स्वतंत्र भारत के झांकी : भाग – 17

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अध्याय – 3 “भारत के पडोसी देशन से युद्ध  – 3”

1962 : भारत चाइना युद्ध – ‘ब’

अभी तक हमनी के पहिला अध्याय ‘राष्ट्र एकीकरण के चुनौती’ के बारे में देखनी जा| एह अध्याय में हमनी के एह बात से अवगत भईनी जा कि कईसे लार्ड माउंटबेटेंन, सरदार पटेल, जवाहर लाल नेहरु अउरी वी.पी. मेनन के टीम पाहिले त्रावनकोर ओकरा बाद जोधपुर, जैसलमेर, जूनागढ़, हैदराबाद अउरी कश्मीर के एकीकरण करे में सफल भईले जा| दूसरा अध्याय ‘देश के भीतर मूलभूत एकीकरण’ में हमनी के देखनीजा कि कईसे सबसे पहले प्रशासनिक एकीकरण भईल, ओकरा बाद आर्थिक एकीकरण, सामाजिक एकीकरण भईल|

एकरा अलावां राज्यन के भाषाई एकीकरण अउरी क्षेत्रीयता के खिलाफ एकीकरण प भी चर्चा कईनी जा| ओकरा बाद तीसरा अध्याय शुरू भईल जवन भारत के पडोसी देशन के साथे जतना युद्ध भईल बा ओकरा बारें में विस्तार से चर्चा हो रहल बा| एह अध्याय के पहिला अंक में भारत पकिस्तान के पहिला युद्ध 1947 के बात हो चुकल बा| अब दूसरा अध्याय में भारत चाइना युद्ध के बारें में बतकही कुछ ‘अ’ भाग में भईल बा| एह भाग में भारत-चाइना युद्ध के पूरा बात मुकम्मल कईल जाई|

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सरदार बल्लभ भाई पटेल के पत्र से एगो बात साफ़ रहे कि पटेल जी के मन में चाइना के लेके आशंका रहे| पटेल जी सिर्फ अकेले ना रहन जेकरा मन में संदेह रहे| उनका अलावां कांग्रेस में जतना भी दक्षिणपंथी नेता (पन्त से लेके जे. बी. कृपलानी तक) रहले सब लोग के मन में अइसने संदेह रहे| लेकिन समस्या इ रहे कि उ दौर अइसन रहे जवना में नेहरु के चुनौती देवे वाला कोई रहले ना रहे| इतिहास में यह बात के दावा कईल गईल रहे कि उ ख़त के पहिला ड्राफ्ट गिरिजाशंकर बाजपाई लिखले रहले जे ओह घरी विदेश मंत्रालय के सचिव रहन|

बाजपाई अउरी उनकर संघतिया लोग नेहरु अउरी चीन के प्रति उनकर नीति से असहमत रहे| नेहरु चीन के साथ सीमा मामला उठावे खातिर तईयार ही ना रहले| ओह समय भारत के राजदूत रहले के.एम. पनेकर| जवाहर लाल नेहरु पनेकर के बात से बहुत प्रभावित रहन जबकी बाजपाई अउरी उनकर साथी लोग के इ लागत रहे कि पनेकर चीन के असली मंसा समझ नइखन पावत| इतिहास में भईल नेहरु अउरी पटेल के बीच तमाम वैचारिक टकराव में सेएगो इ टकराव भी बहुत महत्वपूर्ण रहे|

एह तमाम खीच तान के बावजूद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु, डिप्टी डिफेन्स मिनिस्टर मेजर जनरल एम.एस. खिदमत सिंह के अध्यक्षता में कमिटी बनईले| ओकरा बाद पार्लियामेंट में एगो बड़हन एलान कर दिहले| ओह में उहाँ के स्पष्ट रूप से इ बात कहनी कि मैकमहन रेखा ही उचित रेखा ह| उहाँ के हिसाब से एह में कवनो विवाद से सवाले पैदा नइखे होत| तब के नेफा आ आज के अरुणाचल प्रदेश के सीमा जवन चीन से लागेला ओकरा के मैकमेहन रेखा कहल जाला| जवना के शिमला में ब्रिटिश इंडिया, तिब्बत अउरी चीन 1914 में मिल के तय कईले रहे लोग|

लेकिन दिक्कत इ बा कि चीन के कम्युनिस्ट सरकार एकरा के जबरन तईयार कईल रेखा के रूप में देखेला| चुकी इ सब नेहरु के बढ़िया से पता रहे कि चीन के एह प का सोच बा फिर भी मैकमेहन रेखा के दुनो देशन के बीच के रेखा घोषित कर दिहले| एकरो से बरियार घटना तवांग में भईल| 12 फरवरी 1951 एही दिन भारतीय प्रशासन पहिला बेरी तवांग में आप गोड रोपलस| एकरा पाहिले तवांग तिब्बत के हिस्सा रहे| तवांग में जब भारतीय प्रशासन के अधिकारी लोग चहुपल त ओह लोग के बरियार स्वागत भईल|

एह दुनो घटना, प्रधानमंत्री के मैकमेहन रेखा के घोषणा अउरी तवांग में भारतीय फ़ौज के चहुपला से चीन कवनो प्रतिक्रिया ना देहलस| भारत के अम्बेसडर के.एम. पनेकर के एह बात के सुचना देवल गईल कि उ चाऊ एन लाइ से जाके मुलाकात करस| ओह मुलाकात के दुगो लक्ष्य रहे| पहिला इ कि चीन एकदम चुप बिया ओकरा से मैकमेहन रेखा के बारे में प्रतिक्रिया लेस आ दूसरा तिब्बत में कवनो तरह से समझौता से पहिला बाउंड्री के मसला हल हो जाए के चाही|

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लेकिन मुलाकात में एह सब बात प कवनो बतकही ना भईल| उलटे चाऊ एन लाइ व्यापार अउरी सांस्कृतिक रिश्तन प विचार करे के सलाह देले| एहिजा एगो बरियार चीज इ सामने आवत बा कि आखिर चाऊ एन लाइ एह प बात करे से काहे कतरात रहन? चुकी भारत के पक्ष से उ बहुत स्पष्ट रहन कि भारत के एह प का स्टैंड बा| एह से चाऊ एन लाइ एह प चुप्पी बनावल बेहतर समझले| पनेकर एकर रिपोर्ट जब नेहरु के दिहलन तब उनकर कहनाम एकदम साफ़ रहे कि भारत के स्टैंड एह प बिल्कुल साफ़ बा आ ओह प अडिग रहे के चाही|

जबकी दूसरा पक्ष रहे उ एह बात से बिल्कुल राजी ना रहे| ओह लोग के कहनाम रहे कि भारत के एह प चुप ना रहे के चाही| जवन भी बात बा खुलके सामने लावे के परी| जब तक भारत के द्वारा तय रेखा के मान नइखे लेत, तबतक आगे कवनो चीज प विचार ना होखी चाहे व्यापार के आत होखे भा सांस्कृतिक व्यव्हार के बात होखे| जवाहर लाल नेहरु एह दूसरा पक्ष के बात के दरकिनार करके आपन विदेश सचिव के सन्देश भेजले| नेहरु जी के कहनाम रहे कि चीन से एह प बात करे के इ उचित समय नइखे, जब एह प चुनौती के बात आई तब आपन रुख साफ़ कर देवल जाई|

इतिहास एह आलसीपन के भी एगो कारण मानेला| काहे कि उ समय एकदम गरम रहे ओहिघरी सबकुछ बात करके साफ़ कर लेवल चाहत रहे| 29 अप्रैल 1954 के चीन भारत के ओह संधि प दस्तखत कर दिहलस जवना के ‘पंचशील समझौता’ के रूप में जानल जाला| एह में शांति के साथ रहे अउरी दोस्ताना संबंध के बारे में चर्चा कईल गईल| एह समझौता के पूरा देश में वाहवाही होत रहे| ‘हिंदी चीनी भाई-भाई’ के नारा आपन गूंज पकडले रहे|

अइसन लागत रहे जईसे विश्व के दू गो बड सभ्यता के साथ रहे के एगो बरियार मिशाल पेश कर रहत होखे| एह सब शोर में भारत के असली मुद्दा दब से रह गईल| एकर कीमत भारत के बाद में चुकावे के परल| चुकी पंचशील समझौता में ओह सीमा के बारे में कवनो चर्चा ना रहे| चुकी कवनो चर्चा ना होखे के मतलब चीन ओकरा के तवज्जों ना देत रहे| उल्टा इ भईल इ कि भारत तिब्बत के चीन के हिस्सा ओह संधि के जरीय मान लेलस| यानी इ कि भारत तिब्बत के चीन के एगो स्टेट के रूप में पहचान के मान्यता लिखित रूप से पंचशील के माध्यम से दे देलस| एहिजा नेहरु असफल भईले|

आपन रिश्ता अउरी सीमा विवाद के सुलझावे खातिर, तिब्बत के जवना हिसाब से उपयोग करे के उम्मीद रहे उ ना कईले| पंचशील समझौता के बाद चाऊ एन लाइ भारत के दौरा कईले, तमाम तरह के बात भईल लेकिन ओकरा बाद भी सीमा के लेके कवनो बात ना भईल| एकरा बाद जवाहर लाल नेहरु चीन गईले ओहिजा उहाँ के जबरजस्त स्वागत भईल| लेकिन कवनो बात साफ़ ना भ पाइल| भारत के स्तिथि अइसन रहे कि कोई जवाहर लाल नेहरु के मुखालफत भी खुल के ना कर पावत रहे आ उ कोई के बात भी ना सुनत रहन|

एही सब के बीच 1956 के नवंबर महिना में एगो बरियार मोड़ आइल| चाऊ एन लाइ राजकीय दौरा प भारत में रहन अउरी ओह घरी तिब्बत के सबसे धर्म गुरु दलाई लामा भी भारत में ही रहन| दलाई लामा तिब्बत में चीन के नितियन से बहुत परेशान रहन| उहाँ के भारत से मदद लेवे के गुहार कईले, जवना प नेहरु जी कवनो तरह के मदद देवे के पक्ष में ना रहन| ओह घरी दलाई लामा नौजवान रहन आ उ भारत में शरण लेवे के बात करत रहन| लेकिन नेहरु तिब्बत के लेके चीन से खटास पैदा ना कईल चाहत रहन एह से उनका के समझा बुझा के वापस भेज दिहले|

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ठीक एकरा साल भर बाद चीन सीमा के लेके आपन हक़ के दावा कईलस| ओहिजा के अखबार ‘पीपल डेली’ के मुताबिक चीन के सिंग क्यांग से तिब्बत तक जाए खातिर सड़क तईयार बा| इ सड़क भारत के अक्साई चीन से होक जाए के दावा रहे| भारत खातिर इ बहुत बड़हन झटका रहे| अक्साई चीन प चीन के नियत जाने खातिर प्रधानमंत्री नेहरु सीधे चाऊ एन लाइ के चिठ्ठी लिखले| एही समय के नेहरु इन्तजार करत रहन कि जब चुनौती आई तब आपन रुख साफ़ कर देवल जाई| आ चिठ्ठी में भारत के पक्ष लिखके भेजले|

लगभग एह महिना बाद चिठ्ठी के आइल जवाब से इ पता चलल कि चीन के व्यावहारिकता में बदलाव लउके लागल रहे| ओकर कहनाम रहे कि एह प कभी बात नइखे भईल आ चीन आपन पक्ष एह से ना रख पवलस काहे कि उ दोसर काम में व्यस्त रहे| एकरा बाद फिर मोड़ तब आइल जब तिब्बत में चीन के खिलाफ बगावत शुरू हो गईल| दलाई लामा के इ लागल कि चीनी फ़ौज उनका के गिरफ्तार करी एह से उ भारत आ गईले| भारत सरकार आवे के इज्जाजत देलस आ नेहरु जाके मसूरी में उनका से मुलाकात भी कईले|

दलाई लामा भारत से मदद के गुहार कईले कि भारत, चीन से तिब्बत के आजाद करवाव| एह प चीन काफी नाखुस रहे| इहे ना जवना हिसाब से दलाई लामा के भारत में स्वागत भईल एह से भी चीन बिल्कुल नाखुश रहे| दुनो देशन के बीच डिप्लोमेसी कमजोर होखे लागल अउरी राजनीती हावी होखे लागल| एकर परिणाम इहे भईल कि धीर-धीरे प्रधानमंत्री के हाथ से लगाम छुटत चलल चल गईल| भारत के संसद में एह प हंगामा शुरू हो गईल| उनका प आरोप लगावल गईल कि संसद से बहुत सारा बात छुपइले बाडन|

फिर जवन राजनीती हावी भईल कि भारत अउरी चीन के डिप्लोमेसी प्रभावित होखे शुरू हो गईल| अब डिप्लोमेटिक हाथ पाहिले लेखा स्वतंत्र ना रह गईल रहे| इहे ना नेहरु के दोस्त आ रक्षामंत्री वी.के. कृष्णा मेनन अउरी तब के सेना प्रमुख के.एस. थमैया बीच दुरी बढे लागल| दुनों लोगन के बीच एकमत ना बन पावत रहे| जनरल थमैया के कहना रहे कि चीन से खतरा बा आ दुश्मन देश बा ओकरा खिलाफ हमनी के तैयारी करे के चाही| जबकी कृष्णा मेनन के पक्ष इ रहे कि असली खतरा चीन से ना बल्कि पाकिस्तान से बा|

एह से सैनिक के पाकिस्तान बॉर्डर के तरफ रुख करे के चाही| एह बिगड़त रिश्ता के खबर बहुत जल्द ही प्रेस में आ गईल| ओह घरी बी.एम. कॉल के लेफ्टिनेंट जनरल बनावल गईल रहे| 12 सीनियर अधिकारियन के नजरंदाज करके इनका के प्रमोशन देवल गईल रहे| एह बात के भी चर्चा रहे कि उनकर नेहरु से रिश्तेदारी रहे| थिमैया कॉल के लेफ्टिनेंट जनरल बनावे के पक्ष में ना रहन काहे कि उनका लगे लड़ाई में हिस्सा लेवे के एक्सपीरियंस ना रहे|

एह बात से नाराज थिमैया 29 अगस्त 1959 के थिमैया स्तीफा देवे नेहरु के लगे चल गईले| लेकिन नेहरु समझा बुझा के स्तीफा वापस लेवे खातिर उनका के राजी कर लिहले| ओकरा कुछ दिन बाद ही चाऊ एन लाइ के चिठ्ठी नेहरु के नामे आइल| ओह चिठ्ठी में चीन सीमा के लेके आपन रुख साफ़ करे शुरू कर देले रहे| ओकर कहनाम रहे कि ब्रिटिश शासन द्वारा थोपल रेखा मैकमेहन रेखा ह| एह प भारत अउरी चीन के लेके कभी बात भईलही नइखे|

एह से अब समय आ गईल बा दुनो पक्ष बईठो आ एह चीज के साफ़ करो| एह चिठ्ठी में एगो बात सामने इ निकल के आइल कि चीन भारत के चालीस हजार वर्गमील जमीन प आपन दावा के पेशकश करे लागल रहे| राज्यसभा में उ आपन चर्चित स्टैंड रख दिहले जवना में नेहरु के कहनाम रहे कि भारत ओह बंजर जमीन खातिर चीन से लड़ाई लड़ो एह से बेवकूफी के कवनो बात होइए नइखे सकत|

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मतलब साफ़ रहे नेहरु एकरा के जल्द से जल्द समेटल चाहत रहन अउरी औपचारिक सरेंडर के प्रतिबिम्ब आपन भाषण से दे चुकल रहन| एह प सांसद महावीर त्यागी आपन टोपी उतार के कहले कि हमरा कपार प बार नइखे हम टकलू बानी एकर मतलब इ ना नु भईल कि आपन सर कलम करवा ली| नेहरु के डिप्लोमेटिक प्रयास नाकाम होख़त लउके लागल रहे| देश में चीन के लेके विरोध काफी बढ़ चुकल रहे| सीमा प तनाव बढे लागल रहे| आपन फॉरवर्ड पालिसी के तहत सीमा प सेना के तैनाती कईल गईल|

सेना के जवन भाग के नेफा के निगरानी के जिम्मा सौपल गईल ओकरा लगे पहाड़ी इलाका में लडे के कवनो तजुर्बा आ प्रशिक्षण ना रहे| एही पालिसी के चीन लड़ाई के बड वजह कहत रहल बा| एकरा पहिले कि इ निति जमीन प लागु होखे चीन भारत के एगो सन्देश भेलस जवना में भारत के दुनो छोर प लगभग 20 कि.मी. भीतर जाए के कहलस| ओकर कहनाम रहे कि मैकमेहन रेखा के चीन मान्यता ना देला एकरा बाद भी चीन कबो उ रेखा क्रॉस करे के कोशिश नइखे कईले एह से भारत के भी एथिक्स के पालन करे के चाही|

चीन के स्टैंड इ हो गईल रहे कि आक्साई इलाका में जहाँ चीन के दावा बा ओहिजा ओकर रहो आ भारत के उत्तरपूर्व प जस से तस बनल रहो| संसद में एह बात के खूब जोरो शोर से उठल कि पंडित नेहरु चीन के साथे जमीन के सौदा मत करस| चाऊ. एन. लाइ. भारत आइले अउरी लगभग हप्ता भर भारत रहले| अबकी खूब बात चित भईल| आरोप-प्रत्यारोप भी खूब भईल| बातचित में चाऊ. एन. लाइ. आपन पुरान प्रस्ताव के दोबारा रखले|

स्टेटस को के बहाना से चीन अक्साई चीन प आपन दावा छोड़े के बात करत रहे आ एकरा एवज में अरुणाचल प्रदेश में भारत के दावा के छोड़े के प्रस्ताव देत रहन| एह प्रस्ताव के नेहरु ठुकरा दिहले| बातचीत असफल हो गईल| कवनो हल ना निकल पावल| दुनो देश युद्ध के तरफ बढे लागल| सामान्यतः होला भी इहे जब डिप्लोमेसी असफल होखे लागेला तब युद्ध के जन्म होखे लागेला| एही बीचे 6 दिसम्बर 1960 के संयुक्त राष्ट्र में जवाहरलाल नेहरु भारत के तरफ से चीन के सदस्यता खातिर वकालत कईले| एकर आलोचना आज भी खूब होला| लगातार पार्लियामेंट में उनका के घेरल गइल|

चीन के तरफ से लगातार भारत के चौकिन प हमला होत रहे| छिटपुट गोली बारी आ हमला युद्ध के जैम दे दिहलस| नेफा से लेके लद्दाख के सीमान तक हमला शुरू कर दिहलस| भारत फॉरवर्ड निति त लागू कर दिहलस लेकिन जरूरी तईयारी बिल्कुल ना रहे| हथियार आ राशन के भी प्रबंधन ना रहे| एकर खामियाजा भारत के भुगते के परल| 20 अक्टूबर 1962 के औपचारिक युद्ध के एलान भईल| युद्ध के पाहिले दिन नेफा फ्रंट के कमांडर जनरल कौल के दिल के दौरा परे से इलाज खातिर दिल्ली आ गईले|

उनका जगह दोसर कमांडर पोजीशन संभलले| लेकिन जल्द ही दोबारा कौल वापस आके आपन फ्रंट के संभलले| कुछ इतिहासकार एक सब के भी हार के एगो बड कारन मानेला| फिर जवाहरलाल नेहरु आकाशवाणी प आके देश के नाम सन्देश दिहले जवना में चीन के अटैक के निंदा कईले| युद्ध के बीच में ही रक्षा मंत्री मेनन मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिहले| एह तरह से चीन के एह लड़ाई में भारत के फ़ौज बुरी तरह से हार गईल|

एह सीरीज के 18वां भाग अगिला अंक में…..

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