बहुत सारी चीजें होती है जिसे सरकार सीधा बोलकर नहीं करती है| उदा. के तौर पर खेती को ले लो| सरकार का लक्ष्य है कि खेती से लोगो को उठाकर उद्योग और सेवा के क्षेत्र में लगा दे| इसके सरकार खुलकर नहीं कहेगी कि खेती छोडो| इसके लिए अप्रत्यक्ष रूप से हमला करेगी| उसके लिए जो भी सब्सिडी होंते है उनमे कटौती शुरू कर देगी, खेती के इनपुट्स में लगने वाले खाद, बीज और कीटनाशक दवाओं पर टैक्स बाढा देगी जिससे उसकी कीमत बढ़ जाए|
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि नियम-कानून सख्त कर देंगी| ठीक उसी प्रकार रेलवे में हो रहा है| सरकार खुलकर थोड़े न कहेगी कि वो रेलवे का प्राइवेटाइजेशन करने जा रही है| पिछले साल विवेक देबरॉय की समिति ने रेलवे का निजीकरण(प्राइवेटाइजेशन) करने की सलाह दी थी| इसपर मीडिया में खूब हो हल्ला मचा| जब सरकार को लगा कि वो घिरने लगी है तो सामने आकर बोली कि नहीं ऐसा कुछ नहीं होने वाला|
लेकिन वास्तव में देखे तो वही हो रहा है| ‘फ्लेक्सी फेयर’ जैसी स्कीम रेलवे में लागु किए गए जिससे टिकट का दाम डिमांड पर निर्भर करेगा| आज मै अपने माँ-बाबूजी के लिए वेल्लोर से आरा का टिकट करवा रहा था| जिस टिकट को कुछ महिना पहले मै 3150 में दोनों लोगो का करवाया करता था उसकी आज कीमत मैंने 5240 चुकाया| पहले बेस टिकट के अलावां बूकिंग चार्ज दस रुपया लगता था| अब बेस कीमत के अलावां बुकिंग चार्ज 40 रुपया+सुपरफ़ास्ट चार्ज+सर्विस टैक्स+डायनामिक फेयर|
पहले टैक्स उसी में इन्क्लुड़ हुआ करता था| इसके अलावां ट्रेवल इंसुरेंस भी जुड़ने लगा| हलाकि इसकी कीमत बहुत कम है फिर भी सवाल यह है कि आखिर हम अलग जगह इंसुरेंस के लिए टैक्स दे ही रहे है तो फिर ये कैस्केडिंग क्यों? दाम बढ़ते जाएंगे सुविधाएँ युही ज्यों का त्यों रहेगी| लक्ष्य यही है कि कुछ दिनों बाद इतनी महँगी हो जाएगी कि लोगो को एह्साह होने लगेगा कि इससे अच्छा होगा कि प्राइवेटाईजड़ हो जाए तो अच्छा है| इस लिहाज से कि अगर प्राइवेटाईजेसन होगा तो सुविधाए तो मिलेंगे? जवाबदेही तो तय होगी?
समय के अनुसार सरकार और जनता के बीच संबंध हमेशा बदलते रहे है| राजा महराजा के समय में ऐसा व्यवहार होता था जैसे मानो राजा प्रजा पर कृपा कर रहे हो| अंग्रेज आए तो फिर व्यवहार बदला और एक शोषणकर्ता के रूप में दिखा| उसके बाद लोकतंत्र की वकालत तो हुई लेकिन व्यवहार में बहुत ज्यादा परिवर्तन नहीं दिखा| इक्कीसवी सदी में मुझे सरकार और जनता का व्यवहार एक व्यापारी और ग्राहक के रूप में दिख रहा है जो लोकतंत्र के लिए बेहद खतरनाक है|
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