जज के उपरे कोई बा का ? (भोजपुरी)

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जब हम छोट रही त अक्सर इ सवाल हमरा दिमाग में घुलटिया मारत रहे कि सभे के जब सभके न्याय जज करेले त उ जज के हवे ? कवनो भगवान त नइखन नु भेजले ? तमाम तरह के बचकाना प्रश्न उठत रहे | स्कूली पाठ्यक्रम में भी एह बात के अहसास दिलावल जाला विद्यार्थी लोग के, कि न्यायालय के आगे सभ लोग बराबर बा गाँव के खेतिहर मजदूर से लेके मंत्रीगण अउरी आला अधिकारी लोग भी | अउरी इ सत्य भी बा, खासकर भारत जइसन लोकतांत्रिक देश में जवना के चलते हमनी के गर्व करीनी जा |

कई गो उदाहरन बा एह कड़ी में हमनी के देश में जवना में, गलती कईला प मंत्री से लेके मुख्यमंत्री तक के घुटना टेके के पड़ गईल बा, अउरी जेल जाए के मजबूर भईल बा लोग, एहिजा तक कि सत्ता में रहत | हम एह बात के भी स्वीकार्य करतानी कि अभी भी लूप होल बा जवना में जवाबदेही अउरी जिम्मेदारी के भारी कमी देखल गईल बा | एकरा बावजूद सबसे ज्यादा देश में लोग पुलिस, सरकार के अपेक्षाकृत न्यायपालिका में विश्वास करेला अउरी काफी हद तक एगो इज्जत के नजर से देखेला |

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लेकिन कई गो अइसन भी केस आइल बा जवना में न्यायपालिका के सर्वोच्च कुर्सी प बईठल जज भी कार्यपालिका के प्रभाव में लउकल बा, जवन की न्यायपालिका के प्रतिष्ठा के गन्दा करत एगो बरिआर चुनौती सामने आइल बा | अइसना स्तिथि में एगो प्रश्न उठल स्वाभाविक बा कि निगरानी, जाँच अउरी आरोपी के ऊपर कार्यवाई के कवनो वैवहारिक रूप से कारगर व्यवस्था नइखे का ? जज के उपरे भी कोई बा का ? जब अइसन पश्न उठेला तब राजनितिक लोग के एके स्वर में उत्तर आवत रहे कि कॉलेजियम सिस्टम ठीक नइखे ओकरे में दिक्कत बा |

इ बात भी ठीक ओकरे लेखा हो रहल बा जईसे प्लानिंग कमीशन के बूरा भला कह करके, ओकरा में खामियां निकाल के नीति आयोग ला देवल गईल | फलतः न्यायिक चुनाव के सन्दर्भ में दावा करत राजनितिक सलाह आइल अउरी सफल हो गईल जवना में कॉलेजियम सिस्टम के जगह प NJAC (National Judiciary Appointment Commission) ले लावल गईल | लेकिन एक सिस्टम में जव के साथे साथे घुन के भी पिसे के कोशिश कईल गईल बा एकरा के डिटेल में चर्चा करब सबसे पाहिले अइसन आमूल परिवर्तन नीति के बारे में विचार रख ली |

पिछिला 15 अगस्त के प्रधानमंत्री जी अपना भाषण में एगो पॉइंट रखले रहन पूरा सिस्टम बदले के पक्ष में (उ मूल रूप से प्लानिंग कमीशन के लेके रहे) कि अगर कवनो सामान बिगड़ गईल बा त पूरा बदल दी बजाए रिपेयरिंग के | सबसे पाहिले हम आपन इ राय देल चाहब कि अइसन एक्शन ठीक नइखे, अगर कवनो सिस्टम में दिक्कत बा, ओकर एफिशिएंसी कम बा त पूरा सिस्टमवे बदल दी, इ ठीक चीज नइखे स्वस्थ्य लोकतंत्र के नजरिया से | ओकरा में गलती ढूंढके ओकर मूल्यांकन करे के चाही कहाँ गलती बा ?

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ओकरा के सुधार करे के चाही, ओकरे में सुधार करके काफी कुछ बदलाव लाइल जा सकेला ना कि पूरा बदल के, पूरा एकदम से बदले वाला प्रक्रिया के “आमूल परिवर्तन” प्रक्रिया कहाला जवन लोकतान्त्रिक शब्दावली से परे बा | मानी रुआ गणित हल करतानी, उत्तर ना आइल फिर दोसरा पन्ना प कोशिश कईली बिना अवलोकन कईले त कहाँ से उत्तर आ जाई ? भले ही रुआ पूरा कॉपी भर दी कोशिश करते करते उत्तर ना आई जब से ओकर हर स्टेप के मूल्यांकन ना करब | अईसे त पार्लियामेंट्री सिस्टम काम नईखे करत आज त का माने चुनावी प्रक्रिया बदल देवल जाव ? हर बार लेबोरेट्री के मेढक बनावल ठीक नइखे |

सबसे पाहिले कॉलेजियम सिस्टम ह का ? कॉलेजियम सिस्टम जज लोग के स्थानात्तर अउरी चुने के एगो सिस्टम हउवे जवना में मुख्यन्यायधिश चार गो वरिष्ठ जज लोग के साथे मिल के विचार करेला | विचार करके राष्ट्रपति महोदय के आपन रिपोर्ट सौपेला, जवना में राष्ट्रपति के पूरा अधिकार बा ओह लोग के विचार प सहमती अउरी असहमति जतावे के फिर सलाह मशविरा करके राष्ट्रपति महोदय सुप्रीम कोर्ट के जज के न्युक्ति करेला | हाई कोर्ट के जज चुने खातिर इहे प्रक्रिया बा बस अंतर इ बा कि हाई कोर्ट के मुख्यन्यायधिश अउरी राज्य के राज्यपाल के भी सलाह लेवल जाला | दिक्कत एकरा में इ बा कि एह सिस्टम के संविधान में जगह नइखे जवना के सुधारल जा सकत रहे | जबकी सुप्रीम कोर्ट के जज के न्युक्ति खातिर आर्टिकल 124 अउरी हाई कोर्ट खातिर आर्टिकल 217 में ऊपर लिखल कंडीशन के ब्याख्या कईल बा |

अब बात कईल जाव (NJAC) तंत्र के, एकरा के संविधान में संसोधन करके 124A के रूप में जगह देल गईल एह समिति के जवन की जरूरी रहे, खैर इ काम कॉलेजियम के साथे भी हो सकत रहे | एह समिति में मुख्य रूप से (1) मुख्यन्यायधिश, (2) दू गो सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ जज, (3) कानून अउरी न्याय मंत्री, (4) दू गो इम्मिनेंट | इ दुनु इम्मिनेंट के चुनाव प्रधानमंत्री, मुख्यन्यायधिश, विपक्षी नेता के तरफ से होई | सबसे पहिला लूप होल बा जव के साथे घुन के मिलावल, कानून अउरी न्याय मंत्री आ दू गो इम्मिनेंट के घुसावल निष्पक्ष न्याय के चुनौती दे सकेला भविष्य में |

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खाली हम नईखी कहत बल्की ढेर बुद्धिजीवी लोग के विचार पढला के बाद समेट के एगो विश्लेषण रखत बानी | दूसरा लूप होल बा वीटो पॉवर देल, एकर मतलब इ बा कि एकर प्रक्रिया में एह बात के आवाहन कईल गईल बा कि अगर कोई भी दू आदमी समिति के विचार से सहमत ना होई त ओकरा पास नइखे कईल जा सकत | अब सोची तिन गो नेता लोग (कानून मंत्री अउरी दू गो इम्मिनेंट) के प्रत्यक्ष रूप से हस्तक्षेप बा साथे साथे प्रधानमंत्री अउरी विपक्षी नेता के अप्रत्यक्ष रूप से, अब एह बात से अंदाजा लगावल जा सकेला कि निर्णय के झुकाव केने हो सकेला |

हम एगो समस्या, आपन पिछिला आर्टिकल “न्याय कवना किमत प” में भी चर्चा कईले रहली, उ सबसे बड समस्या इ बा कि जस्टिस डिलीवरी दिनोदिन महंगा होत जा रहल बा जवना में अच्छा वकील, आम आदमी खातिर मिलल बड़ा मुश्किल हो गईल बा | ऐसे में अगर रुआ NJAC के थ्रू कमिटेड न्यायपालिका देने झाके के कोशिश करब त एफिशिएंसी निश्चित तौर प घटी | हम एह से कहतानी काहे कि न्यायपालिका कवनो रिप्रेजेन्टेटिव सिस्टम थोड़ी न हवे कि ओकरा में अल्पसंख्यक सदस्य के सदस्यता जरूरी बा |

जबकी रावा बढ़िया से सूक्षमता से नजर गड़ाईम तब एगो अउरी बेजोड़ मजकिया चीज मिली, उ इ कि दू गो इम्मिनेंट लोग में से एगो SC/ST/OBC/मिनिओरिटी कम्युनिटी होखे के चाही | काहे खातिर ? न्यायपालिका से निष्पक्ष न्याय के अलावा अउरी कवनो चीज के कामना कईल बेईमानी होई | उलटे न्यायिक प्रक्रिया में असंतुलन बढ़ी | एह तीनो बाहरी लोग जज के न्युक्ति करे के काबिल बा कि ना ? एह बात के तय कईसे होई ? जबकी न्यायपालिका मूलतः कार्यपालिका अउरी विधायिका के मनमानी करे से रोके के काम करेले, अपना दायरा में बांध के रखेले |

अतना ताम झाम के बावजूद न्यायपालिका फिर भी आपन मुख्य धारा से दूर रह गईल बिया, आपन मूल बुनियादी चुनौती से आजुओ परे बिया | न्यायपालिका के जिम्मेदारी अउरी जवाबदेही के क्रम में तिन गो मूल समस्या बा (1) अझुराइल महाभियोग प्रक्रिया, एह प्रक्रिया में अतना जटिलता बा कि दुराचार करे वाला जज प महाभियोग लगावल बड़ा मुश्किल काम बा | पाहिले 50 MPs के विपक्ष में हस्ताक्षर होई तब 3 जज के समिति बईठी फिर पार्लियामेंट में जाई बहस खातिर जवन पहुचते पहुचते राजनितिक स्टैंड लेला | (2) बड भविष्य के चुनौती बा जवन चर्चा ना भईल एह बिल में, न्यायिक भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठावे वाला वकील के खिलाफ कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट के मुकदमा, उदहारण के रूप में प्रशांत भूषण जी एकर शिकार बनल बानी | उहाँ के ऊपर अइसन केस चलता |

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(3) तीसरा भावी चुनौती बा जवन एह बिल में अछूता रह गईल बा उ हवे कि RTI(सुचना के अधिकार) से अपना के दूर रखले बिया सुप्रीम कोर्ट, अउरी कवनो जज के खिलाफ FIR करे खातिर चीफ जस्टिस से सैंक्सन जरूरी बा, जवन वरिष्ठ वकील लोग के पहुच से भी बाहर बा | तीनो चारो चीज के मिला के एगो निर्णय इ निकालतानी कि सुप्रीम कोर्ट अपना के बंद किताब लेखा अब तक रखले बिया जवना के खोलल बहूत जरूरी बा तबे जिम्मेदारी लउकी |

हम कवनो चीज के तबे कटाक्ष करीला जब हमरा ओह से बेहतर हल लउकेला | हम तिन चार लोग के सलूशन प्लान पढली, अउरी जस्टिस वर्मा समिति के रिपोर्टो, ओह सभ में सबसे बढ़िया सुझाव लागल प्रशांत भूषण जी के द्वारा प्रोपोज कईल 1997 वाला बिल, जवना में ढेर चुनौती समेटा जाता | जवना में न्यायपालिका खातिर उहाँ के फुल टाइम अउरी स्वतंत्र बॉडी के मांग कईले बानी | फुल टाइम एह से काहे के मुख्यन्यायधीश के लगे अतना समय कहाँ बा कि बढ़िया से जाँच परख के जज के चुनाव करस | जज के चुनाव खाली कानून जानला के आधार प ना होला, उ त वकील के पते बा |

बल्कि एह चीज के मूल्यांकन कईल जाला कि भारत के विविधता के केतना बारीकी ले सम्झाताड़े, सैन्वाधानिक विश्वसनीयता केतना बा, भारत के हर वर्ग के समझ बा कि ना ? इ सब इत्मिनान से तबे हो सकेला जब फुल टाइम बॉडी होखी | एगो अउरी निक बात लागल कि अगर बाहरी आदमी के एह प्रक्रिया में घुसावे के बा तब वरिष्ठ CVC, वरिष्ठ मानवाधिकार अधिकारी के ले सकिला, कैबिनेट के जगह प | तीसरा निक बात इ लागल हमरा कि एह में समिति दू भाग में तुडल गईल बा एगो चुनाव समिति से जुडल अउरी दूसरा शिकायत समिति जवन वाचडॉग लेखा काम के निगरानी भी करत रही अउरी शिकायत भी देखत रही |

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