पद्मावती: ऐतिहासिक मसलों पर डॉक्यूमेंट्री बनाई जाती है फ़िल्म नहीं

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बहुत दिन पहले मैंने रानी पद्मावती को लेकर अपना पक्ष रखा था| आज भी उसी पर अडिग हूँ| किसी अन्य धर्म को मानने वाले आदमी से अगर यह कहा जाए कि पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान श्रीकृष्ण ने 16000 शादियाँ की थी| बिना देर किए जो प्रतिक्रिया आएगी वो बहुत ही हास्यापद होगी| क्युकी आज की आस पास की परिस्तिथियों को देखकर यही कहेगा कि यह तो असंभव वाला काम है और यह मनगढ़ंत है| वही वैज्ञानिक तौर पर देखे तो क्वांटम फिजिक्स यह कहता है कि एक पार्टिकल एकसाथ मिलियन पार्टिकल्स के साथ एक्सिस्ट कर सकता है| फिर सवाल यह उठता है कि उसी पार्टिकल से बने बना मनुष्य क्यों नहीं कर सकता| दूसरा उदा. मैंने कई मर्तबा लोगों को यह कहते हुए भी सुना है कि रामायण महाभारत आदि सबकुछ मनगढ़ंत है| फिर ताम्र संस्कृति, मध्य पाषाण और नव पाषाण युग के इतिहास से पता चलता है कि खुदाई में कुछ ऐसे साक्ष्य मिले है जो यह साबित करता है कि महाभारत की पात्रों की उपस्तिथि कहीं न कहीं थी| इनामगाँव और दैमाबाद की खुदाई उसमे से मशहूर है| ऐसे ही पद्मावती फिल्म बनने और विरोध के दौरान भी बहुत सारी ऐसी अफवाहें आई कि पद्मावती एक काल्पनिक कविता मात्र है जिसपर फिल्म बन रही है|

इसलिए डिस्कशन शुरू होने से पहले यह तय हो जाना चाहिए कि रानी पद्मावती का किरदार वास्तविक था| क्युकी ये बातें संवाद के दौरान डिस्कोर्स बदलती है| इसलिए यह मलिक मुहम्मद जायसी का कृत ‘पद्मावत’ नामक महाकाव्य भर नहीं है| ये कौन थे? ये एक कवी थे| पुराने जमाने में ज्यादातर संवाद भी कविताओं के माध्यम से ही होता था| राजा महराजाओं के दरबारी कवी हुआ करते थे| इसलिए तथाकथित विद्वानों द्वारा पद्मावती को एक विशुद्ध रूप से काल्पनिक चरित्र मान लेना भी एक कल्पना ही है| बहुत पहले इस पर डॉक्यूमेंट्री ‘भारत एक खोज’ दूरदर्शन बना चूका है| उसमे भी उस सत्य को दिखाया गया है| पद्मावती सिंहल द्वीप के राजा गंधर्वसेन की पुत्री थी और चित्तौड़ के राजा रतन सेन के साथ उनका विवाह हुआ था| वे अद्वितीय सुन्दरी थी| रतनसेन के द्वारा निष्कासित ज्योतिषी राघव चेतन बदले के भावना में जाकर दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी को चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण करने के लिए लालच देकर उकसाता है| राघव चेतन धन दौलत से ज्यादा रानी पद्मावती को केंद्र में रखता है|

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आठ महीने के युद्ध के बाद भी अलाउद्दीन खिलजी चित्तौड़ पर विजय प्राप्त नहीं कर सका तो लौट गया और दूसरी बार आक्रमण करके उस ने छल से राजा रतनसेन को बंदी बनाता है और उसे लौटाने की शर्त के रूप में रानी पद्मावती की मांग करता है| तब पद्मावती की ओर से भी छल का सहारा लिया गया और गोरा-बादल की सहायता से अनेक वीरों के साथ वेश बदलकर पालकियों में पद्मावती की सखियों के रूप में जाकर राजा रतनसेन को मुक्त कराया गया| परंतु इस छल का पता चलते ही अलाउद्दीन खिलजी आक्रमण करता है, जिसमें दिल्ली गये प्रायः सारे राजपूत योद्धा मारे जाते है| राजा रतनसेन चित्तौड़ लौटते तो है लेकिन यहाँ आते ही उन्हें कुंभलनेर पर आक्रमण करना पड़ता है और कुंभलनेर के शासक देवपाल के साथ युद्ध में जीत तो होती है, लेकिन राजा रतनसेन अत्यधिक घायल होने के कारण स्वर्ग सिधार जाते है| उधर फिर से अलाउद्दीन खिलजी का आक्रमण होता है| रानी पद्मावती अन्य सोलह सौ स्त्रियों के साथ जौहर करके भस्म हो जाती है| युद्ध की तेहरी मार के कारण वहाँ के सारे राजपूत योद्धा मारे जाते है, जहाँ अलाउद्दीन खिलजी को राख के सिवा और कुछ नहीं मिलता है|

सबसे ज्यादा भारतीय इतिहास के साथ खिलवाड़ होता आया है| प्राचीन काल के इतिहासकारों ने असल भारत की चित्रण जरूर की है लेकिन बाद के इतिहासकारों ने इसके साथ बहुत छेड़-छाड़ किया है| यूनानी राजदूत मेगस्थनीज चन्द्रगुप्त के दरबार में आता है और “इंडिका” नामक पुस्तक के माध्यम से भारत को चित्रित करता है| ऐसे ही एक फ़ारसी विद्वान लेखक, वैज्ञानिक, धर्मज्ञ तथा विचारक अल बिरूनी, भारत और श्रीलंका की यात्रा पर 1017-20 के मध्य में आता है, यहाँ संस्कृत सीखता है फिर यहाँ के इतिहास को स्वतंत्र रूप से चित्रित करता है| लेकिन बहुत बाद जब ईसाइयत का भारत में आगमन होता है तो भरपूर छेड़छाड़ होता है| ये लोग अल बिरूनी के ठीक उल्टा लिखना शुरू कर देते है| अंग्रेजों की तरफ से ट्रांसलेटर को भारत भेजा जाता है जिससे संस्कृत से इंग्लिश में परिवर्तित किया जा सके| उनका लक्ष्य था कि भारत के प्राचीन काल के इतिहास को बर्बाद कर दिया जाए| विलियम जोन्स, मैक्स मुलर, और विन्सेन्ट स्मिथ उनमे प्रमुख थे| जेम्स मिल नाम का एक ऐसा अंग्रेजी इतिहासकार था जो भारतीय मीडिया की तरह काम करता था| बिना कही गए और बिना भारतीय भाषा को जाने समझे इस हीरो ने भारतीय इतिहास पर 6 वॉल्यूम लिख दिया था|

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हालाँकि यह एक अलग चर्चा का मजेदार विषय है| इसमें ऐसा नेक्सस बनाया गया था कि ईसाइयत ही सब है बाक़ी का सब फर्जीवाडा है| यहाँ ध्यान दीजिए अंग्रेजों ने अपना शासन व्यवस्था स्थापित करने के लिए सबसे पहले इतिहास को ख़त्म करने का प्रयास किया| इसलिए यह जरूरी है कि सही इतिहास जिन्दा रहे| इतिहास से कला, संस्कृति के साथ-साथ सबसे महत्त्वपूर्ण चीज तजुर्बा देता है| इसलिए विचारकों ने कहा है कि किसी देश को बर्बाद करना है तो वहाँ की संस्कृति, समाज और भाषा को बर्बाद कर दो देश अपने आप बर्बाद हो जाता है| आज के समय में दिक्कत की बात यह कि ये चीजें आने वाले भविष्य के लिए कंट्रोवर्सी वाला विषय हो जाएगा जैसे आज हमारे समाज में अनेकों है| इसलिए सबसे पहले समझने वाली बात यह है कि ऐतिहासिक मसलों पर डॉक्यूमेंट्री बनाई जाती है फ़िल्म नहीं| जब भी फिल्में बनती है तो इतिहास के साथ छेड़छाड़ होता ही है क्योंकि फ़िल्म का अंतिम मूल्य पैसे पर ही आकर अटकता है| कला, कलाकार और बाकी का सिर्फ पर्दा है जो बिजनेस को छुपाने का काम करता है| विजुअल चीजें चाहे किसी पर भी बने छेड़-छाड़ की संभावना रहती ही है|

भंसाली साहब इस सस्ती लोकप्रियता और कला के संवेदना की पोटेंशियल को अच्छी तरह से समझते है। भंसाली साहब के लिए ये कोई नई बात नहीं है। वही सब हो रहा है जो वो चाहते थे| इतिहास को आधुनिकता के सह पर हम इग्नोर तो बिल्कुल नहीं कर सकते| अगर इतिहास प्रासंगिक नहीं होता तो इसे पढ़ाया नहीं जाता| हमें स्कूल से पढ़ाया जाता है, यह हमारे पाठ्यक्रम में उपलब्ध है, इसका मतलब कि यह जरूरी है| इतिहास क्यों जरूरी होता है इसके बारें में ऊपर चर्चा कर चूका हूँ| रही बात असहमति की बात पर तो राजपूत समाज की तरफ से हो रहा विरोध भी तो असहमती ही है जो लोग लिखकर और संवाद करके अपनी असहमति व्यक्त कर रहे है। करणी सेना का विरोध करने तरीका गलत है लेकिन इसका मतलब यह बिलकुल नहीं है कि बाक़ी के लोग जो असहमति व्यक्त कर रहे है उसपर पर्दा डाला जा सके| इस असहमति की कद्र क्यों नहीं होती असहमती शब्द सैविधानिक रूप से सबके लिए बराबर है| सेलेक्टिव रूप से उपयोग करना कुछ और नहीं बल्कि भेदभाव है| ध्यान रहे भेदभाव का सर्टिफिकेट सिर्फ माइनॉरिटी और हासिये वाले लोगों के लिए फिक्स नहीं है| ये सर्टिफिकेट यूनिवर्सल है| मेरे यह सब लिखने के पीछे एक ही कारण है कि किसी भी समाज के साथ “तुष्टिकरण” न हो, चाहे वो समाज कोई भी क्यों न हो|

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देश मे हर समाज भी भावना है सबकी आदर होनी चाहिए जैसे सबकी सैवधनिक रूप से होती रही है| समानता शब्द भी सैवधानिक रूप से यूनिवर्सल है इसका सेलेक्टिव उपयोग बिल्कुल नहीं होनी चाहिए| रही बात करणी सेना जैसी समूहों की तो हर समाज और हर वर्ग में ऐसे समूह है जो ठेकेदारी को अपने समूह की रक्षा की जिम्मेदारी मानते है| हरियाणा में खाप पंचायत, मुस्लिम समाज में पर्सनल लॉ बोर्ड, दलित समाज में भीम आर्मी और महाराष्ट्र में भीम आर्मी जैसे कई समूह मौजूद है| सब के सब अपनी सांस्कृतिक रक्षा, विविधता और स्वतंत्रता की आड़ लेकर विरोध करने का गलत तरीका अख्तियार करते है जो कि गलत है| लेकिन इसका मतलब यह बिलकुल नहीं है कि बाक़ी के समाज को आधार बनाकर करणी सेना के विरोध करने के तरीके को जायज ठहराया जा सके| वोलंटरी आर्गेनाईजेशन और सिविल सोसाइटी का यह दुष्परिणाम है| आज के समय में दिक्कत यही है कि लोग पैसे कमाने के लिए तरह तरह के ढोंग करते है और कोशिश करते है कि बहती गंगा की दिशा में ही बहे| आप विज्ञापनों को भी देखिए लोगों का आकर्षण पाने के लिए कभी देशभक्ति तो कभी धर्म का सहारा लेते है|

कुछ दिन पहले देख रहा था अक्षय कुमार पता नही किस सीमेंट का प्रचार कर रहे थे उसमें सेना की वर्दी पहनकर क्रोलिंग करते हुए दिखाया गया था ताकी लोगों को भावुक बनाया जा सके| ऐसे ही एक विडियो क्लिप मुझे यू ट्यूब पर मिला जिसमें देखा कि टीवी डिबेट पर राम मंदिर को लेकर चर्चा करने के लिए लोगों को राम के पात्र में एक आदमी को बैठाया था और दुसरे को हनुमान का| जबकी होना यह चाहिए था कि तार्किक बातें हो जिससे आपसी सहमती के साथ कुछ हल निकल सके| लेकिन दर्शकों को भावुक कर और दुसरे समाज के लोगों को उकसा कर जबरजस्ती बातों को ठोस करने की कोशिश की जा रही थी| कहीं न कहीं टीवी स्क्रीन जो है लोगों को उसका कर ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाने की होड़ में है| ‘पद्मावती’ फिल्म में ही देख लीजिए इसे अब काल्पनिक बनाकर बहुत सारी चीजें बदलकर पर्दे पर ला दी गई| फ़िल्म में एक तरफ़ दस्तरख़्वान में सजाए गए गोश्त पर टूट पड़ने से पहले उसे भूखे जानवर की तरह सूँघता हुआ अलाउद्दीन ख़िलजी है, तो दूसरी ओर एक साधक की तरह शांति से बैठकर सात्विक भोजन कर रहे अपने शालीन लेकिन कठोर पति को पंखा झलती पद्मावती| हो सकता है कि अब ये चीजें दुसरे वर्ग को उकसाय| इसी में तो पैसा है बॉस बाद बाक़ी सब मोह माया है|

इस पूरे संस्करण में दो बातें है। पहली बात की खुशी है कि राजपूत समाज अपने इतिहास को लेकर जागरूक है, इसके लिए मैं सलाम पेश करना चाहूंगा| दूसरी बात जिस तरह की हिंसा करते है, धमकियां देते है, कृत्य पर मैं भी असहमत हूँ और उसकी घोर निंदा करता हूँ| हिंसात्मक विरोध के तरीके को कभी भी जस्टिफाई नहीं किया जा सकता| इसका मतलब यह भी नहीं कि इन कृत्यों का सहारा लेकर मुख्य मुद्दे को छुपाया जा सके| राजपूतों का इतिहास बहुत शानदार और गर्व करने वाला रहा है| किताबों में तो हम बाद के स्कूल में पढ़ते है लेकिन राजपूतों की वीरता की कहानियां बचपन मे ही दादी के मुंह से सुन लिया करते है| वीरता इतनी कि पृथ्वीराज चौहान अपनी आंखें निकलवा लेना कबूल किया लेकिन अपनी आंखें नीची करनी नहीं| ये कहानियां वीरता की कहानियां है जो हमेशा साथ रहेंगी| अगर इसमें छेड़-छाड़ हो तो तंत्र को इसमें सामने आकर गंभीरता से लेनी चाहिए| कल गए हम अपने स्वतंत्रता सेनानियों की वीरता के साथ समझौता करने लगे तो हम लोगो से बड़ा खुदगर्ज कोई नहीं हो सकता| इसलिए सभी की भावनाएं है कोई पथ्थर का बना नहीं है| आप असहमति व्यक्त करें तो हक और हकूक के प्रति जागरूकता और वही असहमति कोई और व्यक्त करे तो मूर्खता और बेतुका लगता है| यह दोहरापन है| अगर असहमति का सच मे यही कांसेप्ट है तो इस असहमती की मुखालफत करने में मुझे कोई गुरेज नहीं है|

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हो सकता है कि आने वाले कल में कोई ऐसा फिल्मकार आए जो शहीद भगत सिंह को एक आतंकवादी के रूप में या महात्मा गाँधी को देश तोड़ने के रूप में पेश करे| हमारे समय में हो यह बहुत मुश्किल लगता है लेकिन देश में छुपारुश्तम लोगों की कमी नहीं है कुछ भी नहीं कहा जा सकता है| लेकिन एक ऐसा एरा आए जिसमें स्वतंत्रता की कहानियां उनके लिए अतीत हो जाए| अंग्रेजों के लिखे किताबों को उठाकर अगर कोई फिल्मकार शहीद भगत सिंह या महात्मा गाँधी के ऊपर आपतिजनक फिल्म बनाने लगे तब भी ऐसे ही दो पक्षों बनेंगे जैसा आज बन रहा है| इसकी हकीकत हम जानते है लेकिन हो सकता है कि आने वाला भविष्य छेड़छाड़ को ही सही माने और हमारी एरा को गलत, तब तो चीजें बदलेंगी न? फिल्मकारों में एक चलन चल रहा है जिसमें फ़िल्में कम और फिल्म के नाम पर बायोपिक ज्यादा बना रहे है| लिखी हुई चीजों को पर्दे पर देखने की इच्छा लोगों को थिएटर तक खीच लाती है| थिएटर की चीजों को एक बड़ा समूह देखता है| ऐसे में दो चीजें हो सकती है| पहली जिसने कुछ पढ़ा नहीं हो वो उसे सच मन लेगा| दूसरी जो पढ़ा होगा उसे अपने आप पर शक होने लगेगा| इसलिए जो भी वैधानिक चीजें है जिसपर लोग विश्वास करते है उसपर छेडछाड होना बहुत खतरनाक है|

रही बात लोकतांत्रिक और सैवधानिक प्रक्रिया की, तो बोर्ड से पास होने से पहले अपने पसंदीदा पत्रकारों से सर्टिफिकेट लेने की प्रक्रिया कौन सी उचित और सैवधानिक है? मीडिया का काम सिर्फ न्यूज़ हम तक पहुचाना है ना कि कोई निर्णय लेना| मीडिया बिकने में मिनट भी नहीं लगता है फिर उनके सलाह तो हर सेकंड बिकते होंगे| सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय का सम्मान जरूर करता हूँ लेकिन कुछ ऐसी घटनाएं है जो सच में झकझोर देती है| BHU के प्रोफेसर M.P. सिंह ने बढ़िया से अपने भाषण में एक्सप्रेस किया है| ये सब प्रोसेस चुनाव के पहले भी हो सकता था| लेकिन इतना जरूर है कि ये वर्डिक्ट उसी दीपक शर्मा ने दिया है जिसने थिएटर में राष्ट्रगान गाने को लेकर दिया था| यहाँ एक और कॉण्ट्राडिक्शन है| भंसाली के साथ खड़ी समूह दीपक शर्मा के उस निर्णय का विरोध किया था जिसमें थिएटर में राष्ट्रगान की बातें की गई थी| आज उनका वर्डिक्ट अच्छा लग रहा है क्युकी इसबार बात उनके पक्ष में है| ये भी तो विरोधाभाष है|ऐसा नहीं है कि रानी पद्मावती पर पहली मर्तबा कुछ बनी है| दूरदर्शन पहले ही इनपर डॉक्यूमेंट्री बना चुकी है| उसने छेड़छाड़ नहीं किया इसलिए कोई विरोध नहीं किया| अगर इसमें भी कुछ आपत्तिजनक नहीं होता तो शायद विरोध नहीं होता। इतिहास बहुत जरूरी होता है इसे संजोए के रखना हमरा कर्तव्य और धर्म है|

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