हाल के दिन में साहित्य अकादमी अवार्ड वापसी एगो बरियार डिबेट वाला विषय बन गईल बा| एह प्रक्रिया के शुरुआत कर्नाटक से भईल रहे| जहवा कांग्रेस सरकार प्रसिद्ध विद्वान एमएम कलबुर्गी के हत्या रोके में विफल रहे| राज्य के कांग्रेस सरकार कलबुर्गी के क़ातिल के पकडे असफल भईल बिया| एकरे विरोध में स्थानीय लेखक कर्नाटक के राज्य साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटईले रहले| फिर शुरुआत भईल नामी जामी साहित्यकार उदय प्रकाश अउरी नयनतारा सहगल से ओकरा बाद कारवां बढ़त चलल चल गईल|
आज तक लगभग चालीस से ज्यादा साहित्यकार आपन पुरस्कार लौटा चुकल बाड़े| ओह लोग के आपन निजी निर्णय रहे लेकिन बाद में जवन भेड़ चाल शुरू भईल ओह में पूरा मामला अझुरा गईल| चुकी कुछ साहित्यकार के इ स्पष्ट नइखे कि अवार्ड काहे लौटा रहल बा| लेकिन इ जरूर कहल जा सकेला कि जवन शुरुआत उदय प्रकाश अउरी नयनतारा सहगल से भईल उ अनूठा पहल रहे| ओह लोग के कारन ठोस आ उचित बा|
लोग काहे वापस कर रहल बा ?
सबसे बड सवाल इ बा कि लोग काहे वापस कर रहल बा? सवाल इ नइखे कि जे लोग पुरस्कार लौटा रहल बा उ ओह पुरस्कार के लायक बा कि ना? सवाल इ नइखे कि कवना पार्टी से संरक्षक मिल रहल बा या कवना पार्टी के प्रति झुकाव रहल बा? मुद्दा से पूरी तरह से भटकावे के निरंतर प्रयास कईल जा रहल बा| उ अकादमी के दोष ह कि अगर कोई व्यक्ति ओह लायक ना रहे त काहे देल गईल| लेकिन एह मौका प साहित्यकार के गुणवता प सवाल उठावल जायज चीज नइखे|
अइसन प्रतिक्रिया एह बात के दावा करता कि सच सुने के क्षमता आ जवाब देवे के बढ़िया तर्क नइखे| जवना कारन से एह पहल के शुरुआत भईल रहे ओकर वाजिब कारन रहे साहित्यकारन जईसे एमएम कलबुर्गी, नरेंद्र दाभोलकर अउरी गोविन्द पानसरे के मर्डर के लेके ना कि कवनो सांप्रदायिक झड़प| भले लोग जव के साथे साथे घुन पिसे के कोशिश करत होखे लेकिन मूल कारन उहे रहे जवना के आधार प उदय प्रकाश शुरुआत कईले रहले|
एह बात से भी नाकारल नइखे जा सकत कि पर्सनालिटी कल्ट वाला बात नइखे| कवन नया चीज के शुरुआत होला त ओकर साइड इफ़ेक्ट निश्चित रूप से होला| एह से खाली दोसरा पहलु (पर्सनालिटी कल्ट वाला) के आधार रखकरके सभे के एके ब्रश से पेंट कईल शायद ठीक चीज नइखे| जे सही मायना में एह विरोध के स्वर उठावालास ओह लोग के विरोध जायज बा काहे कि अगर कोई दोसरा के तर्क से सहमत नइखे त ओकरा आपन तर्क देके आपन बात सही साबित करे के चाही ना कि जान से मार के| गोली बन्दुक से विचार ना मरे बल्कि बाद बाकी लोग के उकसावेला ओह विचार के बारे में अउरी जाने आ समझे खातिर|
इहे ना लेखक के किताब भी बैन कईल जा रहल बा| लेखक लोग के गुलामी के पहिला सीढी ह| बोलने के आज़ादी पर ख़तरा भारत खातिर कवनो नया बात नइखे| एह प्रकार के ख़तरा के स्रोत अलग अलग रहल बा| जइसे उदहारण के रूप में अंग्रेज के ज़माने के कोलोनियल क़ानून, न्यायपालिका के कमजोरी, पुलिस में व्याप्त भ्रष्टाचार, नेता लोग के कायरता, प्रकाशक अउरी मीडिया संस्थान के मिलीभगत| नया चीज इ हो रहल बा कि लेखक लोग के चुन चुन के मारल जा रहल बा जेकर विचार सामानांतर नइखे|
विरोध के गाँधीवादी तरीका आ प्रभाव
जहाँ तक रहल बात विरोध करे के तरीका के, त हमरा समझ से इ तरीका कवनो एंगल से गलत नइखे, बल्कि विरोध करे के एगो गाँधीवादी तरीका ह| कम से कम इ लोग आपन विरोध ट्रेन रोकके नइखे नु करत जवना में रेलवे के बहूत हानि सहे के परेला जवन कि राजस्थान के गुजर लोग आपन आरक्षण खातिर करेला| इ लोग आपन विरोध सड़क प अनसन करके नइखे नु करत जवना से यातायात सहित बहूत सारा समस्या खड़ा होला|
इ लोग आपन विरोध तोड़ फोड़ करके नइखे नु करत जवना में सरकार आ पब्लिक दुनो के बरियार हानि झेले के परेला| इ लोग आपन विरोध हिंसक तरीका से नइखे नु करत जवना के खिलाफ गाँधी जी रहत रहन| इ लोग विरोध कोई के पर परिवार के गाली गलौज करके नइखे नु करत जवन आज काल लोग ट्विटर आ फेसबुक जइसन सोशल साइट्स प करेला| कम से कम ओह लोग से बेहतर विरोध के तरीका बा जे सक के आधार प लोग के घर में घुस के मार देत बा|
गाँधी जी बहूत पाहिले कहत रहले आन्दोलन के समय कि अहिंसक विरोध में काफी ताकत होला| आजू ले हम किताब में पढले रही लेकिन अपना जिनगी में एकर अनुभव हो गईल| हमार कहे के मतलब इ बिल्कुल नइखे कि हम एह लोग के गाँधी जी से कम्पेयर करत बानी| हम गाँधी जी के विचार से कम्पेयर कर रहल बा| इ विरोध एकदम अहिंसक आ शांतिपूर्ण बा| अइसन कदम के हमनी के स्वागत करे जे चाही|
तमाम साहित्यकार के साथे जवन भईल बा चाहे बात कलबुर्गी के होखे या तमाम तर्कवादी लेखक लोग के, ओह लोग के तब तक न्याय ना मिल पाई जब ले ओह लोग के साहित्यिक परिवार से प्रतिरोध के चिंगारी ना उठी| ओह लोग के हक़ भी बा काहे कि साहित्यकार से जुडल मुद्दा बा| हम सांप्रदायिक झड़प के एह आन्दोलन में शामिल नईखी करत जवन आधार प आपन विचार रख रहल बानी| काहे कि अगर साम्रदायिक झड़प प इ प्रतिक्रिया देवे के रहे त पहिला काहे ना भईल एही सरकार के काहे होता? एहिजा मंशा प प्रश्न उठे शुरू हो जाई जवन कि उचित भी बा|
सरकारी प्रतिक्रिया
सरकार के तरफ से जेटली जी द्वारा कुछ उटपटांग प्रतिक्रिया देल गईल बा| पहिला चीज उहाँ के ‘कारखाना में तईयार विद्रोह’ कहले बानी| हमरा समझ से बेशक सारा लेखक लोग के आम आदमी लेखा अलग अलग राजनितिक विचार होखे लेकिन इ प्रक्रिया राजनीती से परे बा| लोग आपन स्वेच्छा से पुरस्कार वापस करके एह साइलेंट मूवमेंट में हिस्सा ले रहल बा| उहाँ के आरोप लगवले बानी कि पुरान सत्ता के संरक्षण प्राप्त मुहिम ह लेकिन कुछ लेखक आइसनो बाड़े ओह मुहीम में जे कांग्रेस के काफी आलोचक भी रहल बाड़े|
1989 में जब राजीव गाँधी जी प्रधानमंत्री रहले तब सलमान रश्दी के किताब ‘द सैटेनिक वर्सेज’ प प्रतिबंध लगा देले रहले तब बहूत सारा उदारवादी बुद्धिजीवी सामने आके विरोध कईले रहले लोग आ सरकार प अभिव्यक्ति के आजादी प सवाल भी खड़ा कईले रहे| अइसन बहूत सारा उदहारण इतिहास में मिली जहवाँ लोग सरकार के खूब विरोध कईले बा| एह दोसरा के विचार के सम्मान अउरी स्वागत करे के चाही| अइसन चीज प दुःख व्यक्त करके बढ़िया गवर्नेंस के आश्वासन देवे के चाही बजाए उल्टा पुल्टा चीज के डीफेंड करे के, इ ठीक चीज नइखे|
एगो अउरी गंभीर प्रतिक्रिया आइल बा सरकार के तरफ से कि एह में से कतना लेखक इंदिरा गाँधी जी के इमरजेंसी के विरोध कईले बा| सबसे पहिला बात कि जेटली जी एह शासन के आपातकाल से काहे तुलना कर रहल बाड़े, इ एगो सोचे वाला बात बा| दूसरा बात कि बहूत सारा लेखक जे पुरस्कार वापस कईले बा ओह घरी छात्र जीवन में होई शायद कुछ पैदा भी ना भईल होखी|
तीसरा बात इ कि नयनतारा सहगल इंदिरा गाँधी के मुखर विरोधी रहल बाड़ी खासकर आपातकाल के समय में आ जयप्रकाश नारायण जी के खूब साथ देले बाड़ी| जयप्रकाश नारायण जी के पत्रिका एव्रीमैन में लगातार लिखला के वजह से इंदिरा गाँधी उहाँ के पति तक के परेशान कईले रहली ताकि नयनतारा प नियंत्रण पा सकस| चौथा बात कि जेटली जी के मंत्रिमंडल में जगमोहन अउरी मेनका गाँधी जईसन लोग बा जे आपातकाल के पुरजोर समर्थन कईले रहे|
अंत में निष्कर्ष के रूप में हम इहे कहल चाहब कि शासित सरकार के चाहत बा कि ‘बोले के अधिकार’ जईसन चीज के सामने आके समर्थन करो बजाए उटपटांग कुतर्क देला से| लोग निराशावादी हो जाला कि का होई इ कूल्ह चीज से ? इ सब थोडा समय के चीज ह मीडिया के सामने आके निकल जाई| चुकी दिक्कत इ बा कि हमनी के तुरंत हल पावे वाला जवन प्रवृति दिमाग में आ गईल बा उहे हिंसक घटना के जन्म देला| अहिंसक आदोलन में थोडा ज्यादा समय लागी लेकिन प्रभाव काफी व्यापक रहेला| विरोध के तरीका अहिंसक तरीका में से एगो तरीका ह जवना के स्वागत करे के चाही| एक त ओइसही साहित्य फीका पड़ रहल बा अगर सही समय प एकरा के संज्ञान में ना लेवल जाई त तर्कवादी लेखक के खात्मा निश्चित बा| दूसरा शब्द में कही त साहित्य के गुलामी के शुरुआत हा रोकल बहूत जरूरी बा|
नोट :- हमार इ लेख ‘हेल्लो भोजपुरी’ में प्रकाशित हो चुकल बा|
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