अर्थव्यवस्था की सेहत के लिए GST जैसे बड़े आर्थिक बदलाव जरूरी

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एक पुरानी कहानी है जिसे हमलोग बचपन में पढ़ा करते थे| कहानी शेर और चरवाहे लड़के की है| उस चरवाहे लडके की कहानी तो हम सभी जानते हैं जो ‘शेर आया , शेर आया’ चिल्लाता था| उस लडके ने गाँव वालों को परेशान करके मजा लेने की सोची और वह चिल्लाया, ” बचाओ, बचाओ, शेर आया|” गाँव वालों ने उसकी आवाज सुनी और उसे बचाने दौडे| जब वे वहाँ पहुँचे तो उन्होने देखा कि वहाँ कोई शेर नहीं था और वह बच्चा उनपर हँसने लगा| वे सब चले गये| अगले दिन उसने फिर वही चाल खेली| गाँव वाले फिर उसकी मदद के लिए दौडे| एक दिन, वह लडका जब भेडो को चरा रहा था, तो उसने सचमुच एक शेर देखा, और मदद के लिए चिल्लाया| गाँव वालों ने उस लडके कि आवाज तो सुनी पर, उसकी मदद करने कोई नहीं आया| उन्होने सोचा कि लडका फिर वही चाल खेल रहा है| उन लोगों ने उस पर यकीन नहीं किया| नतीजे के तौर पर शेर ने उसके साथ-साथ उसके भेडों को भी खा गया|

GST लागु करने की प्रक्रिया को ऐतिहासिक रूप में पेश करना और मिड नाईट सत्र बुलाना सिर्फ राजनितिक स्टंट है| मुझे समझ नहीं आ रहा है कि इसको ऐसे क्यों पेश किया जा रहा है जैसे कल रात को कोई आजादी जैसा दिन हो| राजनितिक पार्टियाँ देश के लोगों का नब्ज पकड़ चुकीं है ठीक वैसे ही जैसे कहानी में चरवाहा गाँव के लोगों की भावना का नब्ज पकड़ चूका था| हर बात पर देशभक्ति वाली भावनाओं को जगाना और सत्ता के लिए उसका उपयोग करना उचित नहीं है| कुछ सालों बात ऐसे देशभक्ति शब्द के आदि हो जाएँगे और आने वाले समय में जब सच में देशभक्ति की जरूरत पड़ेगी तो लोग ऐसे ही राजनितिक स्टंट और नौटंकी मानेंगे| प्रेम और मोहब्बत को बचा के रखना चाहिए| इसे ना तो कभी अपने बिजनेस में उपयोग करना चाहिए और नाही सत्ता के लिए| मैंने GST बिल को एक्ट के रूप में लागु होने से पहले आखर पत्रिका के लिए लिखा था कि ये क्या है? पहली सिस्टम कैसी थी? इसका क्या फायदा और क्या नुकसान है| बिल को कानून बनकर लागु होने के बाद से मै तब तक का इंतजार कर रहा था जब तक यह लागु न हो जाए|

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आज यानि कि 1 जुलाई से लागु हो चूका है इसलिए अब इसपर कुछ लिखा जा सकता है| GST को लेकर जनता के बीच बहुत सारी अफवाहें भी है और कुछ सच्चाईयां भी| हमलोग दो तरह से सरकार को टैक्स देते है| एक होता है प्रत्यक्ष रूप से और दूसरा अप्रत्यक्ष रूप से| प्रत्यक्ष रूप से यानि कि जो कुछ भी हमारे सैलेरी से सीधे कटता है| इसकी जवाबदेही स्वयं वो है जो कमाता है| दूसरा होता है अप्रत्यक्ष रूप से यानि कि जो कुछ भी हम सामान खरीदते है उसपर जो टैक्स लगता है| सबसे पहली ग़लतफ़हमी दूर कर ले| यह कानून सिर्फ अप्रत्यक्ष टैक्स पर ही लागु होता है| इसलिए इनकम पर लगने वाला टैक्स से इसका कोई लेना देना नहीं है| लोगों के दिमाग में एक गलतफहमी है कि किसी व्यक्ति के इनकम से कटौती ज्यादा होगी जो की सही जानकारी नहीं है| इसके अलावां अप्रत्यक्ष टैक्स में भी अलग अलग टैक्स है| जैसे सेंट्रल एक्साइज, यह टैक्स केंद्र सरकार कंपनी के प्रोडक्शन पर लगाती है| दूसरा है स्टेट सेल्स टैक्स, यह टैक्स को राज्य सरकार सामान के डिस्ट्रीब्यूशन पर लगता है|

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इसका अलावां एक होता है सर्विस टैक्स जो कि सामान पर सर्विस टैक्स के रूप में लगता है| इन सभी टैक्सों को मिलकर एक यूनिफार्म टैक्स प्रणाली बनी जिसे हम GST के नाम से जानते है| GST का विकास कोई ऐसी बारात वाली चीजें नहीं है जिसका हम ढोल नगाड़े लेकर खुशियाँ मनाएं| GST सामयिक विकास का एक हिस्सा है जो समय से साथ होता है| जैसे मुद्रा का विकास हुआ पहले बार्टर सिस्टम, फिर गोल्ड कॉइन, पेपर करेंसी, चेकबुक, डेबिट कार्ड और अब डिजिटल करेंसी| GST भी ऐसे ही विकास का एक हिस्सा मात्र है| पहले सेल्स टैक्स लगता था फिर VAT आया उसके बाद उसमे मॉडिफिकेशन हुआ तो MODVAT और CENVAT आया| उसी सीरीज में GST का उदगम हुआ है| इसकी नीव 2002 में रखी गई थी| विजय केलकर समिति ने GST लागु करने का सलाह दिया था तब से अब तक सिर्फ बातें हो रही थी| दुर्भाग्य भारत के राजनितिक सिस्टम का कि पुरानी व्यवस्था जो दुसरे देशों में चली रही थी उसपर स्टडी करके चर्चा करना और उसे पास होने में आज 15 साल लग गए| सोचिए यही चीज आज के 15 साल पहले लागु हो गई होती तो कितना विकास होता| कम से कम जो 15 सालों में हानियाँ हुई वो बच सकती थी|

एक सवाल यह पैदा होता है कि आखिर इसकी जरूरत क्या है? एक उदहारण से समझते है| मान लीजिये किसी गेंहूँ व्यापारी के पास गेहूं है| वो 10 रूपए में किसान से खरीदता है और मिल मालिक को 30 रुपया में बेचता है| फिर मिल मालिक गेहूं से आटा बनाता है और बिस्कुट के कंपनी को 50 रुपया में व्होलसेल्लर को बेचता है| व्होलसेल्लर बिस्कुट को दुकान वाले को 90 रूपए में बेचता है| दुकान वाले से मै एक उपभोक्ता के रूप में उसी बिस्कुट को 100 रूपए में खरीदता हूँ| यहाँ कहानी पूरी होती है| जो पहले का सिस्टम था सेल्स टैक्स का उसके मुताबिक अंतिम मूल्य पर टैक्स लगता था| ऊपर की कहानी में मान लीजिये टैक्स 10 प्रतिशत है तो टैक्स (3+5+9+10=27 रूपए) लगे| यह कानूनन बहुत बड़ी रकम हो जाती है जिससे वस्तु के दाम में बढ़ोतरी होती है| इसका बाद VAT का आगमन हुआ जिसका कहना था कि अंतिम मूल्य नहीं बल्कि जो वैल्यू जुड़ेगा होगा सिर्फ उसपर लागु किया जाएगा| यानी कि 30 रूपए पर 3 नहीं बल्कि (30-10=20) पर 2 रूपए| वैसे ही (50-30=20) पर 2, (90-50=40) पर 4, (100-90=10) पर 1 रूपए लगेंगे|

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कुल मिलाकर देखा जाएगा तो (2+2+4+1=9) सिर्फ 9 रूपए का टैक्स लगेगा| यह पुराने वाले 27 रूपए से बहुत ही कम है| लगभग एक तिहाई है| इससे सामान का दाम को निश्चित रूप से घटेगा लेकिन एक सवाल यह हो सकता है कि क्या इससे सरकार की आय पर फर्क नहीं पड़ेगा? कागज से ऊपर अगर हकीकत में जमीनी स्तर पर बात की जाए तो पुराने सिस्टम में 27 तो दूर की बात 9 रूपए भी नहीं मिल पाते थे| बस नाम 27 का होता था| अब सवाल यह है कि फिर इस सिस्टम में क्या गारंटी कि पूरा नौ का नौ मिल ही जाएगा? बिल्कुल गारंटी है क्युकी पहले क्या होता था लोग बिल नहीं बनवाते थे| बनवाते भी थे तो कम का| इसलिए लिंक नहीं बन पाता था| अब क्या होगा कि दूसरा व्यापारी बिल नहीं बनवाएगा तो उसे ही पिछले व्यापारी का बिल भरना पड़ेगा| ऐसे में हर व्यापारी को पिछला इनवॉइस लेना ही पड़ेगा| जब पुराना वाला इनवॉइस बनाएगा तो उसे टैक्स भी भरना पड़ेगा| इसलिए जो लोग GST का विरोध कर रहे है उनमे ज्यादातर व्यापार से जुड़े लोग है जो बिचौलिया बनकर मोटा पैसा कमाते थे|

रही बात प्रभाव की तो इसे अलग अलग प्लेटफार्म पर देखते है| सबसे पहले ऑटोमोटिव सेक्टर की बातें करते है| टैक्स के ऊपर टैक्स वाली चीजें ख़त्म होने की वजह से गाड़ी के पार्ट्स के दाम सस्ते होंगे जिससे गाड़ी की दाम कम होगी| वेबसाइट फाइनेंसियल एक्सप्रेस पर छपी खबर के मुताबिक मारुती, महिंद्रा और टाटा के गाड़ियों के दामों में कमी आई है| अभी हाल में आई शानदार गाड़ी टाटा हेक्सा के दाम में लगभग डेढ़ लाख रूपए का अन्तर आया है| अब दुसरे क्षेत्र खाद्य सामग्री पर आते है| यह अफवाहे है कि दाम बढ़ेंगे| दाम उनके लिए बढ़ेंगे जो सीसीडी(कॉफ़ी कैफ़े डे) जैसे बड़े रेस्टोरेंट और फाइव स्टार होटल में खाते है| यहाँ तक कि GST के एक्जेम्पशन लिस्ट में बहुत सारी चीजें है वो सुखद है| जैसे खादी, आचार, पापड़ जैसी तमाम वस्तुएं जो यहाँ के लोग बनाते है| एम्बुलेंस और डॉक्टर को भी हर एक ट्रांजैकशन के दायरे में नहीं रखा गया है| इसलिए मुझे चितंबरम साहब की बात का तर्क समझ नहीं आया कि कैसे MSME(माइक्रो स्माल मीडियम इंटरप्राइजेज) को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकता है|

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अगर हवाई यात्रा की बात करें तो इकॉनमी क्लास को 5% के क्षेत्र में रखा गया है जबकी बिज़नस क्लास को 12% के ब्रैकेट में रखा गया है| जो जरूरी वस्तुएं है और जिसे मिडिल क्लास अक्सर उपयोग करता है उसका पूरा ध्यान रखा गया है| जैसे घरेलु प्रेशर कुकर, बर्तन आदि तो पहले वाले 19 के मुकाबले कम करके 12% वाले ब्रैकेट में ला दिया गया है जबकी AC, टीवी, फ्रीज आदि पर पहले के मुकाबले बाढा ही है| ऐसे ही सिनेमा हॉल के टिकेट, होटल्स और कपड़ो का बखूबी ध्यान में रखा गया है| सबसे अच्छी बात यह है कि टैक्स चोरी की संभावनाएं लगभग ख़त्म हो जाएगी| तर्क वही दोबारा है बिना इनवॉइस एक व्यापारी दुसरे को बेच नहीं पाएगा| अगर बेचेगा तो उसे पुराने वाले का टैक्स भरना पड़ेगा| इसलिए सब अपने आप इनवॉइस के लिए चिंतित होंगे|

कुल मिलाके के निष्कर्ष के रूप में कह सकते है कि यह जरूरी आर्थिक बदलाव है| टैक्स ब्रैकेट का चार भाग (5, 12, 18, और 28%) में टैक्स का लागु होना सभी वर्गों को ध्यान में रखने वाली बातें है| एक अच्छे कानून में यह उम्मीद की जाती है कि सारा वर्ग संतुलित रहे| हो सकता है कि कही कुछ कमियाँ रह गई है उसके लिए GST कौंसिल है जिसके कानूनी अधिकार मिला हुआ है समय के साथ बदलाव करके इसे और अच्छा बना सकती है|

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