जरूरत ही अविष्कार के जननी ह| समय के साथे जब-जब जरूरत पडला तब-तब बदलाव आवत रहेला| उदहारण के रूप में करेंसी के क्रमागत उन्नंती लेली| सबसे पहिले बाटा सिस्टम चलत रहे| मतलब सामान के बदले सामान| हम लईकाई में एह चीज के देखले बानी गाँव में काफी समय तक थोडा बहुत प्रभाव रहे| जब गर्मी में ललमी बेचाए दुआरी तक आवत रहे ओकर रेट गेहूं से अधिया के रहत रहे| अभियों बा लेकिन थोडा अंतर इ आ गईल बा छोट मोट दुकानदार पाहिले आनाज के पईसा में कन्वर्ट करताs फिर ओह पईसा के अनुसार सामान देत बा|
खैर एह बाटा सिस्टम के बाद हमनी के राजा महराजा आपन अर्थव्यवस्था चलावे खातिर कॉइन(गोल्ड, सिल्वर आ ब्रोंज) लावल लोग| ओकरा बाद पेपर करेंसी के आगमन भईल जवन आज भी समाज में मौजूद बा| अब धीरे धीरे क्रमागत उन्नति के क्रम में डेबिट कार्ड, कैश कार्ड अउरी तमाम तरह के पेमेंट जईसे पेटीएम आदि डिजिटल कॉइन करेंसी आ रहल बा| आवे वाला समय में बिट-कॉइन करेंसी समाज में आपन जगह लिही| हालाँकि आई-टी सेक्टर में गुप्त रूप से बिट कॉइन करेंसी शुरू हो चुकल बा लेकिन सरकार से मंजूरी नइखे मिलल|
इ सब उन्नति समय के मांग के लेके होता| एगो उदहारण से एह बात के समझल जा सकेला| मान लिही रुआ दोकानी प 99 रुपया के सामान खातिर 100 के नोट पकडइनी आ चेंज ना होखला के चलते या त दूकानदार पईसा ना दिही आ दिही ना त एगो टॉफी पकड़ा दिही| बहुत कम अइसन होला जब पईसा लौटे| ओकरा पीछे भी व्यपारिन के एगो आर्थिक साजिश होला| खैर मुद्दा के बात इ बा कि ठीक एही तरी समय के साथे बदलाव करत, बहुत सारा पूरान समस्या के हल करत, वस्तु आ सेवा कर बिल जन्म लेले बा|
एकरा पाहिले वैट (वैल्यू एडेड टैक्स) आइल रहे| वैट भी पुरान टैक्स सिस्टम सेंट्रल एक्साइज, सर्विस टैक्स, सेल्स टैक्स आदि वेग्रह से स्थान लेके ही आइल रहे| वैट सिस्टम भी बहुत सारा पूरान समस्या के हल करत ही आइल रहे| उ बात अलग बा कि आज के राजनितिक पार्टी एकरा के राजनितिक पेंट से पेंट कर रहल बा| अभी फिलहाल इ बिल लोकसभा में पास हो चुकल बा लेकिन राज्यसभा में राजनितिक पेंच के चलते अभियो फसल बा| जब इ राज्यसभा में पास हो जाई आ महामहिम राष्ट्रपति जी एकरा प साइन कर दिहे तब इ एक्ट बनके नियमित रूप से लागु हो जाई|
अब सवाल इ उठत बा कि का इ बिल बीजेपी के राज में आइल बा? जवाब मिली बिल्कुल ना| 2005 में केलकर टास्क फ़ोर्स बनल रहे उहे रीकमेंड कईले रहले| 2006-07 के बजट स्पीच में एह बात कहल गईल रहे कि इ बिल 2010 तक बन के तईयार हो जाए के चाही| तब सरकार कांग्रेस के रहे| अब सवाल उठत बा कि तब कांग्रेस काहे विरोध करत बा? ओह बिल के कवनो बीजेपी ले नेता जी बनईले बाड़े कि ओही कमिटी के लोग बनवले बा? अबले राज्यसभा में पास नु हो गईल चाहत रहे?
चुकी राज्यसभा में कांग्रेस के बहुमत होखे के चलते ही नु अटक गईल ओहिजा| तब जवाब इहे मिली कि कांग्रेस ओही कारन विरोध करत बा जवना कारन बीजेपी ओह घरी विरोध करत रहे| राजनीती के पेंच के चलते एगो बढ़िया बिल फसल बा जवन की अर्थव्यवस्था खातिर सही संकेत नईखे| इ बिल के टाइमलाइन इहे रहे कि 2010 में ड्राफ्ट होखला के बाद 2016 के फाइनेंसियल इयर 1 अप्रैल 2016 से लागू हो गईल चाहत रहे| 2010 में ड्राफ्ट भी भईल एह प स्टैंडिंग कमिटी आपन सुझाव भी देलस जवना के बाद वस्तु आ सेवा कर बिल 2014 बनल लेकिन कांग्रेस के चलते राज्यसभा में पास ना हो पाइल|
वस्तु आ सेवा कर बिल के सफ़र
सबसे पाहिले एह बात के समझल जाव कि इ ह का? एकरा के समझे से पाहिले एगो बहुत छोट चीज समझे के परी| हमनी के दू तरह से टैक्स भरिला जा| पाहिले डायरेक्ट आ दूसरा इनडायरेक्ट| डायरेक्ट टैक्स जवन सीधे सीधे दिहिलेजा जईसे आपन कमाईल सैलरी से इनकम टैक्स भारिलाजा| दूसरा इनडायरेक्ट, जईसे हमनी के कवनो सामान जईसे नून-तेल खरीदीना जा ओह पर भी टैक्स लागेला जवन सीधे सीधे ना देके इनडायरेक्टली देवेनी जा| वस्तु आ सेवा कर बिल मूल रूप से खाली इनडायरेक्ट टैक्स खातिर ही लावल गईल बा जवना से ओकर समस्या के समाधान कईल जा सके|
एगो उदाहरन से समझल जा सकत बा| मान लिही पहिला स्टेप प हमनी के किसान एक किलो गेहूं के उत्पादन कईलस जवना के कीमत बा 10 रुपया ओकरा के बाजार में बेचलस 30 रुपया में| पूरान सिस्टम के अनुसार 10% जवन टैक्स लागत रहे उ 30 रुपया प लागत रहे, यानी कि 3 रुपया सरकार भइल| फिर दुसरका स्टेप प जब इ गेहू के कवनो मिलवाला मालिक के बेचीं त 30 रुपया में खरीदल गेहू के आटा बनाके कवनो होटल वाला के 60 रुपया प बेचलस, त टैक्स अब 60 रुपया प लागी यानी की सरकार के 6 रुपया भईल|
तीसरा स्पेट में जब होटल वाला ओही 60 रुपया के किनल आटा के रोटी बनाके रउरा के सर्व कईलस 100 रुपया में, तब एहिजा टैक्स लागी 10 रुपया जवन सरकार के होई| कुल मिलाके (3+6+10=19%) रुपया सरकार के हो गईल| लेकिन जमीनी स्तर प हकीकत इ रहे कि 8वो प्रतिशत टैक्स ना मिल पावत रहे| कारन इ रहे कि कोई सामान के बिल ना बनवावत रहे| टैक्स के चोरी खूब होत रहे| लागत रहे कि सरकार के खूब फायदा हो रहल बा लेकिन ओह टैक्स फायदा के मजा बिच वाला ले जात रहे| दूसरा दिक्कत रहे टैक्स के उपर|
एकरा चलते सामान के अंतिम मूल्य भी काफी बढ़ जात रहे जवना के चलते लोग ख़रीदे में सक्षम ना हो पावत रहे| चुकी लोग कम खरीदत रहे त ओकर प्रोडक्शन भी कम होत रहे| चुकी प्रोडक्शन कम होत रहे यानी कि लोगन के नौकरी कम मिलत रहे जवना के परिणाम स्वरुप सरकार के डायरेक्ट टैक्स कम मिल पावत रहे| सब एकदूसरा से लिंक्ड बा| अंततः सार इ बा कि सरकार के खूब घाटा होत रहे ऊपर के भारी टैक्स लेवे के वजह से नाम भी ख़राब होत रहे|
तब एक समस्या के निजात पावे VAT सिस्टम आइल| माने इ कि अब टैक्स के उपरे टैक्स ना लागी| पाहिलला उदाहरन में इहे नु रहे कि 10 रुपया के लागत के उत्पादित गेहू किसान 30 रुपया में बेचत रहे तब ओकरा 30 प टैक्स भरे के पडत रहे| लेकिन VAT सिस्टम में 30 ना बल्कि (30-10=20) प टैक्स यानी कि 2 रुपया भरे के परत रहे| ठीक एही प्रकार जब किसान से लेके आटा मिल मालिक 60 में बेचीं तब ओकरा 60 रुपया प टैक्स ना बल्कि (60-30=30) प लागी मतलब कि आटा मिल मालिक 6 रुपया के जगह खाली 3 रुपया देवे के पड़ी| ठीक ओही प्रकार से होटल मालिक के भी अब 100 रुपया प टैक्स ना देवे के परी बल्कि (100-60=40) प देवे के परी|
यानी कि होटल मालिक अब 10 रुपया के जगह खाली 4 रुपया दिहे| यानी कि सरकार के कुल मिलाके (2+3+4=9) आई| अगर देखल जाव त पईसा ओतने मिली जेतना पाहिले वास्तविक रूप से मिलत रहे| फिर सवाल बन सकत बा फायदा का भईल? सरकार के टैक्सवा कम ना हो गईल? जवाब इहे मिली कि फायदा उ भईल के सामान के दाम पाहिले से कम हो गईल जवना के चलते लोगन के परचेजिंग पॉवर बढ़ जाई| एह से सामान के डिमांड बढ़ी जवना चलते बिसनेस के एक्सपेंशन होई आ नौकरी के नया अवसर खुली| चुकी नौकरी के अवसर खुली एकरा परिणाम स्वरुप सरकार के डायरेक्ट टैक्स में इजाफा होई|
तब एगो अउरी सवाल बन सकेला कि एहिजा लोग टैक्स के चोरी काहे ना करी? जवाब इहे मिली एह से ना करी काहे कि बिल बनावल अनिवार्य हो गईल| मान लिही के ऊपर वाला उदाहरन में होटल मालिक वाला बाबु आटा मिल वालू मालिक से बिल नइखन बनवावत त उनुका सारा बिल भरे के पड़ जाई| एह से सभे बिल बनवावे लागी| उनका लगे पुरान बिल होई तबे 10 के जगहां 4 के ऑफर मिली ना त पूरा 10 रुपया भरे के परी|
वस्तु आ सेवा कर काहे जरूरी बा?
अब एगो अउरी सवाल खड़ा हो सकत बा कि जब हतना बढ़िया VAT सिस्टम बडले बा त वस्तु आ सेवा कर के का जरूरत बा? जवाब मिली कवनो चीज पाहिले से बेटर हो सकेला लेकिन बेस्ट ना नु होई| एकरो से बढ़िया सिस्टम बा वस्तु आ सेवा कर| इ बिल्कुल नइखे कि हमनी के सबसे पाहिले टेस्ट कर रहल बानी जा| एकरा पाहिले भी बहुत सारा देश उपयोग कर चुकल बा आ ओह देशन में सफल भी रहल बा| एह सिस्टम में कहल गईल बा कि सारा इनडायरेक्ट टैक्सन के हटा के एगो सिंपल आ पारदर्शी सिस्टम लावल जाव जवना के नाम होखो वस्तु आ सेवा टैक्स|
इ दू लेवल प होई पहिला राज्य स्तर प जवना के नाम बा SGST(स्टेट गुड्स एंड सर्विस टैक्स) CGST (सेंट्रल गुड्स एंड सर्विस टैक्स)| मूल रूप से इ सिस्टम भी VAT के सामानांतर ही होई| एहिजा भी टैक्स के उपरे टैक्स ना लागी| VAT वाला ही सिधांत लागु होई लेकिन VAT से ज्यादा पारदर्शी अउरी साधारण होई| VAT सिस्टम खाली गुड्स(वस्तु) प लागत रहे लेकिन इ सिस्टम गुड्स(वस्तु) आ सर्विस(सेवा) दुनो प लागु होई| चुकी पिछिलका सिस्टम में होत इ रहे कि गुड्स आ सेवा के पहचान में अझुराके काफी टैक्स के चोरी के स्पेस मिल जात रहे|
एह सिस्टम के आईला से फायदा का होई? एह आईला के बाद उहो टैक्स के चोरी के संभावना ख़त्म हो जाई त सरकार के खजाना भी संतुलित रही आ सामान के दाम भी कम हो जाई| चुकी सामान के दाम कम हो जाई त सामान के डिमांड भी मार्किट में बढ़ी जवना के परिणाम स्वरुप जीडीपी में भी बढ़ोतरी होई| दूसरा फायदा इ होई कि जवन समान पाहिले ज्यादा दाम में मिलत रहे उ कम दाम में मिलला के वजह से लोगन के सेविंग ज्यादा होई| चुकी लोगन के सेविंग ज्यादा होई त ओह सेविंग के इन्वेस्टमेंट में बदलल जा सकत बा, जवना से बिसनेस एक्सपेंशन में मदद मिली| एकरा परिणामस्वरूप रोजगार के नया नया अवसर पैदा होखे लागी|
लेकिन लोग एगो अउरी सवाल पूछ सकत बा कि अगर इ चीज लागु सब प होता त शराबो प होई नु? तब त मजा आ जाई शराबो के दाम कम हो जाई| जवाब बा बिल्कुल ना| हमनी के वस्तु आ सेवा कर दोसरा देशन से कुछ भिन्न बा| हमनी के एकजेम्पटेड लिस्ट भी बनवले बानी जा| माने इ कि कुछ अईसन लिस्ट बनावल बा जहाँ लागु ना होई| ओह लिस्ट में शराब के भी नाम बा| चुकी लोग डिबेट में एह बात के गलत तरह से बोलेला कि एह सबसे राज्य सरकारन के घाटा हो जाई आ दरुहा लोगन के मजा आ जाई| जबकी गलत बोलेला लोग| चुकी अपना पार्टी खातिर बकैती करे के रहेला त स्पोक्सपर्सन लोग इ सब गलत बोलेला|
एगो अउरी बात लोगन के सोचे के चाही कि जब सब अतना अच्छा-अच्छा बा तब का बोलके विरोध करेला लोग? जवाब मिले कि इहे सब बोलेला कि राज्य सरकारन के घाटा होई| टैक्स कलेक्शन राज्य सरकारन के कम होई| जबकी सच्चाई इ बा कि टैक्स कलेक्शन थोडा कम होई लेकिन घाटा ना होई| आय ? इ का कहत बाडs गौरव भाई| जी बिल्कुल सही कहत बानी| पहिला बात, वाई.वी. रेड्डी के अध्यक्षता में 14th फाइनेंस कमीशन के कहनाम बा कि केंद्र सरकार के आपन पूरा टैक्स कलेक्शन में से 42% स्टेट के देवे के चाही जवन कि पिछिल्का फाइनेंस कमीशन के 10% ज्यादा बा|
अगर केंद्र सरकार के ओहिजा कुछ ज्यादा मिलतो बा त डिवोलुसन(केंद्र आ राज्य के बीच पईसा के बटवारा) के वक्त त बात बराबरे नु हो जाई| दूसरा बात जईसे वस्तु आ कर बिल पास होके एक्ट बन जाता तब राष्ट्रपति के दिशा निर्देश में एगो GST काउंसिल के गठन करे के बात भईल बा| एह काउंसिल में स्टेट के भागीदारी सेंट्रल से ज्यादा बा| इ काउंसिल स्टेट आ केंद्र के बीच टैक्स वाला मामला में दखल दिही| एकजेमपटेड लिस्ट बनावे के अधिकार भी एही काउंसिल के बा| वस्तु आ सेवा प लागल इंटीग्रेटेड टैक्स के बटवारा भी इहे काउंसिल करी| हमरा कवनो एंगल से नईखे लागत कि एह बिल से राज्य सरकारन के शोषण होखत होखे|
कुल मिलाके हमार कहे के मतलब इ बा कि अगर अर्थव्यवस्था के हित में कवनो बढ़िया कदम उठावल जा रहल बा त ओह में सबके साथ देवे के चाही| देश के विकास वाला चीजन प राजनीती ना करे के चाही| काहे कि मान लिही कि 10 साल बाद लागु होत बा त हमनी के 10 साल में जवन विकास करब जा उ रह जाई| दूसरा शब्द में कही त 10 साल पीछा हो जाईम जा| जहाँ भी समस्या बा ओहिजा बात करके हल करे के कोशिश करे के चाही| लेकिन इ सब एथिकल बात से आज के राजनीती गुरेज करेला|
नोट :- इ लेख आखर पत्रिका के मई 2016 के अंक में छप चुकल बा|
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