स्वतंत्र भारत के झांकी : भाग – 2

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अध्याय – 1 “देश निर्माण के चुनौती – २”

इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेसन

पिछला भाग में हमनी के देखनीजा कि लार्ड माउंटबेटेन पहिले विभाजन प जोर दिहले काहे कि उनका विश्वास ना होत रहे कि कवनो एगो राष्ट्र, एह विविधता के लोकतान्त्रिक रूप से चला पाई| खैर ओकरा बाद उनकर सलाहकार वी.पी. मेनन, माउंटबेटेन एथिकल पाठ पढईले आ जोर देले कि अभियो से गलती सुधारल जा सकेला अगर उ सारा राजवाडनं के भारत में विलय करे में मदद करस| एह सब से भारत अउरी मजबूत होई आ आवे वाला पीढ़ी उनका के भारत के एकीकरण करे वाला नायक के रूप में देखी, ना त एह सब से होखे वाला दंगा-फसाद, हिंसा के वजह उनके के जिम्मेवार मानी| अंततः उ तईयार भी हो गईले|

लार्ड माउंटबेटेन भारत के पक्ष में त खड़ा हो गईले लेकिन इनका के पक्ष में खड़ा करे वाला शख्स वी.पी.मेनन में एगो डर बईठ गईल| चुकी उ रिटायरमेंट के घोषणा कर देले| इ तब भईल जब वी.पी. मेनन खातिर सरदार पटेल राज्य विभाग के सचिव के पद के सुशोभित करे खातिर आमंत्रित कईले| उनका इ लागत रहे कि पूरा उमिर अंग्रेजन के साथे काम कईले बाड़े, एह से शायद स्वतंत्र भारत में नेता उनका प विश्वास ना करिहे| वी.पी. मेनन आपन किताब ‘द स्टोरी ऑफ़ द इंटीग्रेशन ऑफ़ द इंडियन स्टेट’ में एह बात के जिक्र कईले बाड़े कि लार्ड माउंटबेटेन उनका के सलाह देले कि सरदार पटेल के ऑफर के स्वीकार कर लेस|

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एह बात से भी पता चलत बा कि लार्ड माउंटबेटेंन भारत के एकीकरण के पक्ष में ही खड़ा रहन| वी.पी. मेनन, सरदार पटेल के बोलईले आ लार्ड माउंटबेटेन के पत्र आ आपन स्वीकार पत्र उनका के देखईले| ओकरा बाद काफी लम्बा समय तक भारत के एकीकरण के लेके बात चलल| सरदार पटेल उनकर जरूरत के एहसास दिलवईले आ एह बात के प्रति अलर्ट कईले कि अगर अभी एह सब के बढ़िया से हैंडल ना कईल गईल त कठिन परिश्रम से पावल स्वतंत्रता बर्बाद हो जाई|

चुकी सबसे बड चुनौती रहे, कश्मीर से लेके कन्याकुमारी तक 565 राजा राजवाडन के एगो सूत्र में बाँधल| ओह में बड राजा राजवाडा आपन स्वतंत्र देश बनावे खातिर सपना देखत रहन| भारत के लोकशाही से ओह लोग के डर लागत रहे| ओह लोग के लागत रहे कि ओह लोग के सारा आजादी छीन जाई| इ सब बंदर बाट एह से चलत रहे काहे कि सिर्फ कुछ ही महिना में सत्ता के स्थानांतरण होखे वाला रहे| लेकिन बात इ रहे कि सत्ता केकरा हाथ में स्थानांतरित कईल जाव? इंडियन नेशन कांग्रेस के नेतान के? जिन्ना के मुस्लिम लीग के? या फिर राजा राजवडन के? समय बहुत कम रहे आ संविधान सभा में मुस्लिम शामिल होखे से इंकार कर दिहलस, जबकी कैबिनेट मिशन के प्लान प सहमती सभे देले रहे|

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कैबिनेट मिशन के मुताबिक सत्ता के स्थानांतरण तबे हो सकत रहे या दूसरा लब्ज में कही त पैरामाउंसी तबे लैप्स हो सकत रहे जब आपन संविधान बन जाव जवना से सत्ता आवे वाला सरकार के हाथो देवल जा सको| (नोट :- कैबिनेट मिशन प्लान आजादी के लगभग एक बारिस पाहिले बनावल गईल रहे| मार्च 1946 के कैबिनेट मिशन भारत एह उद्देश्य से आइल रहे ताकि एह बात के बढ़िया से जाएजा ले सको कि सत्ता के स्थानांतरण के माध्यम का होखो? एकर क्राइटेरिया का होखो?)

खैर भारत के यूनाइट करे खातिर काम शुरू हो गईल| सरदार पटेल, जवाहर लाल नेहरु अउरी माउंटबेटेंन के देख-रेख में वी.पी. मेनन ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेसन’ यानी कि रियासतन के विनिकरण के कागजात तईयार कईले| माने इ कि जे-जे एह पत्र प साइन करी  राजा महाराजा लोगन के सबसे पाहिले एही कागजात प हस्ताक्षर करे के सलाह देवल गईल| लेकिन दिक्कत इ रहे कि बहुत राजा खुद आजाद देश बनावे खातिर सपना देखत रहन| इहाँ तक कि आजादी के मात्र दू महिना पाहिले दक्षिण भारत के त्रावनकोर के राजा आपन स्वतंत्र भी घोषित कई लिहले रहन|

त्रावनकोर के बगावती एलान के महज कुछ ही दिन बाद, हैदराबाद भी आपन विरोध के स्वर उठावेलागल आ 15 अगस्त के बाद आपन आजाद मुल्क बनावे के एलान कर दिहलस| हैदराबाद के अलग होखे के मतलब कि पूरा दक्षिण भारत के सम्बन्ध उत्तर भारत से टूट जाईत| संयुक्त भारत के सपना बिखरे लागल रहे आ चुनौतियन के जन्म होखे लागल रहे| सरदार पटेल आ जवाहर लाल नेहरु के लगे चुनौती अउर गहराए लागल रहे| हालात के गंभीरता के देखत रियासती मामलन खातिर एगो अलग मंत्रालय के गठन कईल गईल जवना के मंत्री सरदार बनले आ वी.पी. मेनन सेक्रेटरी|

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मंत्री बनला के कुछ ही दिन बाद सरदार पटेल रेडियो के माध्यम से राजा राजवाडन से संपर्क साधे के कोशिश कईले| रेडियो प देवल ओह स्पीच में सब राजा राजवाडन के संविधान सभा में आमंत्रित कईले| चुकी पटेल के कहनाम रहे कि हमनी के यूनाइट होके एगो मजबूत संविधान देश खातिर बनावल जाव बजाए बेगानन लेखा समझौता करे से| एह बात से इ पता चलत बा कि सरदार पटेल बड़ा ही नरमी से एह समस्या के समाधान कईल चाहत रहन| लेकिन एह नरमी से कुछ ना बदलल|

इहाँ तक कि जवन राजा आ नवाब संविधान सभा में शामिल हो चुकल रहन उहो ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेसन’ प साइन करे से कतराए लागल रहन| सरदार पटेल के आगे मुश्किल अउर बढ़त चलल चल गईल| 15 अगस्त में मात्र डेढ़ महिना रह गईल रहे| एकरा बाद भी बहुत सारा बड रियासत भारत में शामिल होखे के नाव ना लेत रहे| अब सबसे ज्यादा जिम्मेवारी आके अटकल लार्ड माउंटबेटेन के हाथ में| माउंटबेटेन के प वी.पी. मेनन, सरदार पटेल अउरी जवाहरलाल नेहरु सबसे बड दाव खेलले|

एह लोग के दाव सही बईठी कि ना एह बात के परीक्षा तब होखे वाला रहे जब माउंटबेटेंन आपन वायसराय हाउस से निकल के लेजिस्लेटिव कौंसिल (आज के संसद भवन) में सौ से ज्यादा राजा महराजान के संबोधित करे जाए वाला रहन| 25 जुलाई 1947 में पूरा तामझाम के साथे माउंटबेटेंन पहुचले राजा राजवाडन के संबोधित करे खातिर| अपना भाषण में साफ़ साफ़ माउंट बेटेंन कहले कि सत्ता के स्थानांतरण के तारीख 15 अगस्त 1947 तय हो चुकल बा| इ उनकर अंतिम भाषण ह| सब लोग के बहुत जल्द ही एह प आपन प्रतिक्रिया देवे के चाही| उ एह बात के हिदायत भी देले कि कोई भी नया सरकार से दूर नइखे भाग सकत आ नाही ओह जनता से भाग सकेले जेकर हित के जिम्मेवारी उनुके सिरे बा|

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ज्यादातर लेखक एह बात के मानेला कि पच्चीस जुलाई वाला इ भाषण भारत के एकीकरण खातिर सबसे महत्वपूर्ण भाषण रहल बा| चुकी ओह भाषण में माउंटबेटेन इ ना कहले कि एहिजा शामिल होखी आ होइजा मत होखी, बल्कि उ सब फायदा गिनवईले कि सबसे ज्यादा राज्य भारत के साथे ही बा| एह से ओह राजा लोगन के आग्रह कईले कि भौगोलिक स्तिथि आ जनता के हित के ध्यान में राखी के ही आपन विलीनीकरण प फैसला देस| सांकेतिक रूप में जरूर एह बात के एह्सास दिलईले कि डोमिनियन ऑफ़ इंडिया में विलीनीकरण करे के चाही|

जईसे राजा महाराजान के लागल कि ओह लोग के अब ब्रिटेन से कवनो मदद ना मिल पाई तब काफी सारा रियासत के राजा भारत में विलीनीकरण खातिर आपन हुकारी भर दिहले| लेकिन एह से भारत के एकता के बनाए वाला चुनौती अभी ख़त्म ना भईल रहे| काहे कि हैदराबाद आपन आजादी के तारीख के भी एलान कर चुकल रहे आ हैदराबाद के निजाम के तेवर अभी तक ले ना बदलल रहे| एकरा अलावा भोपाल के नवाब के बगावती रुख पाकिस्तान दने उनका के खिचे लागल रहे| पश्चिम में जूनागढ़ अउरी जोधपुर भी आपन तेवर दिखावे लागल रहे| खासकर जोधपुर प उ रियासत रहे जवना के सीमा पाकिस्तान से मिलत भी रहे एह से ओहिजा के माहौल अउरी गरम रहे| एह सब चुनौती के कईसे हल कईल गईल अगिला कड़ी में…..

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