन रहे “मैंने अब्दुल रशीद को भाई कहा और मैं इसे दोहराता हूँ। मैं यहाँ तक कि उसे स्वामी जी की हत्या का दोषी भी नहीं मानता हूँ। वास्तव में दोषी वे लोग हैं जिन्होंने एक दूसरे के विरुद्ध घृणा की भावना को पैदा किया। इसलिए यह अवसर दुख प्रकट करने या आँसू बहाने का नहीं है।“ गांधी जी अपना भाषण में इहो कहनी कि ”… मैं इसलिए स्वामी जी की मृत्यु पर शोक नहीं मना सकता। हमें एक आदमी के अपराध के कारण पूरे समुदाय को अपराधी नहीं मानना चाहिए| अब हमार सवाल इ बा कि महात्मा गाँधी के हत्या नाथूराम गोडसे कईलस फिर सालों से गाँधी जी के अनुयायी पूरा आरएसएस समाज के काहे कटघरा में खड़ा करत आ रहल बा?
आशुतोष एकरा अलावां तीसरा मुद्दा ‘माफीनामा’ वाला पत्र के भगत सिंह से तुलनात्मक अध्ययन करके अपना बात के मजबूत करे के कोशिश कईले बानी| एह विचारधारा के लेखक के खूबी इ बा कि जहाँ जवन फिट होला ओकरा के फिट करके आपन बात प अडिग रहे के कोशिश करेला लोग| श्री आशुतोष के कहना बा कि भगत सिंह माफ़ी ना मंगले लेकिन सावरकर माफ़ी मंगले रहन एह से उ देश भक्त नइखन| उहाँ के कहनाम बा कि सावरकर अंग्रेजन खातिर काम कईले रहले|
पहिला बात एह बिंदु में भगत सिंह फिट भईले त भगत सिंह के उपयोग कईल गईल| गाँधी के ना| का आशुतोष के इ बात के पता नइखे कि महात्मा गाँधी अंग्रेजन खातिर का कईले रहे बोअर युद्ध में? अंग्रेज बाकायदा गाँधी जी के ‘केसर-ए-हिंद’ के सम्मान से सम्मानित तक कईले रहले| अब रुआ खुद बताई कि अंग्रेज जेकरा के केसर-ए-हिंद देले रहे उ अंग्रेज के खिलाफ आ देशभक्त रहे कि उ जेकरा के अंग्रेज कालापानी के सजा दे देले रहे उ देशभक्त रहे? निसंदेश शुरू में गाँधी जी अंग्रेजन के करीब रहले बाद में अंग्रेजन के मुखालफ़त भी कईले अउरी आन्दोलन भी कईले|अइसे में उहाँ के बाद के काम के आधार प ‘आराध्य’ बना देनी आ जे 1857 के क्रांति के लेखन के माध्यम से नया मोड़ अउरी नया उर्जा देके देश में एगो जोश भर देलस उ देशद्रोही हो गईल?
शायद इ बात आशुतोष के भी पता होई कि भगत सिंह भी सावरकर के लिखल किताब ‘Indian War of Independence 1857′ के बहुत बड फैन रहन| एह किताब के अंग्रेज बैन कर देले रहन सन| इ किताब उहाँ के 25 साल के उमिर में लिखले रही जवना उमिर में नौजवान अपना महबूब के पल्लू से बहरी ना निकल पावेला| एह व्यक्ति के प देशभक्ति के सवाल खड़ा कईल बेईमानी बा| एह से बात इमोशनल अउरी एकतरफा ना होखे के चाही| सावरकर के एह बात के अंदेशा रहे कि जब भी उनकर किताब छपी ओकरा के पाहिले जब्त हो जात रहे| काहे? अगर उ कंटेट अंग्रेज के खिलाफ ना होइत त काहे जब्त होइत? जवान अंग्रेज उहाँ के किताब के बैन कईलस, छपे से पाहिले जब्त कर लेत रहे अउरी काला पानी के सजा देलस ओकरा प देशभक्ति के कटघरा में खड़ा कईल बिलकुल अन्याय बा|
ओही सेलुलर जेल में अपना हाथ से लिख के एह किताब के उहाँ के तीन कॉपी बनइले रही| एगो कॉपी अपना भाई बाबा राव सावरकर के भेजले रहन| दूसरा कॉपी फ्रांस में भिकाजी कामा के भेजले रहले| तीसरा कॉपी कुतिन्हो के भेजले रहले| चुकी उ किताब मराठी में लिखल रहे| भिकाजी कामा अउरी लाला हरदयाल मिलके ओकरा के इंग्लिश में अनुवाद कईले| ओह घरी के सारा स्वतंत्रता सेनानी ओह किताब से प्रभावित रहले| इ कहल जाला कि अंग्रेजन के खिलाफ ‘गदर पार्टी’ ओही किताब से प्रभावित होके बनल रहे| भगत सिंह अतना प्रभावित रहन उहाँ के लेखनी से कि राजाराम शाश्त्री के साथे मदद के एकरा के छपवावे के कोशिश कईले| नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के सहायता से एकरा के तमिल में छपवावल गईल रहे| इ किताब ब्रिटिश थ्योरी “Revolt of 1857 as sepoy mutiny” के चुनौती देके इ साबित कईले रहे “1857 movement as first war of independence”
रहल बात ‘माफीनामा’ के त महात्मा गाँधी भी गाँधी-इरविन पैक्ट के दौरान भगत सिंह अउरी उनकर साथिन के माफ़ी देवे के प्रस्ताव रखले रहन| इतिहास के कवनो भी इवेंट के संकीर्ण मानसिकता से ना लेवे के चाही| बहादुरी अउरी बेवकूफी में एगो फर्क होला| सिर्फ जान देल लड़ाई के तरीका ना होला| इ सब लडे के एगो शैली ह| वीर सावरकर के कलम में ताकत रहे| उहाँ के बहार आवल जरूरी रहे| एकरा के ईगो प ना लेवे के चाही| जेल में रहके उ ना कर पैईते जवन बाहर आके करे में सफल भईल रही| उदहारण के रूप में: वीर शिवाजी के शैली ‘गुरिल्ला युद्ध’ रहे त का ओह युद्ध शैली के रउआ कायर कहब? बिलकुल ना| युद्ध लडे के अलग अलग शैली होला आ सब शैली सही होला| चाहे गाँधी जी के शैली होखे, भगत सिंह के शैली होखे, सुभाष चन्द्र बोस के शैली होखे या फिर वीर सावरकर के शैली होखे|
आशुतोष ने अंतिम अउरी चौथा सवाल इ बा कि गाँधी जी के ‘भारत छोडो आन्दोलन’ में जब सब लोग लाठी खात रहन त उ काहे ना हिस्सा लेले?
इ मुद्दा भी एकतरफा उठावल जाला| गाँधी जी के नेतृत्व में “भारत छोडो आन्दोलन 1942” के जब आगाज भईल तब बहुत लोग शामिल ना रहे जवना प कबो सवाल ना खड़ा होला| आशुतोष के इ बात पता होई कि वामपंथी पार्टी भी एह आन्दोलन में शामिल ना भईल रहे| फिर वामपंथी पार्टी के देशद्रोही काहे ना कहल जाला? का कारण रहे? अंतराष्ट्रीय वैचारिक इश्क| चुकी दूसरा विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन अउरी वामपंथी रूस दुनो एके दल में रहे त उ अपना वामपथी भाई के साथी ब्रिटिश के भारत में कईसे विरोध करो? सोचीं जवन वामपंथी पार्टी देश के उपरे आपन विचारधारा के महत्त्व देता उ देशभक्त बा आ जवन अपना देश खातिर सब सब कईलस उ देशद्रोही? गजब के एनालिसिस हमनी के इतिहासकार लोग कईले बा|
इहाँ तक कि डॉ. भीमराव आंबेडकर भी एह आन्दोलन में भाग ना लेले रहन| उहाँ के इतिहास के कवनो आन्दोलन में एक्टिव रूप से भाग ना लेले रही जवन राजनितिक स्वतंत्रता के लड़ाई अंग्रेजन के खिलाफ रहे| उहाँ के सामाजिक स्वतंत्रता के लड़ाई लड़ले रहनी| त का उहाँ के भी देशद्रोही हो गईनी? डॉ. आंबेडकर त इहाँ तक कि कांग्रेस के खुला विरोध कईनी आ दलित के शामिल ना होखे के सन्देश तक देले रही| त का देश के सारा दलित देशद्रोही हो गईल? इ सब ईगो खाली नैरेटिव ह जवन दक्षिणपंथी विचारधारा के खिलाफ झूठा अउरी एकतरफा प्रचार करके खातिर तईयार कईल गईल बा| सभे के लडे के तरीका अलग रहे, सभे के मुद्दा अलग रहे| कोई गलत न रहे| गलत उ बा जे इतिहास के एगो पन्ना के गलत आ सेनानी के देशद्रोही साबित करे में लागल बा|
गाँधी जी खुद बोअर के युद्ध में खुलके अंग्रेजन के साथ देले रही| ओकरा खातिर उहाँ के ‘केसर-ए-हिंद’ के सम्मान से अंग्रेज सम्मानित भी कईले रहलसन| उहाँ के 1100 श्रमदान करे खातिर एगो ‘इंडियन एम्बुलेंस कोर्प’ के भी स्थापना कईले रहनी| त का गाँधी जी देशद्रोही हो गईनी? का उहाँ के देशभक्त ना रहनी? प्रथम विश्वयुद्ध में अंग्रेजन के साथ देवे के पक्ष में गाँधी जी रही त का उहाँ के देशद्रोही हो गईनी? हद तो तब हो गईल जब ‘ओटोमन एम्पायर’ खातिर भारत में ब्रिटिश के विरोध भईल आ ओकरा के हिन्दू-मुस्लिम एकता के रूप में देखल गईल जवना के हमनी के ‘खिलाफत आन्दोलन’ कहेनी जा| ओटोमन एम्पायर खातिर गाँधी जी आन्दोलन के समर्थन देनी लेकिन द्वितीय विश्वयुद्ध में सुभाषचंद्र बोस के समर्थन ना कईनी कि अंग्रेज के खिलाफ जर्मनी अउरी जापान के समर्थन कईल जाव| इ देशभक्ति रहे लेकिन जवन सावरकर कईले उ देशद्रोह रहे|
हालाँकि अपना लेख में आशुतोष एह बात के भी मानत बाड़े कि सावरकर एगो बहादुर स्वतंत्रता सेनानी रहले| उहाँ के एह बात के भी स्वीकार्य कईले बानी कि वीर सावरकर हिंदू-मुस्लिम एकता के भी बात कईले रहले| 1857 के विद्रोह प लिखल उनकर किताब एह बात के गवाही बा| जतना भी बतकुचन अभी के समय में होता उ सब सिर्फ अउरी सिर्फ राजनीती से प्रभावित बा| उदारवादी, वामपंथी विचार के प्रयास बा कि इतिहास के साझा ना होखे दिही अउरी आपन एकछत्र काबिज कईले रही चाहे एकरा खातिर खुद के बात के विरोधाभाष काहे ना करे के परे| जब वीर सावरकर के अतना प्रभाव स्वतंत्रता सेनानी प रहे आ उहाँ के हर तरह से एह देश खातिर आपन जीवन के हिस्सा देले बानी त काहे ना ‘भारत रत्न’ मिले के चाही?
Footnotes
- Amazon | The Indian War of Independence 1857
- Satya Hindi | सावरकर को क्यों नहीं मिलना चाहिए ‘भारत रत्न’?
- Decoding Dream India | Does Savarkar deserve Bharat Ratna?
- Jagaran | गांधी जी की पुण्यतिथि : एक कड़वा सच
- Satya Hindi | सावरकर-गोडसे से जुड़े ऐतिहासिक तथ्यों को कैसे छुपाएगी बीजेपी?
- Aaj Tak | कांग्रेस नेता ने मोदी सरकार से की मांग
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