क्या डिजिटल इंडिया का कांसेप्ट अपेक्षित समाज की जरूरतों के सामानांतर है ?

Dial down the FREE Subscription for such premium content on our YouTube channel. How to Add Subscribe Button on YouTube Videos (Subscribe Button PNGs)

बात बहुत पुरानी नहीं जब विमुद्रीकरण का मुख्य लक्ष्य के रूप में ‘काउंटर टेररिज्म’ और ‘डिजिटल इंडिया’ का हवाला दिया जा रहा था| बदलते समय के तजुर्बे ने पुरजोर तमाचा रशीद करके इस बात का एहसास दिला दिया कि वो सब हमें बेवकूफ बनाने मात्र ही था| इससे नाही आतंकी गतिविधि पर कुछ बुरा असर पड़ा, नाही नक्सल क्षेत्र में इसका कुछ ख़ास बुरा असर दिखा, नाही इससे कोई ख़ास ब्लैक मनी या ब्लैक मनी धारक वालें लोगों का कुछ सामने आया और नाही अर्थव्यवस्था के क्षेत्र को डिजिटल बनाने में किसी भी प्रकार का सकारात्मक बल मिला|

उदहारण के रूप में, हाल ही में स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया की तरफ से सभी ग्राहकों के फ़ोन पर मेसेज गया कि 1 अप्रैल से खाता में न्यूनतम पांच हजार रूपए होने चाहिए जिसे मेन्टेन करके रखना होगा| अगर ऐसा नहीं किया गया तो उसे जुर्माना के तौर पर 100रु+सर्विस टैक्स का भुगतान करना होगा| अगर प्राइवेट कंपनियों का बैंक होता तो एकबार यह सोच के इग्नोर किया जा सकता है कि हमारे पास विकल्प के रूप अपना बैंक (सरकारी बैंक), SBI के रूप में हमारे पास है|

Decoding World Affairs Telegram Channel

अगर अर्थव्यस्था डिजिटल होगी और ‘भीम’ भईया या ऐसे किसी भी सिमिलर एप्प का उपयोग करना होगा तो 20रु का भी तो ट्रांजेकशन कर ही सकते है| जब जनधन का खाता खुलवाया गया था तब रिकॉर्ड दर्ज करवाया गया था कि अब तक का सबसे बड़ा फाइनेंसियल इन्क्लूजन है| यहाँ तक कि इस कदम का मै भी समर्थक था| इसे मै इस सरकार की उपलब्धियों के रूप में देखता था| शुरुआत में बहुत सारे अर्थशास्त्री और आलोचकोनो ने इसपर अपना उलट पक्ष रखा था|

आशावादी होकर मै यह सोचता था कि इन लोगों द्वारा दर्ज किया गया पक्ष इतना भी बड़ा नही है कि इसका विरोध किया जा सके| छोटी सी चीजें है समय के साथ बदल जाएगा| खाता जीरो रुपया पर खुलवाया गया था लेकिन उसका उपयोग करने के लिए किसी भी प्रकार के सिस्टम का निर्माण नहीं किया गया| इसके अलावां जो बैंक से सम्बंधित जागरूकता फैलाने का प्लान और शिक्षित करने का प्लान नाम का कोई भी तंत्र नहीं था| और अब बैंक भी अपने दायरे में नहीं है ऐसे में कैसे होगा हमारा भारत डिजिटल?

See also  बैंकों के जटिल नियम ही अक्सर होने वाले बैंक घोटालों के असल नीवं

बता यहीं नहीं रूकती| खुद SBI के एटीएम से मात्र 5 बार पैसे मुफ्त में निकाल सकते है, इसके बाद एक्स्ट्रा चार्ज का भुगतान करना होगा| किसी दुसरे बैंक के एटीएम से निकालने के लिए मात्र 3 बार आप स्वतंत्र है इसके बाद आपको अलग से पैसों का भुगतान करना होगा| क्या किसी भी अर्थव्यवस्था को डिजिटल बनने से रोकने के लिए ये रोड़े पर्याप्त नहीं है? खुद का कमाया पैसा टैक्स का भुगतान करने के बाद आपके पास जमा किया, जिसमें ब्याज के नाम पर ऊंट के मुहं में जीरा के बराबर ब्याज मिलता है उसी पैसे को निकालने को अलग से मुझे चार्ज देना पड़े? यह लॉजिक मेरे समझ से परे है|

एक बार दुसरे बैंक से निकालने पर सोच भी सकता था लेकिन खुद के बैंक से? ये वो दौर है जब व्यक्ति बैंक से मोहब्बत करने जा रहा है| ऐसे मौके पर तमाम तरह की शर्तें ब्रेक-अप करवाने के जरा भी देर नहीं करेगा| फिर वही बैंक से सिर्फ उन्ही लोगो का नाता रहेगा जो सरकारी नौकरी करते है| वो भी मात्र सैलेरी निकालने के लिए| कोई इन्वेस्टमेंट और तमाम तामझाम से किसी भी प्रकार का लस्ट नहीं|

यहाँ तक कि बैंक के एस.एम.एस. तक का चार्ज तक देना पड़ता है| बैंक हमसे बचत का पैसा लेती है इसके एवज में मात्र 4% के दर से हमें ब्याज देती है, जब सेविंग अकाउंट में पैसे रखते है| उसी बैंक से जब लोन लेने जाते है तो यहाँ तक कि शिक्षा पर 14% के ब्याज दर से हमें पैसे देती है वो भी तमाम तरह से कोलैटरल रखवाने के बाद| जब हमारे पैसे पर लगभग 10% के दर से मुनाफा कमाती तो क्या देश को डिजिटल बनाने के नाम पर एक एस.एम.एस. फ्री सेवा नहीं दे सकती? इतना बड़ा मुनाफा कमाने के बावजूद अपने ही बैंक के एटीएम से पैसे निकालने के अनुमति पर अवरोध पैदा करे, यह कहाँ तक जायज है?

See also  डिजिटल इंडिया के असल मायना (भोजपुरी)

अब सरकारी क्षेत्र में कैश ट्रांजेक्शन को लेकर बातें करते है| उदहारण के रूप में रेलवे ले लेते है| रेलवे में तत्काल की सुविधा सभी लोगो को फर्स्ट कम फर्स्ट सर्व के आधार पर दी गई है| चलिए मान लेते है कि टिकेट काउंटर से हो सकता है बशर्ते रात भर स्टेशन पर पहरा करे| दूसरा फेस है इन्टरनेट, जहाँ से उम्मीद की जाती है सभी लोगों के लिए एक्सेसिबल होगा| मैंने कई मर्तबा कोशिश किया लेकिन असफल रहा| कई बार अपने को ना कर पाने के लिए गलती मानता रहा|

कभी लगा कि हो सकता है कि हमारा नेटवर्क उतना मजबूत नहीं होगा कि कर पाए| लेकिन दो तीन बार करने के बाद मै बहुत उत्सुक हुआ कि आखिर अच्छा खासा पढाई लिखाई करने के बाद भी मै क्यों असफल हो रहा हूँ| तब जाके पता लगाना शुरू किया कि आखिर कौन सा लॉजिक है जो तमाम ब्रोकर करते है| पहला तो यह कि एक खास किस्म का सॉफ्टवेर का ऑनलाइन उपयोग किया जाता है जिसमे पूरा डेटा पहले ही फीड कर लिंक बना दी जाती है| जैसे ही 10 या 11 बजता है तो उसे सिर्फ लिंक पर मात्र क्लिक करना होता सबकुछ अपने आप फॉर्म में भर जाता है|

पेमेंट कर, टिकेट बुक कर मोटा मुनाफा कमा जाता है और हम जैसे आम नागरिक अभी फॉर्म ही भर रहे होते है| अब सवाल यह है कि ये डिजिटल किसके लिए? जो ब्रोकर अफ्फोर्ड कर पा रहा है उसके लिए या जिसे मोबाइल और तकनीक मोहब्बत कराने की कोशिश की जा रही है उसके लिए| वो बुढा होके मर भी जाएगा फिर भी इस तथाकथित डिजिटल तरीके से तत्काल बुक नहीं करने का लुफ्त नहीं उठा पाएगा| वो मोहब्बत किस काम की जो डेट पर ही ना ले जा पाए?

डिजिटल एक निर्जीव चीज है जिसे ना तो देश की विविधता के बारे में पता है और नाही लोगों की मजबूरियों के बारें में| नितीश कुमार जब रेल मंत्री थे तब उन्होंने यह तत्काल इसलिए लगाया था ताकी जरूरतमंद जिन्हें अंतिम क्षण में जाने की जरूरत होती है वो इसका लाभ ले सके| लेकिन डिजिटल प्रक्रिया ने इसे एक व्यवसाय बनाकर एक असंगठित रूप से रोजगार के रूप में तब्दील कर दिया| जिन्हें मज़बूरी है वो तो इसे पाने में खुद से भी सक्षम नहीं है| ब्रोकर को पैसे देकर तो बिल्कुल भी नहीं|

See also  मंडियों से बिचौलियों को ख़त्म करना बेहद जरूरी

जरा खुद सोचिए कि ट्रेन जितना किराया लेती है एक स्थान से दुसरे स्थान तक पहुचाने में उससे ज्यादा ब्रोकर मांग करता है| आखिर जब डिजिटल होगा तो सबको सामान्य रूप से उपयोग करने के लिए प्लेटफार्म देगा या फिर सिर्फ उन्ही लोगो का ही दबदबा रहेगा जिनका होता आया है| इतना सब कुछ डिजिटल है तो वेबसाइट पर साफ़ साफ़ सारे सीटों का हिसाब भी रखना चाहिए न कि इस ट्रेन में कुल इतना सीट है और इतना निम्न विभागों के लिए आरक्षित है| इतना भर चूका है इतना खाली है| ये सब पीछे क्यों होता है?

बहुत कम ही ऐसे नेता होगे जो ट्रेन से यात्रा करते हो| सब के सब चुनाव जितने के बाद सिर्फ उड़ते है| हवा में| हवाई सफ़र करते है| ऐसे में उनके नाम पर प्रतिदिन टिकेट आरक्षित होता है| ऐसा लगता है कि नेताजी या उनका परिवार प्रतिदिन रेलवे में अप-डाउन की नौकरी करता है| जिस ट्रेन से नेता जी आज यात्रा करते है उसी ट्रेन से अगले दिन वापस भी आते है| फिर जाते किसलिए है? वो जाते ही नहीं है| सच्चाई यह है कि उसपर भी ब्लैक पैसा कमाया जाता है| उनका सीधा संबंध ब्रोकर्स से होता है जो प्रति टिकेट कमीशन देते है| सब कुछ डिजिटल ही तो होता है| ऐसे में कैसे होगे हम डिजिटल?

Spread the love

Support us

Hard work should be paid. It is free for all. Those who could not pay for the content can avail quality services free of cost. But those who have the ability to pay for the quality content he/she is receiving should pay as per his/her convenience. Team DWA will be highly thankful for your support.

 

Leave a Comment

Decoding World Affairs Telegram Channel