“मेक इन इंडिया” कांसेप्ट के आगे चुनौती के भरमार (भोजपुरी)

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हमनी के प्रधानमंत्री जी, पिछिलका 15 अगस्त के दिन लाल किला से कई गो बात कहले रहनी  जवना में उहाँ के बहूत सारा सिस्टम के बदले के भी बात कईले रही आपन तर्क देके | अउरी करबो कईली उहाँ के, प्लानिंग कमीशन बदल के नीति आयोग बन गईल, फिरू कॉलेजियम सिस्टम बदल के NJAC आ गईल, VAT (Value Added Tax) के जगहा पे GST (Goods and Service Tax) आ मेक इन इंडिया आइल इत्यादी एकरा अलावां अउर भी ढेर छोट मोट बदलाव भईल बा |

ओह सब चीज एके पन्ना प समेराइज क के देखम त शायद रउरा एह बात के अनुभूति होई कि सिस्टम के बदले के एके मकसद बा ताकी “मेक इन इंडिया” वाला प्रोग्राम के सफल बनावल जा सके | कई गो बात लोग करेला विदेश यात्रा के लेके हम ओह बात से बहूत ज्यादा इतेफाक ना राखी काहे कि विदेश यात्रा कईल बहूत जरूरी बा अंतराष्ट्रीय सम्बन्ध के नजर से, भारतीय अर्थव्यवस्था के नजर से अउरी विकसित देश बने के राह में भी, बशर्ते एह बात के ध्यान रहे कि आपण देश के मूल समस्या से ढेर दूर त नईखी नु जात, ना त फिर ओह यात्रा के भी कवनो मतलब ना रह जाई |

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हम साल भर से जवन महसूस कईले बानी उ इ कि मोदी जी ओह मिशन के मुक्कमल करे खातिर बहूत कुछ गवां रहल बानी, ठीक ओही तरी जईसे नितीश कुमार प्रधानमंत्री के प्रतिशपर्धा में ख्वाब में आपन मुख्यमंत्री के सीट भी धीरे धीरे गवावे के रास्ता पर बाड़े | काहे कि नितीश कुमार द्वारा प्रधानमंत्री के उचित दावेदारी के रूप में देल तमाम तजुर्बाइ तर्क प्रधानमंत्री पद खातिर नाकाफी रहे, ठीक ओसही “मेक इन इंडिया” खातिर देल तमाम तर्क आज के समय खातिर नाकाफी बाटे, अभी आधार बनावल बहूत जरूरी बा |

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बिना बढियां नीव के मकान ढेर दिन तक नईखे टिक सकत, एह चीज के अगर अभी ना समझल जाई त बाद में एकर बड़ा बूरा असर हो सकेला | हम इ सभ चीज एह से कहतानी काहे कि रुआ पांच मिनट खातिर निष्पक्ष हो जाई, माने आपन काम खातिर सरकार के प्रति स्वार्थी हो जाई, थोडा चिंतन करी की काहे दुनिया के कवनो कंपनी भारत में आई ? बिना फायदा के काहे आई ? अउरी ओह सभ चीज के जरूरत पूरा करे खातिर लगातार सिस्टम के दोषी देके बदलल लोकतंत्र के स्वस्थ्य खातिर बड़ा हानिकारक बाटे काहे कि नजदीक के फायदा देखे से पाहिले दूर के नुकसान के बारे में मूल्यांकन क लेवे के चाही |

गुजरात के बात दोसर रहे ओह घरी मुख्यमंत्री रही, स्वतंत्र निर्णय लेत रही, अउरी एगो छोट पैमाना प काम करे के रहे, उहो ओहिजा जवन ऐतिहासिक काल से व्यापारिक केंद्र खातिर एगो मशहूर गढ़ रहे, पटना भी रहे लेकिन ओकर कहानी पी राज जी मई महिना के आखर के लेख में बड़ा सरिहार के लिखले बानी | लेकिन लोग के बीच एगो अन्धविश्वास बा कि ओहिजा 10 साल में क्रन्तिकारी परिवर्तन भईल बा जबकी अईसन बात नईखे जूनागढ़, सूरत, अहमदाबाद ओकर गवाह बा | भारत के जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग के 14% के आस पास योगदान बा एह से मैन्युफैक्चरिंग हब के सपना देखल जा सकेला लेकिन ओकरा से पाहिले तिन चार गो मूल चुनौती के मूल्यांकन कईल बहूत जरूरी बा | वैसे त कई गो चुनौती बा एह सब समस्या के लेके, हम मूल रूप से दू तिन रूप में देखे के कोशिश कईले बानी|

पहिला इ कि रुआ भीरी प्रॉपर उर्जा बा कंपनी के चलावे के खातिर ? अगर एह बात में संदेह बा त पता कर ली गाँव छोड़ी शहर में निजी जीवन जिए खातिर उर्जा पर्याप्त नइखे मिल पावत | एक तिहाई के आस पास जनसख्या आज भी बिजली से अछूता बा देश में, कारन इहे बा कि ओह सभ बिजली कंपनीन के एकाधिकार भी त सरकारे नु देले रहे | एह सभ प्राइवेट कंपनी के बीच बिजली के लेके एतना ना प्रतिश्पर्धा पैदा कर देला कि मैन्युफैक्चरिंग कंपनी के फायदा कम लउके लागेला एह से कंपनी असकतिया जाला | ऊपर से बिजली डिस्ट्रीब्यूशन प्रणाली राज्य के हाथे बा जवन राजनितिक भावना के चलते केंद्र के विकास ओह राज्य सरकार के ना भावे जवना राज्य में केंद्र वाला सरकार नईखे |

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दूसरा पानी के का व्यवस्था बा कंपनी खातिर, पर्यावरण के नजर में रखत ? कवनो तकनिकी सुझाव बा जवना चलते, ग्राउंड वाटर के ज्यादा शोषण कइले बिना कंपनी के पानी के व्यवस्था हो सके फिर निकलल पानी के साफ सफाई के कवनो प्रक्रिया ? सच त इ बा कि आज भी कव गो नदी के लेके राज्य सरकार अउरी केंद्र सरकार के बीच विवाद चल रहल बा | तमिलनाडु अउरी आंधप्रदेश के बीच कावेरी नदी विवाद ओकर ज्वलंत उदहारण बा | भारत में इ चीज होला कि एक समय में एक जगह सुखा दूसरा जगह बाढ़, खासकर मानसून के समय लो लाइंग एरिया में बाढ़ के नौबत आ जाला जल्दी पानी बहला के चलते | मानसून के वक्त रेसेर्विओर के सहायता से पानी कलेक्ट करे के मैकेनिज्म से simplify कईल बा का ?

तीसरा रुआ भी स्किल्ड लेबर बाड़े ? नइखन त बनावे खातिर कवनो प्रोग्राम बा का ? सिवाए रेलवे स्टेशन वाला रद्दी सुझाव के काहे कि उ काल्पनिक सुझाव रहे ? ह हमनी के देश में लेबर भरमार बाड़े लेकिन स्किल लेबर के आजो भारी कमी बा | अगर मैन्युफैक्चरिंग हब के सपना देखत बानी तब रुआ लेबर स्किल्ड रखे के परी, ओकरा खातिर शिक्षा व्यवस्था सुधारल बहूत जरूरी बा अउरी स्किल्ड लेबर ट्रेनिंग कैंप वेग्रह के सुविधा कइल भी बहूत जरूरी बा “मेक इन इंडिया” खातिर इनविटेशन देवे से पाहिले |

चौथा चुनौती बा आंतरिक कलह जेकर जिम्मेदार भी केंद्र सरकार ही बिया काहे कि हम मनातानी की भूमि अधिग्रहण बिल, VAT अउरी बाकी के जुडल कानून में बिना उदारीकरण लाइले मैन्युफैक्चरिंग हब के सपना नईखी देख सकत लेकिन ओकरा के कॉम्बो पैक के रूप में देखल चाहत रहे ठीक ओइसही जैसे फ्लिप्कार्ट अउरी अमेज़न कव गो सामान के संतुलित करके त्यौहार में कॉम्बो बनावे ला | लेकिन खाली सारा बिल (लैंड,वैट) के जगहा प कुआ लगाम बनावे लागम, अउरी ओह से जुडल नियम कानून के असंतुलित करे लागम त रुआ घरही से साथ ना मिली | कम्युनिस्ट के घेरे के स्पेस मिल जाई, नक्सलवाद के खाद पानी मिले लागी एह सब के चलते | उद्योग के ललचावे के खाली उदारीकरण ही एकमात्र कॉम्पोनेन्ट नइखे बल्की अउर भी ढेर कॉम्पोनेन्ट बा प्राथमिक क्रिया से निकलल उत्पाद से लेके मार्केटिंग तक |

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अउर भी ढेर बात बा समय के साथ जरूर शेयर करब, अंत में हम कुल मिला के इहे कहल चाहब की खाली नियम बदल एकाधिकार देल बड़ा खतरनाक चीज बाटे, सरकार के अपना नजर में रखे के चाही कूल्ह सिस्टम के, ना त आवे वाला समय में औद्योगिक घराना इहे कानून के हवाला देके हर कदम प चुनौती दी जवना के प्रति ओह समय लाचार लउकम जा हमनी के, जईसे आज बिजली के प्रति बानी जा |

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