कुरीतियों के खिलाफ दोहरे मापदंड उचित नहीं

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हमारी सबसे बड़ी कमी यही है कि हम प्रतिक्रिया देने में बहुत जल्दबाजी करते है| कौन अच्छा है और कौन बुरा इसका फैसला भी हम नहीं कर सकते क्युकी हम प्रणाम से बहुत दूर होते है| प्रमाण का मूल्यांकन करना और उस प्रमाण के आधार पर दोषी ठहराना और सजा सुनाना न्यायालय का काम है जो स्वतंत्र रूप से अपना काम करती रही है| सोशल मीडिया में जिसे ट्रोल किया जाता है वो अपने अपने वैचारिक मूल्यांकन का प्रतिफल होता है| ध्यान रहे यह मूल्यांकन अंतिम सत्य कतई नहीं हो सकता| देश की सबसे सर्वोच्च संस्था है न्यायपालिका| हरियाणा में कोर्ट ने जिस तरह से डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम पर लगे आरोप को दोषी माना और सजा सुनाया जो सर्मान्य है| काफी अध्ययन के बाद उस नतीजे पर पहुँचा गया| इसका डिफेंड कोई नहीं कर सकता है| मेरे कलम की नजर उस घटना पर नहीं बल्कि उस घटना के बाद होने वाने वैचारिक असमानताओं और धार्मिक तुष्टिकरण पर है| इस घटना को एम्पलीफाई करके अलग अलग प्रकार के बाइनरी डिस्कोर्स तैयार करने की कोशिश की जा रही है|

सबसे पहले हमें यह समझना होगा कि अपना देश हिंदुस्तान हमेशा से भावनाओं वाला देश रहा है| यहाँ लोग व्यावहारिक नजरिए से बहुत भावुक लोग रहते है| भावुकता का कभी ख्याल रखा जाता है, तो कभी उपहास उड़ाया जाता है और कभी इसे व्यवसाय का एक हिस्सा बना दिया जाता है| इसी भावुकता ने मोहनदास करमचंद गाँधी को महात्मा गाँधी बना दिया| भावुकता के गुण ने जयप्रकाश नारायण जी के एक आवाज पर लोगों ने एक प्रतिरोध की स्वर उठाने के लिए निस्वार्थ सहयोग किया| बच्चे-बूढ़े से लेकर छात्र तक सबने सामने आकर समर्थन किया| इसी भावुक व्यावहारिकता ने भ्रष्टाचार की मुहीम में हर संभव अन्ना हजारे का सहयोग दिया| निर्भया के इन्साफ के लिए निस्वार्थ लोग कैंडल लेकर तमाम जगहों पर जा पहुचे| इसी भावुकता ने साफ़ और स्वच्छ राजनीती की उम्मीद में अपनी कमाई का एक हिस्सा ‘आम आदमी पार्टी’ को दान देने लगे| जरूरत बस इस चीज को जानने की है कि वो जाने अनजाने कोई इसके आड़ में भावुक होकर अपराध तो नहीं कर रहे है| यह हमारे देश की सच्चाई है|

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अब हमारे देश में डिस्कोर्स कैसे तैयार किए जाते है उसे एक-एक करके देखते और चिंतन करते है| पहला डिस्कोर्स हिन्दू धर्म में सारे संत और धर्म गुरु ऐसे ही है| इसका उपहास उड़ाया जाता है| जबकी सच्चाई यह है कि अभी भी बहुत सारे हिन्दू धर्म में गुरु है जो साधना के साथ जीते है और अपना कर्तव्य करते है| गुरमीत राम रहीम सिंह के उदहारण से ना तो देश के सारे ‘संतों’ और ‘साधुओं’ का मूल्यांकन किया जा सकता है और नाही ‘हिन्दू धर्म’ या ‘डेरा सच्चा सौदा’ की ब्याख्या की जा सकती है| ठीक वैसे ही जैसे कुछ आतंकवादीयों से ‘मुस्लिम धर्म’ की व्याख्या नहीं की जा सकती| मैंने ‘डेरा सच्चा सौदा’ इसलिए जोड़ा क्युकी इसकी स्थापना इन्होने नहीं बल्कि संत शाह मस्ताना जी ने 1948 में की थी| इन्होने एक झोपड़ी से आध्यात्मिक कार्यक्रमों और सत्संगों का आयोजन करके इसकी शुरुआत की थी| शाह मस्ताना महाराज के बाद डेरा के प्रमुख शाह सतनाम महाराज बने| बाद में 1990 में आकर राम रहीम इसके प्रमुख बने थे| अगर ये गलत निकले इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं कि वो संस्था ख़राब रही है|

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अगर ख़राब होती तो शायद लोगों का इतना समर्थन नहीं मिलता जितना अब तक मिलता रहा है| यह बहुत आसान होता है किसी को मुर्ख और अंधभक्त कह देना| हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तरप्रदेश के लोग इतने भी मुर्ख नहीं है, जितने की लोग समझ रहे है और टैग कर रहे है| हरियाणा में मैंने अपने जीवन का एक बढ़िया हिस्सा बिताया है और वहाँ के लोगों से रुबरू होते रहा हूँ| जो कुछ भी हमें मीडिया से दिख रहा है वो लोगों की वो भावनाएं है, जो यह मान बैठी है कि यह गुरु गलत नहीं कर सकते क्युकी वो ‘डेरा सच्चा सौदा’ के प्रमुख रहे है| जो की बहुत गलत है| आज के समय में भी कुछ अंतिम सत्य नहीं होता| निसंदेह ‘डेरा सच्चा सौदा’ बहुत अच्छा हो सकता है| इसके प्रमुख गलत है तो उन्हें आखिरकार कोर्ट ने सजा दिया है न| न्यायालय का निर्णय सर्वमान और सर्वप्रिय होता है| इसने प्रमाण के आधार पर दोषी करार दिया है और जो भी सजा मिलेगी उन्हें काटनी पड़ेगी| यह सच्चाई है और इस सच्चाई से कोई भी भाग नहीं सकता| लेकिन इस घटना को एम्पलीफाई करके बाकी के चीजों जैसे धर्म, समाज और अपनी हित को हवा दी जाएगी तो वो भी बहुत गलत बात है|

मुझे समझ नहीं आ रहा है कि लोग इतने हतोउत्साहित क्यों है? मुखालफत राम रहीम की हो रही है या फिर किसी और चीज की| अगर राम रहीम की हो रही है तो ठीक है अन्यथा बेवजह कीर्तन करने का कोई मतलब नहीं बनता| अभी दो साल ही हुए है जब याकूब मेमन को इसी न्यायालय ने फासी की सजा सुनाई थी तब ऐसे स्वर सामने आ रहे थे जैसे न्यायालय ने धर्म को देखकर सजा सुनाई हो| लोगों ने ऐसी बातें कही भी थी| वही कोर्ट जब राम रहीम को सजा सुनाती है तो कोर्ट पक्षपाती कोर्ट से स्वतंत्र कोर्ट में तब्दील हो जाती है| यही सीबीआई जब किसी एनकाउंटर की तफ्तीश करती है और अपनी रिपोर्ट सौपती है तो वह किसी ख़ास पार्टी की होती है, और जब ऐसे सकारात्मक परिणाम देती है सीबीआई ‘पिंजरे में बंद तोते’ से स्वतंत्र हो जाती है| सच्चाई यही है कि न्यायालय और सीबीआई जैसी तमाम सरकारी संस्थाएं कल भी स्वतंत्र थी और आज भी स्वतंत्र है| फर्क हमारे में है हमें कभी मीठा लगता है और कभी कड़वा| यह समय का फेर है और कुछ नहीं है|

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इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि ये संस्थाएं अंतिम सत्य है| गलतियाँ हुई है लेकिन एक-आध ठीक वैसे ही जैसे हिन्दू में ऐसी घटनाएँ एक-आध होती रही है और बहुत सारे संत साधना से रहते है जिनका हमें पता तक नहीं चलता| ऐसा इसलिए होता है क्युकी वो चीजें कैमरे से दूर होती है| एक उदाहरण से इसे समझते है| मुस्लिम धर्म में बहुत सारे मौलवी बहुत अच्छे है जो अपने देश, समाज और धर्म की अच्छी चीजों को बताते है| जब भी अपने मुस्लिम दोस्तों से ऐसी चीज सुनता हु तो आश्चर्य होता है| फिर सोचता हूँ कि आखिर उनकी बातें प्राइम टाइम क्यों नहीं बन पाती है| जबकी वही कोई मुहम्मद हाजी सादिक जैसे मौलवी लोगों की रेप की वारदातें सामने आती है तो दिन दिन भर तक टीवी पर चलता रहता है| फिर वहाँ से दूसरा पक्ष यह निष्कर्ष निकालने की कोशिश करता है कि मुस्लिम समुदाय के सारे मौलवी ऐसे होते है| जबकी यह भी सच्चाई नहीं है| जब जिसका समय आता है अपने तरीके से चीजों को ढालता है| यह एक पैटर्न रहा है| खासकर राजनितिक खेमे में इसका भरपूर उपयोग होता है| ये चीजे हम आम लोगों को समझने की जरूरत है|

लेकिन लोगो के स्वर और प्रत्क्रियाएं हमेशा अपने ढंग से बदलती रहती है| अभी कुछ लोगों को सोशल मीडिया पर देख रहा था| लोग इस पर सवाल उठा रहे थे कि कश्मीर में बहुत जल्द ही पैलेट गन चला दिया जाता है लेकिन यहाँ इसलिए नहीं चलाया गया क्युकी हिन्दू धर्म की बात है| यह किस प्रकार की रुढ़िवादी धारणा है जो अराजकता फ़ैलाने की कोशिश कर रही है| कश्मीर और यह दोनों बहुत अलग अलग चीजें है| एकसाथ जोड़ना बेवकूफी है| वहाँ पर कुछ लोग है जो देश को तोड़ने की कोशिश करते है| चुनाव के दौरान हुए फौजी के वर्ताव को हमने बखूबी देखा| क्या दोनों चीजे एक है? ऐसा भी नहीं है कि वहां पर सेना हमेशा पैलेट गन लेकर हमेशा मारने को तैयार रहती है| जब वैसी परिस्थिति आती है तब ही उसका उपयोग होता रहा है| इसलिए उस डिस्कोर्स को यहाँ जोड़ने सही नहीं है| इसके अलावां दूसरी ओर देखे तो पाएंगे कि हिंदुस्तान में तुष्टिकरण इस हद तक होती है कि कोर्ट अगर सजा देती है तो किसी ख़ास समुदाय को खुश करने के लिए जो साधारणतः वोट बैंक होता है, कानूनें बनाकर निर्णय पलट दिया जाता है|  शाहबानो केस इसका बढ़िया उदहारण है| यहीं नहीं जब यही सुप्रीम कोर्ट तीन तलाक पर रोक लगाने की बातें करता है तो कुछ लोग ना मानने और अपनी चलाने की धमकी तक देते है|

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हर धर्म, समाज, और जाती में गलत और सही चीजें है| कुछ एक उदाहरण से पुरे समाज, धर्म और जाती की ब्याख्या नहीं की जा सकती है| गलत और सही चीजें हर धर्म में है| हिन्दू धर्म के एक पक्ष को अक्सर दिखाया ही जाता है, मुस्लिम धर्म की खामियों को सिरिया और इराक से जोड़कर उसके पक्ष को भी वैसे ही दिखाया जाता रहा है कि कितनी गलत चीजें क्रमशः हिन्दू और मुस्लिम धर्म में है| जबकी सिख धर्म के नकारात्मक पक्ष को भिंडरवाले के समय में हमने देखा| इसके अलावां क्रिसचियन धर्म में किए गए नकारात्मक पक्ष को तो पूरी दुनिया ने गुलामी के वक्त देखा ही है| इसके बाद रह गया बौध धर्म तो उसका हाल हमने श्रीलंका और म्यांमार में अच्छी तरह से देखा| श्रीलंका में बौध धर्म के लोगों का हिंसात्मक सामना हिन्दू धर्म से हुआ, जो मूल रूप से दक्षिण भारत के तमिल समुदाय से मेल खाते थे| म्यांमार में बौधिस्ट लोगों का सामना रोहिंग्या मुस्लिम के साथ हुआ| जानकर आश्चर्य होगा कि वहां के बौधिस्ट लोगों ने रोंहिग्य मुस्लिम को नागरिकता तक नहीं दी है क्युकी उनका मानना है कि मुस्लिम को अंग्रेजों ने म्यांमार में बसाया था|

वहां के टकराव की परछाई कभी कभी भारत में मिलता है जब मुस्लिम समाज को जवाबी हिंसा करना होता है तो बौध धर्म के उदगम स्थल बोधगया को टारगेट करते है| इसलिए अच्छाई और बुराई हर जगह है| हर धर्म में बहुत सी अच्छाईयाँ है और कुछ बुराइयाँ भी है| इसे हम जितनी जल्दी समझ लेंगे हमारे लिए शुभ होगा|

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