राजनीती के बॉल बेअरिंग ह साम्प्रदायिकता (भोजपुरी)

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ऑटोमोटिव इंडस्ट्रीज में बेअरिंग के सबसे ज्यादा उपयोग होला| हर रोटेशनल कॉम्पोनेन्ट में बेअरिंग के उपयोग कईल जाला| आउटर रिंग आ इनर रिंग के बीचे एगो बॉल होला ओकरे के बॉल बेअरिंग कहल जाला| ठीक ओही प्रकार आज के राजनीती के बॉल बेअरिंग ह साम्प्रदायिकता| एगो पैटर्न बन चुकल बा आज जब भी चुनाव आवेके होला त एह प्रकार के कवनो घटना के अंजाम दिआला| लगभग हर जगह के उहे कहानी बा| दादरी, मालदा सब ओही श्रृंखला के एगो कड़ी ह| हमरा समझ से साम्प्रदायिकता के जहर खासकर औपनिवेशवाद के बाद बुरी तरह फैलल रहे|

चुकी औपनिवेशिक काल में त अंग्रेज लोग के नीति रहे ‘फुट डालो और शासन करो’ लेकिन जात-जात अइसन ना पौधा उगा देहलस लोग कि हमनी पीढ़ी खातिर एगो बरियार इतिहास बन गईल बा| ओकरा बादे मूल रूप से धार्मिक साम्प्रदायिकीकरण के प्रक्रिया शुरू भईल| देश में अगर पहिला धार्मिक आधार प साम्प्रदायिकीकरण के जन्म 1947 भईल रहे जब विभाजन भईल| ओही घरी जनता के बीच एक दूसरा धर्म के प्रति अतना ना जहर भर देवल गईल कि ओकर प्रभाव आजो लउकेला| लोगन के बीच बटवारा के लेके एगो बरियार असंतोष पैदा भईल फिर ओह असंतोष से भेदभाव अउरी अल्पसंख्यक आ बहुसंख्यक के कांसेप्ट आइल|

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नब्बे के दशक में नयका आर्थिक नीति लागु होखला के बाद बाबरी विध्वंस, बम्बई दंगा अउरी गुजरात दंगा मूल रूप से तीन गो अहम पड़ाव रहल बा| मूल रूप से आतंकवाद के नाम प भारत के मुसलमान के धर पकड़ के सरकारी अभियान अमेरिका द्वारा शुरू कईल गईल रहे जवना में भारत एगो रणनीतिक साझीदार के रूप में जुडल रहे| आतंकवाद के नाम प आज तक जनता भी मुसलमान पकडाइल बा लोग, लगभग सभ लोग के कॉमन जवाब रहल इ बा ओह लोग के शिक्षा-दीक्षा बाबरी विध्यंस, बम्बई दंगा अउरी गुजरात दंगा के विडियो देखा देखा के कईल बा| ओही विडियो के माध्यम से भड़का भड़का के आतंकवादी कैंप में प्रशिक्षण देवल जाला|

इहे तीनो अहम पड़ाव के बखूबी उपयोग कर करके लगभग दू दशक से भारतीय मध्यमवर्ग के लोगन के उकसावल गईल बा| एकरे के अंगेजी में ‘रिवेंज थ्योरी’ कहाला| प्रतिशोध के एह सिधांत में जब जब राजनितिक माहौल के एकर जरूरत होखेला तब-तब नया-नया घटना के जरूरत पड़ेला| एगो बड़ा बरियार पॉइंट नोट करेवाला इ बा कि पिछला दस साल से जस जस बम्बई अउरी बाबरी के घाव सुखत गईल अउरी सारा राजनितिक बहस विकास दने सिमटे लागल तसही एगो दुगो छिट-पूट झड़प करवा के सारा मुद्दा के ओह सब घटना के तरफ खिचे के कोशिश कईल गईल| जनता में सांप्रदायिक घटना जन्म ले रहल बा आज समाज में सब इही श्रृंखला के एगो कड़ी ह चाहे बात मुज्जफरनगर के होखे, चाहे दादरी या फिर मालदा के काहे ना होखे|

तमाम तंत्र द्वारा असंतुलित प्रस्तुती

हाल ही में पश्चिम बंगाल के मालदा जिला में हिंदू महासभा के नेता कमलेश तिवारी के पैगंबर मोहम्‍मद के बारे में कईल गईल कथित आपत्‍त‍िजनक टिप्‍पणी के विरोध में निकालल गइल मुस्‍ल‍िम लोगन के रैली अचानक हिंसात्मक अउरी अलोकतांत्रिक रवईया अख्तियार कर लेले रहे| सबसे बड बात इ कि मेन स्ट्रीम मीडिया एकर अनदेखी काहे कईलस? दूसरा बात कि एह मसला प बुद्धिजीवी वर्ग खामोश काहे बा? काहे दादरी घटना में मुजफरनगर अउरी दादरी जईसन असंवेदनशीलता नइखे?

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एह में कवनो दू मत नइखे कि मुजफरनगर अउरी दादरी के घटना भारतीय लोकतंत्र के ऊपर वाकई में एगो सवालिया निशान खड़ा कईले बा अउरी बेहद शर्मनाक रहल बा| लेकिन ओकरे सामानांतर दूसरा घटना होता त सारा तंत्र खामोश काहे बा? काहे मालदा के घटना शर्मनाक नइखे? जबकि एकर दूसरा पक्ष जाली नोट, अफीम के कारोबार अउरी राजनितिक घालमेल से जुडल बा| मालदा कवनो अंतराष्ट्रीय सीमा से जुडल रहे का कि जवना के नियंत्रण में ना लावल जा सकत रहे|

अब एहिजा एगो संतुलित सवाल खड़ा इ होखत बा कि मालदा अइसन जगह जहाँ हिन्दू अल्पसंख्यक में बा अउरी मुस्लिम बहुसंख्यक, जब ओहिजा उ अल्पसंख्यक के क़द्र नइखे करत अउरी यात्री से भरल बस में आग लगावे खातिर आतुर हो जात बा त जहाँ उ अल्पसंख्यक में बा ओहिजा सहिष्णु बने के अपेक्षा कईल भी बईमानी जईसन होई| एहिजा सवाल उठल लाजमी बा कि मालदा में अइसन भईल दंगा के का तुक रहल बा? का इ मुसलमान लोगन के असहिषुणता  ना कहाई?

आखिर उ लोग धार्मिक पहचान से आगे काहे नइखे बढ़ पावत| अइसन सवाल एह से खड़ा होत बा काहे कि छोट मोट समूह के लोग जब अइसन चीज करेला त लोग हलुका में ले लेला कि शायद लोग में जागरूकता में कमी हो सकेला| लेकिन 2-3 लाख लोग सड़क प उतर के उत्पाद मचाई सारा नियम कानून के ताख प रख के त देश कईसे चली? का मौलवी जी लोग सहित धार्मिक ठेकेदार के इ बात ना सोचे के चाही कि इ कदम एकदम असैवधानिक बा| बल्कि अगर समझदारी के बात होई त सैवंधानिक लड़ाई लडित|

हम एगो बड़ा ही सामानांतर उदहारण पेश कईल चाहब| AIMIM के नेता अउरी अससुदीन ओवैसी के भाई अकबरुदीन ओवैसी ठीक इंनकरे लेखा हिन्दू देवी देवता के प्रति खुलेआम सभा में अभद्र भाषा के उपयोग कईल रहन| दुनो जना के अभद्रता के स्तर सामान रहे| ओहिजा भाषण देत समय मंच के निचे से ओवैसी के कॉम्प्लीमेंट भी मिलत रहे| अब अहिजा दू तिन गो वाजिब सवाल खड़ा इ होखत बा कि उनका टिपण्णी प कवनो अइसन हिंसात्मक आन्दोलन भईल रहे जहाँ पुलिस प्रशासन के वैल्यू के ताख प रख के अलोकतांत्रिक तरीका से घटना के अंजाम देवल गईल होखे?

दूसरा सवाल इ कि के ह कमलेश तिवारी? कवनो राजनितिक पार्टी के नेता हवन? या जनता द्वारा चुनल प्रतिनिधि? उनकर बात के अतना संज्ञान में लेके काहे हीरो बनावल गईल? तीसरा बात इ कि अकबरुदीन ओवैसी त एगो राजनितिक पार्टी के नेता रहन उनकर बात के संज्ञान में ले सकत रहे लोग| अगर सच में समानता के बात होखे त अइसन घटना के ठीक ओसही निंदा के जरूरत बा जईसे दादरी अउरी मुज्जफरनगर के भईल रहे| हमरा दुनो घटना के तुलना करे के मतलब इ बिल्कुल नइखे कि तिवारी जी जवन कहले उ सही कहले|

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मुसलमान लोग के जागरूक होखे के पड़ी

सबसे पहिला बात इ समझेवाला बा कि का पैगम्बर मुहम्मद साहब के पर्सनालिटी अतना छोट बा कि उनकर कोई तौहीन कर सके| दूसरा बात कि एगो आदमी के बयान से इस्लाम खतरा में कईसे आ सकेला? जईसे हिन्दू कम्युनिटी के लोग, ओवैसी के बात के नजरंदाज कईलस अउरी न्यायिक प्रक्रिया के तहत कानूनी कार्यवाई भईल ठीक ओसही मुस्लिम कम्युनिटी के लोग के कमलेश तिवारी के नजरंदाज कईल चाहत रहे बजाए दंगा फसाद करे से अउरी कानूनी प्रक्रिया अख्तियार कईल चाहत रहे| जब दादरी वाला घटना भईल रहे त लोग काहे इ बात कहत रहे कि अवार्ड वापसी विरोध के एगो गाँधीवादी तरीका ह|

काहे कि ओह अवार्ड वापसी प्रक्रिया के हिंसात्मक पहलु से कवनो तालमेल ना रहे| जतना ठेकेदार लोग बा मुस्लिम समुदाय में उहे लोग सबसे ज्यादा मुस्लिम समाज के डूबवले बा| अतना कुछ भईल ओही स्तर के गाली देले लेकिन अकबरुदीन ओवैसी के बड भाई असद्दुदीन ओवैसी आज तक एह बात के टालत आइल बाड़े कि उनकर भाई गलत कईले रहे कि ना? हमरा नइखे लागत कि शायद ही कवनो टीवी चैनल होखी जवन उ प्रश्न ना पूछले होई| हमेशा कोर्ट के हवाला देके एह बात के इंकार कईले बाड़े| हमरा लेखा अनगिनत लोग मिल जाई जे कमलेश तिवारी जईसन लोग के बयान के सही ना ठहराई इहाँ तक ओही संगठन के शायद लोग भी|

अब सवाल उठत बा कि इ काम ओवैसी काहे नइखन करत| उ एह से नइखन करत काहे कि मुस्लिम जनता में उहे कट्टरपंथी के बीज बोअले बाडे, जवना में हल उनकर भाई चलवले बाड़े| अगर गलती स्वीकार लिहे त जनता के बीच अकड़ तनी कम हो जाई अउरी दोहरी मापदंड वाली बात आ जाई| एह से बड़ा ही शातिर तरीका के एगो उत्तर रटल जा चुकल बा कि “केस कोर्ट में बा उहे फैसला करी हमनी के के हई जा फैसला करे वाला?”  ओइसे सारा केस के निर्णय खुद ले सकेलन सिवाय आपन भाई के गलती माने के| इहाँ तक कि सुप्रीम कोर्ट जवना आतंकवादी के फांसी के दे चुकल बा ओकरो के सांप्रदायिक ब्रश से पेंट करे के कोशिश कईले बाड़े|

कहे के कहेलन कि संविधान में विश्वास बा| इ ठेकेदार लोग करी मुस्लिम जनता के भलाई करी? मुसलमान के भलाई कोई अउरी ना बल्कि उ खुद कर सकेला| एगो मसीहा के प्रतिबिम्ब बनावे खातिर स्कूल अउरी हॉस्पिटल खोल देवल गईल बा जवना से लोग के इमोशन के जीतल जा सके| इ बात ठीक ओकरे लेखा बा कि तम्बाकू के फैक्ट्री चलावेवाला एगो कैंसर के हॉस्पिटल खोलके कहे कि हम बहूत बड परोपकार कर रहल बानी| दूसरा बात अगर एह स्कूल आ मेडिकल कॉलेज के आधार प मसीहा माने के नियम बा त उनका के कई गुना ज्यादा स्कूल आरएसएस आ कट्टर हिंदूवादी संगठन चलावेला| त का एह लोग के थ्योरी के भी सही मान लिआओ नु? जब तू परोपकारी हो सकेलs त इ काहे ना?

इहे सब कारण बा जवना चलते हम साम्प्रदायिकता के ‘राजनीती के बॉल बेअरिंग’ के रूप में देखिला| जब जब चुनाव आवे के होला तब तब रुआ सभे भाषण सुनब कही विकास के नाम निशान तक ना आवे कि विकास कईसे होई| हर जगह सांप्रदायिक रंग लउकी| कुछ उदहारण देल चाहब आपन बात के मजबूत बनावे खातिर| बिहार चुनाव के कुछ दिन पाहिले ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के एगो रिसर्च पढनी जवना में ‘रिवेंज थ्योरी’ के अनुसार घटना बनावे खातिर एगो छोट मोट घटना भी मर्डर के रूप लेला| एगो लईका पतंग लावे कब्रिस्तान के तरफ चल गईल त दंगा शुरू हो गईल, गाय-भईस के रोड प बांधला खातिर सांप्रदायिक झड़प मर्डर के रूप तक लेला| नेता लोग भी उहे काम करेला|

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बिहार चुनाव के समय रैली में अमित शाह के भाषण भी बॉल बेअरिंग थ्योरी के सही साबित करत बा जवना में आपन पार्टी के हार के तुलना पाकिस्तान में पटाखा फुटला से कईले रहेले| उहे दूसरा तरफ ओवैसी के भाई के भाषण आवेला कि 4 घंटा खातिर पुलिस हटा देवल जाव त उ अतना कत्लेआम करिहे कि हिंदुस्तान के इतिहास में आज तक ना भईल होई| उनका के पूछे के चाहत रहे कि ओह दिन कहाँ रहs जब मुज्जफरनगर दंगा भईल रहे, ओह घरी कहाँ रहs शहंशाह साहब जब झारखण्ड में दंगा भईल? कहे के कहेला लोग कि मुसलमान लोग के विकास करे खातिर लड़त बाड़े| एह सब से होई विकास?

मुस्लिम लोग के चाही कि चुनाव के वक्त पूछे कि मुस्लिम खातिर का प्लान बा? शिक्षा, रोजगार अउरी स्वास्थ्य खातिर का प्लान बा बजाए धार्मिक रंग में रंगला के| सरकारी ऑफिस जलईला, सरकारी गाड़ी जलईला और सार्वजनिक सामान के तोड़फोड़ कईला ले मुसलमान के नौकरी मिल जाई? शिक्षा के स्तर सुधर जाई? स्वस्थ्य के स्तर सुधर जाई? बिल्कुल ना बल्कि अउरी किल्लत होई| काहे कि जवन गाडी जली त सरकार त नया किंनबे करी चाहे हई सरकार होखे या हउ| जवन ऑफिस जलल बा उ वापस बनबे करी|

एह सब करे में एगो बढ़िया पईसा लागेला| इ बात रउओ जानत बानी आ हमहू कि पईसा कवनो आसमान से त टपकेला ना| इ बात भी पता होई कि सरकार आर.बी.आई. से कर्ज लेके सारा काम करेले उ सब चुकावल भी सरकार के जिम्मेवारी होला| जवन पईसा सरकार के शिक्षा, स्वस्थ्य अउरी रोजगार प लगावे के रहे ओह में कटौती करी तबे नु बेवकूफी के भरपाई करी| जब कटौती करी त शिक्षा, स्वस्थ्य अउरी रोजगार के गुणवता में कमी आवल लाजमी बा| एह से नुकसान देश के त बडले बा साथे साथे जनता के नुकसान भी बहूत ज्यादा बा|

नोट:- हमार इ लेख ‘हेलो भोजपुरी’ पत्रिका 2016 के फरवरी अंक में छप चुकल बा|

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