भारत में FDI, खुदरा व्यापार, दशा आ दिशा (भोजपुरी)

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काफी लम्बा समय से भारत में रिटेलिंग (खुदरा व्यापार) के आपन एगो आर्थिक, सामाजिक अउरी सांस्कृतिक पहचान भी रहल बा| भारत के अर्थव्यवस्था के एगो बरियार पिलर ह| भारत के जीडीपी के 23% हिस्सेदारी खाली रिटेलिंग के रहेला| देश में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर से भी ज्यादा हिस्सेदारी रखेला| एकर आर्थिक पहलु के साथे साथे सामाजिक अउरी सांस्कृतिक सरोकार भी जुडल रहेला| सड़क के किनारे कवनो रेहड़ी पटरी प लिट्टी-चोखा से लेके साडी के दुकान त पहुच जाई|

लिट्टी चोखा बनावे से परोसे तक हर पहलु में सांस्कृतिक अस्मिता छिपल रहेला| इहाँ तक की बात में भाषाई अस्मिता के एगो अनूठा पहल भी मिलेला| एहिसे ढेर पश्चिमी बदलाव आईला से भाषाई दूरी बढ़ जाला| रिटेलिंग मूलतः दू प्रकार के होला| पहिला सिंगल ब्रांडेड, जवना में सिर्फ एक प्रकार के ओही ब्रांड के सामान बिकाला जईसे उदहारण के रूप में ले ली रीबौक के शोरूम में खाली ओकरे कंपनी के सामान मिली| दूसरा मल्टी ब्रांडेड, जवना में एक से ज्यादा कंपनी के सामान बिकाला उदहारण के रूप में लेली आल्मार्ट जहाँ अलग अलग ब्रांड के सामान एके दोकान में बेचात होखे|

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भारत में रिटेलिंग के मार्केट भी यूनिफार्म नईखे| एहू में अलग अलग प्रकार के खाचा बटल बा| इहो दू प्रकार के होला| पहिला असंगठित, इ उ मार्केट होला जवना में एगो छोट व्यापारी, छोट बजट के आधार प परंपरागत रूप से दोकान चलावेला| जईसे उदहारण के रूप में लेली कवनो दोकान रोड के किनारे लिट्टी चोखा बनावत लउकत होखे चाहे कवनो सामान बेचत होखे| एह लोग के मार्केटिंग असंगठित रिटेलिंग में आवेला| इ लोग इनकम टैक्स अउरी सेल टैक्स से स्वतंत्र रहेला लेकिन ज्यादातर एह प्रकार के रिटेलर पुलिस के गैरकानूनी वसूली से स्वतंत्र ना रह पावेला|

एह से इहो कहल सही ना होई कि टैक्स ना देला लोग| वैधानिक तरीका से ना दे पावे लेकिन देवे के त परबे नु करेला| दूसरका होला संगठित, इ उ मार्केट होला जवना में लोग के दोकान तय रहेला अउरी इनकम आ सेल टैक्स के अंतर्गत रजिस्टर्ड रहेला| एह से पुलिस के गलत वसूली अउरी हस्तक्षेप के प्रभाव ना के बराबर रहेला| उदहारण के रूप में कवनो दोकान ले ली मार्केट के जवन कवनो रूम में लगावल होखे आ रजिस्टर्ड होखे|

रिटेलिंग के सन्दर्भ में सरकारी पहल

रिटेलिंग मूल रूप से देखल जाव त हमनी के देश में राजनैतिक मुद्दा भी रहल बा| जवना घरी बीजेपी विपक्ष में रहे त एही FDI(फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट) वाला रिटेलिंग के मुद्दा उठाके पुरजोर विरोध कईले रहे| खैर राजनितिक मुद्दा से तनी दूरी बनाके काम के मुद्दा प आवे के चाही| 2011 तक भारत सरकार रिटेलिंग सेक्टर में सिंगल ब्रांड खातिर लगभग 50% FDI के सहमती के साथे लिटमस टेस्ट कईल गईल रहे| लेकिन समयानुसार धीरे धीरे मल्टी ब्रांड में भी FDI के आमंत्रित कईल गईल| लेकिन ओकरा एक साल बाद 2012 के शुरुआत में सरकार सिंगल ब्रांड खातिर FDI इन्वेस्टमेंट 50% के 100% कर देहलस|

लेकिन जब इ कदम उठावले रहे तब एगो-दुगो महत्वपूर्ण शर्त रखल गईल जवना के चर्चा बहूत कम मिलेला| उ इ रहे कि सिंगल ब्रांड के 30% सामान भारत से उपयोग करेके परी| उदाहरन से एह बात के समझल जा सकेला जईसे मैकडोनाल्ड से बनल चिल्ली पोटैटो में कम से कम 30% आलू भारत से लेवे के परी| चाहे ओहिजा जवन वर्कर काम करिहे उ अहिजे के होखे के चाही| इ बढ़िया बात कि रुआ आपन दोकान भारत में बईठावत बानी त रुआ एहिजे के आदमी के लेवे के परी| एकरा अलावां एगो अउरी बढ़िया शर्त इ बा कि मल्टी ब्रांड में इन्वेस्टमेंट खातिर न्यूनतम लगभग 650 करोड़ रुपया के इन्वेस्टमेंट होखही के चाही| अउरी ओह इन्वेस्टमेंट के 50% पईसा एहिजा इंफ्रास्ट्रक्चर प खर्च करही के बा|

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एह सन्दर्भ में पाहिले एगो बात आवत रहे कि ओह चीज से बनावे खातिर अहिजा के आदमी में उ स्किल बा कि ना| अगर नईखे त प्रशिक्षित करीं| इहे उद्देश्य के चलते नु मनमोहन जी FDI प जोर देले रहले या मोदी जी दे रहल बाड़े| आज के डेट में लोग प्रशिक्षित कर रहल बा| चाहे मैकडोनाल्ड में काम करे वाला आदमिन के देख ली चाहे डोमिनोज में काम करे वाला आदमीन के देख ली| सब लोग एहिजे के बा| एह से जब भी इ बिंदु चर्चा में आवेला तब एह से हमरा कवनो ज्यादा दिक्कत ना बुझाला| अइसन भी बिल्कुल नइखे कि कवनो राज्य के मजबूर कईल जाला एह क्षेत्र में इन्वेस्टमेंट खातिर|

केंद्र एगो सिर्फ डायरेक्शन दे रहल बिया| जवना राज्य सरकार के अच्छा लागे उ स्वागत करे आ जेकरा ना उ मना भी कर सकेला| इ सब राज्य के स्वतंत्र निर्णय के ऊपर बा| लेकिन जवन पार्टी गठबंधन में होई उ त तनी मनी प्रभावित होईबे नु करी| 2012 के अंत तक रिटेलिंग के क्षेत्र में मल्टी ब्रांड सेक्टर में लगभग 50% FDI के निमंत्रण दिआइल रहे| खूब राजनैतिक हलचल भी भईल लेकिन एकरा प डट के निर्णय लिआइल रहे| अगर दोसरा देश से तुलना करिजा त पाइम कि चाइना दुनो में (सिंगल आ मल्टी) 100% FDI रिटेलिंग के स्वागत कईले बा|

रिटेलिंग तब अउरी अब

रिटेलिंग के दू फेज में तुलना करे के कोशिश करब| पहिला 1997-2011 अउरी दूसरा 2011 के बाद से अब तक में कतना ग्रोथ भईल बा| आ कवन कवन चुनौती बा| सबसे पाहिला बात इ कि 1997 से एह से शुरू कईनी ह काहे कि ओही घरी पहिला बेरी कैश में FDI के अनुमति देल गईल रहे आ दूसरा 2011 एह से काहे कि ओहिघरी FDI सक्रीय रूप से प्रभाव में आइल रहे| ओह घरी से लेके आ 2010 तक अगर विदेशी निवेश दने झाके के कोशिश करम त बहूत ही कम रहल बा| भारत के अर्थव्यवस्था ओतना मजबूत नइखे कि सबकुछ खुदे कर सके| भारत के ग्रोथ कम भईल बा 1997 से 2000 के बीच, त ओकरा पीछे एगो अउरी बरियार कारन रहल बा|

उ इ कि हमनी लगे बढ़िया भंडारण अउरी इंफ्रास्ट्रक्चर के कमी रहल बा| पूरा विश्व में सबसे कमजोर भारत के भंडारण रहल बा| लगभग 24 मिलियन मेट्रिक टन क्षमता ही रहल बा भारत के लगे जवना में 80% से ज्यादा खाली आलू खातिर उपयोग होला| अगर ना होई त आलू के दाम पियाजू से भी महंगा हो जाई| 2011 तक मिडिल मैन के बरियार प्रभाव रहल बा| एह से मनमानी भी खूब चलल बा| रिटेल चैन एह मिडिल मैन के वजह से गड़बड़ाइल बा| 2011 तक लेबर मार्केट रिफार्म के कमी रहल बा अउरी रिटेल सेक्टर काफी जटिल रहे| ओह सब के उदार बनावल जरूरी रहे ताकी सततपोषणीय विकास के कामना कईल जा सके|

2011 से पहिला बहूत सारा बाधा रहे रिटेल सेक्टर में जवना चलते सामान उचित दाम प ना मिल पावत रहे| रिटेलिंग के क्षेत्र में बाजारू प्रतिस्पर्धा के घोर आभाव रहे जवना से मनमानी चलत रहे| बढ़िया भंडारण, इंफ्रास्ट्रक्चर अउरी रिटेल में प्रतिस्पर्धा के कमी के होखे के चलते काफी महंगाई भी रहे| मिलावटखोरी के संभावना बरियार रहत रहे| लेकिन 2011 के बाद से इ सभ चीज काफी हद तक सुधरल बा| वर्तमान के रिटेल के विकास देखके बहूत सारा अर्थशास्त्री लोग एह बात के अनुमान लगईले बा कि 2020 तक भारत के रिटेल इंडस्ट्रीज के रेवेनुए फ्रांस के रिटेल इंडस्ट्रीज के रेवेनुए के बराबर हो जाई जवन की 2011 के रेवेनुए के अपेक्षाकृत एकदम दुगुना बा|

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दोसरा शब्द में कही त एकदम तहस व्यवस्था के एगो बढ़िया व्यवस्थित प्लेटफार्म दिहल गईल बा| अइसन भी नइखे कि एकदम खुल्लम खुला बहार होखे| बहूत सारा शर्त भी बा जवन कि स्थानीय लोग के हित के रक्षा कर रहल बा| सरकार के कुछ लोड भी कम भईल बा जवना से बाकी के काम जईसे शिक्षा, स्वस्थ्य आदि बेहतर तरीका से कर सके| मिडिल मैन लोग जे रिटेल चैन के प्रभावित करत रहे ओह लोग प लगाम लागल बा| साथ ही जवन भंडारण अउरी मिलावट वाला समस्या रहे, प्रतिस्पर्धा के वाजह से ओह में भी सुधार भईल बा|

रिटेलिंग में FDI काहे जरूरी बा ?

सबसे पहिला अउरी बड बात इ कि भारत के इकॉनमी ओतना बरियार नइखे के सबकुछ खुदे कर सके| एह से बाहरी मदद बेहद जरूरत बा अब इ सरकार के ऊपर निर्भर करत बा कि उ कवना माध्यम से मदद ले पावत बा FDI के सहारे या फिर ह्यूमन कैपिटल के स्थानांतरित करके| सोचीं अगर भारत अर्थव्यवस्था के बड़हन हिस्सा होने लगा दिही त बाकी के काम जईसे शिक्षा, स्वस्थ्य अउरी परिवहन वाला मामला गड़बड़ा जाई| ओह घरी छोट मोट दुकान जवन टैक्स ना भर पावत रहे आ रजिस्टर्ड ना रहे ओकरा शोषण के दौर से गुजरे के परल बा|

पुलिस बर्बरता से वसूली करत आइल बा| लेकिन FDI आईला के बाद से एह लोग के प्रभाव कम भईल बा| छोट आ मिडिल व्यापारी लोग के बढ़िया तकनीक से अवगत होखे के मौका मिलल बा| तकनीक के आईला से दाम के मोलाई वाला समस्या से निजात मिलल बा| पाहिले 100 रु के सामान के दाम के पहिलही 180 बतईहेसन कम करत करत कतना पीछे जाई आदमी| लेकिन ढेर लोग ठगा जात रहे| दुकान प भी तकनीक के काफी प्रयोग होखे लागल बा जवना से ग्राहक के समय भी कम बर्बाद होला|

पश्चिम बंगाल में आलू बर्बादी के अख़बार में सियासी खबर सुनले होखम जा| हाल में दिल्ली के गोदाम में गेहूं बारिश में सड गईल| ओहिजो सियासत रंग लउकल| सवाल इ बा कि सरकार एकरा के कईसे हल कर सकेले ? सरकार लगे दू गो आप्शन बा| पहिला कि खुद ओइसन स्टोरेज बनावे| लेकिन अहिजा बजट भी बाधा बन जाला| तब दूसरा हल FDI के रूप में आ सकेला जवन एह समस्या के हल कर सके| एह से स्टोरेज अउरी इंफ्रास्ट्रक्चर दुनो समस्या हल हो सकेला|

एकरा अलावां किसानन के सही मूल्य ना मिल पावेला मिडिल मैंन लोग के वजह से लेकिन FDI के वजह से ओह लोग के भी प्रभाव कम हो जाई| जवन वेस्ट होत रहे भंडारण के कमी के वजह से ओह प भी नियंत्रण पावल जा सकेला| FDI के सहायता से मिलावटखोरी वालु लोग प बंदिश अउरी मार्केट प्रतिस्पर्धा के वजह से उचित दाम प सामान मिले के भी उम्मीद रहेला| रिटेलिंग के तकनिकी आगमन से बहूत सारा सामजिक समस्या प भी नियंत्रण के आशा कईल जा सकत बा|

सामाजिक प्रभाव अउरी विवाद

सबसे बड समस्या असंगठित व्यवस्था के साथे इ रहे कि उ तमाम तरह के सामाजिक समस्या के भी जड़ रहल रहे| जईसे जवन मजदूर काम करेला ओकरा के समय प पगार ना दिही| अगर देबो करी त ढेर जगह न्यूनतम वेतन से कम वेतन दिही| मजबूरन काम करे के परत रहल बा| बहूत सारा छोट मोट दुकानन में बाल मजदूरी जईसन समस्या भी आपन प्रभाव दिखावले बिया| एह से इ कहल जा सकत बा कि रिटेलिंग में FDI आईला से सामाजिक समस्या के भी काफी हद तक निपटल जा सकेला तकनिकी सहायता के माध्यम से, जवना खातिर देश में तमाम NGO हाय हाय करत आइल बिया|

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इहो एगो कारन बा जवन हैडलाइन ना बन पावे कि काहे ज्यादातर NGO रिटेलिंग में FDI के नकारेला| इ ठीक ओकरे लेखा बा जईसे अगर धार्मिक अउरी जातीय उन्माद ख़त्म हो जाई त सियासत कईसे चली| ओसही इ कूल्ह बीमारी जईसे गरीबी, बाल मजदूरी अउरी समय प उचित वेतन मिल जाव त फिर NGO वाली नौकरी ख़त्म नु हो जाई| एगो अउरी सामाजिक पहलु के इ कवर करेला उ इ कि जवन लोग Disguised बेरोजगारी(जरूरत से ज्यादा आदमी कवनो दोकान में काम करत होखस) जईसन समस्या से जुझत आइल बा ओह लोग खातिर रोजगार के भी एगो प्लेटफार्म दे रहल बिया|

एकरा साथे कुछ चुनौती जरूर बा जवना वजह से हमेशा विरोध होखल आइल बा| अगर विरोध होता त ओह प बढ़िया से मूल्यांकन करे के चाही जवना से ओकरा के कईसे सुधारल जा सकेला| बहूत बार एगो बात निकल के आइल बा कि शुरू शुरू में दाम कम रही लेकिन कुछ दिन बाद जब सारा लोकल मार्केट खत्म हो जाई त एगो आपन एकाधिकार जमाके दाम बढावे शुरू कर दिही| दूसरा चुनौती इ बा कि हमनी के स्थानीय अर्थव्यवस्था गड़बड़ा जाई| एह से होई का कि मान लीही वैश्विक मंदी आ गईल त इ लोग त छोड़ के भाग नु जाई चाइना लेखा|

फिर से स्थानीय मार्केट जमावल बड़ा मुश्किल के काम बा| चुकी 2008 में वैश्विक आर्थिक मंदी आइल रहे तब सिर्फ भारत बहूत ज्यादा प्रभावित ना रहे ओकरा पीछे कारन रहे कि स्थानीय अर्थव्यवस्था काफी मजबूत रहे| एह तरह के भी चैलेंज बा कि काम भारत के जनता करे अउरी मुनाफा विदेशी कंपनी| एहू बात के आशंका भी रहेला कि व्यापारी के रूप में घुस के राजनितिक स्टैंड मत लेलेवे ईस्ट इंडिया कंपनी लेखा| एह सब चुनौती खातिर हल निकालल भी काफी जरूरी बा काहे कि इ सब चीज के एक सीरा से नाकारल नइखे जा सकत|

अंत में निष्कर्ष के रूप में हम इहे कहल चाहब कि एगो एक़ुइलिब्रिउम मेन्टेन रहे के चाही| चाइना लेखा 100% छुट ना देवे के चाही| देश के विकास खातिर रिटेल सेक्टर में FDI के भी काफी जरूरत बा नाकारल नइखे जा सकत| सरकार के समयानुसार निरिक्षण जरूर करत रहे के चाही| निरिक्षण के साथे साथे सामाजिक, सांस्कृतिक अउरी आर्थिक पहलु के एक पेज प मूल्यांकन करे के चाही जवना से स्टेबिलिटी बनल रहो अउरी देश के विकास भी होत रहो|

नोट :- हमार इ लेख आखर के दिसम्बर अंक में छप चुकल बा|

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