सबसे पाहिले कुछ लिखे से पाहिले माफ़ी चाहब कि पिछला महिना से कुछ ख़ास लिख ना पवनी, काहे कि पूरा समय सारणी अव्यवस्थित हो गईल रहे खैर कुछ कुछ लिखात रहे डायरी में, बस टाइप ना हो पावत रहे | अब आवल जाओ मुद्दा प जातिगत जनगड़ना बहूत पाहिले अंग्रेज के जमाना में होत रहे लेकिन आजादी के बाद से जाती से सम्बंधित जनगड़ना होत रहे लेकिन ओकर सुचना पब्लिक डोमेन में ना आवत रहे, खासकर 1931 के बाद त बंद ही हो गईल रहे |
लेकिन मंडल कमीशन जब आइल 1980 में तब 54% OBC 30% अनुसूचित जाती जनजाति आ 16-18 प्रतिशत के आस पास उच्च जाती के मोटा मोती आकड़ा सामने आइल | लेकिन येह जातिगत जनगड़ना के सुचना समावेश भईल रहे सत्तारूढ़ गठबंधन के बड़े बड़े लोग नेता जी लोग जईसे लालू प्रसाद यादव, शरद यादव, मुलायम सिंह यादव अउरी मायावती जईसन नेता लोग के बेजोड़ मांग के बाद | ओह घरी विपक्ष में बईठल बीजेपी, अकाली दल, शिवशेना भी यह बात के पूरा समर्थन कईले रहे | लेकिन जब भाजपा के सरकार में उहे जनगड़ना के परिणाम के लुकवावल जाई तब प्रश्न उठल लाजमी बा जवना के एक समय विपक्ष में रहके सपोर्ट कईले रहे |
कई विश्लेषक लोग के मानना बा कि बिहार के चुनाव नजदीक बा एह से एकरा के लुकवावल जा रहल बा | इकोनॉमिक टाइम के राजेश रामचंद्रन के एगो विश्लेषण के मुताबिक जब अफसर लोग देखलस कि उच्च जाती के लोग के संख्या काफी कम बा तब ओह लोग के आशंका भईल कि कही इ सवाल मत उठे लागे कि जनसख्या के हिसाब से राजनितिक भागीदारी काहे नईखे होत | मतलब उनकरा गणित के मुताबिक बीजेपी में जनगड़ना के अपेक्षाकृत राजनितिक भागीदारी का अनुपात विषम बा | एह डर से बिहार चुनाव के ध्यान में रखत ओह तरी फैसला लेवल गईल बा |
एकरो में कई तरह के बात सामने उभर के आवेला जातिगत जनगड़ना के रिपोर्ट के सार्वजानिक करेके मांग के रूप में विपक्ष पुरजोर तरीका से घेर रहल बा | विपक्ष के नेता लोग केंद्र सरकार के पिछड़ा के दुश्मन तक बतावे लागल बा | एह में दू तरह के बात होला पहिला कि कवनो जनगड़ना के रिपोर्ट अतना जल्दी ना आवे ओकर पूरा विश्लेषण होला, फिर प्लान बनेला, ओकरा बाद उ सामने आवेला | दूसरा बात अगर जनगड़ना भईल बा तब सामने अईबे नु करी एह में घबराय के ना चाही, अगर कोई कहे कि ना बिहार चुनाव के पाहिले दिही ताकी आपन-आपन पार्टी खातिर राजनितिक समीकरण बनावल जाव उ उचित नईखे |
एह में कवनो दू मत नईखे कि जातिवाद के जहर सामाजिक एकता के बरियार चुनौती दे रहल बा | अजीब विवंडना बा देश में सबसे ज्यादा एकर जे प्रबल पैरोकारी कर रहल बा उ लोग अपना के ‘लोहिया’ जी आपन गुरु मानेला जबकी लोहिया जी के कहल रहे कि जातिवादी के दिवार तुडजा, एह में सबसे बड सवाल इहो बा कि एह से जातिवादी बढ़ी कि घटी ? इ बात ठीक ओकरे लेखा बा जईसे बौध धर्म में भगवान बुध के बड़हन मूर्ति बनाके पूजल जाला जबकी उनकर सिधांत मूर्ति पूजा के विरोध करत रहे |
जब अतने बेचैनी बा लोहिया जी के शिष्य के, पिछड़ा लोग के जाती आधारित सामाजिक अउरी आर्थिक स्तिथि जाने के, त पुराना डाटा २०११ वाला उठाके काम करे शुरू करीना, काहे कि अतना भरोसा रखी कि कवनो आमूल परिवर्तन नईखी भईल ओह लोग के स्टेटस के लेके | लेकिन एह तरह के भकुआइल राजनीती कईल शोभा नईखे देत | असल बात इ बात कि बिहार के चुनाव में जबले जातिगत समीकरण ना बनी तबले चुनाव में मजा कहाँ से आई उ समीकरण बनावे खातिर कच्चा माल त लगबे नु करी |
बीजेपी के साथ सबसे बड समस्या इ बा कि जइसन राजनीती दिल्ली चुनाव के पाहिले कईलस उ अब बिहार चुनाव में कर रहल बिया | अमित शाह द्वारा बिना रिसर्च मोदी जी के पहिला OBC प्रधानमंत्री बताके वोट ध्रुवीकरण के कोशिश होखे जवन बाद में झूठ साबित होखे, कि ना उ त देवेगोड़ा जी रहले पहिला ओबीसी प्रधानमंत्री | ओकरा बाद अमित शाह जी के बयान के जबरजस्ती समर्थन करत उनकर प्रवक्ता संबित पात्रा जी ओह में चार चाँद लगा देले, जवना में दलील देले कि कागज पे उ लोग ओबीसी में आवेला साउथ में लेकिन बड जाती में आवेला देवेगोड़ा लोग, खैर हम डिबेट सुनत रही ओहिघरी यू-ट्यूब बंद कर देनी काहे कि संबित जी के उ समीकरण हमारा समझ के बाहर रहे |
दूसरी गलती ये कि अगर अनुसूचित जाती अउरी जनजाति के जातिगत जनगड़ना सार्वजानिक कर देवल गईल त बाकी के काहे नइखे भईल ? इ सवाल विपक्ष भी पूछी अउरी मीडिया भी काहे कि हो सकेला कि ओहमे कवनो फायदा लउकत होखे जवना में आखिर खाली अनुसूचित जाती आ जनजाति के काहे ना भईल | निश्चित रूप से सामने आवे के चाही लेकिन जल्दीबाजी में ना, काहे कि जातिगत जनगड़ना जब सामने आवेला तब बहूत सारा निति जवन चलावल जाला विकास खातिर ओकर स्टेटस के अपडेट मिलेला उदहारण के रूप में 2011 के जनगड़ना लेवल जा सकेला जवना में बहूत सारा विकास में मॉडल ध्वस्त नजर आइल, जनगड़ना के विश्लेषण आईला के बाद |
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