अध्याय – 2 “देश के भीतर मूलभूत एकीकरण -२”
आर्थिक एकीकरण
एह सीरीज के 20वां भाग अगिला अंक में आर्थिक एकीकरण के चर्चा होई| अभी तक ले हमनी के पहिला अध्याय में देखनी जा कि कईसे लार्ड माउंटबेटेंन, सरदार पटेल, जवाहर लाल नेहरु अउरी वी.पी. मेनन के टीम पाहिले त्रावनकोर ओकरा बाद जोधपुर, जैसलमेर, जूनागढ़, हैदराबाद अउरी कश्मीर के एकीकरण करे में सफल भईले जा| कतना मुश्किल से सारा राज्यन के एकीकरण कईलेजा| हर जगह पाकिस्तान के मात देत भारत में राज्यंन के विलीनीकरण करवावे के सफल भईलेजा| राष्ट्र के एकीकरण हो गईल| ओकरा बाद देश के भीतरी मूलभूत एकीकरण के जरूरत पडल| एकरा से पिछला अध्याय में समझनिजा कि कईसे प्रशासनिक एकीकरण भईल| एह अंक में हमनी के समझे के कोशिश कईल जाई कि आजादी के तुरंत बाद देश के अर्थव्यवस्था में कईसन बदलाव कईल गईल आ ओकरा सामने कवन कवन चुनौती रहीसन?
भारत के आर्थिक स्तिथि आजादी के समय काफी कमजोर रहे| चुकी हमनी के देश औपनिवेशिक शासन के चलते यूनाइटेड किंगडम के गुलाम रहे| एह से आर्थिक नजरिया से जवन भी नियम कायदा बनत रहे उ भारत के हित में ना बल्कि यूनाइटेड किंगडम के हित में ही बनत रहे| खेती अउरी इंडस्ट्रीज संरचनात्मक ढंग से अइसन बनावल गईल रहे जवना में राज्य के पास पॉवर ना के बराबर रहे, जवन के चलते अंग्रेज भारत के अर्थव्यवस्था के अन्धाधुन दोहन कईले रहले|
औपनिवेशिक शासन के दौरान अर्थयवस्था के कानून कुछ अइसन रहे जवना से आसानी से भारत के प्राथमिक प्रक्रिया से निकले वाला वस्तुन के यूनाइटेड किंगडम में आयात कईल जा सको| अउरी ओही वस्तुन के भरपूर उपयोग करके सामान बनाके वापस भारत में निर्यात कईल जा सको| एह से होत इ रहे कि सामान के निर्यात बढला के चलते यूनाइटेड किंगडम के आमदनी में बरियार बढ़ोतरी होत रहे| ओह आमदनी के उपयोग करके आपन राजकोषीय घाटा के भरपाई करत रहे आ रक्षा के क्षेत्र में अंधाधुंन खर्च करके औपनिवेशिक शासन के बरियार बनावत रहे|
औपनिवेशवाद के दौर में भारत के अर्थव्यवस्था
एकरा अलावां कुछ अइसन चीज भी रही सन जईसे नील, जवना के बाकी के देशन में बरियार मांग रहे| ओह सब के उपजाए लाएक जलवायु भारत में मौजूद रहे| बरियारी अंग्रेज ओह सब फसल के भारत में उगवावे खातिर किसानन के मजबूर करत रहे लोग| एकरा खातिर इतिहास में आंदोलन भी भईल रहे| ओह सब फसलन के साथे दिक्कत इ रहे कि अगर एक बे किसान ओह फसल के उगा लेत बा तब ओकर जमीन के उर्वरता काफी कमजोर हो जात या कही कि ख़तम हो जात रहे| एकरा पीछे तकनिकी कारण इ बा कि नील के जड़ बहूत गहरा होला जवन जमीन के उपजाऊ शक्ति में बेहद कमजोर कर देला|
अंग्रेज भारत के जलवायु परिस्तिथि के बिना चिंता कईले पर्यावरण के अन्धाधुन शोषण कईले रहले| सामाजिक क्षेत्र अंग्रेजन के जमाना में बिल्कुल नजरंदाज कईल गईल रहे| एकर सबसे प्रतिकूल प्रभाव उत्पादन प पडल| भारत के मजदूर हमेशा से अकुशल आ अनपढ़ रहल बाड़े| अगर अंग्रेजी शासन अर्थव्यवस्था के बढ़िया तरह से गढले रहित त भारत के अर्थव्यवस्था ओह समय पूरा विश्व के चुनौती देवे के हालात में होईत|
अंग्रेजन के शासन काल में औद्योगिक बल के भी हताशा झेले के परल बा| सब सम्स्यान के पीछे एके करान रहे कि हर क्षेत्र में अंग्रेजन में एकाधिकार रहे चाहे बात शिपिंग के करी, कोयला के करी चाहे बैंकन के| इहाँ तक कि कवन पौधा बोए के बा एकरो निर्णय ब्रिटिश सरकार तय करत रहे| 1934 के पाहिले भारत में सेंट्रल बैंक भी ना रहे जवना के हमनी के आर.बी.आई.(रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया) कहेनिजा| अगर अमेरिका 1929 में आर्थिक मंदी से ना गुजरित त इहो आजादी के बादे बनल रहित|
अमेरिका में आर्थिक मंदी आईला के चलते भारत के अर्थव्यवस्था टकरा के ख़त्म होखे लागल तब जाके अंग्रेजी शासन के एगो सेंट्रल बैंक के जरूरत महसूस भईल| 1934 में जाके आर.बी.आई. के जन्म भईल| एकरा पाहिले एकर काम भी अंग्रेजी शासन ही देखत रहे| अंग्रेजन के इ आर्थिक नीति से अलग स्वतंत्र देश खातिर एगो नया आर्थिक व्यवस्था के रचना कईल ओह समय के राजनितिक योधा लोगन के पास सबसे बड चुनौती रहे|
ओह समय के आर्थिक नीति निर्माणक लोगन के पास कुछ मुद्दा रहीसन जवना प सब लोगन के आम सहमती रहे| पहिला इ कि राज्य सरकार विकास के जिम्मेदारी सुनिश्चित करे| राज्य सरकार के एकर जिम्मेदारी लेवे के चाही| सार्वजनिक क्षेत्र में सरकार में अहम भूमिका लेवे के परी| दोसरा शब्द में कही त आयत, निर्यात से लेके वस्तु निर्माण तक के हर राह प सरकार के निगरानी होखे के चाही| तीसरा बात इ कि बड-बड उदयोगन के विकास कईल जरूरत बा| एगो शर्त इहो बा कि ओह सब बड उद्योगन के काम-धाम भारत के हित में ही होखे के चाही| चौथा बात इ कि विदेशी निवेश के अनुत्साहित करे के बा|
एकरा पीछे कारन इ रहे कि ओह समय देश के आर्थिक स्तिथि ख़राब रहे अगर विदेशी निवेश प पाबंदी ना लगावल जाईत त स्तिथि में कवनो ख़ास बदलाव ना आ पाईत| काहे कि अगर विदेश के लोग पईसा लगाईत त स्वाभाविक सा बात रहे कि बहुल रूप से उहे लोग व्निवेश करीत| एह से ‘बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर’ में बहुमत ओह लोग के होखला के चलते कंपनी में दबदबा रहित आ ओह लोग के मुताबिक ही काम करे के परित| एकरा अलावां पांचवा बात इ रहे कि एगो बढ़िया आर्थिक नीति के प्लानिंग के जरूरत रहे|
खेतीबारी बनाम उद्योग
औपनिवेशिक शासन के दौरान पूरा अर्थव्यवस्था बिखरल रहे काहे कि कवनो चीज के प्रॉपर संस्था ना रही सन| एह सब बिखरल अर्थव्यवस्था के एकीकरण के जिम्मेदारी हमनी के राजनितिक नेतृत्व प टिकल रहे| आजादी के तुरंत बाद सबसे पहिला अउरी बेहद जरूरी आसमंजस्य इ रहे कि पहिला बल खेती बनो कि उद्योग| ओह घरी इ एगो बड़हन वाद-विवाद के विषय रहे| एह विषय प आज भी चर्चा होत रहेला| प्रत्येक अर्थशास्त्र आपन विकास के मुक्कमल करे खातिर प्राकृतिक अउरी मानवीय संसाधनन के बेपनाह शोषण करेला एह में कवनो दू मत नइखे|
मानवीय अउरी प्राकृतिक संसाधनन के उपलब्धता अउरी अनुपलब्धता ही खाली सिरदर्द के कारन ना रहे जवना से अर्थव्यवस्था के गति तय कईल जा सके कि खेतीबारी के प्राथमिक बल देवल जाव कि उद्योगन के, बल्कि निर्णय लेवे में सामाजिक-राजनितिक कारन भी एगो बड बाधा रहे| सब चीजन के मूल्यांकन करके राजनितिक नेतृत्व उद्योग के प्राथमिक बल के रूप में स्वीकार्य कईलस| एह निर्णय प आजो वाद विवाद चलत रहेला|
ओह घरी के परिपेक्ष में देखल जाव त इ निर्णय आधारहीन रहे| एकरा पीछे कव गो तर्क देवल जा सकत बा| पहिला इ कि ओह घरी आधारिक संरचना क्षेत्र जईसे पॉवर, परिवहन अउरी संचार लगभग ना के बराबर रहे| उद्योग भी रहीसन त ओकनी के कवनो ख़ास संख्या ना रहे| कुछ ही उद्योग जईसे आयरन, स्टील, कोयला, सीमेंट अउरी क्रूड आयल रहीसन| दूसरा इ कि निवेश करे लायक पर्याप्त निवेशक भी ना रहले| व्यापर में नेतृत्व के भारी कमी रहे| मानव संसाधन त रहे लेकिन अकुशल आ अनपढ़ रहे|
तीसरा बात इ कि ओह प्रकार के बाजार अउरी अंतराष्ट्रीय स्तर प देश के पहचान के संकट रहे| दूसरा तरफ खेतीबारी रहे ओकर ख़ास बात इ रहे कि भारत के प्राकृतिक संसाधन बहुत उपजाऊ रहे| खेती करे अउरी खेती से उत्पादित वस्तुंन से अर्थव्यवस्था के संभाले के काबिलियत रखत रहे| एह क्षेत्र खातिर बहुत ख़ास मानव संसाधन के भी जरूरत ना रहे| एह से सबसे पहिला बल के रूप में अगर खेती के लिहल गईल रहित त शायद भारत के अर्थव्यवस्था के गति मिले में अतना साल ना भईल रहित|
हमनी में सबसे बड कमी इ बा कि पूरा विश्व के रिपोर्ट के आधार प ही अपना देश के नीतिगत फैसलान प निर्णय लेवेनिजा, जवन एगो स्वस्थ्य सोच ना कहाई| एकरा पीछे हम इहे कारण देल चाहब कि विश्व के हर देश में जलवायु परिस्तिथि बदलत रहेला| जवना देश के सह प इ निर्णय लेवल गईल कि उद्योग के पहिला बल देवे के चाही, हो सकेला कि ओह देशन के जलवायु परिस्तिथि खेती के अनुकूल ना होखे| ओह समय खासतौर से खेतीबारी के एगो पोटेंशियल के रूप में देखल चाहत रहे|
बाद में भले समयानुसार खेती से उद्योग के तरफ शिफ्ट कर लेतीजा| निश्चित तौर प ओह समय हमनी के बहुत ही कम लागत में खेती से उत्पादित वस्तुन के माध्यम से विकास के खाका तईयार कर सकत रहिजा| खेती से भले परमानेंट हल ना निकलित बल्कि अतना जरूर रहे मूलभुत सुविधा जईसन भोजन,घर औरी स्वास्थ्य के इंतजाम हो सकत रहे जवन विकास के हवा से रूबरू करवा सके| दूसरा चीज इ कि एकरा से लोगन के खरीद क्षमता बढ़ीत| ओकरा बाद उद्योग जगत के स्वागत कईल जाईत त व्यापार जगत में भी बढ़िया वृद्धि होईत| काहे कि अगर ख़रीदे वाला लोगन के लगे ख़रीदे के क्षमता ही नइखे त माल बनावला के का फायदा|
मिश्रित अर्थव्यवस्था के चुनाव
जब देश आजाद भईल तब आर्थिक प्रगति एगो गंभीर चुनौती रहे| उस समय जनसँख्या कुछ 35-36 करोड़ ही रहे एकरा बादो देश एह स्तिथि में ना रहे कि सबके दू जून के रोटी से मुलाकात करवा देवो| तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु के सामने आर्थिक प्रगति खातिर दू गो मॉडल रहे, एगो संयुक्त राज्य अमरीका अउरी ओकर मित्र राष्ट्रन के पूंजीवादी प्रगति वाला मॉडल अउरी दूसरा सोवियत यूनियन ऑफ एशिया के कम्युनिस्ट मॉडल| पंडित नेहरू के वैचारिक दूरदर्शिता एह दुनो विपरीत ध्रुवीय आर्थिक अवधारणान के अच्छाइ आ बुराइ, लाभ अउरी हानि के गंभीरता के समझ लेले रहे अउरी भारत जईसन उदीयमान विकासशील राष्ट्र खातिर ‘मिक्सड इकॉनॉमी’ यानी कि मिश्रित अर्थव्यवस्था के मॉडल के अपना लेले रहे|
अर्थव्यवस्था के एकीकरण करे खातिर भारत मिश्रित अर्थव्यवस्था के राह अख्तियार कईलस| इ एगो अइसन अर्थव्यवस्था के स्वरुप ह जहवां सार्वजनिक स्वामित्व अउरी निजी स्वामित्व के मिश्रण मिलेला| चुकी सैवधानिक रूप से भारत के एगो संघीय ढाचां के रूप में निर्णय लेवल जा चुकल रहे| एह से जरूरी रहे कि अर्थव्यवस्था के स्वरुप ओसही होखे के चाही जईसना के सपना संविधान देख रहल बा| राजनितिक नेतृत्व इ निर्णय लेलस कि भारत में प्लानड अर्थव्यवस्था के स्वागत होई| लेकिन ढांचागत प्रवृति प चर्चा अभी बाकी रहे|
पूंजीवादी अमेरिका के अवधारणा में आर्थिक प्रगति के पूरा आधार बाजार के ताकत ही होला| अगर एह सिस्टम मे पूरा अर्थव्यवस्था पूंजी के हाथ में होइत जवन कि मार्केट में पूंजी के दम प उद्योग, कृषि आ सर्विस सेक्टर आदि में कंपनी बनाके समाज के प्राकृतिक उत्पादन के सारा स्रोतन प कब्जा कर लिहित अउरी भरपूर मुनाफा कमाके मार्केट में तैयारशुदा माल प्रस्तुत करीत| एह व्यवस्था में सरकार भी ओह कंपनियन के मुनाफा कमावे में पूरा सहायता करीत|
इ पूंजीवादी व्यवस्था में हर हालत में मुनाफा पूंजीपति के ही मिलित| एह से पइसा कमावे वाली बड़-बड़ फैक्ट्रियन अउरी बड-बड भवन बनावे के पहिला शक्ति पूंजीपति लोगन के हाथन में ही होईत| इ पहिला शक्ति (इनिशियटिव) के कारण भी समाज के उन्नति अवश्य होला लेकिन पूंजी के केंद्रीकरण चंद लोगन के हाथन में सिमट जाईत अउरी बहुसंख्यक आबादी, रोटी, कपड़ा, मकान अउरी शिक्षा एवं स्वास्थ्य खातिर तरसत रहित|
जबकि आर्थिक प्रगति के साम्यवादी मॉडल में समाज के समस्त उत्पादन के साधनन पर राज्य के अधिकार होला सब कुछ सरकारी नियंत्रण में राज्य द्वारा कईल जाला| एह आर्थिक व्यवस्था में समाज के वंचित तबका के लोगन के रोटी, कपड़ा, मकान आदि के सुविधा जरूर मिलेला| कोई भी व्यक्ति आपन व्यक्तिगत पूंजी एगो सिमित सीमा से अधिक नइखे रख सकत, एह से धीरे-धीरे इनिशियेटिव के कमी हो जाला अउरी समाज के आर्थिक प्रगति में अवरोध उत्पन्न हो जाला जइसन कि सोवियत यूनियन अउरी चाईना में सामूहिक खेती के साथे भईल रहे| एकरा अलावां आर्थिक एकीकरण में स्टेट के अधीन देश में भाखड़ा नंगल, गांधी सागर, राणाप्रताप सागर, दक्षिण में नदी सिंचाई योजना जईसन बांधन के माध्यम से कृषि के सिंचाई खातिर लाखों हेक्टेयर सुखल जमीन के पानी उपलब्ध कराके, राज्य के अधीन केमिकल खाद, कीटनाशक हेतु कारखाना आदि खुलवाके आ उन्नत बीज खातिर कृषि अनुसंधान करवाके कृषि के अत्यधिक प्रगति भईल आ कृषि में हरित क्रांति भी भईल|
देश के भीतर अभी बहुत चीज के एकीकरण बाकी रह गईल रहे| एह सीरीज के अगिला कड़ी में सामाजिक एकीकरण के अंतर्गत ‘आदिवासी जनजातीन के एकीकरण’ के बारे में चर्चा होई….
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